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अध्याय 39 – देश के लिए कानून बनाने (के कार्य में) सुधार करने के लिए `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के प्रस्‍ताव

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एम वाई = उन राज्‍य सभा सदस्‍यों की संख्‍या जिन्‍होंने हां के पक्ष में मतदान किया है

एम एन = उन राज्‍य सभा सदस्‍यों की संख्‍या जिन्‍होंने ना के पक्ष में मतदान किया है (अथवा अपना मतदान दर्ज नहीं करवाया है)।

एम टी = सदस्‍यों की कुल संख्‍या

उस मामले में,

हां भाग = वाई/टी + (एम वाई /एम टी) x (यू / टी)

ना भाग = एन/टी +(एम वाई /एम टी )x (यू / टी)

(X=गुना)

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राज्‍यसभा के अध्‍यक्ष

यदि हां भाग ना भाग से ज्‍यादा हो जाता है तो अध्‍यक्ष विधेयक/क़ानून को पारित/पास घोषित कर देगा नहीं तो वह विधेयक/क़ानून को असफल घोषित कर देगा।

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जिला कलेक्टर

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून में बदलाव/परिवर्तन चाहता हो तो वह जिला कलेक्‍टर के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्‍तुत कर सकता है और जिला कलेक्टर या उसका क्‍लर्क इस ऐफिडेविट/हलफनामा को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पन्ने का शुल्‍क/फीस लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

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तलाटी (अथवा पटवारी/लेखपाल )

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्‍लॉज/खण्‍ड में प्रस्‍तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी पावती/रसीद देगा। इस हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल दिया जाएगा।

 

(39.6) सांसदों द्वारा बनाए गए कानूनों पर जूरी प्रणाली (सिस्टम) लागू करने के लिए `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ समूह की मांग और वायदा

किसी और कारण से नहीं बल्‍कि केवल घूस के कारण ही सांसद `सेज` अधिनियम, 498 ए, डी.ए.वी. आदि जैसे कानून लागू कर रहे हैं। इस गड़बड़ी को रोकने के लिए मैं कैसा प्रस्‍ताव कर रहा हूँ? `प्रजा अधीन-राजा` का पहला प्रस्‍ताव नागरिकों को किसी भी ऐसे असंवैधानिक कानून को रद्द/समाप्‍त करने में नागरिकों को सक्षम/समर्थ बनाते हैं जिन्‍हें सांसदों ने बनाया है। लेकिन ऐसा तब हो पाएगा जब वे कानून पारित कर देते हैं। शुरू में ही ऐसे गलत कानूनों को नागरिक कैसे रोक सकते हैं? देखिए, निम्‍नलिखित कानून इस संभावना को समाप्‍त/कम कर देगा :

1.    संसद द्वारा कानून पास/पारित हो जाने के बाद प्रधानमंत्री भारत के सभी तहसीलदारों को कानून की प्रति अंग्रेजी भाषा और उस राज्‍य की आधिकारिक/सरकारी भाषा में भेजेंगे।

2.    हरेक तहसीलदार `मतदाता सूची` में से क्रमरहित तरीके से 30 नागरिक-मतदाताओं को जूरी सदस्‍य के रूप में बुलाएगा।

3.    ये सभी 30 नागरिक एक-एक वक्‍ता/स्‍पीकर चुन सकते हैं। इन 30 सुझाए गए वक्‍ताओं में से क्रमरहित तरीके से 10 का चयन किया जाएगा। ये 10 सुझाए/चुने गए वक्‍ता अथवा उनके प्रतिनिधि पारित किए गए कानून  पर 1 घंटे का भाषण देंगे।

4.    जिस सांसद ने कानून का प्रारूप/ड्राफ्ट तैयार करेगा तथा इसका प्रस्‍ताव किया था, वह एक या अधिक प्रतिनिधि को भेज सकता है जिनके पास भाषण देने का कुल समय 3 घंटे का होगा।

5.    प्रत्‍येक जूरी सदस्‍य से 30 मिनट तक बोलने के लिए कहा जाएगा जिसके दौरान वह भाषण दे सकता है या किसी व्‍यक्‍ति, जिसने पारित होने वाले कानून पर भाषण दिए हैं, उनसे प्रश्‍न पूछ सकता है।

6.    प्रत्‍येक दिन कार्यवाही 10.30 बजे सुबह शुरू/प्रारंभ होगी और यह 6.30 बजे शाम तक चलेगी जिसमें 2.00 बजे से 2.30 बजे तक लंच/भोजनावकाश का समय होगा।

7.    तीसरे दिन की समाप्‍ति पर, जूरी सदस्‍यगण पास/पारित किए जाने वाले कानून पर अपने-अपने हां/नहीं बताएंगे।

8.         यदि 30 जूरी सदस्‍यों में से 16 से अधिक सदस्‍य ‘ना’ या ‘इनमें से कोई विकल्‍प नहीं’ कहते हैं तो तहसीलदार उस कानून को रद्द के रूप में चिन्‍हित कर देगा।

9.    यदि भारत में तहसील जूरी सदस्‍यों में से बहुमत कानून को रद्द कर देती है तो प्रधानमंत्री उस कानून को रद्द घोषित कर देंगे।

भारत में 6000 वार्ड और तहसील हैं। इसलिए लगभग 6,000 गुना 3 = 18000 नागरिकों से पारित किए गए कानून पर उनके हां/नहीं लिए जाएंगे। यह देखते हुए कि समय केवल तीन ही दिन का है, इसलिए लोगों की संख्या काफी अधिक है जिन्‍हें घूस देना कठिन होगा। इसलिए, यह प्रक्रिया/तरीका संसद पर एक प्रभावशाली चेक/नियंत्रण होगी। प्रत्‍येक जूरी (सदस्‍य) को लगभग 100 रूपए मिलेंगे और इसलिए लागत 1.8 करोड़ रूपए तथा अन्‍य लागत (जैसे तहसीलदार, जो सुनवाई आदि की व्‍यवस्‍था/आयोजित करेगा, उसका वेतन) होंगे। कुल लागत संसद द्वारा पास/पारित किए जाने वाले प्रत्‍येक कानून पर लगभग 5 करोड़ रूपए होगा। संसद एक वर्ष में लगभग 100 कानून पास/पारित करती है। इसलिए कुल लागत प्रति वर्ष 500 करोड़ रूपए के लगभग आएगा। यह लागत किसी गलत कानून के पारित हो जाने के कारण होनेवाली हानि की तुलना में बहुत छोटी/कम है। ऐसे व्‍यवस्‍था का प्रयोग करके, नागरिकों के लिए यह पक्का/सुनिश्‍चित करना आसान हो जाएगा कि सेज, 498 ए, डी.ए.वी. आदि कानून नहीं आ पाऐंगे।

श्रेणी: प्रजा अधीन