सूची
- (39.1) कानून बनाने (के कार्य) में समस्याएं
- (39.2) पहली समस्या का समाधान
- (39.3) दूसरी समस्या का समाधान
- (39.4) नागरिकों को संसद में हां / नहीं दर्ज करने में समर्थ / सक्षम बनाने के लिए `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह`के प्रस्ताव
- (39.5) उपर्युक्त कानून लागू करवाने के लिए ड्राफ्ट / प्रारूप
- (39.6) सांसदों द्वारा बनाए गए कानूनों पर जूरी प्रणाली (सिस्टम) लागू करने के लिए `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ समूह की मांग और वायदा
सूची
- (39.1) कानून बनाने (के कार्य) में समस्याएं
- (39.2) पहली समस्या का समाधान
- (39.3) दूसरी समस्या का समाधान
- (39.4) नागरिकों को संसद में हां / नहीं दर्ज करने में समर्थ / सक्षम बनाने के लिए `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह`के प्रस्ताव
- (39.5) उपर्युक्त कानून लागू करवाने के लिए ड्राफ्ट / प्रारूप
- (39.6) सांसदों द्वारा बनाए गए कानूनों पर जूरी प्रणाली (सिस्टम) लागू करने के लिए `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ समूह की मांग और वायदा
कानून बनाने (के कार्य में) सुधार करने के लिए `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के प्रस्ताव |
(39.1) कानून बनाने (के कार्य) में समस्याएं |
1. पहली समस्या : सांसद, विधायक आदि वैसे कानून नहीं बनाते जैसा हम नागरिक चाहते हैं। उदाहरण : सांसदगण `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ कानून लागू करने से मना/इनकार करते हैं, जिस कानून से हम आम लोगों को `आई.आई.एम.ए.`प्लॉट, हवाई अड्डों आदि जैसे सरकारी प्लॉटों से जमीन का किराया मिल सकता था। इसी प्रकार, सांसदों ने प्रजा अधीन – सुप्रीम-कोर्ट के जज, प्रजा अधीन – हाई-कोर्ट के जज, प्रजा अधीन-प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन-मुख्यमंत्री आदि कानून लागू करने से मना/इनकार कर दिया है।
2. सांसद वैसे कानून बनाते हैं जो नागरिकगण नहीं चाहते है। उदाहरण – जब बहुराष्ट्रीय कम्पनियां सांसदों को घूस देती हैं तो सांसद पेटेंट कानून लागू करते हैं जो दवाइयों की कीमत कई गुना बढ़ा देती है।
क्यों सांसद, विधायक ऐसा बर्ताव/व्यवहार करते हैं? केवल भ्रष्टाचार के कारण, इसका और कोई कारण नहीं है। सांसद और विधायक कुछ कानूनों को पारित/पास न करने के लिए घूस लेते हैं और कुछ कानूनों को पास/पारित करने के लिए घूस लेते हैं। नागरिकों के पास उन्हें झेलते/सहन करते रहने के अलावा और कोई चारा/विकल्प नहीं है क्योंकि नागरिक इन्हें हटा/बर्खास्त नहीं कर सकते और ना ही कानून आदि ही बदल सकते हैं।
(39.2) पहली समस्या का समाधान |
‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’, प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री और प्रजा अधीन – सांसद कानून पहली समस्या का समाधान कर देते हैं। यदि सांसद कानून बनाने/लागू करने पर राजी नहीं होते तो ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’का प्रयोग करके नागरिक प्रधानमंत्री/सांसदों को उस कानून को लागू करने के लिए बाध्य कर सकते हैं। और प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन – सांसद का प्रयोग करके नागरिक उन प्रधानमंत्री व सांसदों को निकाल सकते हैं, जो सहयोग नहीं कर रहे हैं। इसलिए, यह समस्या कि सांसद `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ , प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) आदि जैसे कानून लागू नहीं कर रहे हैं, का समाधान ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ से हो सकता है।
(39.3) दूसरी समस्या का समाधान |
कई बार, हम पाते/देखते हैं कि बहु-राष्ट्रीय कम्पनियां आदि सांसदों को घूस दे देती हैं और कानून पास/पारित करवा लेती हैं। इस समस्या को दूर/कम करने के लिए मैं क्या प्रस्ताव कर रहा हूँ?
कानून बनाने में, कोई भी कानून प्रधानमंत्री के अनुमोदन के बिना शायद ही कभी पारित/पास होता है। सर्वाधिक भ्रष्ट कानून भी प्रधानमंत्री के सहयोग से ही पास/पारित होता है। आज की स्थिति के अनुसार, प्रधानमंत्री नागरिकों की परवाह नहीं करते क्योंकि नागरिकों के पास प्रधानमंत्री को हटाने/बदलने की कोई प्रक्रिया/तरीका नहीं है। इसलिए प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री कानून प्रधानमंत्री को भ्रष्ट कानूनों को पारित/पास करने से रोकेगा। और प्रजा अधीन – सांसद (कानून) सांसदों को भी भ्रष्ट कानून पारित करने से रोकेगा। इसके अलावा, जिन कानूनों का प्रस्ताव मैंने किया है, उनमें से एक कानून नागरिकों को सांसदों तथा प्रधानमंत्री पर सच्चाई सीरम जांच(नार्को जांच) करने की इजाजत देता है यानि समर्थ बनाता है। और उन्हें जुर्माना लगाने, कैद में डालने और सांसदों/प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर देने में भी सक्षम/समर्थ बनाता है। यह सांसदों/प्रधानमंत्री द्वारा घूस लेकर कानून पास करने में भयंकर रूकावट पैदा करेगा।
इसके अलावा, मान लीजिए, सांसद और प्रधानमंत्री अभी भी बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों से घूस लेकर या अन्य कारणों से किसी भ्रष्ट कानून को पारित करने का साहस करते हैं, तो प्रजा अधीन- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश और प्रजा अधीन – उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कानून इस बात की संभावना बढ़ा देगा कि उच्चतम न्यायालय के जज और उच्च न्यायालय के जज ऐसे कानून को तत्काल रद्द कर देंगे क्योंकि उन्हें भी यह चिन्ता रहेगी कि ऐसा न करने पर नागरिक उन्हें ही हटा/बर्खास्त कर देंगे।
‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ स्वयं ही इस बात की संभावना कम कर देती है कि सांसद और विधायक घूस लेकर किसी कानून को लागू भी करेंगे। क्योंकि मान लीजिए, कोई कम्पनी किसी कानून को लागू कराने के लिए हर सांसद को 1 करोड़ रूपए घूस देती है जिसका कुल योग 800 करोड़ रूपया होता है। अगले ही दिन, नागरिक ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके उस कानून को रद्द/समाप्त कर सकते हैं और इस प्रकार वह कम्पनी अपने सभी 800 करोड़ रूपए से हाथ धो बैठेगी और वास्तव में उसे कुछ भी नहीं मिलेगा।
इन सभी सुरक्षा उपायों को देखते हुए, इस बात की संभावना अब नहीं रह जाती है कि सांसद घूस लेकर कानूनों को लागू करेंगे। इतना ही नहीं, निम्नलिखित प्रक्रियाएं ऐसी किसी भी संभावना को और भी कम कर देती हैं –
1. ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके मैं एक ऐसी प्रक्रिया लागू करने का प्रस्ताव करता हूँ जिसका प्रयोग करके नागरिक पटवारी/तलाटी के कार्यालय में 3 रूपए का शुल्क देकर संसद में प्रभावशाली ढ़ंग से हां/नहीं दर्ज करवा सकते हैं।
2. ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके मैं, कानून बनाने (के कार्य) पर भी जूरी प्रणाली(सिस्टम) लागू करने का प्रस्ताव करता हूँ।
(39.4) नागरिकों को संसद में हां / नहीं दर्ज करने में समर्थ / सक्षम बनाने के लिए `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह`के प्रस्ताव |
जिस सरकारी अधिसूचना(आदेश) का मैं प्रस्ताव कर रहा हूँ, वह निम्नलिखित है –
1. कोई भी नागरिक लोकसभा अध्यक्ष के कार्यालय में जाकर किसी प्रस्तावित विधेयक/क़ानून/बिल का पाठ जमा करवा सकता है तथा एक निजी संख्या प्राप्त कर सकता है।
2. कोई भी नागरिक तलाटी (पटवारी) के पास जाकर अपना पहचान-पत्र दिखलाकर और 3 रूपए का शुल्क देकर किसी भी सुझाए गए बिल/विधेयक/क़ानून पर हां/नहीं दर्ज करवा सकता है। क्लर्क उसके हां/नहीं के लिए उसे रसीद देगा। नागरिक अपनी हां/नहीं किसी भी दिन बदल सकता है। इस हां/नहीं को अध्यक्ष की वेबसाईट पर प्रकाशित किया जाएगा (कृपया ध्यान दें कि इसमें कुछ भी नहीं छिपाया जाता है)।
3. कोई सांसद अध्यक्ष के सामने अपनी हां/नहीं दर्ज कर सकता है। यदि सांसद हां/नहीं दर्ज नहीं कराता है तो उसे ‘ना’ के रूप में गिना जाएगा।
4. सांसद का वोट , उन सबके लिए गिना जाएगा , जिन्होंने किसी विधेयक/क़ानून पर अपना हां/नहीं दर्ज नहीं किया है । उदाहरण: मान लीजिए, किसी क्षेत्र में 50,000 मतदाता हैं और जहां मान लें, 15,000 (30%) ने ‘हां’ मत डाला, 5,000 (10%) ने ‘ना’ मत डाला और 30,000 (60 %) ने प्रस्ताव पर अपना मतदान नहीं किया। इस स्थिति में, अध्यक्ष, सांसदों (के वोटों की कीमत) को 100%-30%-10% = 60 % के बराबर मानेंगे। अब मान लीजिए कि सांसद ‘हां’ पर वोट देता है तो उस क्षेत्र का ‘हां’ भाग 30%+60% = 90% होगा और ‘ना’ भाग 10% होगा। यदि सांसद ‘ना’ के रूप में वोट देता है तो उस क्षेत्र का ‘हां’ भाग 30% होगा और ‘ना’ भाग 60%+10% = 70 % होगा।
5. लोकसभा अध्यक्ष प्रत्येक चुनावक्षेत्र के ‘हां’ और ‘ना’ भाग को जोड़ेगा।
6. यदि सभी ‘हां’ भाग का जोड़/योगफल 60 दिनों के भीतर 50% से अधिक होगा तो लोकसभा अध्यक्ष उस विधेयक/क़ानून को राज्यसभा अध्यक्ष को भेज देंगे। यदि प्रस्ताव को निजी संख्या जारी करने के 60 दिनों के भीतर 50% समर्थन नहीं मिलता तो लोकसभा अध्यक्ष उस प्रस्ताव को असफल घोषित कर देंगे।
7. राज्य सभा अध्यक्ष राज्य सभा के सांसदों को उस दिन से ही हां/नहीं दर्ज करने देगा जिस दिन बिल को निजी संख्या मिल जाएगी। यदि कोई सांसद अपना वोट दर्ज नहीं करवाता है तो उसे `ना` के रूप में समझा जाएगा।
8. राज्य सभा का अध्यक्ष विधेयक/क़ानून के हां भाग और ना भाग की गणना निम्नलिखित प्रकार से करेगा:-
(क): मान लीजिए किसी राज्य में `क` सांसद हैं।
(ख): मान लीजिए कि उस राज्य में मतदाताओं की संख्या `ख` के बराबर है जिनमें से `ग` के बराबर मतदाताओं ने हां दर्ज करवाया है और `घ` के बराबर मतदाता ना दर्ज करवाते हैं और (ख-ग-घ) मतदाताओं ने अपना हां या ना दर्ज नहीं करवाया।
(ग): तब उस राज्य के प्रत्येक सांसद का मत (ख-ग-घ)/क होगा।
9. यदि (बिल/विधेयक/क़ानून) पारित हो जाता है तो इसका महत्व संसद द्वारा पारित विधेयक/क़ानून के समान होगा।
उपर बताई गई प्रक्रिया से नागरिक अपनी मनचाही/मनपसंद कानून लागू करवाने में समर्थ होंगे।
(39.5) उपर्युक्त कानून लागू करवाने के लिए ड्राफ्ट / प्रारूप |
सरकारी अधिसूचना(आदेश) – 1 : नागरिकों द्वारा हां/नहीं दर्ज करना
# |
निम्नलिखित के लिए प्रक्रिया |
प्रक्रिया/अनुदेश |
1 |
– |
नागरिक शब्द का अर्थ एक पंजीकृत/रजिस्टर्ड मतदाता होगा। |
2 |
कलेक्टर (अथवा उसका क्लर्क) | कलक्टर (उसका क्लर्क) किसी भी नागरिक से कोई कानून लागू करवाने के लिए 20 रूपए प्रति पृष्ठ का शुल्क लेकर प्रस्ताव स्वीकार करेगा और प्रस्ताव के लिए एक क्रम संख्या जारी करेगा । और प्रधानमन्त्री की वेबसाइट पर रकेगा | |
3 |
तलाटी, पटवारी (अथवा उसका क्लर्क) | अगले 90 दिनों तक तलाटी/क्लर्क नागरिकों को इस (प्रस्तावित) विधेयक/क़ानून पर उनके हां/नहीं दर्ज करने की अनुमति देगा। क्लर्क नागरिकों से तीन रूपए का शुल्क, नागरिक पहचान पत्र बिल/विधेयक/क़ानून की क्रम संख्या और उसके हां अथवा नहीं की प्राथमिकता/पसंद मांगेगा/लेगा। तब वह क्लर्क कम्प्यूटर में प्रविष्टि/दर्ज करेगा और नागरिकों को कम्प्यूटर से निकाली गई रसीद देगा। |
4 |
तलाटी, पटवारी | तलाटी नागरिकों से 3 रूपए का शुल्क/फीस लेकर उन्हें हां/नहीं बदलने की अनुमति देगा। |
5 |
तलाटी, पटवारी | जिन नागरिकों ने अपना हां/नहीं दर्ज करवाया है, उन नागरिकों के नाम, क्रमसंख्या आदि तलाटी इन्टरनेट पर डालेगा। |
6 |
लोकसभा अध्यक्ष | मंत्रिमंडल सचिवालय प्रत्येक सोमवार और प्रस्ताव प्रस्तुत/जमा किए जाने के 90 वें दिन प्रत्येक प्रस्ताव के लिए प्रत्येक चुनावक्षेत्र के हां/नहीं की गिनती चुनाव क्षेत्र अनुसार प्रकाशित करेगा। |
7 |
लोकसभा, राज्यसभा के स्पीकर/अध्यक्ष | अध्यक्ष सांसदों को पूर्णत: या अंशत: हां/नहीं दर्ज करने की अनुमति/इजाजत देंगे(हां/ना प्रतिशत में होगा)। यदि कोई सांसद हां/नहीं दर्ज नहीं करता है तो अध्यक्ष उसके वोट की गिनती ना के रूप में ही करेंगे। |
8 |
लोकसभा अध्यक्ष |
अध्यक्ष प्रत्येक लोकसभा चुनावक्षेत्र के हां भाग और ना भाग की गिनती इस प्रकार करेंगे –
टी – किसी चुनाव क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या वाई – मतदाताओं की संख्या जिन्होंने `हां` मतदान किए हैं एन – मतदाताओं की संख्या जिन्होंने `नां` मतदान किए हैं एम – मतदाताओं की संख्या जिन्होंने विधेयक/क़ानून पर मतदान नहीं किया = टी-वाई-एन नागरिकों के हां भाग = वाई/टी नागरिकों के ना भाग = एन/टी तब उस चुनाव क्षेत्र के मामले में – यदि सांसद हां के पक्ष में मतदान करता है तो हां भाग होगा (वाई+एम)/टी और ना भाग होगा एन/टी यदि सांसद ना के पक्ष में मतदान करता है तो हां भाग होगा वाई/टी और ना भाग होगा (एन+एम)/टी यदि सांसद मतदान नहीं करता है तो हां भाग होगा वाई/टी और ना भाग होगा एन/टी |
9 |
लोकसभा अध्यक्ष | अध्यक्ष किसी राज्य के कुल `हां` और `ना` भाग का योगफल/जोड़ प्राप्त करने के लिए सभी लोकसभा चुनाव क्षेत्र के ‘हां’ भाग और ‘ना’ भाग को जोड़ेगा। |
10. |
लोकसभा अध्यक्ष |
बिल को निजी संख्या मिलने के 60 दिनों बाद –
2. (लोकसभा)अध्यक्ष विधेयक/क़ानून को राज्यसभा के अध्यक्ष के पास भेज देंगे यदि ‘हां’ भाग ‘ना’ भाग से ज्यादा बड़ा हो। |
11 |
राज्यसभा अध्यक्ष | किसी विधेयक/क़ानून के प्रस्तुत किए जाने के 30 दिनों के भीतर राज्य सभा का कोई सदस्य अध्यक्ष के सामने ही विधेयक/क़ानून पर अपनी हां/ना दर्ज करा सकता है। यदि कोई सदस्य अपना हां/नहीं दर्ज नहीं करता है तो अध्यक्ष इसे ‘ना’ के रूप में मानेगा। |
12 |
राज्यसभा अध्यक्ष |
अध्यक्ष ‘हां’ भाग और ‘ना’ भाग का आकलन करने के लिए निम्नलिखित तरीके का प्रयोग करेगा
वाई = भारत के उन मतदाताओं की संख्या जिन्होंने हां के पक्ष में मतदान किया है एन = = भारत के उन मतदाताओं की संख्या जिन्होंने ना के पक्ष में मतदान किया है टी = भारत के नागरिक-मतदाताओं की कुल संख्या यू = भारत के उन मतदाताओं की संख्या जिन्होंने मतदान नहीं किया है = टी- वाई- एन एम वाई = उन राज्य सभा सदस्यों की संख्या जिन्होंने हां के पक्ष में मतदान किया है एम एन = उन राज्य सभा सदस्यों की संख्या जिन्होंने ना के पक्ष में मतदान किया है (अथवा अपना मतदान दर्ज नहीं करवाया है)। एम टी = सदस्यों की कुल संख्या उस मामले में, हां भाग = वाई/टी + (एम वाई /एम टी) x (यू / टी) ना भाग = एन/टी +(एम वाई /एम टी )x (यू / टी) (X=गुना) |
13 |
राज्यसभा के अध्यक्ष | यदि हां भाग ना भाग से ज्यादा हो जाता है तो अध्यक्ष विधेयक/क़ानून को पारित/पास घोषित कर देगा नहीं तो वह विधेयक/क़ानून को असफल घोषित कर देगा। |
14 |
जिला कलेक्टर | यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून में बदलाव/परिवर्तन चाहता हो तो वह जिला कलेक्टर के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्तुत कर सकता है और जिला कलेक्टर या उसका क्लर्क इस ऐफिडेविट/हलफनामा को 20 रूपए प्रति पृष्ठ/पन्ने का शुल्क/फीस लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा। |
15 |
तलाटी (अथवा पटवारी/लेखपाल ) | यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्लॉज/खण्ड में प्रस्तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी पावती/रसीद देगा। इस हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल दिया जाएगा। |
(39.6) सांसदों द्वारा बनाए गए कानूनों पर जूरी प्रणाली (सिस्टम) लागू करने के लिए `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ समूह की मांग और वायदा |
किसी और कारण से नहीं बल्कि केवल घूस के कारण ही सांसद `सेज` अधिनियम, 498 ए, डी.ए.वी. आदि जैसे कानून लागू कर रहे हैं। इस गड़बड़ी को रोकने के लिए मैं कैसा प्रस्ताव कर रहा हूँ? `प्रजा अधीन-राजा` का पहला प्रस्ताव नागरिकों को किसी भी ऐसे असंवैधानिक कानून को रद्द/समाप्त करने में नागरिकों को सक्षम/समर्थ बनाते हैं जिन्हें सांसदों ने बनाया है। लेकिन ऐसा तब हो पाएगा जब वे कानून पारित कर देते हैं। शुरू में ही ऐसे गलत कानूनों को नागरिक कैसे रोक सकते हैं? देखिए, निम्नलिखित कानून इस संभावना को समाप्त/कम कर देगा :
1. संसद द्वारा कानून पास/पारित हो जाने के बाद प्रधानमंत्री भारत के सभी तहसीलदारों को कानून की प्रति अंग्रेजी भाषा और उस राज्य की आधिकारिक/सरकारी भाषा में भेजेंगे।
2. हरेक तहसीलदार `मतदाता सूची` में से क्रमरहित तरीके से 30 नागरिक-मतदाताओं को जूरी सदस्य के रूप में बुलाएगा।
3. ये सभी 30 नागरिक एक-एक वक्ता/स्पीकर चुन सकते हैं। इन 30 सुझाए गए वक्ताओं में से क्रमरहित तरीके से 10 का चयन किया जाएगा। ये 10 सुझाए/चुने गए वक्ता अथवा उनके प्रतिनिधि पारित किए गए कानून पर 1 घंटे का भाषण देंगे।
4. जिस सांसद ने कानून का प्रारूप/ड्राफ्ट तैयार करेगा तथा इसका प्रस्ताव किया था, वह एक या अधिक प्रतिनिधि को भेज सकता है जिनके पास भाषण देने का कुल समय 3 घंटे का होगा।
5. प्रत्येक जूरी सदस्य से 30 मिनट तक बोलने के लिए कहा जाएगा जिसके दौरान वह भाषण दे सकता है या किसी व्यक्ति, जिसने पारित होने वाले कानून पर भाषण दिए हैं, उनसे प्रश्न पूछ सकता है।
6. प्रत्येक दिन कार्यवाही 10.30 बजे सुबह शुरू/प्रारंभ होगी और यह 6.30 बजे शाम तक चलेगी जिसमें 2.00 बजे से 2.30 बजे तक लंच/भोजनावकाश का समय होगा।
7. तीसरे दिन की समाप्ति पर, जूरी सदस्यगण पास/पारित किए जाने वाले कानून पर अपने-अपने हां/नहीं बताएंगे।
8. यदि 30 जूरी सदस्यों में से 16 से अधिक सदस्य ‘ना’ या ‘इनमें से कोई विकल्प नहीं’ कहते हैं तो तहसीलदार उस कानून को रद्द के रूप में चिन्हित कर देगा।
9. यदि भारत में तहसील जूरी सदस्यों में से बहुमत कानून को रद्द कर देती है तो प्रधानमंत्री उस कानून को रद्द घोषित कर देंगे।
भारत में 6000 वार्ड और तहसील हैं। इसलिए लगभग 6,000 गुना 3 = 18000 नागरिकों से पारित किए गए कानून पर उनके हां/नहीं लिए जाएंगे। यह देखते हुए कि समय केवल तीन ही दिन का है, इसलिए लोगों की संख्या काफी अधिक है जिन्हें घूस देना कठिन होगा। इसलिए, यह प्रक्रिया/तरीका संसद पर एक प्रभावशाली चेक/नियंत्रण होगी। प्रत्येक जूरी (सदस्य) को लगभग 100 रूपए मिलेंगे और इसलिए लागत 1.8 करोड़ रूपए तथा अन्य लागत (जैसे तहसीलदार, जो सुनवाई आदि की व्यवस्था/आयोजित करेगा, उसका वेतन) होंगे। कुल लागत संसद द्वारा पास/पारित किए जाने वाले प्रत्येक कानून पर लगभग 5 करोड़ रूपए होगा। संसद एक वर्ष में लगभग 100 कानून पास/पारित करती है। इसलिए कुल लागत प्रति वर्ष 500 करोड़ रूपए के लगभग आएगा। यह लागत किसी गलत कानून के पारित हो जाने के कारण होनेवाली हानि की तुलना में बहुत छोटी/कम है। ऐसे व्यवस्था का प्रयोग करके, नागरिकों के लिए यह पक्का/सुनिश्चित करना आसान हो जाएगा कि सेज, 498 ए, डी.ए.वी. आदि कानून नहीं आ पाऐंगे।