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अध्याय 37 – कुछ नागरिक / सिविल व आपराधिक मामलों के संबंध में `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह`के प्रस्‍ताव

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   कुछ नागरिक / सिविल व आपराधिक मामलों के संबंध में `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह`के प्रस्‍ताव

   

(37.1) नागरिक / सिविल कानून में जिन परिवर्तनों / बदलावों की हम मांग और वायदा करते हैं उनकी सूची (लिस्ट)

 

‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके, हम सिविल कानून में जिन परिवर्तनों की मांग और वायदा करते हैं, उनमें से कुछ निम्‍नलिखित हैं :-

  1. भूमि रिकार्ड प्रणाली(सिस्टम) (टोरेन्‍स टाइटल) लागू करना

  2. सभी ऋणों का रिकार्ड रखना और सूदखोरी/अधिक ब्‍याज लेने से रोकना

  3. कर्ज न चुका पाने/डिफाल्‍ट के मामलों को सुलझाने के लिए परिवर्तनों को लागू करना

  4. प्रताड़ना/बुरा बर्ताव की शिकार महिलाओं/औरतों के लिए तलाक, तलाक-भत्‍ता(खर्चा) और बच्‍चे की अभिरक्षा/`देखभाल का अधिकार` की कार्रवाई तेजी से की जाए

5.    498 ए, डी.वी.ए. (कानून) समाप्‍त करना

6.    प्रशासनिक परिवर्तनों/बदलाव को लागू करना व विरासत/उत्‍तराधिकार संबंधी मामलों को सही/न्‍यायपूर्ण तरीके से सुलझाना

7.    अफीम को कानूनी मान्‍यता/रूप देने (के मामले) पर सार्वजनिक मतदान

8.    व्‍यावसायिक यौनकार्य को कानूनी मान्‍यता/रूप देने के लिए सार्वजनिक मतदान

तथा और कई परिवर्तन।

   

(37.2) भूमि / फ्लैट मालिकी रिकार्ड प्रणाली (सिस्टम) लागू करना

मैं पाठकों से अनुरोध करता हूँ कि वे टोरेन्‍स टाइटल के बारे में http://en.wikipedia.org/wiki/Torrens_title पर पढ़ें। और टोरेन्‍स टाइटल के लिए गूगल पर जाएं तथा और भी लेख पढ़ें।

1.    विक्रेता को अपने प्‍लॉट व फ्लैट का नक्‍शा, स्थान/अवस्‍थिति दर्ज करना होगा (और क्रम संख्‍या प्राप्‍त करनी होगी)।

2.    यदि फ्लैट या प्‍लॉट को खण्‍डित/अलग-अलग किया गया हो या उसे इकट्ठा किया/मिलाया गया हो तो विक्रेता को अपने प्‍लॉट/फ्लैट का नक्‍शा, परिवर्तनों का स्थान/अवस्‍थिति को दर्ज करना होगा (और नई क्रम संख्‍या प्राप्‍त करनी होगी)।

3     खरीददारों और `बेचने वालों` को सरकारी कार्यालयों में सरकारी अधिकारी के समक्ष बिक्री समझौता(agreement of sale) पर हस्‍ताक्षर करना होगा।

4.    बिक्री को तत्‍काल सरकारी रिकार्ड/अभिलेख में दर्ज किया जाए।

5.    यदि कोई जाली/फर्जी विक्रेता अपना प्‍लॉट या फ्लैट को दो बार अलग-अलग व्‍यक्‍तियों को बेचने में कामयाब/सफल हो जाता है तो सरकार कम से कम एक ठगे गए खरीददार/क्रेता को मुआवजा देगी।

6.    यदि कोई फर्जी `बेचने वाला`/विक्रेता स्‍वयं को कोई दूसरा व्‍यक्‍ति बताकर प्‍लॉट, फ्लैट बेचने में सफल हो जाता है तो सरकार सही/वास्‍तविक मालिक को मुआवजा देगी।

7.    इसलिए खरीददार/क्रेता को पूर्व के मालिकों की चेन/श्रंखला का जांच द्वारा सही ठहराने  की जरूरत नहीं पड़ेगी – उसे केवल भूमि रजिस्‍ट्री में सूचीबद्ध/दर्ज मालिकों से ही कारोबार करने की जरूरत होगी।

टोरेन्स टाइटल (प्रणाली(सिस्टम)) विक्रेता द्वारा भूमि या फ्लैट दो बार बेचना असंभव बना देता है। और इसमें फर्जी मामले इतने कम, 10,000 मामलों में 1 से भी कम, होते हैं कि बिक्री राशि का मात्र 1 प्रतिशत शुल्‍क/फीस लेकर सरकार बीमाकर्ता(बीमा करने वाली) के रूप में काम करने में सक्षम/समर्थ है। टोरेन्स टाइटल सबसे पहले वर्ष 1860 की दशक में आष्‍ट्रेलिया में आया और तब से आष्‍ट्रेलिया ने ऐसी समस्‍या का सामना नहीं किया है कि किसी व्‍यक्‍ति ने दो लोगों को अपना प्‍लॉट बेच दिया हो। मैं राज्‍य स्‍तरीय ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’का प्रयोग करके भारत के सभी राज्‍यों में टोरेन्स टाइटल (प्रक्रिया) लागू करने का प्रस्‍ताव करता हूँ।

   

(37.3) सूदखोरी / अधिक ब्‍याज लेने से रोकने के लिए कानून

सूदखोरी/अधिक ब्‍याज लेने की व्‍यवस्‍था केवल इसलिए अस्‍तित्‍व में है क्‍योंकि जमीन हड़पने वालों  को मंत्रियों, जजों और पुलिस प्रमुखों द्वारा सुरक्षा/संरक्षण प्राप्‍त है। मैंने ऐसी व्‍यवस्‍था लागू करने का प्रस्‍ताव किया है कि जिसके द्वारा नागरिक पुलिस प्रमुखों, जजों, मंत्रियों आदि को बदल सकें और मैंने छोटे/जूनियर पुलिसवालों पर जूरी प्रणाली(सिस्टम) का प्रस्‍ताव किया है। ये प्रक्रियाएं पुलिसवालों, मंत्रियों, जजों आदि के मन में भय पैदा करेंगी और वे भूमाफियाओं/जमीन हड़पने वालों के साथ अपनी सांठ-गाँठ/मिली-भगत कम कर देंगे। इसके अलावा, मैंने सभी आपराधिक सुनवाइयों (मामलों) में जूरी सुनवाई का प्रस्‍ताव किया है। इससे कर्ज-माफियाओं की कर्ज लेने वालों के खिलाफ हिंसा/बल प्रयोग की क्षमता/ताकत में कमी आएगी।

कर्ज देने/इसका प्रबंध करने के संबंध में मैं एक ऐसा कानून लाने का प्रस्‍ताव करता हूँ जिसमें प्रत्‍येक नेताओं को उस कर्ज/ऋण का खुलासा करना होगा जो उसने प्रत्‍येक कर्जदार को दिए हैं और जो ब्‍याज वह प्राप्‍त कर रहा है, उसका भी खुलासा करना होगा। ब्‍याज दर की उच्चतम सीमा `उधार देने की मुख्‍य दर(पी.एल.आर)` का 1.5 गुना होगा (उदाहरण – जनवरी, 2008 में, पी.एल.आर. हर महीने 1.25 प्रतिशत थी और इस प्रकार निजी उधार देने की सीमा हर महीने 2.5 प्रतिशत थी)। और मैं जूरी सुनवाई लागू करने का प्रस्‍ताव करता हूँ जिसका प्रयोग करके जूरी-मण्‍डल के सदस्‍यगण कर्ज-माफियाओं/जमीन हड़पने वालों को जेल भेज सकेंगे।

   

(37.4) सताई गई / `बुरी तरह से पीटी गयी` औरतों के लिए तलाक और बच्‍चे की अभिरक्षा / `देखभाल का अधिकार` की तेजी से सुनवाई

मैं उन कानूनों के प्रारूपों/ड्राफ्टों का प्रस्‍ताव करूंगा जिसका प्रयोग करके सताई गई(परित्‍यक्‍ता) औरतें तेज न्‍यायिक सुनवाइयों की मांग कर सकेंगी और जूरी उन्‍हें तलाक, तलाक-भत्‍ता(खर्चा) और बच्‍चे की `देखभाल का अधिकार` प्रदान कर सकेंगे। अलगाव या तलाक होने पर बच्‍चे की देखभाल पर विवाहित महिलाओं/औरतों का अधिकार होना चाहिए।

   

(37.5) 498 ए और डी.वी.ए. कानून समाप्‍त / रद्द करना

‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके हम नागरिकों को 498 ए और डी.वी.ए. कानून समाप्‍त करना चाहिए और हम नागरिक ऐसा कर सकते हैं।

   

(37.6) अफीम और / अथवा चरस को कानूनी मान्‍यता देने अथवा इन्‍हें अपराध घोषित करने का प्रस्‍ताव

मैं पाठकों से http://en.wikipedia.org/wiki/Opium . पढ़ने का अनुरोध करता हूँ।

चरस/हशिश, अफीम आदि जैसे `बहुत ही कम नशा वाली`(सॉफ्ट) औषध वर्ष 1800 से पहले से ही विश्‍व के लगभग सभी देशों में (प्रचलित) थे। अमेरिका में ये वर्ष 1900 तक वैध/कानूनी मान्‍यता प्राप्‍त थे और भारत में इन्‍हें वर्ष 1950 तक कानूनी मान्‍यता मिली हुई थी। चरस/हशिश अफीम और ऐसे अन्‍य `बहुत ही कम नशा वाली`(सॉफ्ट) औषध का हानिकारक प्रभाव/दुष्‍प्रभाव किसी दर्दनिवारक/`दर्द कम करने वाली ` अथवा मनोवैज्ञानिक दवाओं से कम होता है। अफीम तो तम्‍बाकू से भी कम हानिकारक है। उदाहरण – अफीम, चरस/हशिश से कैंसर, क्षयरोग/यक्ष्‍मा रोग आदि नहीं होता और अफीम व चरस शराब से कम हानिकारक हैं। उदाहरण – अफीम और चरस से जिगर/लीवर का रोग नहीं होता। अफीम और चरस/हशिश सामाजिक रूप से भी कम नुकसानदायक हैं। अफीम या चरस किसी व्‍यक्‍ति को बलात्‍कार करने के लिए हिंसक या इसका इच्‍छुक नहीं बनाता । वास्‍तव में, अफीम किसी व्‍यक्‍ति को कम हिंसक बना देती है। और अफीम इस बात की संभावना कम कर देती है कि वह बलात्‍कार करेगा। अफीम, चरस/हशिश की उत्‍पादन लागत तम्‍बाकू अथवा शराब से कम है। तब फिर, सरकार ने अफीम, चरस/हशिश पर रोक क्‍यों लगाई?

वर्ष 1900 की शुरूआत में `मन के रोगों की चिकित्‍सा(मनोचिकित्सा)` के क्षेत्र में दवाइयों का विकास हुआ। बहुत सी मनोवैज्ञानिक दवाइयों का पता लगाया(आविष्‍कार/इजाद हुआ) और कई दवाओं ने रोगियों को चमत्‍कारिक रूप से ठीक कर दिया। लेकिन आज भी, ये दवाएं रोगियों के एक बहुत बड़े भाग अर्थात 50 प्रतिशत रोगियों पर काम नहीं करतीं। ऐसे मामलों में अक्‍सर अफीम, चरस/हशिश सर्वोत्‍तम/सबसे बढ़िया उपलब्‍ध दवाईयों के रूप में काम करती है। ये रोगियों को शान्‍त करती हैं और कभी कभी रोगी खुद ही अपने विचारों को सही करने में सफल हो जाते हैं और वे ठीक/रोगमुक्‍त हो जाते हैं। इसलिए अफीम, चरस/हशिश और अन्‍य `बहुत ही कम नशा वाली`/सॉफ्ट औषधें मानसिक औषधियों/दवाइयों की मांग कम कर देते हैं। और इसलिए दवा बनाने वाली(फारमास्‍यूटिकल) कम्‍पनियां बुद्धिजीवियों को घूस देती हैं कि वे अफीम, चरस/हशिश के खिलाफ (गलत) प्रचार अभियान शुरू करें और फिर वे सांसदों आदि को घूस देती हैं कि वे अफीम, चरस/हशिश पर प्रतिबंध लगाने का कानून लागू करें। अफीम, चरस/हशिश पर प्रतिबंध लगने से पुलिसवालों, मंत्रियों और जजों आदि को मिलने वाला घूस का पैसा भी पहले से बढ़ जाता है। प्रतिबंध लगने का दुष्‍प्रभाव यह होता है कि अफीम, चरस/हशिश की कीमतें 100 गुना बढ़ जाती हैं और इसलिए अफीम के लती/नशेबाज चोरी जैसे अपराध का सहारा लेने लगते हैं और इसका परिणाम अफीम खरीदने के लिए हिंसा के रूप में सामने आता है। लेकिन यदि अफीम को कानूनी मान्‍यता दे दी जाए तब अफीम तो कॉफी और चाय से भी ज्‍यादा सस्‍ती हो जाएगी और किसी को भी अफीम की कीमत/मूल्‍य चुकाने के लिए हिंसा का सहारा लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अफीम पर प्रतिबंध लगने से स्‍मैक आदि जैसे ज्‍यादा हानिकारक नशीले पदार्थों का प्रयोग अधिक होने लगता है जिसमें प्रति घन सेंटी-मीटर मात्रा में ज्‍यादा नशा होता  है। और क्‍यों मात्रा का घन सेंटी-मीटर में होना एक कारक बन जाता है ? क्‍योंकि जब किसी वस्‍तु पर रोक/प्रतिबंध लगायी जाती है तो फेरीवालों/बेचनेवालों का फायदा क्यूबिक सेंटीमीटर मात्रा पर ज्‍यादा निर्भर करता है और ढलाई/परिवहन लागत पर नहीं। स्‍मैक आदि जैसे औषध/नशीले  पदार्थ घन सेंटीमीटर में कम स्थान लेते हैं और इसलिए ये फेरीवालों/बेचनेवालों के लिए अफीम से ज्‍यादा सस्‍ते होते हैं।  इससे नशेबाजों का स्‍वास्‍थ्‍य और भी खराब हो जाता है और दवाविक्रेता कम्‍पनियों/फार्मास्‍यूटिकल्‍स की बिक्री बढ़ जाती है।

इसके अलावा, अफीम पर प्रतिबंध लग जाने से तम्‍बाकू की बिक्री और कैंसर बढ़ जाता  है। इससे दवा विक्रेता कम्‍पनियों की बिक्री और बढ़ जाती है। इसलिए कुल मिलाकर, अफीम (पर प्रतिबंध) से केवल दवा विक्रेता कम्‍पनियों और भ्रष्‍ट पुलिसवालों, जजों, मंत्रियों को ही फायदा होता है और नशेबाजों को यह बरबाद कर देता है और इससे समाज में अपराध की दर भी बढ़ती है।

चरस/हशिश को कानूनी मान्‍यता दे देने से अपराध कम होंगे या अपराध बढ़ेंगे? एक वास्‍तविक उदाहरण के रूप में, नीदरलैण्‍ड ने अफीम को कानूनी मान्‍यता दे दी और इससे गंभीर अपराधियों की की संख्‍या 14,000 से घटकर 12,000 रह गई और नीदरलैंड में कैदियों के कम जाने से 8 जेलें बंद करनी पड़ीं !! नीदरलैण्‍ड विश्‍व के कुछ ऐसे देशों में से है जहां उच्‍च सुरक्षा वाले जेलों को बन्‍द/समाप्‍त किया जा रहा है !!( http://www.lifemeanshealth.com/health-videos/health-politics/netherlands-closing-8-prisons-due-to-plummeting-crime-rates.html )

इसलिए क्‍या हमें अफीम को कानूनी मान्याता/रूप देनी चाहिए? मेरा मत तो हां है लेकिन यदि मैं प्रधानमंत्री भी होता ,तो भी मैं इस संबंध में खुद निर्णय नहीं लेता। क्‍योंकि वे लोग जिन्‍हें इससे लाभ मिलता है वे एक ऐसे प्रधानमंत्री का समर्थन नहीं करेंगे जो ऐसे निर्णय लेता हो, शत्रु पक्ष (दवाविक्रेता कम्‍पनियों, भ्रष्‍ट पुलिसवाले/ जज/ मंत्री) आदि उसके खिलाफ एक उच्‍चस्‍तरीय घृणा अभियान/प्रचार चलाएंगे। ऐसे निर्णय जनता के वोट द्वारा लिया जाना सबसे अच्‍छा होता है। जब अफीम को वैध/कानूनी बनाने को जनता के मतदान के लिए सामने लाया जाएगा तो अधिकांश नागरिक यह महसूस करेंगे कि अफीम पर प्रतिबंध लगाने से नशेबाजों का स्‍वास्‍थ्‍य और ज्‍यादा खराब हो जाता है और यह नशा न करने वाले लोगों की जिन्‍दगी और संपत्ति पर खतरा बढ़ा देता है(क्योंकि अपराध बढता है )। इसलिए ज्‍यादातर नशेबाज हां पर मतदान करेंगे और उसके परिवार के लोग भी ऐसा ही करेंगे। और ऐसा ही अधिकांश नशा न करने वाले लोग भी करेंगे। और इस प्रकार बिना किसी घृणा/बदनामी के अभियान के ही अफीम को कानूनी मान्‍यता मिल जाएगी। इसलिए मेरा प्रस्‍ताव जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) का प्रयोग करके अफीम, चरस/हशिश को कानूनी रूप/मान्‍यता देना है। कैसे? मैं ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके एक कानून लागू करवाने का प्रस्‍ताव करता हूँ कि जूरी और केवल जूरी ही किसी नशेबाज अथवा एक फेरीवाले/पैडलर को सजा दे सकती है अथवा उसे रिहा/दोषमुक्‍त कर सकती है। इसलिए क्‍या कोई जूरी किसी नशेबाज या फेरीवाले को कभी सजा देगी? ऐसी संभावना नहीं है। मेरे अनुसार, वास्‍तव में, कोई जूरी किसी नशेबाज को कभी सजा नहीं देगी जिसने कोई और हिंसक अपराध नहीं किया है। इस प्रकार, एक ऐसा कानून लागू करके कि कोई जूरी ही किसी नशा के सौदागर अथवा नशेबाज को दण्‍ड दे सकती है, मैं `बहु कम नशे वाली`/सॉफ्ट औषधों को “कानूनी रूप से मान्‍य” बनाने का प्रस्‍ताव करता हूँ। और जनता का मत अथवा फैसला जो भी होगा/आएगा, उसे मैं स्‍वीकार करूंगा।

   

(37.7) व्‍यावसायिक यौनक्रिया को कानूनी बनाने अथवा इसे अपराध घोषित करने पर प्रस्‍ताव

एक अच्‍छा राजनीतिज्ञ होने का श्राप यह है कि मुझे सभी महत्‍वपूर्ण मुद्दों, जो हमारे समाज पर प्रभाव डालते हैं, पर अपने विचार/राय देने पड़ते हैं और यदि वह मुद्दा गलत है तो उसे गलत कहना पड़ता है। और एक बेइमान और बुरा बुद्धिजीवी होने का लाभ यह है कि वह हमेशा असली मुद्दे को नजरअन्‍दाज कर सकता है और केवल अच्‍छे-अच्‍छे मुद्दों/विषयों पर ही बातें करता है, मानों अच्‍छी-अच्‍छी बातें करने से समस्‍याएं छूमंतर/समाप्‍त हो जाएंगी । मैं सभी वास्‍तविक/असली मुद्दों का सामना करना पसंद करूंगा क्योंकि अच्‍छी-अच्‍छी बातों में डूबे रहने से असली मुद्दे सुलझ नहीं जाएंगे।

भारत में लिंग अनुपात 1000 पुरूषों पर 930 महिलाएं है। `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’  कानून और अन्‍य कानून जैसे गरीबी, सामाजिक सुरक्षा और अन्‍य कानून, जो बूड़े लोगों का ख्‍याल रखते हैं, वे लिंग अनुपात में सुधार लाकर (समस्‍याएं) कम कर देंगे। लेकिन लिंग अनुपात सुधरने में कम से कम 20 वर्ष लगेंगे। इसलिए अगले 10-20 वर्षों तक लिंग अनुपात 1000 पुरूषों पर 930 महिलाओं के आस-पास ही रहेगा। और इसलिए मेरे विचार से, यदि व्‍यावसायिक यौनक्रिया को कानूनी मान्‍यता नहीं दी गई तो हिंसक अपराध, चोरी और यहां तक कि यौन अपराध भी केवल बढ़ेंगे ही। इसके अलावा, व्‍यावसायिक यौनक्रिया को अपराध घोषित करना केवल हिंसक दलालों, भ्रष्‍ट पुलिसवालों, भ्रष्‍ट जजों और भ्रष्‍ट मंत्रियों को ही लाभ पहुंचाता है, किसी और को नहीं। यह केवल ग्राहकों पर लागत को ही बढ़ाता है और इसलिए बहुत से ग्राहक हिंसक/वित्तीय अपराधों को  ही सहारा लेंगे। और जब व्‍यावसायिक यौनक्रिया पर रोक/प्रतिबंध लगाया जाएगा तो ईमानदार और अहिंसक लोग दलाल बनने से बचना चाहेंगे और इसलिए केवल हिंसक अपराधी लोग ही दलाल बनेंगे। और इसलिए यौन श्रमिकों को और अधिक शारीरिक उत्‍पीड़न का सामना करना पड़ेगा। व्‍यावसायिक यौनक्रिया पर प्रतिबंध लगाने से औसत/सामान्‍य नागरिकों को किसी प्रकार का कोई लाभ नहीं मिलता। क्‍या व्‍यावसायिक यौनक्रिया से यौन-रोग तेजी से फैलते हैं? यदि ऐसा ही है तो सिंगापुर और अनेक अन्‍य देश, जिन्‍होंने व्‍यावसायिक यौनक्रिया को कानूनी रूप दिया है, उन देशों में यौन-रोग कम क्‍यों हैं? ऐसा इसलिए है कि यह रोग केवल जानकारी के अभाव में ही फैलता है। यौनक्रिया का व्‍यावसायिककरण करने से इसका कोई लेना देना नहीं है।

इसलिए व्‍यावसायिक यौनक्रिया को कानूनी रूप/मान्‍यता देने के पक्ष और विपक्ष में मैं किन कानूनों का प्रस्‍ताव करता हूँ?

‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके मैं एक ऐसा कानून लागू करने का प्रस्‍ताव करता हूँ कि जिसमें किसी यौन-श्रमिक होने, यौनश्रमिक के पास जाने अथवा बिचौलिए के रूप में कार्य करने के दोषी किसी व्‍यक्‍ति के संबंध में फैसला केवल जूरी द्वारा किया जाएगा। भारत में 12 क्रमरहित तरीके से चुने गए लोग कभी भी अहिंसक व्यक्तियों को सज़ा नहीं देंगे | और “व्‍यावसायिक यौनक्रिया संबंधी अपराधों के लिए केवल जूरी” (प्रक्रिया होने) के परिणामस्‍वरूप व्‍यावसायिक यौनक्रिया को एक तरह से कानूनी मान्‍यता ही मिल जाएगी। इसके अलावा, जब नागरिकों के पास जिला पुलिस प्रमुख को हटाने/बदलने की प्रक्रिया मौजूद होगी तो जिला पुलिस प्रमुख को यह इशारा मिलेगा कि यौन-श्रमिकों को पकड़ने के उसके कार्य को जनता चाहती है या नहीं। यदि नागरिकगण उससे यह चाहते हैं कि वह यौन-श्रमिक(सेक्‍सवर्कर्स) को पकड़े तो वह ऐसा करेगा, नहीं तो वह उन्‍हें नहीं पकड़ेगा। यह व्‍यावसायिक यौनक्रिया को कानूनी मान्‍यता देने के मसले/मामले को सुलझा देगा।

   

(37.8) अपमिश्रण / मिलावट कम करने के लिए कानून

मिलावट रोकने / कम करने के लिए प्रजा अधीन – जिला स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारी कानून आवश्‍यक और पर्याप्‍त है।

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