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अध्याय 37 – कुछ नागरिक / सिविल व आपराधिक मामलों के संबंध में `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह`के प्रस्‍ताव

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वर्ष 1900 की शुरूआत में `मन के रोगों की चिकित्‍सा(मनोचिकित्सा)` के क्षेत्र में दवाइयों का विकास हुआ। बहुत सी मनोवैज्ञानिक दवाइयों का पता लगाया(आविष्‍कार/इजाद हुआ) और कई दवाओं ने रोगियों को चमत्‍कारिक रूप से ठीक कर दिया। लेकिन आज भी, ये दवाएं रोगियों के एक बहुत बड़े भाग अर्थात 50 प्रतिशत रोगियों पर काम नहीं करतीं। ऐसे मामलों में अक्‍सर अफीम, चरस/हशिश सर्वोत्‍तम/सबसे बढ़िया उपलब्‍ध दवाईयों के रूप में काम करती है। ये रोगियों को शान्‍त करती हैं और कभी कभी रोगी खुद ही अपने विचारों को सही करने में सफल हो जाते हैं और वे ठीक/रोगमुक्‍त हो जाते हैं। इसलिए अफीम, चरस/हशिश और अन्‍य `बहुत ही कम नशा वाली`/सॉफ्ट औषधें मानसिक औषधियों/दवाइयों की मांग कम कर देते हैं। और इसलिए दवा बनाने वाली(फारमास्‍यूटिकल) कम्‍पनियां बुद्धिजीवियों को घूस देती हैं कि वे अफीम, चरस/हशिश के खिलाफ (गलत) प्रचार अभियान शुरू करें और फिर वे सांसदों आदि को घूस देती हैं कि वे अफीम, चरस/हशिश पर प्रतिबंध लगाने का कानून लागू करें। अफीम, चरस/हशिश पर प्रतिबंध लगने से पुलिसवालों, मंत्रियों और जजों आदि को मिलने वाला घूस का पैसा भी पहले से बढ़ जाता है। प्रतिबंध लगने का दुष्‍प्रभाव यह होता है कि अफीम, चरस/हशिश की कीमतें 100 गुना बढ़ जाती हैं और इसलिए अफीम के लती/नशेबाज चोरी जैसे अपराध का सहारा लेने लगते हैं और इसका परिणाम अफीम खरीदने के लिए हिंसा के रूप में सामने आता है। लेकिन यदि अफीम को कानूनी मान्‍यता दे दी जाए तब अफीम तो कॉफी और चाय से भी ज्‍यादा सस्‍ती हो जाएगी और किसी को भी अफीम की कीमत/मूल्‍य चुकाने के लिए हिंसा का सहारा लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अफीम पर प्रतिबंध लगने से स्‍मैक आदि जैसे ज्‍यादा हानिकारक नशीले पदार्थों का प्रयोग अधिक होने लगता है जिसमें प्रति घन सेंटी-मीटर मात्रा में ज्‍यादा नशा होता  है। और क्‍यों मात्रा का घन सेंटी-मीटर में होना एक कारक बन जाता है ? क्‍योंकि जब किसी वस्‍तु पर रोक/प्रतिबंध लगायी जाती है तो फेरीवालों/बेचनेवालों का फायदा क्यूबिक सेंटीमीटर मात्रा पर ज्‍यादा निर्भर करता है और ढलाई/परिवहन लागत पर नहीं। स्‍मैक आदि जैसे औषध/नशीले  पदार्थ घन सेंटीमीटर में कम स्थान लेते हैं और इसलिए ये फेरीवालों/बेचनेवालों के लिए अफीम से ज्‍यादा सस्‍ते होते हैं।  इससे नशेबाजों का स्‍वास्‍थ्‍य और भी खराब हो जाता है और दवाविक्रेता कम्‍पनियों/फार्मास्‍यूटिकल्‍स की बिक्री बढ़ जाती है।

इसके अलावा, अफीम पर प्रतिबंध लग जाने से तम्‍बाकू की बिक्री और कैंसर बढ़ जाता  है। इससे दवा विक्रेता कम्‍पनियों की बिक्री और बढ़ जाती है। इसलिए कुल मिलाकर, अफीम (पर प्रतिबंध) से केवल दवा विक्रेता कम्‍पनियों और भ्रष्‍ट पुलिसवालों, जजों, मंत्रियों को ही फायदा होता है और नशेबाजों को यह बरबाद कर देता है और इससे समाज में अपराध की दर भी बढ़ती है।

चरस/हशिश को कानूनी मान्‍यता दे देने से अपराध कम होंगे या अपराध बढ़ेंगे? एक वास्‍तविक उदाहरण के रूप में, नीदरलैण्‍ड ने अफीम को कानूनी मान्‍यता दे दी और इससे गंभीर अपराधियों की की संख्‍या 14,000 से घटकर 12,000 रह गई और नीदरलैंड में कैदियों के कम जाने से 8 जेलें बंद करनी पड़ीं !! नीदरलैण्‍ड विश्‍व के कुछ ऐसे देशों में से है जहां उच्‍च सुरक्षा वाले जेलों को बन्‍द/समाप्‍त किया जा रहा है !!( http://www.lifemeanshealth.com/health-videos/health-politics/netherlands-closing-8-prisons-due-to-plummeting-crime-rates.html )

इसलिए क्‍या हमें अफीम को कानूनी मान्याता/रूप देनी चाहिए? मेरा मत तो हां है लेकिन यदि मैं प्रधानमंत्री भी होता ,तो भी मैं इस संबंध में खुद निर्णय नहीं लेता। क्‍योंकि वे लोग जिन्‍हें इससे लाभ मिलता है वे एक ऐसे प्रधानमंत्री का समर्थन नहीं करेंगे जो ऐसे निर्णय लेता हो, शत्रु पक्ष (दवाविक्रेता कम्‍पनियों, भ्रष्‍ट पुलिसवाले/ जज/ मंत्री) आदि उसके खिलाफ एक उच्‍चस्‍तरीय घृणा अभियान/प्रचार चलाएंगे। ऐसे निर्णय जनता के वोट द्वारा लिया जाना सबसे अच्‍छा होता है। जब अफीम को वैध/कानूनी बनाने को जनता के मतदान के लिए सामने लाया जाएगा तो अधिकांश नागरिक यह महसूस करेंगे कि अफीम पर प्रतिबंध लगाने से नशेबाजों का स्‍वास्‍थ्‍य और ज्‍यादा खराब हो जाता है और यह नशा न करने वाले लोगों की जिन्‍दगी और संपत्ति पर खतरा बढ़ा देता है(क्योंकि अपराध बढता है )। इसलिए ज्‍यादातर नशेबाज हां पर मतदान करेंगे और उसके परिवार के लोग भी ऐसा ही करेंगे। और ऐसा ही अधिकांश नशा न करने वाले लोग भी करेंगे। और इस प्रकार बिना किसी घृणा/बदनामी के अभियान के ही अफीम को कानूनी मान्‍यता मिल जाएगी। इसलिए मेरा प्रस्‍ताव जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) का प्रयोग करके अफीम, चरस/हशिश को कानूनी रूप/मान्‍यता देना है। कैसे? मैं ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके एक कानून लागू करवाने का प्रस्‍ताव करता हूँ कि जूरी और केवल जूरी ही किसी नशेबाज अथवा एक फेरीवाले/पैडलर को सजा दे सकती है अथवा उसे रिहा/दोषमुक्‍त कर सकती है। इसलिए क्‍या कोई जूरी किसी नशेबाज या फेरीवाले को कभी सजा देगी? ऐसी संभावना नहीं है। मेरे अनुसार, वास्‍तव में, कोई जूरी किसी नशेबाज को कभी सजा नहीं देगी जिसने कोई और हिंसक अपराध नहीं किया है। इस प्रकार, एक ऐसा कानून लागू करके कि कोई जूरी ही किसी नशा के सौदागर अथवा नशेबाज को दण्‍ड दे सकती है, मैं `बहु कम नशे वाली`/सॉफ्ट औषधों को “कानूनी रूप से मान्‍य” बनाने का प्रस्‍ताव करता हूँ। और जनता का मत अथवा फैसला जो भी होगा/आएगा, उसे मैं स्‍वीकार करूंगा।

 

(37.7) व्‍यावसायिक यौनक्रिया को कानूनी बनाने अथवा इसे अपराध घोषित करने पर प्रस्‍ताव

एक अच्‍छा राजनीतिज्ञ होने का श्राप यह है कि मुझे सभी महत्‍वपूर्ण मुद्दों, जो हमारे समाज पर प्रभाव डालते हैं, पर अपने विचार/राय देने पड़ते हैं और यदि वह मुद्दा गलत है तो उसे गलत कहना पड़ता है। और एक बेइमान और बुरा बुद्धिजीवी होने का लाभ यह है कि वह हमेशा असली मुद्दे को नजरअन्‍दाज कर सकता है और केवल अच्‍छे-अच्‍छे मुद्दों/विषयों पर ही बातें करता है, मानों अच्‍छी-अच्‍छी बातें करने से समस्‍याएं छूमंतर/समाप्‍त हो जाएंगी । मैं सभी वास्‍तविक/असली मुद्दों का सामना करना पसंद करूंगा क्योंकि अच्‍छी-अच्‍छी बातों में डूबे रहने से असली मुद्दे सुलझ नहीं जाएंगे।

भारत में लिंग अनुपात 1000 पुरूषों पर 930 महिलाएं है। `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’  कानून और अन्‍य कानून जैसे गरीबी, सामाजिक सुरक्षा और अन्‍य कानून, जो बूड़े लोगों का ख्‍याल रखते हैं, वे लिंग अनुपात में सुधार लाकर (समस्‍याएं) कम कर देंगे। लेकिन लिंग अनुपात सुधरने में कम से कम 20 वर्ष लगेंगे। इसलिए अगले 10-20 वर्षों तक लिंग अनुपात 1000 पुरूषों पर 930 महिलाओं के आस-पास ही रहेगा। और इसलिए मेरे विचार से, यदि व्‍यावसायिक यौनक्रिया को कानूनी मान्‍यता नहीं दी गई तो हिंसक अपराध, चोरी और यहां तक कि यौन अपराध भी केवल बढ़ेंगे ही। इसके अलावा, व्‍यावसायिक यौनक्रिया को अपराध घोषित करना केवल हिंसक दलालों, भ्रष्‍ट पुलिसवालों, भ्रष्‍ट जजों और भ्रष्‍ट मंत्रियों को ही लाभ पहुंचाता है, किसी और को नहीं। यह केवल ग्राहकों पर लागत को ही बढ़ाता है और इसलिए बहुत से ग्राहक हिंसक/वित्तीय अपराधों को  ही सहारा लेंगे। और जब व्‍यावसायिक यौनक्रिया पर रोक/प्रतिबंध लगाया जाएगा तो ईमानदार और अहिंसक लोग दलाल बनने से बचना चाहेंगे और इसलिए केवल हिंसक अपराधी लोग ही दलाल बनेंगे। और इसलिए यौन श्रमिकों को और अधिक शारीरिक उत्‍पीड़न का सामना करना पड़ेगा। व्‍यावसायिक यौनक्रिया पर प्रतिबंध लगाने से औसत/सामान्‍य नागरिकों को किसी प्रकार का कोई लाभ नहीं मिलता। क्‍या व्‍यावसायिक यौनक्रिया से यौन-रोग तेजी से फैलते हैं? यदि ऐसा ही है तो सिंगापुर और अनेक अन्‍य देश, जिन्‍होंने व्‍यावसायिक यौनक्रिया को कानूनी रूप दिया है, उन देशों में यौन-रोग कम क्‍यों हैं? ऐसा इसलिए है कि यह रोग केवल जानकारी के अभाव में ही फैलता है। यौनक्रिया का व्‍यावसायिककरण करने से इसका कोई लेना देना नहीं है।

श्रेणी: प्रजा अधीन