होम > प्रजा अधीन > अध्याय 36 – आरक्षण को सरल / उपयोगी बनाने और कम करने के लिए `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ के प्रस्‍ताव

अध्याय 36 – आरक्षण को सरल / उपयोगी बनाने और कम करने के लिए `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ के प्रस्‍ताव

dummy
पी.डी.एफ. डाउनलोड करेंGet a PDF version of this webpageपी.डी.एफ. डाउनलोड करें

आरक्षण को सरल / उपयोगी बनाने और कम करने के लिए `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ के प्रस्‍ताव

   

(36.1) आरक्षण कम करने की ओर एक कदम :`आर्थिक विकल्प / चुनाव` अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्‍य पिछड़े वर्ग के गरीब लोगों के `समर्थन / हाँ` से |

 

`राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ को जो बात अन्‍य सभी पार्टियों से अलग करती है, वह यह है कि हमलोग अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्‍य पिछड़े वर्गों के गरीब लोगों को आरक्षण देने की मांग को कम करने के लिए आर्थिक विकल्प / चुनाव नामक प्रशासनिक प्रणाली(सिस्टम) का समर्थन करते हैं।

दलितों, अन्‍य पिछड़े वर्गों के लिए द्वितीय विकल्प/चुनाव प्रणाली(सिस्टम) का सार/सारांश इस प्रकार है:-

1.    किसी उपजाति का कोई भी सदस्‍य जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अथवा अन्‍य पिछड़े वर्ग का हो, वह तहसीलदार के कार्यालय जाकर अपना जांच/सत्यापन करवाकर आर्थिक-विकल्प / चुनाव के लिए आवेदन कर सकता है। इस आर्थिक-विकल्प/चुनाव में निम्‍नलिखित बातें/तथ्‍य हैं -:

  • उस व्‍यक्‍ति का अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्‍य पिछड़े वर्ग  का दर्जा बरकरार/बना रहेगा।

  • उसे समायोजित मुद्रास्‍फीति(महंगाई दर के अनुसार एडजस्ट/ठीक किया गया) (इनफ्लेशन एडजस्‍टेड) के बदले/लिए 600 रूपए हर साल मिलेगा जब तक कि वह अपने आर्थिक- विकल्प/चुनाव के चयन को रद्द/समाप्‍त नहीं कर देता।

  • जब तक उसे पैसे का भुगतान होता रहेगा, तब तक वह आरक्षण कोटे में आवेदन नहीं कर सकता।

  • उस दिन वह आरक्षण के लाभ के लिए पात्र/योग्‍य माना जाएगा, जिस दिन वह अपने दूसरे विकल्प/चुनाव को रद्द/समाप्‍त कर देगा।

  • जितने संख्या में पिछड़ी जातियों के लोगों ने (आर्थिक) विकल्प/चुनाव लिया है, उतनी संख्‍या के आधार पर आरक्षित पदों की संख्‍या में कमी की जाएगी।

  • इसके लिए पैसा सभी जमीनों पर कर/टैक्‍स की वसूली से आएगा कहीं और से नहीं।

2.    उदाहरण -भारत की आबादी (लगभग) 100 करोड़ है जिसमें से 14 करोड़ लोग अनुसूचित जाति के हैं । इसलिए यदि किसी कॉलेज में 1000 सीटें हैं तो उनमें से 140 सीटें आरक्षित रहेंगी। अब मान लीजिए, इन 14 करोड़ लोगों में से लगभग 6 करोड़ लोग आर्थिक-विकल्प/चुनाव अपनाने पर जोर देते हैं तो उनमें से प्रत्‍येक को हर महीने 50 रूपए मिलेगा और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 6 प्रतिशत कम हो जाएगा अर्थात यह लगभग 8  प्रतिशत रह जाएगा।

अधिकांश गरीब दलितों को आरक्षण का अधिक लाभ नहीं मिला और इसलिए दलितों में उंचे वर्ग के लोगों की संख्या जैसे-जैसे बढ़ रही है, गरीब दलितों के लिए (आगे बढ़ने के) अवसर कम होते जा रहे हैं। आर्थिक विकल्प/चुनाव एक ऐसी व्‍यवस्‍था बनाता है जिससे गरीब ही रहने के लिए छोड़ दिए गए गरीब दलितों को भी आरक्षण का लाभ मिल सकता है। उनमें से बहुत से लोग आर्थिक विकल्प/चुनाव का रास्‍ता चुनेंगे( जो कि आरक्षण में दिए जाने वाले सामाजिक विकल्प/चुनाव से अलग/विपरित है)। इससे आरक्षण में कमी आएगी।

आर्थिक विकल्प/चुनाव आरक्षण को किस हद तक कम करेगा? भारत की जनसंख्‍या 100 करोड़ है और इनमें से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्‍य पिछड़े वर्गों के लोग 60 करोड़ हैं। काल्‍पनिक रूप से मान लिया जाए कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्‍य पिछड़े वर्गों के सभी 60 करोड़ लोग आर्थिक विकल्प/चुनाव लेते हैं तो (आरक्षण) कोटा 60 प्रतिशत से घटकर शून्‍य प्रतिशत रह जाएगा और लागत प्रति वर्ष 1200 रूपए × 60 = 72,000 रूपए हो जाएगी। लेकिन यह अति  हो जाने/अंतिम स्‍थिति की कल्‍पना मात्र है। मान लीजिए 60 करोड़ अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्‍य पिछड़े वर्गों के लोगों में से 45 करोड़ आर्थिक विकल्प/चुनाव चुनते हैं तब आरक्षण 50 प्रतिशत से घटकर 15/60 × 50 = 12.5 प्रतिशत रह जाएगा। अब यदि मान लीजिए, प्रतिभा/योग्यता सूची में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्‍य पिछड़े वर्गों के 5 प्रतिशत लोग हैं तो प्रभावी आरक्षण केवल 7.5  प्रतिशत ही रह जाएगा।

   

(36.2) दूसरा संशोधन : ज्‍यादा पिछड़े लोगों को ज्यादा / उच्‍चतर प्राथमिकता देना

उन समुदायों/समूहों, जिनका प्रतिनिधित्‍व प्रशासन में बहुत कम है, उनको तब तक अधिक सीटें मिलती रहेंगी जब तब उनका प्रतिनिधित्‍व भी बराबर स्‍तर पर नहीं आ जाता। इसके लिए हमें एक संपूर्ण जाति जनगणना की जरूरत पड़ेगी | इसकी अधिक जानकारी आगे चलकर दी गयी है।

   

(36.3) आरक्षण से जुड़े मुद्दों पर राय / रूख

‘नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम.आर.सी.एम.)’ सरकारी अदिसुचना/कानून गरीबी कम कर देगा। और शिक्षा में जो परिवर्तन के प्रस्‍ताव मैंने किए हैं, उससे दलितों और उंची जातियों के बीच दूरी और कम हो जाएगी। और धार्मिक संस्थानों के बारे में मैने जो प्रस्‍ताव किए हैं उससे मंदिरों में दलितों द्वारा सामना किए जाने वाले भेदभाव में कमी आएगी। मैने पुलिस, सरकार, बैंकों, भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय स्‍टेट बैंक, कोर्ट/न्‍यायपालिका, सरकारी वकील और इस तरह के और भी पदों के लिए प्रारंभिक भर्ती के स्‍तर पर सभी तरह के साक्षात्‍कारों/इंटरव्‍यू समाप्‍त करने का प्रस्‍ताव किया है। इसलिए सामान्‍य श्रेणियों और आरक्षित श्रेणियों के बीच के बाकी बची दूरी/मतभेद धीरे-धीरे कम होते जाएंगे। इसके अलावा, हम लोग आरक्षण में निम्‍नलिखित संशोधन का भी प्रस्‍ताव करते हैं :-

1.    आरक्षण की मांग कम करने  के लिए आर्थिक विकल्प/चुनाव की एक व्‍यवस्‍था बनाएं (उपर विस्‍तार से बता दिया गया है)

2.    केवल उन्‍हीं दलितों, आदिवासियों और अन्‍य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण, जो हिंदू, बौध या सिख हों। और स्‍पष्‍ट करते हुए, मुसलमानों, इसाइयों आदि के दलितों, आदिवासियों और अन्‍य पिछड़े वर्गों के लिए कोई आरक्षण नहीं।

3.    जो दलित, आदिवासी अथवा अन्‍य पिछड़े वर्गों के लोग आरक्षण के पात्र हैं, उन्‍हें पहले अपनी-अपनी जाति के कोटे में ही आवेदन/दरखास्त/अप्लाई करना होगा और उनके कोटे पूरे भर जाने के बाद ही वे सामान्‍य कोटे में आवेदन/दरखास्त कर सकते हैं।

4.    धर्म, आर्थिक अथवा सामाजिक आधारों सहित किसी भी अन्‍य आधार पर कोई आरक्षण नहीं।

5.    आरक्षित जातियों के लोगों को पहले आरक्षित कोटे से ही पद मिलेंगे और उनके आरक्षण कोटा पूरा भर जाने के बाद ही सामान्‍य सूची के लिए उन पर विचार किया जाएगा।

6.    यह सुनिश्‍चित किया जाए कि पिछड़ों में भी सबसे पिछड़ों को उप-कोटा या अन्‍य तरीके से लाभ मिले।

ये प्रस्‍ताव हमारे विस्‍तृत प्रस्‍ताव हैं। अगले भाग में विस्‍तृत/ज्यादा जानकारी दी गयी है।

   

(36.4) आरक्षण के मुद्दे पर जिन प्रशासनिक बदलाव/परिवर्तनों का हम वायदा करते हैं, उनकी ज्यादा जानकारी

1.    किसी उपजाति का कोई भी सदस्‍य जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अथवा अन्‍य पिछड़े वर्ग का हो, वह तहसीलदार के कार्यालय जाकर अपना जांच/सत्यापन करवाकर आर्थिक-विकल्प / चुनाव के लिए आवेदन कर सकता है। इस आर्थिक-विकल्प/चुनाव में निम्‍नलिखित बातें/तथ्‍य हैं -:

  • उस व्‍यक्‍ति का अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्‍य पिछड़े वर्ग  का दर्जा बरकरार/बना रहेगा।

  • उसे महंगाई दर के अनुसार अडजस्ट/ठीक किया गया (समायोजित मुद्रास्‍फीति) (इनफ्लेशन एडजस्‍टेड) के बदले/लिए 600 रूपए हर साल मिलेगा जब तक कि वह अपने आर्थिक-विकल्प / चुनाव के चयन को रद्द/समाप्‍त नहीं कर देता।

  • जब तक उसे पैसे का भुगतान होता रहेगा, तब तक वह आरक्षण कोटे में आवेदन नहीं कर सकता।

  • उस दिन वह आरक्षण के लाभ के लिए पात्र/योग्‍य माना जाएगा, जिस दिन वह अपने दूसरे विकल्प/चुनाव को रद्द/समाप्‍त कर देगा।

  • जिन्‍होंने (आर्थिक) विकल्प / चुनाव लिया है, उनकी संख्‍या के आधार पर आरक्षित पदों की संख्‍या में कमी की जाएगी।

  • इसके लिए पैसा सभी जमीनों पर कर/टैक्‍स की वसूली से आएगा कहीं और से नहीं।

2.     उदाहरण –   भारत की आबादी (लगभग) 100 करोड़ है जिसमें से 14 प्रतिशत अर्थात 14 करोड़ लोग अनुसूचित जाति के हैं । इसलिए यदि किसी कॉलेज में 1000 सीटें हैं तो उनमें से 140 सीटें आरक्षित रहेंगी। अब मान लीजिए, इन 14 करोड़ लोगों में से लगभग 6 करोड़ लोग आर्थिक-विकल्प/चुनाव का का रास्‍ता अपनाते हैं तो उनमें से प्रत्‍येक को हर महीने 100 रूपए मिलेगा और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 14 * 0.66 * 6/14 = 5.94 प्रतिशत कम हो जाएगा अर्थात यह 8.06 प्रतिशत रह जाएगा।फोर्मुला – वर्त्तमान आरक्षण प्रतिशत = (आर्थिक विकल्प लेने के पहले का आरक्षण प्रतिशत) * 2/3 * (जन-संख्या जिन्होंने आरक्षण लिया है)/(जन-संख्या जो अनुसुच्चित जाती के हैं) [2/3 एक कारक है, क्योंकि कम से कम एक तिहाई (1/3) लोगों को आरक्षण दिया जायेगा ]

3.    यदि किसी व्‍यक्‍ति ने आर्थिक-विकल्प/चुनाव का चयन किया है और फिर वह बदलकर सामाजिक-विकल्प/चुनाव ले लेता है तो वह उसी दिन `जाती आधारित आरक्षण` लाभ का पात्र होगा । लेकिन यदि वह फिर से आर्थिक-विकल्प/चुनाव की ओर लौटता है तो उसे एक साल के बाद ही 600 रूपए हर वर्ष मिलेंगे।

4.    यदि दलित या अन्‍य पिछड़े वर्ग के किसी व्‍यक्‍ति ने आर्थिक-विकल्प/चुनाव को चुना है तो वह फिर से आरक्षण का लाभ लेकर सीट ले सकता है लेकिन वह तभी पात्र माना जाएगा जब वह आर्थिक -विकल्प/चुनाव छोड़ देता है/रद्द कर देता है।

5.   यदि किसी व्‍यक्ति ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्‍य पिछड़े वर्ग के आरक्षण का लाभ लेकर सीट लिया है तो वह आर्थिक-विकल्प/चुनाव का पात्र नहीं होगा।

6.    बच्‍चे को 600 रूपए प्रति वर्ष का भुगतान केवल तभी मिलेगा जब उसके माता-पिता दोनों ने ही आर्थिक-विकल्प/चुनाव को चुना हो।

7.    यदि माता-पिता दोनों ने आर्थिक-विकल्प/चुनाव लिया है तो उनके 18 वर्ष से कम आयु के बच्‍चों को 600 रूपए प्रति वर्ष मिलेगा जो अधिकतम (दो बेटे) या (2 बेटे, एक बेटी) पर लागू होगा।

जाति गणना

8.    एक संपूर्ण सम्‍पत्ति और उपजाति जनगणना कराना : जाति संघर्ष एक सच्‍चाई है। इसे छिपाने से यह छूमंतर/समाप्‍त नहीं हो सकता है। और यदि इसे छिपाया गया तो इससे प्रशासनिक तरीके से नहीं निपटा जा सकेगा। किसी भी मुद्दे/मामले से उचित तरीके से निपटने के लिए प्रशासन को बिलकुल सही सही सूचना/जानकारी की जरूरत पड़ती है। इसलिए हम उपजाति जनगणना का प्रस्‍ताव करते हैं जिसमें हरेक व्‍यक्‍ति की उपजाति, वह सरकारी सेवा में किस पद पर है, और उसके स्‍वामित्‍व वाली भूमि/सम्‍पत्‍ति के बाजार मूल्‍य को नोट/दर्ज किया जाएगा। राष्‍ट्रीय पहचान-पत्र सिस्टम के लागू हो जाने पर जनगणना के काम में सुधार आएगा और 2-4 वर्षों में ही 1 प्रतिशत से भी कम गलतियों/त्रुटियों वाली एक सही सही प्रणाली(सिस्टम)/व्‍यवस्‍था बनाई जा सकेगी। लेकिन एक कामचलाऊ/अनुमानित प्रणाली(सिस्टम) 6 महीने में ही बनाई जा सकती है। हमलोग इस कामचलाऊ प्रणाली(सिस्टम) से काम करना शुरू कर देंगे और इस प्रणाली(सिस्टम) में हर दिन सुधार होता जाएगा और यह ठीक/सही होती जाएगी।

9.    भारत में लगभग 200 उपजातियां हैं लेकिन चूंकि किसी भी जाति की एक राज्‍य में स्‍थिति और उसी जाति/उसके जैसे जाती की दूसरे राज्‍य में स्थिति अलग-अलग/भिन्‍न हो सकती है। इसलिए राष्‍ट्रीय सूची में ये उपजातियां अलग-अलग जाति के रूप में दर्ज हो जाती हैं। इसलिए राष्‍ट्रीय सूची में लगभग 5000 जातियां हैं जबकि अधिकांश राज्‍यों की सूचियों में लगभग 200-400 उपजातियां हैं। इसलिए जनगणना में यह ध्‍यान दिया जाएगा कि कोई व्‍यक्‍ति 5000 जातियों में से राज्‍यवार किस उपजाति का है। कृपया ध्‍यान दीजिए, उपजातियां केवल राज्‍यवार होंगी।

10.   यदि कोई व्‍यक्‍ति सामान्‍य जाति का होने का दावा करता है, तब उसे जाति या उपजाति विशेष रूप से बताने की जरूरत नहीं होगी और उसे आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलेगा। लेकिन किसी व्‍यक्‍ति या उसके पिता ने आरक्षण का लाभ लिया है तो यह बताना होगा कि वह किस राज्‍य की किस जाती और उपजाति का है।

11.   व्‍यक्‍ति-जात-सम्‍पत्ति आंकड़ों/डाटा का प्रयोग/उपयोग करके प्रधानमंत्री उपजातियों की प्रति व्‍यक्‍ति सम्‍पत्ति (की जानकारी) प्राप्‍त कर सकते हैं।

12.   राजनीतिक कल्‍याण सूचक/चिन्ह : किसी जाति की राजनैतिक सूचक/चिन्ह की गणना निम्‍नलिखित तरीके से की जाएगी :-

पद

अंक

प्रधानमंत्री, उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश, उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीश, केन्‍द सरकार के नियामक/संचालक/रेगुलेटर, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, भारतीय रिजर्व बैंक के उप गवर्नर, बैंक अध्‍यक्ष

50,00,000 अंक

उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीश, प्रमुख सत्र न्‍यायाधीश, केन्‍द्र सरकार में उप सचिव, राज्‍य सरकार में नियामक/संचालक/रेगुलेटर, मुख्‍यमंत्री

40,00,000 अंक

सत्र न्‍यायाधीश, केन्‍द्र में मंत्री

10,00,000 अंक

अन्‍य निचली अदालतों के न्‍यायाधीश, राज्‍यों में मंत्री

5,00,000 अंक

सांसद, अनुसचिव/अंडर-सेक्रेटरी से उपर के/बड़े अधिकारी

1,00,000 अंक

विधायक, जिला पंचायत सरपंच

15,000 अंक

केन्‍द्र, राज्‍य और पुलिस आदि (सार्वजनिक क्षेत्रों की इकाईयों के नहीं) के सभी श्रेणी – 1 अधिकारी

20,000 अंक

केन्‍द्र, राज्‍य और पुलिस आदि के सभी श्रेणी – 2 अधिकारी

10,000 अंक

केन्‍द्र, राज्‍य और पुलिस आदि के सभी श्रेणी – 3 अधिकारी

5,000 अंक

सार्वजनिक क्षेत्रों की इकाईयों, केन्‍द्र सरकार, राज्‍य सरकार आदि (उपर लिखित सहित) के सभी कर्मचारी

वार्षिक वेतन को 100 से भाग देकर

प्रति व्‍यक्‍ति संपत्‍ति का 10,00,000 गुना वाले व्‍यक्‍ति

100,00,000 अंक

प्रति व्‍यक्‍ति संपत्‍ति का 1,00,000 गुना वाले व्‍यक्‍ति

10,00,000 अंक

प्रति व्‍यक्‍ति संपत्‍ति का 10,000 गुना वाले व्‍यक्‍ति

1,00,000 अंक

प्रति व्‍यक्‍ति संपत्‍ति का 1000 गुना वाले व्‍यक्‍ति

10,000 अंक

प्रति व्‍यक्‍ति संपत्‍ति का 100 गुना वाले व्‍यक्‍ति

1,000 अंक

पिछड़ों में भी पिछड़ा का निर्धारण करने की नीतियां/तरीके

13.   कम अंक हासिल/प्राप्‍त करने वाली जातियों को इस कोटे में अधिक सीटें मिलेंगी।

14.   उदाहरण : मान लीजिए, किसी जाति को अन्‍य जाति की तुलना में 10 गुना ज्‍यादा अंक मिले हैं। तब कम अंक हासिल करने वाली जातियों को अधिक अंक हासिल करने वाली जातियों की तुलना में 10 गुना ज्‍यादा सीटें मिलेंगी।

श्रेणी: प्रजा अधीन