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अध्याय 27 – बहुमत द्वारा जज, मंत्रियों आदि को जेल भेजने, फांसी (की सजा) देने की प्रक्रियाएं / तरीके

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7.

माननीय सुप्रीम-कोर्ट के सभी जज

यदि माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के सभी जज सहमत होते हैं कि ऐसी सजा जारी करना सांवैधानिक है तो प्रधानमंत्री को जेल या फांसी की सजा जारी कर सकते हैं (अथवा उन्‍हें ऐसा करने की जरूरत नहीं है)। माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के सभी जजों का निर्णय ही अंतिम होगा और हां की गिनती उनपर बाध्‍यकारी नहीं होगी।

8.

गृह मंत्री

माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के सभी जजों के आदेश का पालन गृह मंत्री स्‍वयं करेंगे।

9.

जिला कलेक्टर

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून में बदलाव/परिवर्तन चाहता हो तो वह जिला कलेक्‍टर के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्‍तुत कर सकता है और जिला कलेक्टर या उसका क्‍लर्क इस ऐफिडेविट/हलफनामा को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पन्ने का शुल्‍क/फीस लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

10.

तलाटी (अथवा पटवारी/लेखपाल )

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्‍लॉज/खण्‍ड में प्रस्‍तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी पावती/रसीद देगा। इस हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल दिया जाएगा।

“प्रधान मंत्री को जेल भेजने/फांसी देने की प्रक्रिया” के साथ मैंने लगभग 75 और ड्राफ्टों/प्रारूपों का प्रस्‍ताव किया है जो सभी हमारी महान कृति/प्रसिद्द रचना `संविधान` की सभी 395 धाराओं के शत-प्रतिशत अनुरूप/आज्ञानुवर्ती है। और ये सभी प्रारूप माननीय उच्चतम न्‍यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के सभी फैसलों के अनुरूप हैं। इन 75 ड्राफ्टों/प्रारूपों में से कुछ हैं – बहुमत द्वारा उच्‍चतम न्‍यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के जजों को जेल/फांसी, बहुमत द्वारा मुख्‍यमंत्री को जेल/फांसी, बहुमत द्वारा मंत्रियों को जेल/फांसी, बहुमत द्वारा उच्‍च न्‍यायालय के जजों को जेल/फांसी, आदि आदि।

यदि किसी राज्‍य में बहुमत द्वारा किसी व्‍यक्‍ति को सजा सुनाई जाती है तो राष्‍ट्र के बहुमत द्वारा इस फैसले को उलट/बदल दिया जा सकता है।

 

(27.3) बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा जेल, बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा फांसी

प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों, जिला पुलिस प्रमुखों, जजों आदि जैसे वरिष्‍ठ पदाधिकारियों/पदधारकों द्वारा खुले भ्रष्‍टाचार के कई मामले हमें देखने को मिलते हैं। वे छूट भी जाते हैं क्‍योंकि कोर्ट/न्यायालय के अंदर कुछ ही व्‍यक्‍तियों द्वारा फैसले लिए/सुनाए जाते हैं और उनमें से कुछ को अपने पक्ष में कर लिया जाता है। इसलिए जब अपराध के सबूत/साक्ष्‍य भी मौजूद होते हैं तब भी सजा कभी नहीं मिलती। उच्‍च पदों पर/द्वारा होने वाले बड़े अपराधों से निबटने के लिए हमलोग निम्‍नलिखित कानूनों का प्रस्‍ताव करते हैं –

  1. भारत का 25 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी नागरिक स्‍वयं को जिला, राज्‍य और राष्‍ट्रीय स्‍तर पर स्‍तर पर “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” व्‍यक्‍ति के रूप में स्‍वयं को दर्ज करवा सकता है।

  2. यह “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा” प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट केवल उन्‍हीं नागरिकों पर लागू होगा जिन्‍होंने “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” व्‍यक्‍ति के रूप में स्‍वयं को दर्ज करवाया हो।

  3. यह विकल्‍प जीवन भर नहीं बदला जा सकेगा – अर्थात एक बार यदि किसी व्‍यक्‍ति ने “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” पर हस्‍ताक्षर कर दिए हों तो वह इस को रद्द नहीं कर सकेगा।

  4. यदि किसी नागरिक ने जिला, राज्‍य अथवा राष्‍ट्रीय स्‍तर पर “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” पर हस्ताक्षर किये हों, तो उस जिले, राज्‍य अथवा भारत का कोई भी नागरिक-मतदाता 20 रूपए का भुगतान करके उस व्‍यक्‍ति के लिए `क` वर्षों के लिए उस व्‍यक्‍ति के लिए सजा और जुर्माने/अर्थदण्‍ड की मांग कर सकता है।

  5. यदि सभी नागरिकों के 50 प्रतिशत से अधिक नागरिक (किसी पदधारी के विरूद्ध) `क` वर्षों की सजा और `ख` रूपए के अर्थदण्‍ड/जुर्माने का अनुमोदन/स्वीकृति कर देते हैं तो मुख्‍यमंत्री, प्रधानमंत्री, उच्‍चतम न्‍यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के जजों का अनुमोदन/स्वीकृति लेकर उस सजा को उस व्‍यक्‍ति पर लागू कर सकते हैं।

  6. यदि किसी अधिकारी को फांसी की सजा देने के लिए सभी नागरिकों के 67 प्रतिशत से अधिक नागरिकों ने अनुमोदन/स्वीकृति दिया हो तो उच्‍चतम न्‍यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के जजों का अनुमोदन/स्वीकृति लेकर मुख्‍यमंत्री, प्रधानमंत्री उस सजा को उस व्‍यक्‍ति पर लागू कर सकते हैं।

  7. जिले के नागरिकों द्वारा सुनाई गई सजा .राज्‍य के नागरिकों द्वारा रद्द/निरस्‍त की जा सकती है और राज्‍य के नागरिकों द्वारा सुनाई गई कोई सजा भारत के नागरिकों द्वारा रद्द/निरस्‍त की जा सकती है। भारत के नागरिकों द्वारा सुनाई गई सजा केवल उच्‍चतम न्‍यायालय के जजों द्वारा ही निरस्‍त की जा सकती है।

  8. क्‍या उच्‍च न्‍यायालय(हाई-कोर्ट) के जज और उच्‍चतम न्‍यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के जज बहुमत द्वारा किए गए अनुमोदन/स्वीकृति के खिलाफ फैसला देंगे? मैं यहां ऐसे निरर्थक प्रश्‍नों पर चर्चा नहीं करना चाहता।

  9. यह कानून केवल उन्‍हीं व्‍यक्‍तियों/लोगों पर लागू होगा जिन्‍होंने “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” (व्‍यक्‍ति) के रूप में अपने आप को रजिस्‍टर/दर्ज करवाया है। यह कानून उन लोगों पर लागू नहीं होगा जिन्‍होंने इस प्रकार से अपने आप को दर्ज नहीं करवाया है।

अब यदि कोई मुख्‍यमंत्री, प्रधानमंत्री, उच्‍चतम न्‍यायालय के जज, जिला शिक्षा अधिकारी, जिला पुलिस प्रमुख, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर आदि यदि “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” के रूप में दर्ज नहीं हैं तो नागरिक उपर्युक्‍त (कानून) का प्रयोग करके इन्‍हें कैद/जुर्माना नहीं दे सकते।

मैं ‘प्रजा अधीन राजा समूह’/‘राईट टू रिकॉल ग्रुप’ के सदस्‍य के रूप में यह प्रस्‍ताव करता हूँ कि नागरिकों को ‘जनता की आवाज़ – पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली’ का प्रयोग करके “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” को लागू करवाना चाहिए। और नागरिकों द्वारा इस “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” को लागू करवाने के छह महीने के बाद, मैं प्रस्‍ताव करता हूँ कि नागरिकों को चाहिए कि वे प्रशासन के सभी क्‍लॉस/श्रेणी I पदों पर विराजमान/बैठे ऐसे सभी लोगों/अधिकारियों, राजनीति में विधायकों अथवा उनसे उपर के पदों वाले लोगों/राजनीतिज्ञों और न्‍यायालय/कोर्ट में सेशन जज अथवा उससे ऊपर के पदों पर बैठे सभी लोगों/पदधारियों को हटा देना चाहिए जिन्‍होंने अपने आप को रजिस्‍टर नहीं करवाया है। और उनके स्थान पर केवल स्‍वयं को रजिस्‍टर/दर्ज करवा चुके लोगों को लायें । यह भारत के नागरिकों को मेरी राय और सुझाव है – यह कोई कानूनी प्रस्‍ताव नहीं है। यदि किसी व्यक्‍ति का नागरिकों पर विश्‍वास नहीं है तो नागरिकों को चाहिए कि ऐसे लोगों को वे वरिष्‍ठ पदों की जिम्‍मेदारी न दें। यदि कोई व्‍यक्‍ति भारत छोड़ने का इरादा रखता है तो नागरिकों को चाहिए कि वे ऐसे व्‍यक्‍तियों को क्‍लॉस/श्रेणी I या इससे उपर के पद पर कभी भी न आने दें। मैं ऐसे  किसी व्‍यक्‍ति को जहाज का कप्‍तान/नेता बनाना पसंद करूंगा जो अपने आप को जहाज से बांधे रखने का इच्‍छुक हो, न कि किसी ऐसे व्‍यक्‍ति को जो जहाज को छोड़कर भाग जाने का विचार रखता हो।

श्रेणी: प्रजा अधीन