सूची
- (27.1) इन सरकारी अधिसूचनाओं / आदेशों (कानूनों) की क्या आवश्यकता है ?
- (27.2) उदाहरण: वह कानून जिसके द्वारा बहुमत प्रधानमंत्री को फांसी की सजा दे सकें
- (27.3) बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा जेल, बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा फांसी
- (27.4) “ बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा फांसी ” का प्रयोग
- (27.5) बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा सच्चाई सीरम (सच बुलवाने वाली औषधि) जांच करना (नारको जांच बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा)
- (27.6) उच्च / शीर्ष पदों पर भर्ती में भाई-भतीजावाद, पक्षपात, सांठ-गाँठ/मिली-भगत व भ्रष्टाचार कम करना
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- (27.1) इन सरकारी अधिसूचनाओं / आदेशों (कानूनों) की क्या आवश्यकता है ?
- (27.2) उदाहरण: वह कानून जिसके द्वारा बहुमत प्रधानमंत्री को फांसी की सजा दे सकें
- (27.3) बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा जेल, बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा फांसी
- (27.4) “ बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा फांसी ” का प्रयोग
- (27.5) बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा सच्चाई सीरम (सच बुलवाने वाली औषधि) जांच करना (नारको जांच बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा)
- (27.6) उच्च / शीर्ष पदों पर भर्ती में भाई-भतीजावाद, पक्षपात, सांठ-गाँठ/मिली-भगत व भ्रष्टाचार कम करना
बहुमत द्वारा जज, मंत्रियों आदि को जेल भेजने, फांसी (की सजा) देने की प्रक्रियाएं / तरीके |
(27.1) इन सरकारी अधिसूचनाओं / आदेशों (कानूनों) की क्या आवश्यकता है ? |
ऐसे अमीर बदमाश मंत्री,जज आदि , जिनके पास डॉक्टरों को खरीदने के लिए पैसे हैं,सुप्रीम कोर्ट को खरीदने के पैसे हैं और लोकपाल को खरीदने के लिए पैसे हैं, उनको बस/नियंत्रण में करने का क्या उपाय है ?
ईसा से 600 वर्ष पूर्व, यूनानियों के पास ऐसा तरीका/प्रक्रिया था जिसके द्वारा यदि राजा का छोटा अफसर यदि कोई जुर्म या भ्रष्टाचार में दोषी बोला जाता था, तो 50 नागरिक क्रमरहित तरीके से चुने जाते थे (जिनको जूरी बोला जाता था) और उनको सज़ा का फैसला देने के लिए बोला जाता था | जज को सज़ा का फैसला इसीलिए नहीं बोला जाता था क्योंकि नागरिकों का ये मानना था और बिलकुल सही मानना था कि जज का राजाओं के अफसर या राजा के साथ सांठ-गाँठ/मिली-भगत हो सकती है और इसीलिए वे अफसर को बचा सकते हैं/रक्षा कर सकते हैं यदि अफसर भ्रष्ट या मुजरिम भी हो तो भी | लेकिन यदि अफसर पैसे-वाला और ताकतवर हो तो ? वो 50 जूरी-सदस्य को भी खरीद सकते थे/दबा सकते थे | इसीलिए यादे बड़ा अफसर हो , जूरी-सदस्यों कि संख्या 100, उससे भी ज्यादा बड़ा अफसर हो तो 200,300, 400 और सबसे बड़ी जूरी में 500 आम-नागरिक होते थे |
लेकिन यदि राजा ही भ्रष्ट या मुजरिम हुआ तो ? और यूनानी मानते थे कि राजा इतना ताकतवर हो सकता है कि 500 नागरिकों पर भी बल प्रयोग कर सकता है | इसीलिए राजा के लिए ये प्रक्रिया/तरीका था कि —- नगर की पूरी आबादी इकठ्ठा होती थी और फैसला करे कि राजा को निकालना चाहिए कि नहीं, नगर से निकाला जाये कि नहीं ,यहाँ तक फांसी दी जाये के नहीं | क्योंकि ऐसी प्रक्रिया / तरीका था , इसीलिए कोई भी रजा ने कभी भी ये हिम्मत नहीं की कि कोई ऐसा काम करे जो नागरिकों को इस हद तक भडकाए | लेकिन ये राजा को निकालने या सज़ा देने की प्रक्रिया / तरीका तो था |
इसीलिए मैं प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों, जिला पुलिस प्रमुखों, जजों आदि जैसे वरिष्ठ/बड़े पदाधिकारियों/पदधारकों के लिए ये निम्न-लिखित प्रक्रियाएं/तरीके प्रस्ताव करता हूँ-
1. बहुमत नागरिकों के अनुमोदन/स्वकृति द्वारा भ्रष्ट को निकालना/बदलना
2. सार्वजनिक(पब्लिक में) नार्को जांच बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा
3. बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा कैद/सज़ा
4. बहुमत के अनुमोदन/ स्वीकृति द्वारा फांसी
किसी बड़े व्यक्ति, जिस पर भ्रष्टाचार का दोष लगा है , बहुमत की स्वीकृति द्वारा पब्लिक में (सार्वजनिक) नारको जांच का प्रयोग करके सबूत इकठ्ठा किये जा सकते हैं | और उन सबूतों के आधार पर नागरिकों का बहुमत स्वकृति देगा कि उस व्यक्ति को सज़ा,कैद या फांसी होनी चाहिए या नहीं ? भ्रष्ट जजों या लोकपाल के लिए ये फैसला करने के लिए छोड़ देना समय को व्यर्थ करना होगा |
(27.2) उदाहरण: वह कानून जिसके द्वारा बहुमत प्रधानमंत्री को फांसी की सजा दे सकें |
निम्नलिखित सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) का प्रस्ताव मैंने किया है जिनपर जब कैबिनेट मंत्रीगण हस्ताक्षर कर देंगे तो ये (अधिसूचना(आदेश)एं) नागरिकों को यह अनुमति/अधिकार देंगी कि वे बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति का प्रयोग करके किसी प्रधानमंत्री को फांसी की सजा दिलवा सकें। और इन प्रस्तावित अधिसूचनाओं(आदेश) में से प्रत्येक क्लॉज/खण्ड शत-प्रतिशत संवैधानिक है।
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निम्नलिखित के लिए प्रक्रियाएं |
प्रक्रियाएं/अनुदेश |
1. |
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2. | जिला कलेक्टर (अथवा उसका क्लर्क) | सरकार जिला कलेक्टर को यह आदेश देगी : यदि कोई महिला नागरिक या दलित नागरिक या किसान नागरिक या मजदूर नागरिक या वरिष्ठ नागरिक या कोई भी नागरिक यह समझता है कि वर्तमान प्रधानमंत्री या कोई भी पूर्व प्रधानमंत्री को `क` वर्षों के लिए जेल भेजना चाहिए अथवा भ्रष्टाचार या अन्य बड़े अपराधों के लिए फांसी पर चढ़ाया जाना चाहिए और वह जिला कलेक्टर को (या जिला कलेक्टर द्वारा नामित क्लर्क को) कोई शपथपत्र/एफिडेविट/हलफनामा देता है तो वह जिला कलक्टर अथवा उसका क्लर्क उसके ऐफिडेविट को 20 रूपए प्रति पृष्ठ/पेज का शुल्क लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर डाल देगा। जिला कलक्टर अथवा उसका क्लर्क एक सीरियल नंबर भी जारी करेगा। |
3. | पटवारी, तलाटी (अथवा उसका क्लर्क) | सरकार पटवारी (तलाटी) को आदेश देगी: यदि कोई भी नागरिक स्वयं तलाटी के कार्यालय में आता है, 2 रूपए का शुल्क अदा करता है और क्लॉज/खण्ड 1 में प्रस्तुत किए गए शपथपत्र/एफिडेविट/हलफनामा पर हाँ दर्ज कराना चाहता है तो तलाटी उसके `हां` को कम्प्यूटर में दर्ज कर लेगा तथा उसे एक रसीद देगा जिसमें उसका मतदाता पहचान पत्र (संख्या), दिनांक/समय और उन व्यक्तियों (का नाम लिखा) होगा जिसे उसने अनुमोदित किया है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले/बी पी एल कार्डधारकों के लिए शुल्क 1 रूपए होगा। |
4. | पटवारी, तलाटी | पटवारी नागरिकों के सभी `हां` को उन नागरिकों की मतदाता पहचानपत्र संख्या, और उनकी पसंद (के व्यक्तियों के नाम) प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा। |
5. | पटवारी, तलाटी | यदि कोई नागरिक अपनी `हां` को रद्द करवाने के लिए आता है तो पटवारी बिना कोई शुल्क/फीस लिए उसे रद्द कर देगा। |
6. | महा-दण्डाधिकारी(प्रोसिक्यूटर जनरल) | यदि 38 करोड़ से ज्यादा नागरिक कैद/जेल की सजा का अनुमोदन/स्वीकृति कर देते हैं अथवा यदि 50 करोड़ से ज्यादा नागरिक फांसी देने का अनुमोदन/स्वीकृति कर देते हैं तो महा-दण्डाधिकारी उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के जजों से कहेगा कि वे एफिडेविट में उल्लिखित/कहे गए प्रधानमंत्री या पूर्व प्रधानमंत्री को जेल भेजने या अथवा फांसी देने की सजा जारी करें या महा-दण्डाधिकारी को ऐसा कहने की जरूरत नहीं। महा-दण्डाधिकारी का निर्णय ही इस मामले पर अंतिम होगा और `हां` की गिनती उसके उपर बाध्यकारी नहीं होगा। महा-दण्डाधिकारी उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कौर्ट) के सभी जजों वाली एक बेंच से अनुरोध करेगा। |
7. | माननीय सुप्रीम-कोर्ट के सभी जज | यदि माननीय उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के सभी जज सहमत होते हैं कि ऐसी सजा जारी करना सांवैधानिक है तो प्रधानमंत्री को जेल या फांसी की सजा जारी कर सकते हैं (अथवा उन्हें ऐसा करने की जरूरत नहीं है)। माननीय उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के सभी जजों का निर्णय ही अंतिम होगा और हां की गिनती उनपर बाध्यकारी नहीं होगी। |
8. | गृह मंत्री | माननीय उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के सभी जजों के आदेश का पालन गृह मंत्री स्वयं करेंगे। |
9. | जिला कलेक्टर | यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून में बदलाव/परिवर्तन चाहता हो तो वह जिला कलेक्टर के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्तुत कर सकता है और जिला कलेक्टर या उसका क्लर्क इस ऐफिडेविट/हलफनामा को 20 रूपए प्रति पृष्ठ/पन्ने का शुल्क/फीस लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा। |
10. | तलाटी (अथवा पटवारी/लेखपाल ) | यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्लॉज/खण्ड में प्रस्तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी पावती/रसीद देगा। इस हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल दिया जाएगा। |
“प्रधान मंत्री को जेल भेजने/फांसी देने की प्रक्रिया” के साथ मैंने लगभग 75 और ड्राफ्टों/प्रारूपों का प्रस्ताव किया है जो सभी हमारी महान कृति/प्रसिद्द रचना `संविधान` की सभी 395 धाराओं के शत-प्रतिशत अनुरूप/आज्ञानुवर्ती है। और ये सभी प्रारूप माननीय उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के सभी फैसलों के अनुरूप हैं। इन 75 ड्राफ्टों/प्रारूपों में से कुछ हैं – बहुमत द्वारा उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के जजों को जेल/फांसी, बहुमत द्वारा मुख्यमंत्री को जेल/फांसी, बहुमत द्वारा मंत्रियों को जेल/फांसी, बहुमत द्वारा उच्च न्यायालय के जजों को जेल/फांसी, आदि आदि।
यदि किसी राज्य में बहुमत द्वारा किसी व्यक्ति को सजा सुनाई जाती है तो राष्ट्र के बहुमत द्वारा इस फैसले को उलट/बदल दिया जा सकता है।
(27.3) बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा जेल, बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा फांसी |
प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों, जिला पुलिस प्रमुखों, जजों आदि जैसे वरिष्ठ पदाधिकारियों/पदधारकों द्वारा खुले भ्रष्टाचार के कई मामले हमें देखने को मिलते हैं। वे छूट भी जाते हैं क्योंकि कोर्ट/न्यायालय के अंदर कुछ ही व्यक्तियों द्वारा फैसले लिए/सुनाए जाते हैं और उनमें से कुछ को अपने पक्ष में कर लिया जाता है। इसलिए जब अपराध के सबूत/साक्ष्य भी मौजूद होते हैं तब भी सजा कभी नहीं मिलती। उच्च पदों पर/द्वारा होने वाले बड़े अपराधों से निबटने के लिए हमलोग निम्नलिखित कानूनों का प्रस्ताव करते हैं –
- भारत का 25 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी नागरिक स्वयं को जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर स्तर पर “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” व्यक्ति के रूप में स्वयं को दर्ज करवा सकता है।
- यह “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा” प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट केवल उन्हीं नागरिकों पर लागू होगा जिन्होंने “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” व्यक्ति के रूप में स्वयं को दर्ज करवाया हो।
- यह विकल्प जीवन भर नहीं बदला जा सकेगा – अर्थात एक बार यदि किसी व्यक्ति ने “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” पर हस्ताक्षर कर दिए हों तो वह इस को रद्द नहीं कर सकेगा।
- यदि किसी नागरिक ने जिला, राज्य अथवा राष्ट्रीय स्तर पर “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” पर हस्ताक्षर किये हों, तो उस जिले, राज्य अथवा भारत का कोई भी नागरिक-मतदाता 20 रूपए का भुगतान करके उस व्यक्ति के लिए `क` वर्षों के लिए उस व्यक्ति के लिए सजा और जुर्माने/अर्थदण्ड की मांग कर सकता है।
- यदि सभी नागरिकों के 50 प्रतिशत से अधिक नागरिक (किसी पदधारी के विरूद्ध) `क` वर्षों की सजा और `ख` रूपए के अर्थदण्ड/जुर्माने का अनुमोदन/स्वीकृति कर देते हैं तो मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के जजों का अनुमोदन/स्वीकृति लेकर उस सजा को उस व्यक्ति पर लागू कर सकते हैं।
- यदि किसी अधिकारी को फांसी की सजा देने के लिए सभी नागरिकों के 67 प्रतिशत से अधिक नागरिकों ने अनुमोदन/स्वीकृति दिया हो तो उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के जजों का अनुमोदन/स्वीकृति लेकर मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री उस सजा को उस व्यक्ति पर लागू कर सकते हैं।
- जिले के नागरिकों द्वारा सुनाई गई सजा .राज्य के नागरिकों द्वारा रद्द/निरस्त की जा सकती है और राज्य के नागरिकों द्वारा सुनाई गई कोई सजा भारत के नागरिकों द्वारा रद्द/निरस्त की जा सकती है। भारत के नागरिकों द्वारा सुनाई गई सजा केवल उच्चतम न्यायालय के जजों द्वारा ही निरस्त की जा सकती है।
- क्या उच्च न्यायालय(हाई-कोर्ट) के जज और उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के जज बहुमत द्वारा किए गए अनुमोदन/स्वीकृति के खिलाफ फैसला देंगे? मैं यहां ऐसे निरर्थक प्रश्नों पर चर्चा नहीं करना चाहता।
- यह कानून केवल उन्हीं व्यक्तियों/लोगों पर लागू होगा जिन्होंने “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” (व्यक्ति) के रूप में अपने आप को रजिस्टर/दर्ज करवाया है। यह कानून उन लोगों पर लागू नहीं होगा जिन्होंने इस प्रकार से अपने आप को दर्ज नहीं करवाया है।
अब यदि कोई मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, उच्चतम न्यायालय के जज, जिला शिक्षा अधिकारी, जिला पुलिस प्रमुख, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर आदि यदि “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” के रूप में दर्ज नहीं हैं तो नागरिक उपर्युक्त (कानून) का प्रयोग करके इन्हें कैद/जुर्माना नहीं दे सकते।
मैं ‘प्रजा अधीन राजा समूह’/‘राईट टू रिकॉल ग्रुप’ के सदस्य के रूप में यह प्रस्ताव करता हूँ कि नागरिकों को ‘जनता की आवाज़ – पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली’ का प्रयोग करके “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” को लागू करवाना चाहिए। और नागरिकों द्वारा इस “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा सजा पर सहमत” को लागू करवाने के छह महीने के बाद, मैं प्रस्ताव करता हूँ कि नागरिकों को चाहिए कि वे प्रशासन के सभी क्लॉस/श्रेणी I पदों पर विराजमान/बैठे ऐसे सभी लोगों/अधिकारियों, राजनीति में विधायकों अथवा उनसे उपर के पदों वाले लोगों/राजनीतिज्ञों और न्यायालय/कोर्ट में सेशन जज अथवा उससे ऊपर के पदों पर बैठे सभी लोगों/पदधारियों को हटा देना चाहिए जिन्होंने अपने आप को रजिस्टर नहीं करवाया है। और उनके स्थान पर केवल स्वयं को रजिस्टर/दर्ज करवा चुके लोगों को लायें । यह भारत के नागरिकों को मेरी राय और सुझाव है – यह कोई कानूनी प्रस्ताव नहीं है। यदि किसी व्यक्ति का नागरिकों पर विश्वास नहीं है तो नागरिकों को चाहिए कि ऐसे लोगों को वे वरिष्ठ पदों की जिम्मेदारी न दें। यदि कोई व्यक्ति भारत छोड़ने का इरादा रखता है तो नागरिकों को चाहिए कि वे ऐसे व्यक्तियों को क्लॉस/श्रेणी I या इससे उपर के पद पर कभी भी न आने दें। मैं ऐसे किसी व्यक्ति को जहाज का कप्तान/नेता बनाना पसंद करूंगा जो अपने आप को जहाज से बांधे रखने का इच्छुक हो, न कि किसी ऐसे व्यक्ति को जो जहाज को छोड़कर भाग जाने का विचार रखता हो।
(27.4) “ बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा फांसी ” का प्रयोग |
मैं इस भयानक और कठोर “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा फांसी” कानून को ‘जनता की आवाज़ – पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके लागू करने/करवाने का पक्का इरादा रखता हूँ। लेकिन इसका प्रयोजन/उद्देश्य केवल शैक्षणिक ही है। “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा फांसी” या कम से कम “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा जेल/कैद” का कभी भी उपयोग नहीं किया जाएगा। तब मैं ‘जनता की आवाज़ – पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके इसे लागू करवाने का प्रस्ताव क्यों कर रहा हूँ? और नागरिकगण भी इस कानून को लागू करने पर क्यों तैयार होंगे?
‘प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)’ भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने के लिए एकदम पर्याप्त है। लेकिन भारत के मंत्रियों, जजों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों में भ्रष्टाचार बेतहाशा, इतना अधिक बढ़ गया है और हर जगह फैल गया है कि नागरिकों को यह आश्वस्त/संतुष्ट कराना कठिन हो गया है कि ‘प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)’ (कानून) पर्याप्त है। हमलोगों के यहां अफजल और कसाब जैसे अपराधी हैं जिनकी फांसी की सजा महीनों, वर्षों और यहां तक कि दशकों तक भी टलती रहती है क्योंकि मंत्रियों और मंत्रियों को बनाने वालों को सऊदी अरब से घूस मिलता रहता है। ऐसे माहौल में, अनेक लोग ‘प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)’ (कानून) को `बिना प्रभाव के`/शक्तिहीन मान बैठते हैं। इसलिए मुझे नागरिकों को संतुष्ट करने के लिए थोड़े और कठोर/भयानक कानून लाने की आवश्यकता पड़ रही है कि ऐसा भी कोई कानून है जो अधिकारियों में अत्यधिक/इतना भय पैदा कर देगी कि वह कभी भी घूस लेने के बारे में सोचने तक का साहस नहीं कर सकेगा। और इसलिए मैंने “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा फांसी” कानून का प्रारूप तैयार कर दिया है। इस कानून का उपयोग नागरिकों को इस बात के लिए संतुष्ट/आश्वस्त करना है कि भ्रष्टाचार को निश्चित रूप से नियंत्रण/काबू में लाया जा सकता है।
क्या नागरिकगण कभी भी इस कानून का उपयोग करेंगे ? सबसे पहले 67 प्रतिशत नागरिक कब/किस परिस्थिति में किसी मंत्री, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों अथवा किसी जज को फांसी देने की मांग करेंगे? केवल तभी जब वह मंत्री, भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी और भारतीय पुलिस सेवा का अधिकारी अथवा जज 100 बार फांसी दिए जाने का अपराधी होगा। और इस खतरे को देखते हुए कि नागरिकगण उसे फांसी की सजा दे/दिला सकते हैं, भारतीय प्रशासनिक सेवा(आई.ऐ.एस) का कोई भी अधिकारी और भारतीय पुलिस सेवा का कोई अधिकारी अथवा जज, यदि वह सुकरात जितना लोकप्रियता का भूखा नहीं हो तो कुछ भी ऐसा नहीं करेगा जिससे इतने करोड़ नागरिक उसे फांसी की सजा देने के लिए `हां` दर्ज करवाने के लिए तैयार हो जाएं । इसलिए “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा फांसी” कानून केवल नागरिकों को संतुष्ट करने के लिए है कि यदि बेतहाशा/काबू से बाहर भ्रष्टाचार कायम रहता है तो यह उसका निश्चित समाधान भी है यदि ‘प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)’ पर्याप्त नहीं भी हो तो भी। एक बार ‘प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)’ आ जाए/लागू हो जाए तो यह अपने आप में पर्याप्त होना साबित कर देगा और इसलिए “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा फांसी” प्रारूप का प्रयोग/उपयोग कभी नहीं होगा।
(27.5) बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा सच्चाई सीरम (सच बुलवाने वाली औषधि) जांच करना (नारको जांच बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा) |
मैं ‘जनता की आवाज़ – पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके निम्नलिखित कानून को लागू करवाने का प्रस्ताव करता हूँ जिसका उपयोग बहुमत का अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्त करने के बाद जनता के बीच सच्चाई सीरम जांच करने में किया जाता है :-
- यह कानून उन मंत्रियों, विधायकों, सांसदों और जिला सरपंच तथा महापौरों पर लागू होगा जो इस कानून से सहमत हैं।
- यह कानून उन सभी श्रेणी/क्लास I अधिकारियों और उनसे उपर के पदाधिकारियों पर भी लागू होगा जो इस कानून से सहमत हैं।
- यह कानून उन सभी सेशन जजों और उनसे ऊपर के पदाधिकारियों पर भी लागू होगा जो इस कानून से सहमत हैं।
- यह कानून प्रत्येक/हर पद के लिए “क्षेत्र” का निर्धारण करेगा। उदाहरण के लिए, विधायकों और सांसदों के लिए उनका क्षेत्र उनका चुनाव क्षेत्र होगा, मुख्यमंत्री के लिए उसका क्षेत्र उसका राज्य होगा, जिला-स्तरीय अधिकारी के लिए यह क्षेत्र उसका जिला होगा, इत्यादि, इत्यादि।
- यदि किसी व्यक्ति/पदाधिकारी के क्षेत्र के नागरिक-मतदाताओं में से बहुमत/अधिकांश नागरिक-मतदाता उस व्यक्ति/पदाधिकारी पर सच्चाई सीरम जांच की मांग करते हैं तो उस व्यक्ति/पदाधिकारी पर जनता की उपस्थिति में ही सच्चाई सीरम जांच की जाएगी।
- जूरी मंडल/जूरर्स सच्चाई सीरम जांच के परिणाम के आधार पर अपना फैसला दे सकते हैं या तो उन्हें ऐसा करने की जरूरत नहीं है।
यह डर कि उन्हें सच्चाई सीरम जांच से गुजरना पड़ सकता है, अधिकारी, मत्री, जज घूस लेने से बचेंगे और या तो इसके लिए मना कर देंगे। इतना ही नहीं, प्रशासन में कार्यरत व्यक्ति वैसे किसी व्यक्ति के संपर्क में आने या उसकी निकटता प्राप्त करने से बचेगा जो भ्रष्टाचारी के रूप में बदनाम है। इससे भ्रष्ट जजों, मंत्रियों, भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों(आई.ऐ.एस) और भारतीय पुलिस अधिकारियों की ताकत और घटेगी।
नार्को जांच/ सच्चाई सीरम (सच बुलवाने वाली औषधि) जांच क्या असंवैधानिक है ?
भ्रष्ट सुप्रीम-कोर्ट के जजों ने ये राय दी है की नारको जांच/सच्चाई सीरम जांच “असंवैधानिक” है क्योंकि उनको डर है कि मुजरिम उन जजों के नाम और उनको दिए गए रिश्वतों की पोल न खोल दें |हमें पहले इन जजों का सार्वजनिक/सारी जनता के सामने नारको जांच करवानी चाहिए | नारको जांच भारत के संविधान की किसी भी खंड का उलंघन नहीं करता है |
नार्को एक प्रमाण नहीं है, लेकिन ये महत्वपूर्ण सुराग दे सकता है , उदहारण से –नार्को जांच में, कोई व्यक्ति ये कह सकता है “ मेरे पास एक बैंक का लाकर है मेरे भतीजे के नाम `कखग` स्थान पर “ और ये एक महत्वपूर्ण सुराग दे सकता है | अभी नारको जांच के विशेषज्ञ एक विस्तृत दल/पैनल से चुना जायेगा आखरी समय में, इसी लिए सांठ-गाँठ/मिली-भगत होना संभव नहीं है अधिकतर मामलों में | नार्को जांच का भय ही अपने आपस से लोगों को अपराध करने से रोकेगा | और नारको जांच का भय भ्रष्ट लोगों के आपसी सहयोग को रोकेगा | इसको विस्तार से/ पूरा बताने दीजिए |
मान लीजिए कोई भ्रष्टाचार को 10 लोगों का समर्थन चाहिए — दो मंत्री, 4 भारतीय प्रशासनिक सेवा(आई.ऐ.एस) के लोग, 4 जज | फिर , हर एक चिंतित होगा कि यदि कल को , उनमें से कोई की नार्को जांच होती है, उसका नाम भी सामने आ जायेगा | अधिकतर बड़े सौदों में कई अधिकारीयों, मंत्रियों, जजों की आवश्यकता होती है और ये सौदों में कमी आएगी, दूसरे व्यक्ति/सहयोगी के नार्को जांच के भय से |
नार्को जांच का प्रस्ताव `जनता की आवाज़-पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) और प्रजा अधीन रजा/राईट टू रिकाल(भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) आने के बाद आयेगा क्योंकि इन प्रक्रियाओं के बिना , नारको जांच का कोई फायदा नहीं है क्योंकि तब ये केवल ऊपर के लोगों को ही मदद करेगा |
(27.6) उच्च / शीर्ष पदों पर भर्ती में भाई-भतीजावाद, पक्षपात, सांठ-गाँठ/मिली-भगत व भ्रष्टाचार कम करना |
आज की स्थिति यह है कि जिला पुलिस प्रमुख, जिला शिक्षा अधिकारी, भारतीय रिजर्व बैंक प्रमुख जैसे पद भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार, सांठ-गाँठ/मिली-भगत और पक्षपात से भरे जाते हैं। जिन अधिकारियों के सांठ-गाँठ/मिली-भगत सबसे ज्यादा होते हैं, वे ही इन पदों पर आते हैं। और इन पदों पर आने के बाद वे सिर्फ इन सांठ-गाँठ/मिली-भगत से उन्हें मदद पहुंचाने वालों के लिए ही काम करते हैं। बदलने/हटाने की प्रक्रिया से भाई-भतीजावाद पर खुद ही रोक लग जाएगी क्योंकि करोड़ों नागरिक किसी व्यक्ति के रिश्तेदार नहीं हो सकते हैं। आगे और भाई-भतीजावाद पर रोक लगाने के लिए मैं ‘प्रजा अधीन राजा समूह’/‘राईट टू रिकॉल ग्रुप’ के सदस्य के रूप में निम्नलिखित पदों के लिए सीधे चुनाव का प्रस्ताव करता हूँ :-
राष्ट्रीय स्तर पर सीधे चुनावों द्वारा
- लोकसभा का सांसद (जैसा कि आज होता है), राज्यसभा का सांसद
- प्रधानमंत्री, उप-प्रधानमंत्री
- राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी
- गृह मंत्री
- भारतीय रिजर्व बैंक का प्रमुख
- मुख्य राष्ट्रीय दण्डाधिकारी, उप – मुख्य राष्ट्रीय दण्डाधिकारी
- उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के 4 सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश
कुल – लगभग 14 पद
राज्य स्तर पर सीधे चुनावों द्वारा
1. विधायक (जैसा कि आज होता है)
2. मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री
3. राज्य भूमि किराया अधिकारी
4. राज्य पुलिस प्रमुख, राज्य पुलिस बोर्ड के 4 सदस्य
5. मुख्य राज्य लोक दण्डाधिकारी, 4 सबसे वरिष्ठ राज्य दण्डाधिकारी
6. उच्च न्यायालय(हाई-कोर्ट) के मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालय(हाई-कोर्ट) के 4 सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश
कुल – लगभग 19 पद
राज्य स्तर पर सीधे चुनावों द्वारा
- जिला पंचायत सदस्य (जैसा कि आज होता है)
- महापौर/मयर
- जिला शिक्षा अधिकारी
- मुख्य जिला लोक दण्डाधिकारी, 4 सबसे वरिष्ठ जिला दण्डाधिकारी
- मुख्य जिला न्यायाधीश, 4 सबसे वरिष्ठ जिला न्यायाधीश/जज
- जिला पुलिस प्रमुख, जिला पुलिस बोर्ड के 4 सदस्य
कुल – लगभग 18 पद
मैं ‘जनता की आवाज़ – पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली (सिस्टम)’ का प्रयोग करके, सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) को लागू करवाने/करने का प्रस्ताव करता हूँ जिसका प्रयोग करके नागरिकगण उपर बताए गए पदों पर लोगों का चयन कर सकते हैं। इसके अलावा, नागरिकों के पास उन्हें हटाने की प्रक्रिया भी होगी और नागरिक लगभग 150-200 पदों पर बैठे लोगों को हटा/बदल सकेंगे। (नियुक्ति) की अवधि 4 वर्ष की होगी। कुल मिलाकर, इस प्रणाली/व्यवस्था में एक वर्ष में 2 चुनाव होंगे जिनमें से एक चुनाव में लगभग 5-6 पदों पर बैठे लोगों के भाग्य का निर्णय होगा। हम केवल कागज/पेपर द्वारा मतदान का समर्थन करते हैं और इलेक्ट्रानिक माध्यम/चुनाव यंत्र से होनेवाले मतदान का विरोध करते हैं। मतदान की लागत आज जुलाई, 2008 की स्थिति के अनुसार, प्रति मतदान, प्रति मतदाता 10 रूपए है और इसे कम करके प्रति मतदान, प्रति मतदाता 5 रूपए तक लाया जा सकता है। चुनाव का अधिकांश लागत पुलिस द्वारा व्यवस्था बनाये रखने में ही खर्च होता है और प्रत्येक/हर पद को दी गई शक्तियां कम होने और न्यायालय/कोर्ट में सुधार होने के साथ-साथ इसमें(चुनाव की लागत, पुलिस द्वारा व्यस्था बनाये रखने के लिए) कमी आएगी। इतना ही नहीं, मतदाता पहचान-पत्र के साथ बार-कोड जोड़कर और दूसरे तरीके अपनाकर भी लागत को प्रति मतदाता कम करके 3 रूपए तक लाया जा सकता है। कुल मिलाकर, 4 वर्ष के कार्यकाल वाले 45 से 50 चुने गए/चयनीत अधिकारियों वाली प्रणाली/व्यवस्था में प्रत्येक 4 साल में प्रति व्यक्ति लगभग 150 रूपए की लागत आएगी अथवा प्रति व्यक्ति/अधिकारी प्रति वर्ष लगभग 40 रूपए लागत आएगी और इससे पक्षपात व भाई-भतीजावाद लगभग समाप्त ही हो जाएगा।
100,000 से (अधिक मतदाताओं वाले) बड़े चुनाव-क्षेत्र में चुनाव से भाई-भतीजावाद, पक्षपात के साथ-साथ सांठ-गाँठ/मिली-भगत खुद ही समाप्त हो जाएगा। किसी भी उम्मीदवार/व्यक्ति के 100,000 लोगों में से 1000 भी रिश्तेदार या सांठ-गाँठ/मिली-भगत नहीं हो सकते। और इसलिए, यह स्पष्ट है कि भाई-भतीजावाद का प्रभाव 1 प्रतिशत से भी कम हो जाएगा। इसके अलावा, जब कोई चुनाव क्षेत्र 10,00,000 मतदाताओं की है तो किसी भी जाति का बहुमत नहीं होगा। और यदि कोई जाती 25 % भी जितनी बड़ी है, उसमें कई उप-जातियां होती हैं |
और इसलिए, 10,00,000 मतदाताओं वाले चुनाव क्षेत्र में जातिवाद भी एक छोटी बात रह जाएगी। इसलिए नियुक्ति की वर्तमान/मौजूदा प्रक्रिया की तुलना में चुनाव/चयन ज्यादा अच्छी प्रक्रिया है।