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अध्याय 27 – बहुमत द्वारा जज, मंत्रियों आदि को जेल भेजने, फांसी (की सजा) देने की प्रक्रियाएं / तरीके

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(27.4) “ बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा फांसी ” का प्रयोग

मैं इस भयानक और कठोर “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा फांसी” कानून को ‘जनता की आवाज़ – पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके लागू करने/करवाने का पक्‍का इरादा रखता हूँ। लेकिन इसका प्रयोजन/उद्देश्‍य केवल शैक्षणिक ही है। “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा फांसी” या कम से कम “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा जेल/कैद” का कभी भी उपयोग नहीं किया जाएगा। तब मैं ‘जनता की आवाज़ – पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके इसे लागू करवाने का प्रस्‍ताव क्यों कर रहा हूँ? और नागरिकगण भी इस कानून को लागू करने पर क्‍यों तैयार होंगे?

‘प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)’ भ्रष्‍टाचार पर नियंत्रण करने के लिए एकदम पर्याप्‍त है। लेकिन भारत के मंत्रियों, जजों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों में भ्रष्‍टाचार बेतहाशा, इतना अधिक बढ़ गया है और हर जगह फैल गया है कि नागरिकों को यह आश्‍वस्‍त/संतुष्‍ट कराना कठिन हो गया है कि ‘प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)’ (कानून) पर्याप्‍त है। हमलोगों के यहां अफजल और कसाब जैसे अपराधी हैं जिनकी फांसी की सजा महीनों, वर्षों और यहां तक कि दशकों तक भी टलती रहती है क्‍योंकि मंत्रियों और मंत्रियों को बनाने वालों को सऊदी अरब से घूस मिलता रहता है। ऐसे माहौल में, अनेक लोग ‘प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)’ (कानून) को `बिना प्रभाव के`/शक्‍तिहीन मान बैठते हैं। इसलिए मुझे नागरिकों को संतुष्‍ट करने के लिए थोड़े और कठोर/भयानक कानून लाने की आवश्‍यकता पड़ रही है कि ऐसा भी कोई कानून है जो अधिकारियों में अत्‍यधिक/इतना भय पैदा कर देगी कि वह कभी भी घूस लेने के बारे में सोचने तक का साहस नहीं कर सकेगा। और इसलिए मैंने “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा फांसी” कानून का प्रारूप तैयार कर दिया है। इस कानून का उपयोग नागरिकों को इस बात के लिए संतुष्‍ट/आश्‍वस्‍त करना है कि भ्रष्‍टाचार को निश्‍चित रूप से नियंत्रण/काबू में लाया जा सकता है।

क्‍या नागरिकगण कभी भी इस कानून का उपयोग करेंगे ? सबसे पहले 67 प्रतिशत नागरिक कब/किस परिस्‍थिति में किसी मंत्री, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों अथवा किसी जज को फांसी देने की मांग करेंगे? केवल तभी जब वह मंत्री, भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी और भारतीय पुलिस सेवा का अधिकारी अथवा जज 100 बार फांसी दिए जाने का अपराधी होगा। और इस खतरे को देखते हुए कि नागरिकगण उसे फांसी की सजा दे/दिला सकते हैं, भारतीय प्रशासनिक सेवा(आई.ऐ.एस) का कोई भी अधिकारी और भारतीय पुलिस सेवा का कोई अधिकारी अथवा जज, यदि वह सुकरात जितना लोकप्रियता का भूखा नहीं हो तो कुछ भी ऐसा नहीं करेगा जिससे इतने करोड़ नागरिक उसे फांसी की सजा देने के लिए `हां` दर्ज करवाने के लिए तैयार हो जाएं । इसलिए “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा फांसी” कानून केवल नागरिकों को संतुष्‍ट करने के लिए है कि यदि बेतहाशा/काबू से बाहर भ्रष्‍टाचार कायम रहता है तो यह उसका निश्‍चित समाधान भी है यदि ‘प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)’ पर्याप्‍त नहीं भी हो तो भी। एक बार ‘प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)’ आ जाए/लागू हो जाए तो यह अपने आप में पर्याप्‍त होना साबित कर देगा और इसलिए “बहुमत के अनुमोदन/स्वीकृति द्वारा फांसी” प्रारूप का प्रयोग/उपयोग कभी नहीं होगा।

 

(27.5) बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा सच्‍चाई सीरम (सच बुलवाने वाली औषधि) जांच करना (नारको जांच बहुमत के अनुमोदन / स्वीकृति द्वारा)

मैं ‘जनता की आवाज़ – पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके निम्‍नलिखित कानून को लागू करवाने का प्रस्‍ताव करता हूँ जिसका उपयोग बहुमत का अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त करने के बाद जनता के बीच सच्‍चाई सीरम जांच करने में किया जाता है :-

  1. यह कानून उन मंत्रियों, विधायकों, सांसदों और जिला सरपंच तथा महापौरों पर लागू होगा जो इस कानून से सहमत हैं।

  2. यह कानून उन सभी श्रेणी/क्‍लास I अधिकारियों और उनसे उपर के पदाधिकारियों पर भी लागू होगा जो इस कानून से सहमत हैं।

  3. यह कानून उन सभी सेशन जजों और उनसे ऊपर के पदाधिकारियों पर भी लागू होगा जो इस कानून से सहमत हैं।

  4. यह कानून प्रत्‍येक/हर पद के लिए “क्षेत्र” का निर्धारण करेगा। उदाहरण के लिए, विधायकों और सांसदों के लिए उनका क्षेत्र उनका चुनाव क्षेत्र होगा, मुख्‍यमंत्री के लिए उसका क्षेत्र उसका राज्‍य होगा, जिला-स्‍तरीय अधिकारी के लिए यह क्षेत्र उसका जिला होगा, इत्‍यादि, इत्‍यादि।

  5. यदि किसी व्‍यक्‍ति/पदाधिकारी के क्षेत्र के नागरिक-मतदाताओं में से बहुमत/अधिकांश नागरिक-मतदाता उस व्‍यक्‍ति/पदाधिकारी पर सच्‍चाई सीरम जांच की मांग करते हैं तो उस व्‍यक्‍ति/पदाधिकारी पर जनता की उपस्‍थिति में ही सच्‍चाई सीरम जांच की जाएगी।

  6. जूरी मंडल/जूरर्स सच्‍चाई सीरम जांच के परिणाम के आधार पर अपना फैसला दे सकते हैं या तो उन्‍हें ऐसा करने की जरूरत नहीं है।

यह डर कि उन्‍हें सच्‍चाई सीरम जांच से गुजरना पड़ सकता है, अधिकारी, मत्री, जज घूस लेने से बचेंगे और या तो इसके लिए मना कर देंगे। इतना ही नहीं, प्रशासन में कार्यरत व्‍यक्‍ति वैसे किसी व्‍यक्‍ति के संपर्क में आने या उसकी निकटता प्राप्‍त करने से बचेगा जो भ्रष्‍टाचारी के रूप में बदनाम है। इससे भ्रष्‍ट जजों, मंत्रियों, भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों(आई.ऐ.एस) और भारतीय पुलिस अधिकारियों की ताकत और घटेगी।

नार्को जांच/ सच्‍चाई सीरम (सच बुलवाने वाली औषधि) जांच क्या असंवैधानिक है ?

 
भ्रष्ट सुप्रीम-कोर्ट के जजों ने ये राय दी है की नारको जांच/सच्चाई सीरम जांच “असंवैधानिक” है  क्योंकि उनको डर है कि मुजरिम उन जजों के नाम और उनको दिए गए रिश्वतों की पोल न खोल दें |हमें पहले इन जजों का सार्वजनिक/सारी जनता के सामने नारको जांच करवानी चाहिए | नारको जांच भारत के संविधान की किसी भी खंड का उलंघन नहीं करता है |

नार्को एक प्रमाण नहीं है, लेकिन ये महत्वपूर्ण सुराग दे सकता है , उदहारण से –नार्को जांच में, कोई व्यक्ति ये कह सकता है “ मेरे पास एक बैंक का लाकर है मेरे भतीजे के नाम `कखग` स्थान पर “ और ये एक महत्वपूर्ण सुराग दे सकता है | अभी नारको जांच के विशेषज्ञ एक विस्तृत दल/पैनल से चुना जायेगा आखरी समय में, इसी लिए सांठ-गाँठ/मिली-भगत होना संभव नहीं है अधिकतर मामलों में | नार्को जांच का भय ही अपने आपस से लोगों को अपराध करने से रोकेगा | और नारको जांच का भय भ्रष्ट लोगों के आपसी सहयोग को रोकेगा | इसको विस्तार से/ पूरा बताने दीजिए |

श्रेणी: प्रजा अधीन