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(9) पुलिस तथा जज/न्यायाधीश का सांठ-गाँठ/मिली-भगत पैसे को हाथ लगाये बिना काम करता है| न्यायाधीश के भाई-भतीजे वकील को जब भी कोई मामला/केस कमजोर करने के लिए पुलिस की जरुरत होती है और पुलिस को अपने ऊपर हुए मामले को रफा दफा/ठंडा करने के लिए जज/न्यायाधीश की जरुरत होती है, तो वो दोनों आपस में सांठ-गाँठ/मिली-भगत बनाकर काम करते हैं | जज/ न्यायाधीश के भाई-भतीजे जब बिल्डर होते हैं, तब पुलिस उनके गुंडे को मदद भी करती है और सुरक्षा देती है |
(10) गैर-क़ानूनी बंगलादेशी भारत में आ कर गंदी बस्ती में रहते हैं और पुलिस वालो को हफ्ता देते हैं | पुलिस इंस्पेक्टर उसका हिस्सा रख कर बाकि पैसा पुलिस कमिश्नर को देता है | पुलिस कमिश्नर वो कला धन कोई एन.आर.आई को देता है और वो एन.आर.आई पुलिस कमिश्नर के विदेशी बैंक अकाउंट में पैसा डाल देता है | फिर पुलिस कमिश्नर अपने विदेशी बैंक अकाउंट से मुख्यमंत्री और जज/न्यायाधीश के विदेशी बैंक अकाउंट में उसके हिस्स्से का पैसा डाल देता है | यहाँ किसी भी लेन-देन में बडे नोट्स की जरुरत नहीं पडती |
अभी मैंने ऊपर थोडा सा समझायाकि भ्रष्टाचार कैसे होता है औरउसमे बड़ी नोट की जरुरत नहीं पडती है | अभी मैं आपको बताता हूँ कि यहभ्रष्टाचार रोकने का क्या तरीका है |
(क) पुलिस में भ्रष्टाचार रोकने का तरीका-
(1) प्रजा आधीन पुलिस कमिश्नर/ भ्रष्ट पुलिस कमिश्नर को बदलने की प्रक्रिया –
(2) ज्यूरी सिस्टम इन कोर्ट (ज्यूरी द्वारा मुकदम्मा/फैसला भ्रष्ट पुलिस कमिश्नर के खिलाफ)
कृपया प्रक्रिया/क़ानून-ड्राफ्ट के लिए अध्याय 22 देखें |
(ख) मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार रोकने का तरीका–
प्रजा आधीन-मुख्यमंत्री/ भ्रष्ट मुख्यमंत्री को बदलने की प्रक्रिया-
कृपया प्रजा आधीन सी.एम के प्रक्रिया/क़ानून-ड्राफ्ट के लिए अध्याय 6 देखिये|
(ग) कोर्ट या न्यायाधीश का भ्रष्टाचार रोकने का तरीका –
(1) प्रजा आधीन-सुप्रीम कोर्ट मुख्य जज
कृपया प्रजा आधीन-सुप्रीम कोर्ट मुख्य जज के लिए पेज अध्याय 7 देखिये |
(2) ज्यूरी सिस्टम
कृपया ज्यूरी सिस्टम के लिए देखिये अध्याय 21 |
(19.7) नयी प्रवृत्ति / झुकाव मंत्रियों से अधिकार छीनने का और “नियामक” जैसे जनलोकपाल आदि को देने का |
अभी काफी जोर दिया जा रहा है मंत्रियों से अधिकार छीनने और “नियामक (नियम का पालन हो,ऐसा निश्चित करने वाला)” जैसे जनलोकपाल/लोकपाल आदि को देना के लिए |
इसके दो कारण हैं-
1. मंत्रियों में `अन्य पिछड़ी जाती` अधिक शक्तिशाली बनती जा रही और इसीलिए अब उच्च जाती के विशिष्ट वर्ग के लोग एक नयी व्यवस्था बनाना चाहते हैं जहाँ अधिकार उच्च जाती विशिष्ट वर्ग के पास ही रहेगी जैसे के 1950 से 1990 में था |
2.बहु-राष्ट्रिय कम्पनियाँ भी ये चाहते हैं कि अधिकार नियामक के पास जायें क्योंकि वो संख्या में कम हैं और मंत्रियों से कम मांग करने वाले हैं |
ये बदलाव हम आम नागरिकों को बिलकुल भी फायदा नहीं देगा, बल्कि ये केवल बहु-राष्ट्रिय कम्पनियाँ/विशिष्टवर्गों को ही मदद करेगा गरीब-समर्थक बाबू और अफसर, जो थोड़े बहुत बचे हैं, उन्हें बेरहमी से समाप्त करने के लिए | इसीलिए , इस तरह के बदलाव से गरीबी आदि केवल बढेगी और देश बहुराष्ट्रीय कम्पनिय/दूसरे देशों की गुलामी की और तेज़ी से बढेगा |
नेता-बाबू-जजों में भ्रष्टाचार तब ही कम होगा जब हम आम नागरिकों के पास एक नयी प्रक्रिया होगी नेता-बाबू को निकालने/सज़ा देने के लिए | ये भ्रष्टाचार तब कम नहीं होगी जब एक बाबू को दूसरे बाबू पर जांचने और उसपर (भ्रष्टाचार पर) रोक लगाने के कहा जाये , उदाहरण यूनान में , सुकरात, अरिस्तू ने भ्रष्टाचार की समस्या के बारे में क्यों नहीं लिखा? क्योंकि वो लगबग ना बराबर थी | ना बराबर क्यों थी ? क्योंकि यदि कोई अफसर पर संदेह/शक होता, तो 200-600 लोगों की जूरी/सभा (क्रमरहित चुने गए लोग) बुलाई जाती और यदि अफसर दोषी पाया जाता, उसे कड़ा जुर्माना और यहाँ तक कि मौत की सजा भी हो सकती थी | दूसरे शब्दों में, यूनान, में आम नागरिकों के पास अफसरों को सजा देने का अधिकार था और इसीलिए भ्रष्टाचार ना बराबर था |
जब नया कानून आता है , जो केवल एक बाबू-`क` को दूसरे बाबू-`ख` पर रोक-थाम लगाने का अधिकार दे , तो बाबू `क` बाबू-`ख` पर पूरी तरह हावी हो जायेगा और बाबू-`ख` के कुछ रिश्वतें लेने लगेगा | और वो कभी भी बाबू-`ख` को उसकी रिश्वत कम करने या आम नागरिकों की सेवा करने के लिए नहीं कहेगा ,उदाहरण जो ये लोकायुक्त,सतर्कता विभाग वाले,भ्रष्टाचार-विरोधी विभाग वाले करते हैं और जो जनलोकपाल करेगा |
इसीलिए ऐसा नया क़ानून बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आई.ऐ.एस(भारतीय प्रशासनिक सेवा), पुलिस-कर्मी पर लगाम कसने में मदद करेगा जिससे वे बहुराष्ट्रीय कंपनियों और विशिष्टवर्ग के लोगों से कम रिश्वत लेंगे | लेकिन आम नागरिकों से पहले जैसे ही खूब रिश्वत लेंगे | लेकिन, मीडिया के लोग , जो विशिष्टवर्ग के गुलाम हैं, इन नए कानूनों के बारे में अच्छी-अच्छी कहानियां लिखेंगे क्योंकि ये विशिष्टवर्ग को फायदा करते हैं |लेकिन ये कहानियां को छोड़ कर , आम नागरिकों के लिए ठीक पहले जैसी स्थिति ही बनी रहेगी |
(19.8) “अनैच्छिक / बिना इच्छा के ” , “अनदेखे” , “अज्ञात / अनजाना” परिणाम के तर्क |
मैं हमेशा प्रस्तावित `जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली` सरकारी अध्यादेश को पहले बताता हूँ प्रजा अधीन राजा (भ्रष्ट को बदलने की प्रणाली ) सरकारी आदेश और अन्य प्रस्तावित सरकारी आदेशों के बारे में चर्चा करने से पहले |वास्तव में, मैं श्रोता से हमेशा विनती करता हूँ कि `जनता की आवाज़ शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली` के तीन लाईनों को जोर से पड़ें | क्यों? क्योंकि मेरी योजना है प्रजा-अधीन प्रधानमंत्री,प्रजा-अधीन सुप्रीम कोर्ट मुख्य जज सरकारी आदेश आदि को केवल `जनता की आवाज़ शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली` द्वारा ही लाना के लिए और विधायक/सांसदों को रिश्वत दे कर नहीं |
एक बार प्रस्तावित सरकारी आदेश `(जनता की आवाज़ )पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)` को जोर से पढ लिया गया है, मैं व्यक्ति को विनती करता हूँ कि `जनता की आवाज़`सरकारी आदेश के अनैचिक परिणाम बताएं | चर्चा कभी-कभी लंबी जाती है | लेकिन बीच में ,मैं निम्नलिखित बयान देता हूँ –
“जब तुम कोई मांग को इनकार करो, तो कृपया ये जरुर जानो कि मांग क्या है | मैं तुम से केवल इतना मांग रहा हूँ कि `नागरिक को अपने शिकायत इन्टरनेट पर,प्रधानमंत्री के वेबसाइट पर रखने की अनुमति दें कलेक्टर के दफ्तर जा कर | कृपया ध्यान दें `जनता की आवाज़ `का दूसरा खंड `जनता की आवाज़` खंड-१ का दोहराया जाना है जो कि शिकायत को दर्ज करने की इजाजत देता है | इसका खर्च कितना आता है ? और नागरिक आपको 20 रुपये प्रति पन्ना दे रहा है लागत और क्लर्क के वेतन के लिए पूरा पड़ने के लिए | तो फिर तुम क्यों विरोध कर रहे हो नागरिक को अपने शिकायत डालने से प्रधानमन्त्री के वेबसाइट पर ,जहाँ लाखों लोग इन्टरनेट द्वारा कभी भी ,कही भी वो शिकायत का एक-एक शब्द पद सकते हैं ,अफसर द्वारा बिना किसी परिवर्तन किये ?”