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आम चुनाव-मात्र तरीके में नागरिकों को तुलनात्मक रूप से कम समय देना पड़ेगा – वोट देने के लिए केवल 30 मिनट के समय की जरूरत है। जबकि व्यापक जन-आन्दोलन में नागरिकों को कई घंटों और कई दिन तक का समय देने की जरूरत पड़ेगी। लेकिन तब व्यापक जन-आन्दोलन से नागरिकों को चुनाव-मात्र की तुलना में कई गुणा ज्यादा लाभ भी मिलता है। इस प्रकार यह बात कि व्यापक जन-आन्दोलन नागरिकों के लिए ज्यादा समय लेने वाला कार्य है, को नैतिक रूप से संतुलित कर दिया जाता है(कई गुणा लाभ द्वारा)।
(17.4) 100 कानून – ड्राफ्टों को पारित करने में जरूरी समय भी, एक चुनाव जीतने में लगने वाले समय से कम है |
“क़ानून-ड्राफ्ट के लिए व्यापक जन-आन्दोलन ” में कार्यकर्ताओं को कम समय की जरूरत पड़ती है। इसमें नागरिकों को ज्यादा समय देना पड़ता है, जो कि सही भी है, क्योंकि नागरिकों को ही बहुत ज्यादा लाभ होता है। लेकिन राष्ट्र में सुधार के लिए हमें सैंकड़ों कानूनों की जरूरत है तो हमें इन सैकड़ों कानून-ड्राफ्टों में से प्रत्येक के लिए सैंकड़ों जन-आन्दोलन करने पड़ेंगे? यदि एक व्यापक जन-आन्दोलन के लिए नागरिकों को अपने जीवन का दस घंटा देना पड़ता है तब 100 व्यापक आन्दोलनों के लिए 1000 दिनों की जरूरत पड़ेगी जो कि अव्यावहारिक है क्योंकि नागरिकों को काम करने और आजीविका जुटाने की जरूरत पड़ती है।
यहीं वह प्रस्तावित `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) सरकारी अधिसूचना(आदेश) (कानून) सामने आता है जो खेल को बदलने वाला कानून है। `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) एक छोटे संशोधन की तरह दिखता है लेकिन यदि एक बार प्रधानमंत्री इस सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर हस्ताक्षर करने के लिए जनता के दबाव द्वारा बाध्य किये जाते हैं तो `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) व्यापक जन-आन्दोलन के लिए लगने वाले समय को 100 घंटे प्रति नागरिक से कम करके मात्र 10 मिनट प्रति नागरिक कर देता है और लागत को कई सौ रूपए प्रति नागरिक से कम करके मात्र 3 रूपए प्रति नागरिक कर देता है (क्योंकि इसके द्वारा अन्य क़ानून आ सकेंगे- देखें पाठ 1 )। इसलिए राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह की योजना जिसका प्रस्ताव मैं कर रहा हूँ , उसमें 200 क़ानून-ड्राफ्ट लागू कराने के लिए लगने वाला समय (200 क़ानून-ड्राफ्ट × 100 घंटा प्रति क़ानून-ड्राफ्ट ) = 20,000 घंटा प्रति नागरिक नहीं है । `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) के लिए व्यापक जन-आन्दोलन के लिए समय प्रति नागरिक 100 घंटे हैं लेकिन इसके द्वारा आने वाले, अगले 200 कानूनों के लिए जरूरी समय मात्र 200 × 5 = 1000 मिनट अर्थात प्रति नागरिक एक दिन से भी कम और `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) के लिए व्यापक जन-आन्दोलन में सामग्री की लागत प्रति नागरिक कई सौ रूपए हो सकती है लेकिन अगले 200 कानून-ड्राफ्टों के लिए यह लागत प्रति नागरिक प्रति कानून 3 रूपए मात्र या इससे भी कम होगी।
चुनाव-मात्र का तरीका पहली नजर में कहीं ज्यादा प्रभावकारी दिखता है । ऐसा लगता है मानों यदि एक बार चुनाव जीत लिया जाए तो सांसदगण कुछ ही दिनों में सभी 200 अच्छे कानूनों को पारित कर देंगे और इस प्रकार नागरिकों को एक भी मिनट का समय देने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि यह एक झूठा सपना ही है – चुनाव के बाद सांसद बिक जाएंगे और इस प्रकार व्यापक जन-आन्दोलन के अभाव में एक भी प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) आदि कानून पारित नहीं होगा। इसलिए एक बार फिर हमें व्यापक आन्दोलनों को चलाने के लिए कम लागत वाले तरीकों की जरूरत पड़ेगी और हमें `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) की ओर लौटना होगा | `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) एक व्यापक जन-आन्दोलन आयोजित करने के लिए सबसे सस्ता तरीका है।
(17.5) तब क्यों नेता भी “ चुनाव तक रूकने ” पर जोर देते हैं”? |
अब एक कनिष्ठ/छोटा कार्यकर्ता देख सकता है कि अनेक कार्यकर्ता-नेता चुनाव-मात्र के तरीकों पर ही जोर देते हैं। वे अपने कार्यकर्ताओं से जोर देकर कहते हैं कि जब तक चुनाव नहीं आ जाते तब तक कार्यकर्ताओं को केवल और अधिक सदस्य जुटाने अथवा चन्दा/दान वसूलना चाहिए, लेकिन किसी कानून को लागू करने के लिए किसी व्यापक जन-आन्दोलन का समर्थन करने के लिए नागरिकों से बिलकुल नहीं कहना चाहिए। ये सभी काम केवल चुनावों के बाद ही किए जाने चाहिए। मैंने दिखलाया है कि चुनाव-मात्र तरीके में भयंकर कमियां हैं क्योंकि इस बात की पूरी-पूरी संभावना होती है कि चुनाव के बाद चुने गए सांसद, विधायक आदि बिक जाएंगे, पाला बदल लेंगे और यहां तक कि भ्रष्टाचारी हो जाएंगे। इसलिए क्यों नेतागण चुनाव-मात्र तरीके पर ही जोर देते हैं?
सबसे महत्वपूर्ण कारण कि क्यों कार्यकर्ता नेता क़ानून-ड्राफ्ट के लिए व्यापक जन-आन्दोलन से ज्यादा चुनाव-मात्र के तरीके को महत्व देते हैं। इसका कारण यह है कि व्यापक जन-आन्दोलन नेताओं को कोई नियंत्रण प्रदान नहीं करता जबकि चुनाव-मात्र तरीका में नियंत्रण नेताओं के हाथ में होता है। चुनाव-मात्र तरीके में नेताओं का नियंत्रण चुनाव से पहले और चुनाव के बाद भी रहता है। वे बिक सकते हैं और लाभ कमा सकते हैं। हालांकि व्यापक जन-आन्दोलन केवल नेताओं द्वारा ही खड़ा किया जाता है, फिर भी नेता इसे रोक नहीं सकते अथवा इसकी दिशा तक नहीं बदल सकते। इसलिए अधिकांश “व्यावहारिक” नेता कानून-ड्राफ्टों के लिए व्यापक जन-आन्दोलन का विरोध करते हैं।
(17.6) पिछले तीन पाठों का सारांश (छोटे में बात ) |
पिछले तीन पाठ सभी छोटे कार्यकर्ताओं (नेता नहीं) के साथ बातचीत थी । मेरा लक्ष्य छोटे कार्यकर्ताओं को समझाकर संतुष्ट करना था कि उन्हें कम से कम अपने सक्रिय समय का 10 प्रतिशत नागरिकों को इस बात पर राजी करने के लिए लगाना चाहिए कि वे प्रधानमंत्री मुख्यमंत्रियों व महापौरों को `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम), नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.), प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानूनों को पारित करने का दबाव बनाएं। इसलिए यदि एक कार्यकर्ता आज हर सप्ताह 10 घंटे का समय देता है तो मैं उससे अनुरोध करता हूँ कि वह इसे घटाकर 9 घंटे कर दे और एक घंटा प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार), `पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)` आदि के लिए प्रचार अभियान के लिए बचाए।