इसके अलावा कोई भी दल इस बात को नहीं बताता कि वह कैसे सुनिश्चित करेगा कि उसके अपने सांसद चुनाव जितने के बाद वर्तमान सांसदों जितना भ्रष्ट नहीं हो जाएंगे। सभी पार्टियां केवल खोखली बातें कहती हैं “देखो आपको कुछ लोगों पर/ किसी न किसी पर तो भरोसा करना ही पड़ेगा।“ मैं और मेरे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह के साथियों के विचार अलग हैं । हम आधिकारिक तौर पर यह दावा करते हैं कि हम यह सुनिश्चित करने के लिए केवल एक ही रास्ता जानते हैं कि हमारे दल के सांसद मंत्री आदि भ्रष्ट नहीं होंगे । नागरिकों को यह कहना होगा कि वे वर्तमान प्रधानमंत्री को `जनता की आवाज` प्रारूप पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य करें और जनता की आवाज (सूचना का अधिकार -2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूप का उपयोग करके नागरिक प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानूनों को लागू करवाएं और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून यह सुनिश्चित/तय कर देगा कि हमारे सांसद अथवा अन्य दलों के सांसद भ्रष्टाचार कम करेंगे।
इसलिए भारत में सुधार करने के लिए जनता की आवाज (सूचना का अधिकार -2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट लागू करवाना प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह का पहला कदम है। और इसके बाद अन्य कानूनों को लागू करवाकर और फिर यदि जरूरत पड़ी तो सांसदों, मंत्रियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों (आई ए एस), भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों (आई पी एस), जजों आदि को बदलना भी इसके बाद का कदम है। अधिकांश अन्य पार्टियां ‘हमारे उम्मीदवारों, सांसदों को चुनो’ के तरीके पर ही अपने पहले कदम के रूप में जोर देती हैं । मेरे विचार से, इनके तरीके गलत हैं क्योंकि यदि नागरिक पहले कानूनों को नहीं बदलते तब भ्रष्टाचार कम नहीं होगा चाहे कोई भी पार्टी/व्यक्तियों का समूह सत्ता में आए। इन कानूनों को लाने के लिए आवश्यक कारवाई के कदम विषय जिसे मैने प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह के लिए तैयार किया है उसकी सूची http://righttorecall.Info/003.h.pdf पर दी गई है। ये कार्रवाइयां (क्लोन-पॉजिटीव) नकल करने पर भी सकारात्मक कार्रवाइयां हैं अर्थात यदि एक से अधिक प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) पार्टीयों /समूह राजनीति में आते हैं और यदि उनकी आपस में होड़ भी होती है तो उनके प्रयास एक दूसरे को काटेंगे नहीं करेंगे बल्कि आपस में जुड कर एक दूसरे को समर्थन देंगे । इन कार्रवाइयों के विषय 200,000 कार्यकर्ताओं के लिए हर सप्ताह एक घंटे से ज्यादा समय देने की जरूरत नहीं है । यदि 2 लाख कार्यकर्ता अपना महीने का दस घंटा देते हैं इन कानूनों को अन्य देशवासियों को बताने में तो अधिकतम एक साल में ये क़ानून पुरे देश के कोने-कोने में लोगों को पता लग जाएँगे और क्योंकि उनके हित के होने के कारण वे उनकी मांग करेंगे और क्योंकि ये क़ानून `जनता की आवाज़/पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली ` द्वारा ही आसानी से आ पाएंगे तो इसलिए पारदर्शी शिकय/प्रस्ताव प्रणाली को लाने के लिए करोड़ों लोग मांग करेंगे| इस प्रकार समय के मामले में भी, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह का तरीका कार्य-कुशल और सबसे अच्छा है।
(10.4) हिंसा, क्रान्ति आदि पर विश्व के विचार |
मैं मंत्रियों, अधिकारियों, जजों , पुलिसवालों के विरूद्ध हिंसा का प्रयोग करने का विरोधी हूँ और मैं धनवान लोगों जो इन मंत्रियों, अधिकारियों और जजों के पद पर बैठे हैं , उनके खिलाफ भी हिंसा का प्रयोग करने के विरोध में हूँ। लेकिन अधिकारी, मंत्री अगर प्रजा अधीन राजा कार्यकर्ताओं के खिलाफ ओछे/जाली आयकर के मामले, ओछे बिक्रीकर के मामले, ओछे सेवाकर के मामले अथवा ओछे बलात्कार के मामले आदि लगाकर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कार्यकर्ताओं को जेल भिजवाने अथवा अर्थदण्ड/फाइन लगाना शुरू कर दें तो मैं मंत्रियों, अधिकारियों, जजों, और उन धनवानों जो इन्हें पालते हैं/अपनी जेब में रखते हैं, उनके खिलाफ हिंसा का प्रयोग न करने के अपने विचार पर पुन:विचार करूंगा। लेकिन तब तक मैं हिंसा और सभी प्रकार की हिंसा का विरोध करता हूँ ।
मैं क्रान्ति का विरोधी हूँ। मैं केवल विकासवाद में पूरा विश्वास रखता हूँ। अर्थात एक बार में केवल एक छोटा परिवर्तन चाहता हूँ । यही कारण है कि 200 सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) में से मैने एक बार में केवल एक छोटे परिवर्तन की मांग रखी है ।
जनता की आवाज (सूचना का अधिकार -2)/पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूप केवल तीन पंक्तियों का है , नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) प्रारूप केवल चार पृष्ठों का है , प्रजा अधीन –प्रधानमंत्री केवल एक पृष्ठ का है और इसी प्रकार अन्य प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट हैं।
(10.5) लोकतंत्र का धर्म और संविधान |
मैं लोकतंत्र के धर्म में अत्यधिक विश्वास करता हूँ। भारत की जनता द्वारा अर्थ लगाये गए संविधान में मेरा पूरा और पक्का भरोसा है। मैं ऐसी कोई बड़ी बाध्य करने वाली जरूरत नहीं समझता कि संविधान में कोई और बदलाव लाया जाए हालॉंकि मै संविधान में संशोधन की किसी भी मांग के खिलाफ नहीं हूँ बशर्ते संशोधन का प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट लिखित रूप में दिया जाए । मेरा मानना है कि जनता द्वारा व अर्थ किए गए संविधान को न मानने के कारण भारत का तख्ता-पलट नहीं हुआ और न ही इस कारण इसे हड़पा गया है बल्कि जजों द्वारा अर्थ किए गए संविधान थोपने के कारण ऐसा हुआ है। और मेरा उद्देश्य हम जनसाधारण/आम लोग द्वारा अर्थ किए गए संविधान को भारत की सबसे बड़ी ताकत बनाकर भारत को फिर से पहले जैसा भारत बनाने का है।
मैं संविधान में संशोधन की जरूरत नहीं समझता, मैं केवल इस बात पर जोर देता हूँ कि संविधान का अर्थ हमें उस तरह से करनी चाहिए जैसी कि 25 जनवरी, 1951 को नागरिकों द्वारा किया गया था | 25 जनवरी, 1991 को आज की तरह का न्यायालय भी नहीं था। और संविधान में लिखे शब्द को अर्थ देने/इसका मतलब निकालने का प्राधिकार केवल भारत के नागरिक समाज को ही था। अब नागरिक समाज में (संविधान की) प्रस्तावना में “लोकतंत्र” शब्द को जोड़ दिया गया है। जिसका 25 जनवरी, 1991 को अर्थ था – “एक शासन जिसमें बहुमत कानून बनाती/लागू करती है और बहुमत की व्याख्या/अर्थ ही अंतिम है।” लोकतंत्र की यही परिभाषा पश्चिमी देशों में वर्ष 1200 से रही है जिसमें जूरी-मंडल/जूरर्स की व्याख्या/अर्थ अंतिम होती थी। इसी विचार को मेरीलैण्ड(अमेरिका का एक राज्य) के संविधान के अनुच्छेद 23 में फिर से इस प्रकार लिखा गया-