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(1.13) जनहित याचिका / पी आई एल के माध्यम से `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) लाना |
जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली के बारे में एक उपयोगी बात इसका सरल और लचीला होना है – अर्थात इसे एक विधान के रूप में अथवा सरकारी अधिसूचना(आदेश) के रूप में अथवा यहां तक कि इसे एक जनहित याचिका के रूप में रखा जा सकता है। वे लोग जो जनहित याचिका के बारे में उत्साही होते हैं वे जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली कानून लागू करवाने के लिए जनहित याचिका फाइल कर सकते हैं। जनहित याचिका आवेदक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से निम्नलिखित आदेश जारी करने की मांग कर सकता है।
# | अधिकारी | प्रक्रिया |
1 | जिला न्यायालय का रजिस्ट्रार | उच्च न्यायालय जिला न्यायालयों के रजिस्ट्रार को आदेश दे: यदि कोई महिला मतदाता या दलित मतदाता या वरिष्ठ/सीनियर नागरिक मतदाता या गरीब मतदाता या किसान मतदाता या कोई भी नागरिक मतदाता उच्च न्यायालय कोई जनहित याचिका और शपथपत्र/एफिडेविट 20 रूपए प्रति पृष्ठ/पेज का शुल्क देकर प्रस्तुत करता है और जिला न्यायालय का रजिस्ट्रार शपथपत्र/एफिडेविट को उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर डाल देगा। |
2 | तलाटी अर्थात पटवारी अर्थात ग्राम अधिकारी | उच्च न्यायालय प्रत्येक पटवारी को आदेश दे: यदि कोई महिला मतदाता या दलित मतदाता या वरिष्ठ/सीनियर नागरिक मतदाता या गरीब मतदाता या किसान मतदाता या कोई भी नागरिक मतदाता अपने वोटर आई डी / मतदाता पहचान पत्र के साथ आये और उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर डाले गए जनहित याचिका पर अपनी हाँ / ना दर्ज कराए तब तलाटी या उसका क्लर्क उसके हां – ना को उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर उसके वोटर आई कार्ड (संख्या) के साथ दर्ज करे और 3 रूपए के शुल्क के बदले एक छपा हुआ (प्रिंटेड) पावती दे। यह क्लर्क नागरिकों को यह अनुमति भी दे कि वे अपनी हाँ या ना 3 रूपए के शुल्क देकर बदल सकता है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले (BPL) कार्डधारकों के लिए शुल्क एक रूपए होगा। |
3 | सभी नागरिकों को | यह कोई जनमत संग्रह की प्रक्रिया नहीं है। हाँ या ना की यह गिनती प्रधानमंत्री, मुख्य मंत्री, अधिकारियों, न्यायाधीशों आदि के लिए कोई बाध्यता नहीं होगी। |
कोई भी व्यक्ति जनहित याचिका डालकर माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश (किसी उच्चतम न्यायालय/सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ) से ऊपर उल्लिखित जिला न्यायालय के रजिस्ट्रार और तलाटी को आदेश जारी करने की मांग कर सकता है। यदि कोई माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अथवा किसी उच्चतम न्यायालय/सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ऊपर किए गए उल्लेख के अनुसार आदेश पारित करता है तो चार महीने के भीतर गरीबी कम हो जाएगी और पुलिस, न्यायालय, शिक्षा आदि में भ्रष्टाचार लगभग शून्य के बराबर हो जाएगा।
(1.14) उन नेताओं, बुद्धिजीवियों की निंदा कैसे करें जो जनता की आवाज का विरोध करते हैं |
इसलिए, कुल मिलाकर, ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ इससे ज्यादा या कम कुछ नहीं कहता – कृपया किसी नागरिक को अनुमति दें, यदि वह अपनी शिकायत प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर डालना चाहता हो।
अब यदि कोई नेता अथवा कोई बुद्धिजीवी किसी भी आधार पर ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट के खण्ड/कलम 1 का विरोध करता है तो मेरे जैसा ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ का समर्थक यह कहते हुए उस नेता, बुद्धिजीवी को गाली दे सकता है: तुम नहीं चाहते हो कि महिला मतदाता, दलित मतदाता, गरीब मतदाता, वरिष्ठ/सीनियर नागरिक मतदाता, किसान, मजदूर आदि अपनी शिकायत प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर डाले, क्यों? और मैं उसपर महिला विरोधी, दलित विरोधी, गरीब विरोधी, किसान विरोधी, मजदूर विरोधी आदि होने का आरोप लगाते हुए उसकी निंदा कर सकता हूँ । यही कारण है कि आज तक सभी बुद्धिजीवी, नेता आदि ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट का विरोध करते हैं लेकिन किसी भी नेता, बुद्धिजीवी ने ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट का सार्वजनिक रूप से विरोध करने का साहस नहीं किया है।
इसलिए ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ समर्थक कार्यकर्ता को इसी बात की जरूरत है कि वह बुद्धिजीवियों, नेताओं से ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट के खण्ड/कलम 1 से 3 पर अपना विचार सार्वजनिक रूप से देने को कहे और ये बुद्धिजीवी, नेता बेचैनी से हां,हूं करना शुरू कर देंगे। मैं ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ समर्थक कार्यकर्ता से अनुरोध करूंगा कि वे ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ पर खण्ड/कलम -वार चर्चा करे। कृपया बुद्धिजीवी से पुछिए: आप क्यों नागरिकों की किसी शिकायत को प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर आने देने की पहल किए जाने से मना करते हैं अथवा आप क्यों ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ क़ानून-ड्राफ्ट के कलम-1 का विरोध करते हैं । यह उस नेता और बुद्धिजीवी को इस हद तक रक्षात्मक बना देगा जहां वह अपना बचाव बिलकुल नहीं कर सकता है।
बाद में उसकी चुप्पी अथवा ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ खण्ड/कलम -1 का समर्थन करने से मना करने को उस नेता, बुद्धिजीवी के समर्थकों को इस बात पर राजी करने में प्रयोग में लाया जा सकता है कि वह नेता, बुद्धिजीवी अमीरों का ऐजेंट है। कृपया ध्यान दें कि किसी नेता बुद्धिजीवी से बातचीत करने का प्रयोजन उसे इस बात पर मनाने का नहीं है कि ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ सही है क्योंकि धनवान लोगों का कोई ऐजेंट कभी सहमत नहीं होगा। बातचीत का उद्देश्य नेता, बुद्धिजीवी को उनके भक्त समर्थकों के सामने उस नेता की सच्चाई लाने की है कि वह नेता बुद्धिजीवी अमीरों का ऐजेंट है और गरीब समर्थक, आम आदमी समर्थक नहीं है।
इस प्रकार सच्चा राष्ट्रवादी आम-आदमी समर्थकों का हितैषी उस नेता बुद्धिजीवी का साथ छोड़ देगा और वह नेता, बुद्धिजीवी कमजोर हो जाएगा। और सच्चा राष्ट्रवादी और आम-आदमी समर्थकों का हितैषी ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ का समर्थक बन जाएगा। इसलिए, समय के साथ साथ वे लोग जो ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ का समर्थन करते हैं, उनकी संख्या बढ़ेगी और बुद्धिजीवियों, नेताओं जो ‘जनता की आवाज (सूचना का अधिकार 2)’ का विरोध करते हैं, वे कमजोर से कमजोर होते जाऐंगे।