लेकिन भारत में , नागरिकों के पास पुलिस प्रमुख को हटाने की ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है। और इसलिए यहाँ पुलिस का उच्च अधिकारी न केवल घूस लेता है बल्कि वह अपने कनिष्ठ अधिकारयों से भी ज्यादा से ज्यादा घूस वसूलने को कहता है। एक ठेठ (टिपिकल) पुलिस आयुक्त (कमिश्नर) अपने कनिष्ठ अधिकारियों द्वारा जमा किए गए घूस का आधा हिस्सा खुद रख लेता है और शेष आधे हिस्से को विधायकों, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री को देता है। मैंने अध्याय 2 में इसका विवरण दिया है।
अब मैंने प्रस्तावित सरकारी अधिसूचना का एक प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट अध्याय 22 में तैयार किया है जो मुख्यामंत्री द्वारा हस्ताक्षर किए जाने के बाद एक प्रक्रिया सृजित करेगी जिसके द्वारा जिले के लोग जिला पुलिस कमिशनर को निकालने में समर्थ हो सकेंगे, यदि वे ऐसा चाहें। मैंने इस प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट को ‘प्रजा अधीन पुलिस कमिश्नर (पुलिस आयुक्त (कमिश्नर) को वापस बुलाने का अधिकार) नाम दिया है। यह प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट हमारे संविधान के 33 दर्जन अनुच्छेदों में से प्रत्येक के साथ और मौजूदा सभी कानूनों के साथ शत-प्रतिशत संगत है। इस प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट का विवरण इस पुस्तक में ”पुलिस सुधार” से संबंधित अध्याय 22 में दिया गया है।
अब पाठकों से मेरा चौथा प्रश्न है: क्या भारत का कोई भी मौजूदा मुख्यमंत्री, चाहे वह कांग्रेस की शीला दीक्षित हो, या बीजेपी के मोदी हों, या सीपीएम के भट्टाचार्य हो, या डी एम के के करूणानिधि हों, क्या आज जिला पुलिस आयुक्त (कमिश्नर) को बदलने के लिए जनता को समर्थ बनाने वाले किसी कानून पर कभी हस्ताक्षर करेंगे? मेरा अनुमान है — नहीं। क्योंकि यदि नागरिकों को जिला पुलिस आयुक्त/कमिश्नर को हटाने की प्रक्रिया मिल जाती है तो कमिश्नर डर जाएंगे और अपनी मासिक घूस वसूली को 1 करोड़ से कम करके मात्र एक लाख रूपए कर देंगे। और तब उस स्थिति में पुलिस आयुक्त/कमिश्नर जो मासिक हफ्ता विधायक, गृहमंत्री, और मुख्य मंत्री को देते हैं वह भी कम होकर 50 लाख रूपए से मात्र 50 हजार रूपए हो जाएगा। और इसलिए वर्तमान विधायक, मुख्य मंत्री आदि भी एक ऐसा कानून लागू करने से मना कर देंगे जो हम आम लोगों को जिला पुलिस कमिश्नर को बदलने की अनुमति देता हो।
लेकिन स्थिति तब बदलती है जब हम नागरिकगण किसी प्रकार प्रधानमंत्री को प्रस्तावित ‘जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) – सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य कर दें। मान लीजिए, नागरिकों ने प्रधानमंत्री को प्रस्तावित ‘जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) – सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य कर दिया। तो कोई व्यक्ति जिला पुलिस कमिश्नर को वापस बुलाने का शपथपत्र/एफिडेविट दाखिल करेगा। ज्यादातर नागरिक यह सोचेंगे “यदि यह जिला पुलिस कमिश्नर को वापस बुलाने (हटाने) का शपथपत्र/एफिडेविट पुलिस में भ्रष्टाचार को 5 प्रतिशत तक भी कम कर देता है तो मेरा तीन रूपया खर्च करना सार्थक है।” और सबसे बड़ा कारण जो नागरिकों को जिला पुलिस कमिश्नर को वापस बुलाना पर हाँ दर्ज करने के लिए प्रेरित करेगा वह है – पुलिसवालों में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरूद्ध घृणा।
पुलिसवाले एक महीने में लाखों रूपए बनाते हैं जबकि एक आम आदमी एक महीने में मात्र कुछ हजार ही कमा पाता है और वह भी कड़ी मेहनत के बाद। इसलिए यदि राज्य के 70 से 80 प्रतिशत नागरिक ‘जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) के धारा 2 का प्रयोग करके हाँ दर्ज करवाते हैं तो मुख्य मंत्री डर के मारे झुक जाएगा, अपनी दिखावे की हेकड़ी छोड़ देगा और प्रजा अधीन पुलिस कमिश्नर (जिला पुलिस आयुक्त/कमिश्नर को वापस बुलाना) कानून पर हस्ताक्षर कर देगा। किसी सरकारी अधिकारी अथवा न्यायाधीश के अन्दर नौकरी जाने का डर सबसे अधिक होता है। इसलिए जनता द्वारा जिला पुलिस कमिश्नर को हटाने की प्रक्रिया प्राप्त कर लेने के 14 दिनों के अन्दर पुलिस कमिश्नर के साथ साथ अन्य पुलिसवालों में भ्रष्टाचार 99 प्रतिशत तक कम हो जाएगा। इस प्रकार ‘जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली के पारित/पास हो जाने के तीन महीने के भीतर ही पुलिसवालों में भ्रष्टाचार लगभग समाप्त हो जाएगा।
पुलिस प्रमुख को वापस बुलाने का अधिकार तो केवल एक शुरुआत भर है। इसके बाद वह प्रक्रिया आती है जिसके द्वारा हम आम लोग प्रधानमंत्री, मुख्य मंत्री, विधायकों, सांसदों, उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, रिजर्व बैंक के गवर्नर, स्टेट बैंक के अध्यक्ष, जिला शिक्षा अधिकारी, महापौर/मेयर, और राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला स्तरों के 251 पदों के अधिकारियों को बदल सकेंगे। वापस बुलाने के किस कानून का, आप समझते हैं कि जनता विरोध करेगी? मेरा उत्तर है – एक भी नहीं। इसलिए ‘जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) के पारित/पास होने के बाद, इस बात की बहुत अधिक उम्मीद है कि छह महीनों के भीतर नागरिकगण प्रधानमंत्री को बाध्य कर देंगे कि वह 251 से भी अधिक पदों के लिए बदलने की प्रक्रिया को लागू कर दे। और इस प्रकार इन सभी पदों से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा।
(1.10) राज्य स्तर के ‘जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)` क़ानून-ड्राफ्ट पर हस्ताक्षर करने की मांग मुख्यमंत्री से करना |
यह सुनिश्चित करके कि मुख्यमंत्री निम्नलिखित सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर हस्ताक्षर कर दे, नागरिकों को राज्य स्तर पर ‘जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) मिल जाएगा । अब यदि नागरिकगण राष्ट्रीय स्तर के ‘जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रधानमंत्री को बाध्य कर सके तो यह राज्य स्तर के ‘जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) की आवश्यकता बिलकुल नहीं होगी।
# | अधिकारी | प्रक्रिया |
1 | जिला कलेक्टर (अथवा उसका क्लर्क) | राज्यपाल कलेक्टर को आदेश दें : यदि एक महिला मतदाता या दलित मतदाता या वरिष्ठ नागरिक मतदाता या गरीब मतदाता या किसान मतदाता या कोई भी नागरिक मतदाता कलेक्टर को कोई सूचना का अधिकार आवेदन पत्र प्रस्तुत करता है अथवा किसी भ्रष्टाचार की शिकायत करता है या कलेक्टर को कोई शपथपत्र/एफिडेविट देता है और प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर डालने का अनुरोध करता है तो वह कलेक्टर या उसका क्लर्क एक सीरियल नंबर जारी करे और शपथपत्र/एफिडेविट को मुख्यमंत्री की वेबसाइट पर 20 रूपए प्रति पेज का शुल्क लेकर डाल दे। |
2 |
तलाटी, पटवारी, ग्राम अधिकारी (अथवा उसका क्लर्क)
श्रेणी: प्रजा अधीन |