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(50.1) जमीन किराया और खदान रॉयल्टी के लिए लड़ाई / संघर्ष के कुछ संभव / संभावित भविष्य |
भविष्यवाणी करना ज्योतिष-विज्ञान (एस्ट्रोलॉजी) है। मैं इससे नफरत/घृणा करता हूँ लेकिन ऐतिहासिक/इताहस के घटनाओं पर आधारित संभव परिस्थितियों/स्थितयों का अनुमान लगाना उपयोगी है। इतिहास के बारे में एक चेतावनी जो मैं देना चाहता हूँ – इतिहासकारों के कारण इतिहास बेकार/अनुपयोगी हो गया है।
अधिकांश इतिहासकार विशिष्ट/उच्च लोगों के ऐजेंट रहे हैं और इसलिए उन्होंने सावधानीपूर्वक उन ऐतिहासिक जानकारियों/सूचनाओं के पन्ने/पृष्ठ किताबों से निकाल दिए हैं जिनमें कार्यकर्ताओं को ऐसी बातों का पता चलता जो विशिष्ट/उच्च लोग नहीं चाहते हैं और इतिहासकारों ने अपने लोगों के विचार-नजरियों और मतों को “सत्य/तथ्यों” और “सत्य/तथ्यों पर आधारित विचार” के रूप में बताया है। तब भी, इतिहास जितना भी उपयोगी है, उसके आधार पर मैं उन परिस्थितयां/स्थितियां बताता/कल्पना करता हूँ कि तब क्या हो सकता है, यदि हजारों कार्यकर्ता करोड़ों नागरिकों को राजी/आश्वस्त कर सकें कि वे मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री को प्रजा अधीन समूह द्वारा प्रस्तावित पहली सरकारी अधिसूचना(आदेश)(पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पर हस्ताक्षर करने पर मजबूर/बाध्य कर दें।
यदि पहली सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर हस्ताक्षर हो जाता है तो कुछ ही सप्ताहों में करोड़ों आम आदमी को जमीन किराया और खदान रॉयल्टी देने की मांग स्पष्ट हो जाएगी। विशिष्ट/उच्च लोगों के धन और उनकी आय में भारी गिरावट आएगी। यदि ऐसा हो गया तो बुद्धिजीवी लोग, जो विशिष्ट/ऊंचे लोगों के ऐजेंट होते हैं, वे भी अपनी आय में गिरावडेट देखेंगे। इसलिए विशिष्ट/उच्च लोग और बुद्धिजीवी लोग सभी सरकारी आदेशों के खुलेआम विरोधी हो जाएंगे। चाहे यह पहला सरकारी आदेश हो या दूसरा,तीसरा या चौथा या पांचवीं या सौंवा। तब क्या होगा जब गैर-80-जी कार्यकर्ता (जो 80-जी आयकर में छूट के खंड/नियम को रद्द करवाना चाहते हैं क्योंकि ये आय के चोरी करने में मदद करती है जिससे सेना,कोर्ट,पोलिस और देश के अन्य विकास लिए जरुरी धन में कमी आती है | ) जमीन किराया की मांग करेंगे अथवा दूसरा या तीसरा सरकारी आदेश की मांग करेंगे और विशिष्ट/उच्च लोग इस को पास करने से ईनकार करेंगे। कुछ परिस्थितियाँ इस प्रकार हैं :-
50.1.1 पहली परिस्थिति :
बुद्धिजीवी विशिष्ट / उच्च लोग बिना किसी हिंसा के हार स्वीकार कर लेंगे
एक संभावना यह है कि विशिष्ट/उच्च और उनके ऐजेंट बुद्धिजीवी लोग बहुमत के फैसले को स्वीकार कर लेंगे। मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री तीसरे सरकारी आदेश और 50 प्रतिशत नागरिकों के द्वारा अनुमोदित/स्वीकृत सरकारी आदेशों पर हस्ताक्षर कर देंगे और आम आदमी की ही तरह रहने लगेंगे। यह एकमात्र परिस्थिति/परिदृष्य है, जिसमें खून खराबा नहीं है और मुझे उम्मीद है कि ऐसा ही होगा। पहले भी ऐसा हो चुका है। वर्ष 1930 के दशक में अमेरिकी और यूरोपियन विशिष्ट/उच्च लोगों ने 70 प्रतिशत विरासत- कर, 75 प्रतिशत आयकर और 1 प्रतिशत संपत्ति कर लागू करने (के फैसले) को स्वीकार कर लिया ताकि एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना हो सके । ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पश्चिमी देशों में 70 प्रतिशत से अधिक आम लोगों के पास हथियार थे। यह एक ऐसी स्थिति है जो भारत में नहीं है। इसलिए हांलांकि भारत के विशिटवर्ग/ऊंचे लोगों द्वारा ‘नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’-रिकॉल(भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानूनों को बिना किसी हिंसा के स्वीकार करने की संभावना है, लेकिन इसकी 100 प्रतिशत गारंटी नहीं है।
50.1.2 परिस्थिति 2: बुद्धिजीवी, विशिष्ट / उच्च लोग पुलिसवालों और सिपाहियों से उन गैर-80-जी कार्यकर्ताओं की हत्या करने के लिए कहेंगे, जो पहली सरकारी अधिसूचना(आदेश) की मांग कर रहे हैं।
मैं इतिहास से कुछ उदाहरण दूंगा।
कृपया http://en.wikipedia.org/wiki/Tiberius_Gracchus और http://en.wikipedia.org/wiki/Gaius_Gracchus पढ़ें।
टिबेरियस ग्राकूस
(नि:शुल्क इनसाइक्लोपिडीया के विकिपेड़िया से)
भूमिका / शुरुवात
टिबेरियस का जन्म 168 ईसा पूर्व में हुआ था। वह टिबेरियस ग्राकुस मेजर और कॉरनेलिया अफ्रिकाना का बेटा था। ग्राकची रोम के सबसे ज्यादा राजनीतिक रूप से संपर्क वाले परिवार हुआ करते थे। उसके नाना-नानी प्यूब्लियस कार्नेलियस स्किपियो अफ्रिकानस और ऐमिलिया पाउला थे। उसकी बहन,सेम्प्रोनिया प्यूबिलियस कोरनेलियस स्क्रिपीयो ऐमिलियानुस, एक महत्वपूर्ण जनरल की पत्नी थी । टिबेरियस की सेना की नौकरी पूनिक युद्ध में अपने साले स्क्रिपीयो ऐमिलियानुस के स्टॉफ में सेना का प्रबंधकर्ता के रूप में नियुक्त होकर शुरू हुई। 147 ईसा पूर्व में वह सेनापति (कॉउन्सल) गैयस्क होस्टिलियस मैन्सीनस के अफसर(क्वास्टर) के रूप में नियुक्त हुआ और अपना कार्यकाल न्यूमान्टिया (हिस्पानिया जिला) में पूरा किया। अभियान सफल नहीं हुआ और मॉन्सिनस की सेना को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। अफसर(क्वास्टर) के रूप में यह टिबेरियस ही था जिसने दुश्मन के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर करके सेना को बरबाद होने से बचा लिया। इधर रोम में स्क्रिपियो ऐमिलियानुस ने टिबेरियस के इस कार्य को कायरतापूर्ण समझा और इस शांति संधि को रद्द करवाने के लिए सिनेट में कार्रवाई करवाई। यह टिबेरियस और सिनेट के बीच राजनैतिक शत्रुता की शुरूआत थी।
भूमि का झगड़ा –
रोम की आंतरिक राजनैतिक स्थिति शांतिपूर्ण नहीं थी। पिछले 100 वर्ष में अनेक युद्ध हुए थे। चूंकि सैनिकों को एक सम्पूर्ण अभियान के लिए काम करना पड़ता था इसलिए चाहे कितना भी लम्बे समय के लिए क्यों न हो, सैनिकों को अक्सर अपने खेत पत्नियों और बच्चों के हाथ छोड़ने पड़ते थे। इन परिस्थितियों में चुंकि ये खेत दीवालिया होने की ओर तेजी से अग्रसर हो गया और उंच्च वर्ग के धनवानों द्वारा उन्हें खरीद लिया गया इसलिए, बड़ी भूमि-सम्पदाओं (लैटिफुन्डिया) का निर्माण हुआ। इसके अलावा, कुछ जमीनें इटली और दूसरे स्थानों में यानि दोनों जगह युद्ध लड़ रहे राज्यों द्वारा ले लिए जाने के कारण समाप्त हो गईं।
युद्ध समाप्त हो जाने के बाद, अधिकांश जमीनें जनता के विभिन्न सदस्यों को बेच दी जाती थी या किराए पर दे दी जाती थी। इससे बहुत सी जमीनें केवल कुछ ही किसानों को दे दी गई थी, जिनके पास तब बड़ी मात्रा में जमीनें थीं । बड़े खेतों वाले किसानों के जमीन पर कृषि कार्य गुलामों द्वारा कराए जाते थे और वे खुद काम नहीं करते थे, जबकि छोटे खेतों के किसान लोग अपनी खेती का काम खुद ही किया करते थे। जब फ़ौज(लेजियन्स) से वापस लौटे तो उनके पास कोई ठिकाना नहीं बचा था। इसलिए वे रोम में जाकर उन हजारों की भीड़ में शामिल हो गए जो शहरों में बेकार/बेघर घूमा करते थे।चूँकि केवल जिन लोगों के पास जमीन थी, वे ही सेना में जा सकते थे, इसके कारण, सेना की ड्यूटी के लिए योग्य माने जाने के लिए पर्याप्त सम्पत्ति वाले लोगों की संख्या कम होती जा रही थी।