सूची
- (50.1) जमीन किराया और खदान रॉयल्टी के लिए लड़ाई / संघर्ष के कुछ संभव / संभावित भविष्य
- 50.1.1 पहली परिस्थिति :
- 50.1.2 परिस्थिति 2: बुद्धिजीवी, विशिष्ट / उच्च लोग पुलिसवालों और सिपाहियों से उन गैर-80-जी कार्यकर्ताओं की हत्या करने के लिए कहेंगे, जो पहली सरकारी अधिसूचना(आदेश) की मांग कर रहे हैं।
- 50.1.3 परिस्थिति 2 (क) : पहले,दूसरे सरकारी आदेश की मांग कर रहे आम आदमियों को मौत के घाट उतारने का सैनिकों और पुलिसकर्मियों का फैसला
- 50.1.4 परिस्थिति – 2 ख : सैनिकों के शीर्ष(सबसे ऊंचे पद वाले)/मध्य स्तर के अफसर विशिष्ट वर्ग(ऊंचे लोगों) को राजी कर लें कि वे आम आदमियों की हत्या न करवाएं
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- (50.1) जमीन किराया और खदान रॉयल्टी के लिए लड़ाई / संघर्ष के कुछ संभव / संभावित भविष्य
- 50.1.1 पहली परिस्थिति :
- 50.1.2 परिस्थिति 2: बुद्धिजीवी, विशिष्ट / उच्च लोग पुलिसवालों और सिपाहियों से उन गैर-80-जी कार्यकर्ताओं की हत्या करने के लिए कहेंगे, जो पहली सरकारी अधिसूचना(आदेश) की मांग कर रहे हैं।
- 50.1.3 परिस्थिति 2 (क) : पहले,दूसरे सरकारी आदेश की मांग कर रहे आम आदमियों को मौत के घाट उतारने का सैनिकों और पुलिसकर्मियों का फैसला
- 50.1.4 परिस्थिति – 2 ख : सैनिकों के शीर्ष(सबसे ऊंचे पद वाले)/मध्य स्तर के अफसर विशिष्ट वर्ग(ऊंचे लोगों) को राजी कर लें कि वे आम आदमियों की हत्या न करवाएं
(50.1) जमीन किराया और खदान रॉयल्टी के लिए लड़ाई / संघर्ष के कुछ संभव / संभावित भविष्य |
भविष्यवाणी करना ज्योतिष-विज्ञान (एस्ट्रोलॉजी) है। मैं इससे नफरत/घृणा करता हूँ लेकिन ऐतिहासिक/इताहस के घटनाओं पर आधारित संभव परिस्थितियों/स्थितयों का अनुमान लगाना उपयोगी है। इतिहास के बारे में एक चेतावनी जो मैं देना चाहता हूँ – इतिहासकारों के कारण इतिहास बेकार/अनुपयोगी हो गया है।
अधिकांश इतिहासकार विशिष्ट/उच्च लोगों के ऐजेंट रहे हैं और इसलिए उन्होंने सावधानीपूर्वक उन ऐतिहासिक जानकारियों/सूचनाओं के पन्ने/पृष्ठ किताबों से निकाल दिए हैं जिनमें कार्यकर्ताओं को ऐसी बातों का पता चलता जो विशिष्ट/उच्च लोग नहीं चाहते हैं और इतिहासकारों ने अपने लोगों के विचार-नजरियों और मतों को “सत्य/तथ्यों” और “सत्य/तथ्यों पर आधारित विचार” के रूप में बताया है। तब भी, इतिहास जितना भी उपयोगी है, उसके आधार पर मैं उन परिस्थितयां/स्थितियां बताता/कल्पना करता हूँ कि तब क्या हो सकता है, यदि हजारों कार्यकर्ता करोड़ों नागरिकों को राजी/आश्वस्त कर सकें कि वे मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री को प्रजा अधीन समूह द्वारा प्रस्तावित पहली सरकारी अधिसूचना(आदेश)(पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पर हस्ताक्षर करने पर मजबूर/बाध्य कर दें।
यदि पहली सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर हस्ताक्षर हो जाता है तो कुछ ही सप्ताहों में करोड़ों आम आदमी को जमीन किराया और खदान रॉयल्टी देने की मांग स्पष्ट हो जाएगी। विशिष्ट/उच्च लोगों के धन और उनकी आय में भारी गिरावट आएगी। यदि ऐसा हो गया तो बुद्धिजीवी लोग, जो विशिष्ट/ऊंचे लोगों के ऐजेंट होते हैं, वे भी अपनी आय में गिरावडेट देखेंगे। इसलिए विशिष्ट/उच्च लोग और बुद्धिजीवी लोग सभी सरकारी आदेशों के खुलेआम विरोधी हो जाएंगे। चाहे यह पहला सरकारी आदेश हो या दूसरा,तीसरा या चौथा या पांचवीं या सौंवा। तब क्या होगा जब गैर-80-जी कार्यकर्ता (जो 80-जी आयकर में छूट के खंड/नियम को रद्द करवाना चाहते हैं क्योंकि ये आय के चोरी करने में मदद करती है जिससे सेना,कोर्ट,पोलिस और देश के अन्य विकास लिए जरुरी धन में कमी आती है | ) जमीन किराया की मांग करेंगे अथवा दूसरा या तीसरा सरकारी आदेश की मांग करेंगे और विशिष्ट/उच्च लोग इस को पास करने से ईनकार करेंगे। कुछ परिस्थितियाँ इस प्रकार हैं :-
50.1.1 पहली परिस्थिति :
बुद्धिजीवी विशिष्ट / उच्च लोग बिना किसी हिंसा के हार स्वीकार कर लेंगे
एक संभावना यह है कि विशिष्ट/उच्च और उनके ऐजेंट बुद्धिजीवी लोग बहुमत के फैसले को स्वीकार कर लेंगे। मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री तीसरे सरकारी आदेश और 50 प्रतिशत नागरिकों के द्वारा अनुमोदित/स्वीकृत सरकारी आदेशों पर हस्ताक्षर कर देंगे और आम आदमी की ही तरह रहने लगेंगे। यह एकमात्र परिस्थिति/परिदृष्य है, जिसमें खून खराबा नहीं है और मुझे उम्मीद है कि ऐसा ही होगा। पहले भी ऐसा हो चुका है। वर्ष 1930 के दशक में अमेरिकी और यूरोपियन विशिष्ट/उच्च लोगों ने 70 प्रतिशत विरासत- कर, 75 प्रतिशत आयकर और 1 प्रतिशत संपत्ति कर लागू करने (के फैसले) को स्वीकार कर लिया ताकि एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना हो सके । ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पश्चिमी देशों में 70 प्रतिशत से अधिक आम लोगों के पास हथियार थे। यह एक ऐसी स्थिति है जो भारत में नहीं है। इसलिए हांलांकि भारत के विशिटवर्ग/ऊंचे लोगों द्वारा ‘नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’-रिकॉल(भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानूनों को बिना किसी हिंसा के स्वीकार करने की संभावना है, लेकिन इसकी 100 प्रतिशत गारंटी नहीं है।
50.1.2 परिस्थिति 2: बुद्धिजीवी, विशिष्ट / उच्च लोग पुलिसवालों और सिपाहियों से उन गैर-80-जी कार्यकर्ताओं की हत्या करने के लिए कहेंगे, जो पहली सरकारी अधिसूचना(आदेश) की मांग कर रहे हैं।
मैं इतिहास से कुछ उदाहरण दूंगा।
कृपया http://en.wikipedia.org/wiki/Tiberius_Gracchus और http://en.wikipedia.org/wiki/Gaius_Gracchus पढ़ें।
टिबेरियस ग्राकूस
(नि:शुल्क इनसाइक्लोपिडीया के विकिपेड़िया से)
भूमिका / शुरुवात
टिबेरियस का जन्म 168 ईसा पूर्व में हुआ था। वह टिबेरियस ग्राकुस मेजर और कॉरनेलिया अफ्रिकाना का बेटा था। ग्राकची रोम के सबसे ज्यादा राजनीतिक रूप से संपर्क वाले परिवार हुआ करते थे। उसके नाना-नानी प्यूब्लियस कार्नेलियस स्किपियो अफ्रिकानस और ऐमिलिया पाउला थे। उसकी बहन,सेम्प्रोनिया प्यूबिलियस कोरनेलियस स्क्रिपीयो ऐमिलियानुस, एक महत्वपूर्ण जनरल की पत्नी थी । टिबेरियस की सेना की नौकरी पूनिक युद्ध में अपने साले स्क्रिपीयो ऐमिलियानुस के स्टॉफ में सेना का प्रबंधकर्ता के रूप में नियुक्त होकर शुरू हुई। 147 ईसा पूर्व में वह सेनापति (कॉउन्सल) गैयस्क होस्टिलियस मैन्सीनस के अफसर(क्वास्टर) के रूप में नियुक्त हुआ और अपना कार्यकाल न्यूमान्टिया (हिस्पानिया जिला) में पूरा किया। अभियान सफल नहीं हुआ और मॉन्सिनस की सेना को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। अफसर(क्वास्टर) के रूप में यह टिबेरियस ही था जिसने दुश्मन के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर करके सेना को बरबाद होने से बचा लिया। इधर रोम में स्क्रिपियो ऐमिलियानुस ने टिबेरियस के इस कार्य को कायरतापूर्ण समझा और इस शांति संधि को रद्द करवाने के लिए सिनेट में कार्रवाई करवाई। यह टिबेरियस और सिनेट के बीच राजनैतिक शत्रुता की शुरूआत थी।
भूमि का झगड़ा –
रोम की आंतरिक राजनैतिक स्थिति शांतिपूर्ण नहीं थी। पिछले 100 वर्ष में अनेक युद्ध हुए थे। चूंकि सैनिकों को एक सम्पूर्ण अभियान के लिए काम करना पड़ता था इसलिए चाहे कितना भी लम्बे समय के लिए क्यों न हो, सैनिकों को अक्सर अपने खेत पत्नियों और बच्चों के हाथ छोड़ने पड़ते थे। इन परिस्थितियों में चुंकि ये खेत दीवालिया होने की ओर तेजी से अग्रसर हो गया और उंच्च वर्ग के धनवानों द्वारा उन्हें खरीद लिया गया इसलिए, बड़ी भूमि-सम्पदाओं (लैटिफुन्डिया) का निर्माण हुआ। इसके अलावा, कुछ जमीनें इटली और दूसरे स्थानों में यानि दोनों जगह युद्ध लड़ रहे राज्यों द्वारा ले लिए जाने के कारण समाप्त हो गईं।
युद्ध समाप्त हो जाने के बाद, अधिकांश जमीनें जनता के विभिन्न सदस्यों को बेच दी जाती थी या किराए पर दे दी जाती थी। इससे बहुत सी जमीनें केवल कुछ ही किसानों को दे दी गई थी, जिनके पास तब बड़ी मात्रा में जमीनें थीं । बड़े खेतों वाले किसानों के जमीन पर कृषि कार्य गुलामों द्वारा कराए जाते थे और वे खुद काम नहीं करते थे, जबकि छोटे खेतों के किसान लोग अपनी खेती का काम खुद ही किया करते थे। जब फ़ौज(लेजियन्स) से वापस लौटे तो उनके पास कोई ठिकाना नहीं बचा था। इसलिए वे रोम में जाकर उन हजारों की भीड़ में शामिल हो गए जो शहरों में बेकार/बेघर घूमा करते थे।चूँकि केवल जिन लोगों के पास जमीन थी, वे ही सेना में जा सकते थे, इसके कारण, सेना की ड्यूटी के लिए योग्य माने जाने के लिए पर्याप्त सम्पत्ति वाले लोगों की संख्या कम होती जा रही थी।
133 ईसा पूर्व में टिबेरियस लोगों का हाकिम/नेता(ट्रिब्यून) चुन लिया गया। जल्दी ही उसने बेघर सैनिकों(लोगोनियरियों) के मामले पर विधान/कानून बनाना शुरू कर दिया। लिबेरियस ने देखा कि कितनी ही जमीन बड़ी भू-संपदाओं(लाटिफुन्डिया) में एक ही जगह थी जो कि बड़े खेतों के कब्जे में थी, जिन पर गुलाम काम करते थे। और दूसरी ओर छोटी सम्पदा थी जिसके मालिक छोटे किसान थे और खुद ही अपनी खेती करते थे।
लैक्स सेम्प्रोनिया ऐग्रेरिया –
इसके विपरित, टैबेरियस ने लैक्स सेम्प्रोनिया ऐग्रेरिया नामक कानूनों का प्रस्ताव किया। उन्होंने यह सुझाव दिया कि सरकार को उन सार्वजनिक जमीनों को वापस दिलाना चाहिए, जिन्हें पहले राज्य द्वारा प्रारंभिक युद्धों के दौरान ले लिया गया था और वे 500 युगेरिया अर्थात लगभग 310 एकड़ (1.3 वर्गकिलोमीटर से ज्यादा) बड़े क्षेत्र में फैले थे और उन्हें पहले के जमीन कानूनों में इजाजत/अनुमति दी गई थी। इन जमीनों में से कुछ जमीनें बड़े भूस्वामियों के कब्जे में थी जिन्होंने इन्हें बहुत ही पहले के काल/समय में यानि अनेक पीढ़ियों पहले खरीदा था, उसपर बसे थे अथवा उस सम्पत्ति को किराए पर दिया हुआ था। कभी –कभी इन जमीनों को पट्टे या किराए पर दिया जाता था या प्रारंभिक बिक्री या किराया लेने के बाद दूसरे भूस्वामियों को फिर से बेच दिया जाता था।
किसी न किसी तरीके से यह 367 ईसा पूर्व में पारित किए गए लिसिनियन कानूनों को लागू करने का एक प्रयास था जिन्हें कभी रद्द भी नहीं किया गया था और न ही कभी लागू किया गया था। इससे दो समस्याओं का समाधान हो सकता था :- सेना के लिए सेवा कर लगाए जा सकने वाले लोगों की संख्या बढ़ सकती थी और बेघर लेकिन युद्ध में निपूर्ण लोगों की देखभाल हो सकती थी।
सिनेट और उसके रूढ़िवादी(कंजर्वेटिव) लोग सेम्प्रोनियन ऐग्रेरियन सुधारों के घोर विरोधी थे और टिबेरियस के सुधारों को पास/पारित करने के अत्यन्त पारंपरिक तरीके का भी खासकर विरोध करते थे क्योंकि टिबेरियस अच्छी तरह यह जानता था कि सिनेट उसके सुधारों का अनुमोदन नहीं करेगी इसलिए वह सीधे ही कान्सिलियम प्लेविस (लोकप्रिय विधानसभा) में चला गया और सीनेट की उपेक्षा की। इस विधान सभा ने इन सुधारों का पूरा समर्थन किया। ऐसा करना वास्तव में न कानून के खिलाफ थे और न हीं परंपरा के (मौसमई ओरम) के खिलाफ थे। लेकिन यह कुछ ऐसा था कि जिससे सीनेट का अपमान होता था और यह सीनेटरों को अलग करने का खतरा भी पैदा कर दिया था जो इसका समर्थन कर सकते थे |
लेकिन सीनेट के पास एक और तरकीब थी। एक नेता(ट्रिब्यून) कोई प्रस्ताव को “नहीं” कहा अथवा रोक/वीटो का इस्तेमाल करके उसे विधानसभा में आने से रोक सकता था | इसलिए टिबेरियस को रोकने के प्रयास के रूप में सीनेट ने एक और नेता(ट्रिब्यून) ओक्टावियस का सहारा लिया ताकि वह अपने वीटो का इस्तेमाल करके विधान सभा में विधेयक प्रस्तुत न कर सके। टिबेरियस ने तब यह प्रस्ताव रखा कि एक ट्रिब्यून के रूप में औक्टावियस को तुरंत हटाया जाये क्योंकि उसने अपने लोगों के खिलाफ काम किया था । औक्टावियस डटा रहा। लोगों ने औक्टावियस को हटाने के लिए वोट देना शुरू किया लेकिन औक्टावियस ने उनकी कार्रवाईयों पर वीटो लगा दिया। टिबेरियस ने उसे विधान सभा की बैठक के स्थान से बलपूर्वक हटा दिया और उसे ठप करने के लिए वोट की कार्रवाई जारी रखी।
इन कार्रवाईयों ने औक्टावियस के पवित्र-पावन अधिकार(सेक्रोसेंकटिटी) का उल्लंघन किया और टिबेरियस के समर्थकों को चिन्ता में डाल दिया और इसलिए औक्टावियस को हटाने की कार्रवाई के बजाए टिबेरियस ने अपने रोक/वीटो का इस्तेमाल करना प्रारंभ किया, जब नेताओं(ट्रिब्यूनों) से यह पूछा गया था कि क्या वे अनुमति देंगे कि मुख्य पब्लिक स्थान जैसे बाजार , मंदिर खुल जायें | इस तरह टिबेरियस सभी व्यावसायों, व्यापार और उत्पादन सहित पूरे रोम शहर को बन्द कर सका ,जब तक सीनेट और विधान सभा द्वारा कानूनों को पारित ना करे । विधानसभा ने टिबेरियस की सुरक्षा के डर से उसे उसकी सुरक्षा करते हुए घर पहुंचा दिया।
सीनेट ने टिबेरियस के कानूनों को लागू करने के लिए नियुक्त किए गए अग्रेरियन आयोग को मामूली धन दिया हालांकि, 133 ईसा पूर्व के अन्त में पेरगामम का राजा अटालूस III की मौत हो गई। टिबेरियस ने मौका देखा और तुरंत ही धन बांटने की अपनी कानूनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए नए कानून को धन दे दिया। यह सीनेट की शक्ति पर सीधा प्रहार था क्योंकि यह खजाने के प्रबंधन के लिए और विदेशी मामलों के संबंध में निर्णय लेने के लिए परंपरागत रूप से जिम्मेदार था। सीनेट का विरोध बढ़ता गया।
टिबेरियस की मौत
टिबेरियस ग्राकूस जिसने एक नेता(ट्रिब्यून) के रोक/वीटो की अनदेखी की थी, उसे अवैध समझा गया और उसके विरोधी उसके एक वर्ष के शासन के अन्त में उसपर महाभियोग लगाने का निश्चय कर चुके थे क्योंकि उसे संविधान का उल्लंघन करने और एक नेता(ट्रिब्यून) के खिलाफ ताकत का इस्तेमाल करने का दोषी पाया गया था। अपने आप को आगे बचाने के लिए टिबेरियस ग्राकुस ने 133 ईसा पूर्व में नेता(ट्रिब्यून) के रूप में पुनर्मतदान की कोशिश की और वायदा किया कि वह सैनिक शासन की अवधि कम कर देगा, केवल सिनेटर की जूरी सदस्य के रूप में कार्य करने के विशेषाधिकार को समाप्त कर देगा और देश के सहयोगियों को रोमन नागरिकता मिल सकेगी । चुनाव के दिन टिबेरियस ग्राकूस रोम के सीनेट में सशस्त्र गार्डों/रक्षकों के साथ प्रकट हुआ ।
जैसे-जैसे मतदान की प्रक्रिया आगे बढ़ी, दोनों पक्षों से हिंसा फूट पड़ी। टिबेरियस का भतीजा प्यूबिलियस कार्नेलियस स्कीपीयो नासका यह कहते हुए, कि टिबेरियस राजा बनना चाहता है, सीनेटरों को लेकर टिबेरियस की ओर आगे बढ़ा। निर्णायक लड़ाई में टिबेरियस मारा गया। उसके कई सौ समर्थक जो सीनेट के बाहर इंतजार कर रहे थे, उसके साथ ही मारे गए या दफन हो गऐ। प्लूटार्च कहता है कि “टिबेरियस की सीनेट में हुई मौत अचानक और कम समय में हो गई हालांकि वह सशस्त्र था फिर भी उस दिन अनेक सीनेटरों के सामने ये हथियार उसके काम न आए।”
टिबेरियस ग्राकूस का विरोध
टिबेरियस का विरोध तीन लोगों ने किया : मारकस ऑक्टावियस, सीपीयो नासिका और सीपीयो ऐमिलियानुस । ऑक्टावियस ने टिबेरियस का विरोध इसलिए किया कि टिबेरियस ने उसे लेक्स सेम्प्रोनिया अग्रेरिया पर रोक/विटो लगाने नहीं दिया। इसने ऑक्टावियस का विरोध किया जिसने तब सीपीयो नासिका और सीपीयो ऐमिलियानस के साथ मिलकर टिबेरियस की हत्या करने का षड़यंत्र किया। नासिको को इससे लाभ होता क्योंकि टिबेरियस ने एक ऐसी जगह से कुछ जमीन खरीदी थी जो नासिका खरीदना चाहता था। इसके कारण नासिका को 500 सेसटेर्स(रोम साम्राज्य के चांदी के सिक्के) का नुकसान हुआ। नासिका अक्सर इस मामले को सीनेट में उठाकर टिबेरियस का मजाक उड़ाया करता था। ऐमिलियानुस ने टिबेरियस ग्राकूस का विरोध किया क्योंकि टिबेरियस ने उसे राजी किया था कि वह उसकी बहन सेम्प्रोनिया से शादी कर ले । यह शादी असफल हो गई और अलगाव के समझौते में ऐमिलियानुस को काफी ज्यादा लागत देनी पड़ी। ऐमिलियानुस भी कड़वाहट से भर गया क्योंकि टिबेरियस लोगों के बीच बेहतर भाषण दिया करता था जिससे अक्सर अमेलियानुस को सिनेट में शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ता था।
इसके प्रभाव / परिणाम
सिनेट ने तब ग्राकसन कानूनों को लागू कराने के लिए परामर्श करके प्लेबियन्स को शांत कराने का कार्य किया। अगले दशक में नागरिकों के पंजीकरण में वृद्धि से भूमि आवंटन की बड़ी संख्या का संकेत मिलता है। हालांकि ऐग्रेरियन आयोग को अनेक कठिनाईयों और बाधाओं का सामना करना पड़ा। टिबेरियस का उत्तराधिकारी उसका छोटा भाई गाइयस था जो एक दशक के बाद और भी ज्यादा क्रांतिकारी विधान/कानून लागू करने की कोशिश में टिबेरियस के ही भाग्य का साझेदार बना यानि उसकी तरह का ही भाग्य पाया।
गाईयस ग्राकूस
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प्रारंभिक जीवन
गाईयस का जन्म 154 ईसा पूर्व में हुआ था, वह टिबेरियस सेम्प्रोनियस ग्राकूस (टिबेरियस ग्राकूस मेजर, जिसकी मौत उसी वर्ष हो गई थी) और कार्नेलिया अफ्रिकाना का बेटा था और टिबेरियस सेम्प्रोनियस ग्राकूस का भाई था। ग्राकची महान खनदान से थे और वह खानदान रोम के राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण परिवारों में से एक था जो कि बहुत ही अमीर और अच्छी पहुंच वाले थे । उसकी मां कार्नेलिया अफ्रिकाना, सीपीयो अफ्रिकनस मेजर की बेटी थी और उसकी बहन सेम्प्रोनिया सीपीयो ऐमिलियानस, जो कि एक और महत्वपूर्ण जनरल था, की पत्नी थी। गाईयस का पालन-पोसन उसकी मां, जो कि उंची नैतिक स्तर और भाग्य वाली थी, के द्वारा हुआ था। सेना में गाईयस का कैरियर/नौकरी न्यूमान्तिया में अपने साले सीपीयो आमेलियानस के स्टाफ में भर्ती सेना अफसर के रूप में शुरू हुआ। अपनी जवानी में ही उसने अपने बड़े भाई टिबेरियस ग्रकूस द्वारा किए गए राजनीतिक उथल-पुथल को ध्यान से देखा था जब उसने ऐग्रेरियन सुधारों के लिए कानून लागू करने की कोशिश की थी। टिबेरियस 133 ईसा पूर्व में कैपिटोल के निकट मारा गया था जब वह अपने चचेरे भाई प्यूब्लियस कोर्नेलियस सीपीयो नासिका के नेतृत्व में राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों से सशस्त्र युद्ध करता हुआ मारा गया था। इस मौत के साथ ही, गाईयस ने ग्राकूस परिवार की सम्पदा को विरासत में मिल गयी | इतिहास यह साबित करता कि उसने अपने भाई के आदर्शों को भी विरासत में मिला था।
अफसरी(क्वास्टरशिप) और पहला नेता का पद(ट्रिब्यूनेट)
गाईयस अपने भाई और ऐपियस क्लॉडियस के साथ ऐग्रेरियन आयोग में रहा था। गाईयस ने अपना राजनैतिक जीवन/कैरियर 126 ईसा पूर्व में सारडिनिया में ल्यूसियस ऑरेलियस ऑरेस्ट के राजनयिक के अफसर(क्वास्टर) के रूप में शुरू किया। रोम में कुछ वर्षों की राजनीतिक शांति के बाद, 123 ईसा पूर्व में, गाईयस, लोगों का नेता(ट्रिब्यून) चुना गया जैसा कि उससे पहले उसके परिवार के हर सदस्य पहले ही चुन लिए गए थे। रूदिवादियों(केजरवेटिवों) ने पहले ही महसूस कर लिया कि उनको उससे कुछ कठिनाईयां हो सकती हैं। गाईनियस के विचार टिबेरियस के ही समान थे, लेकिन उसके पास अपने भाई की गलतियों से सीखने का मौका/समय था। उसके कार्यक्रमों में न केवल ऐग्रेरियन कानून ही शामिल थे, जिसके कारण यह शुरू हुआ कि अमीरों द्वारा गैरकानूनी रूप से अधिग्रहित की गई जमीन गरीबों में बांटी जानी चाहिए, बल्कि ऐसे भी कानून थे जिसने अनाज के मूल्यों को निश्चित कर दिया। उसने भी यह कोशिश की कि किसी व्यक्ति द्वारा सेना में अनिवार्य रूप से की जाने वाली सेवा और अभियान के वर्ष सीमित किए जाएं। अन्य उपायों में वसूली कोर्ट में सुधार ,एक कानून द्वारा ,करना शामिल था। इस कोर्ट में सीनेट के सदस्यों द्वारा धन के गैरकानूनी अनियमितताओं के लिए मुकद्दमा चलाया जाता था और जूरी का गठन केवल सीनटरों द्वारा होता था जिसे दोषी सेनेट के सदस्य और जूरी के सदस्यों में सांठ-गाँठ हो जाती थी । उसके(गाईनियस) कानून ने ये बदलाव लाया कि जूरी-ड्राफ्ट पूल में आम लोगों को शामिल करने की इजाजत दे दी । उसने अनेक इटलीवासियों और संबंद्ध राष्ट्रों को रोम की नागरिकता के देने का भी प्रस्ताव किया। इन सभी कार्रवाईयों ने सीनेटरों को नाराज कर दिया।
दूसरा नेता का पद(ट्रिब्यूनेट) और मौत
122 ईसा पूर्व में, गाईयस ने लोगों के नेता(ट्रिब्यून) के रूप में एक और अवधि के लिए पाया और रोम के निम्नवर्गों के असंख्य/जोरदार समर्थन से सफल भी रहा। इस वर्ष के दौरान, उसने अपने सुधार कार्य करना और सीनेट के बढ़ते विरोध से निपटना जारी रखा। गाईयस ने मार्कस फ्युलवियस फ्लॉकूस को अपने सहयोगी और भागीदार के रूप में रखकर तीसरी बार शासन चलाना चाहा लेकिन वे हार गए और नए कंजरवेटिव/रूढ़िवादी राजदूतों, क्विंटस फाबियस माक्सिमस और ल्यूसियस ओपिमियस द्वारा अपने लागू किए गए सभी कानूनों को हटते देखने के सिवाय और कुछ न कर सके। अपने द्वारा किए गए सभी कार्यों की हानि को रोकने के लिए गाईयस और फ्यूलवियस फ्लाकूस ने हिंसक तरीकों का सहारा लिया। सीनेट ने उन्हें गणतंत्र के दुश्मन के रूप में बदनाम/चित्रित किया और उन्हें आखिरकार भागना पड़ा था। फ्लूवियस फ्लाकूस और उसके बेटों की हत्या कर दी गई लेकिन गाईयस अपने विश्वस्त गुलाम, फिलोक्रेट्स के साथ बच निकलने में कामयाब रहा। बाद में, शायद उसने फिलोक्रैट्स को आदेश दिया कि वह उसे मार डाले। उसके मरने के बाद लगभग 3000 वैसे लोगों को भी मार दिया गया था और सम्पदाएं जब्त कर ली गई थी, जिन लोगों पर उसका समर्थन करने का शक था। प्लुतार्श की लाइव्स ऑफ नोबल ग्रीक्स एण्ड रोमन्स(पुस्तक) के अनुसार, गाईयस ग्राकूस, फिलोक्रैट्स द्वारा मारा गया था, जिसने खुद भी बाद में आत्महत्या कर ली थी। ग्राक्शू के एक शत्रु ने उसके सर को धड़ से अलग कर दिया और सर को सेप्टिम्यूलियस (ओपीमियस का एक ग्राहक) द्वारा ले लिया गया जिसने, ऐसा कहा जाता है कि, खोपड़ी को तोड़कर खोल दिया और इसमें पिघला हुआ शीशा भर दिया जिसे फिर ओपिमियस के पास ले जाया गया। इसे तराजू में तौला गया और यह 17 पाउन्ड का निकला। इसलिए ओपीमियस ने इतने ही वजन का सोना सेप्टीमुलियस को दिया जैसा कि उसने वायदा किया था।
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दूसरे शब्दों में, इन विशिष्ट वर्गों/ऊंचे लोगों और बुद्धिजीवियों ने मानवाधिकारों और आजादी के बारे में बहुत शोर मचाया लेकिन वे सभी जानते थे कि खदान रॉयल्टी और जमीन किराया के बिना उनकी तथाकथित “गुणों/खूबियों” का कोई उपयोग नहीं है। और वे उसी दिन आम आदमी की तरह बन जाएंगे जिस दिन बैंकों , खदानों, भारत सरकार के प्लॉटों आदि तक उनकी पक्षपातपूर्ण पहुंच खत्म हो जाएगी। इसलिए शायद वे `प्रजा अधीन समूह` द्वारा प्रस्तावित प्रथम सरकारी अधिसूचना(आदेश)(चैप्टर 1 देखें) की मांग करने वालों के खिलाफ पूरी हिंसा का सहारा ले सकते हैं क्योंकि उन्हें यह समझ आ जाएगा कि पहला सरकारी आदेश ही दूसरे सरकारी आदेश का रास्ता खोल देगा जो जमीन किराया और खनिज रोयल्टी (आमदनी) से संबंधित है और वो पास हो जायेगा और आम लोगों को उनका ये हक वाला पैसा मिल जायेगा ।
रोम में 2000 वर्ष पहले ठीक यही हुआ था। ऐसा इतिहास में सैंकड़ो बार हो चुका है। इसलिए व्यावहारिक रूप से कहा जाए तो इस बात की संभावना है कि भारतीय विशिष्ट/उच्च लोग और बुद्धिजीवी कानूनी शक्तियों का प्रयोग करके सैनिकों और पुलिसकर्मियों से कहेंगे कि वे इन गैर 80 – जी कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतार दें जो `प्रजा अधीन-रजा समूह` द्वारा प्रस्तावित प्रथम सरकारी अधिसूचना(आदेश) की मांग कर रहे हैं।
यदि ऐसा होता है तो गैर 80-जी कार्यकर्ताओं के पास ताकत से उलटा प्रहार करने के अलावा और कोई रास्ता/विकल्प नहीं बचेगा। (भारत में) 15 लाख पुलिसकर्मी और 10 लाख सैनिक हैं। एक ऐसी ताकत का निर्माण करने के लिए, जो पुलिस और सैनिकों के बीच के स्तर के अफसर(प्रबंधन) को गैर 80 – जी कार्यकर्ताओं और प्रथम सरकारी आदेशों की मांग करने वाले आम लोगों की हत्या नहीं करने का निर्णय करने से रोक सके, कम से कम 25 लाख हथियारों से लैस(सशस्त्र), ट्रेनिंग लिए हुए(प्रशिक्षित) आम नागरिकों की जरूरत होगी। यही कारण है कि मैं जोर देता हूँ कि प्रत्येक ‘नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’-रिकॉल सदस्य को चाहिए कि वे जितनी अधिक संख्या में संभव हो, आम युवाओं को बंदूकों का ट्रेनिंग/शिक्षा दे।
50.1.3 परिस्थिति 2 (क) : पहले,दूसरे सरकारी आदेश की मांग कर रहे आम आदमियों को मौत के घाट उतारने का सैनिकों और पुलिसकर्मियों का फैसला
सेना के 35,000 अधिकारियों में से, 33,000 से ज्यादा अधिकारी, भ्रष्ट नहीं हैं और उनकी राजनीतिक मांगों को पूरा करने के लिए साधारण गैर-अलगाववादी आम लोगों को जान से मारने के लिए सैनिकों को आदेश देने के भयंकर परिणाम को अच्छी तरह जानते हैं। लेकिन तब, सैनिकों को आदेश मानने का ट्रेनिंग/शिक्षा दी जाती है और मैं उनसे यह आशा नहीं करूंगा और यह चाहूंगा भी नहीं कि वे प्रधानमंत्री के आदेशों की अवहेलना/अनदेखी करें। इसलिए यदि प्रथम ‘ प्रजा अधीन-राजा समूह` सरकारी अधिसूचना(आदेश) की मांग कर रहे गैर – 80 – जी कार्यकर्ताओं की हत्या का आदेश प्रधानमंत्री सैनिकों को दे देते हैं तो इसके परिणाम अराजकता फैलाने वाले होंगे।
50.1.4 परिस्थिति – 2 ख : सैनिकों के शीर्ष(सबसे ऊंचे पद वाले)/मध्य स्तर के अफसर विशिष्ट वर्ग(ऊंचे लोगों) को राजी कर लें कि वे आम आदमियों की हत्या न करवाएं
भारतीय सेना की मध्य प्रबंधन अधिकतर भ्रष्ट नहीं है और इसमें प्रतिबद्ध/कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी हैं जो यह पक्का/सुनिश्चित करने में दिलचस्पी रखते हैं कि भारत किसी विदेशी ताकत का गुलाम न बने, जैसा कि नेपाल बन गया है। इसलिए वे शायद मंत्रियों को आश्वस्त करने में सफल हो जाएं कि वे मंत्री आम लोगों और गैर – 80- जी कार्यकर्ताओं की हत्या करने का आदेश न दें और हम लोगों द्वारा मांग की जा रही पहली सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर हस्ताक्षर करके तीसरी (अधिसूचना(आदेश)) की मांग स्वीकार कर लें। यही वह मांग है जिसकी आशा मैं कर रहा हूँ। मैं सच्चे मन से यह आशा करता हूँ कि सैन्य अधिकारी मंत्रियों, बुद्धिजीवियों और विशिष्ट वर्गों/ऊंचे लोगों को मनाने में सफल रहेंगे कि वे भारत पर पुलिस राज/सैनिक शासन न थोपें। हालांकि, यदि भारतीय विशिष्ट/उच्च लोग, मंत्री आदि सेना के बीच के स्तर के अफसर(मध्य प्रबंधन) की बातों को अनसुनी कर देते हैं और भारत में सैनिक राज/पुलिस शासन थोप देते हैं तो भारत एक और नेपाल बन जाएगा और उससे भी बुरी स्थिति कि एक और पाकिस्तान बन जाएगा और छोटे-छोटे बांग्लादेश की तरह के कई इलाके चारों ओर उभरने लगेंगे। इन नए राज्यों में से अधिकांश अमेरिका/इंग्लैण्ड के प्रति भक्ति दिखलाएंगे और भारत फिर से वर्ष 1757 की स्थिति में पहुंच जाएगा।
अब निर्णय भारतीय विशिष्ट/उच्च लोगों को ही करना है। उनके निर्णय ही भारत का भविष्य तय करेंगे।