तलाटी (अथवा पटवारी)
(9.4) इस प्रकार तीन लाइनों के इस कानून और भारतीय रिजर्व बैंक गवर्नर (आर बी आई को बदलने/हटाने की प्रक्रिया से महंगाई पर लगाम लगेगी |
मूल्य वृद्धि के पीछे एकमात्र कारण भारतीय रिजर्व बैंक (आर बी आई) , भारतीय स्टेट बैंक (एस बी आई) आदि द्वारा रूपए (एम 3) का अंधाधुंध बनाना है । इस अंधाधुंध बढ़ोत्तरी को बहुसंख्य नागरिकों के विरोध के बावजूद भारतीय रिजर्व बैंक (आर बी आई) के गवर्नर द्वारा स्वीकृति दी जाती है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर मनमाने ढ़ंग से काम करते हैं। क्योंकि नागरिकों के पास उसे हटाने का कोई तरीका/प्रक्रिया नहीं है । लेकिन यदि एक बार नागरिकों के पास भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को बदलने की प्रक्रिया/तरीका आ जाती है तो भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर अच्छा व्यवहार करने लगेंगे और रूपए के अंधाधुंध निर्माण की अनुमति नहीं देंगे। यह कानून एक अन्य अध्याय भारतीय रिजर्व बैंक (आर बी आई) में सुधार में प्रस्तावित कानूनों के साथ मिलकर विकास/वृद्धि में कमी किए बिना मूल्यों पर नियंत्रण कर देगा।
इसलिए, जिस दिन नागरिकगण प्रधानमंत्री को जनता की आवाज(पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य करने में सफल हो जाते हैं, उस दिन कोई न कोई भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) के ड्राफ्ट को एफिडेविट के रूप में जमा करवा देगा। करोड़ों नागरिक जो रूपए के निर्माण/बनाने के कारण अत्यधिक गरीब हुए हैं, वे इस एफिडेविट पर तब हां दर्ज कर देंगे जब उन्हें यह बताया जाएगा कि कैसे भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर कीमत बढ़ाने के लिए जिम्मेवार हैं और एक बार यदि करोड़ों नागरिक इस एफिडेविटों पर हां दर्ज कर देते हैं तो प्रधानमंत्री को बाध्य होकर इन कानूनों पर हस्ताक्षर करना ही होगा। और यदि एक बार भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को बदलने की प्रक्रिया लागू हो जाती है तो भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रूपए के निर्माण को कम करने, रूपए उधार देने में बेइमानी कम करने को बाध्य हो जाएंगे और इससे कीमतों के बढ़ने पर रोक लगेगी और असली विकास में तेजी भी आएगी। इस प्रकार तीन लाइनों के `जनता की आवाज` कानून का उपयोग करके हम अपने एक भी सांसद का चुनाव हुए बिना मूल्य बृद्धि को कम कर सकते हैं और विकास की गति को बढ़ा सकते हैं।
यदि राईट टू रिकाल/प्रजा अधीन राजा-समर्थक संसद में बहुमत मिलने तक इंतजार करने और तब `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम आर सी एम) लागू करने पर अड़ जाता है तो ऐसी संभावना है कि राईट टू रिकाल/प्रजा अधीन राजा-समर्थक को हमेशा के लिए इंतजार ही करते रहना पड़ेगा क्योंकि पहले तो उन्हें संसद में बहुमत ही नहीं मिलेगा। और इससे भी बुरा होगा कि यदि उन्हें बहुमत मिल जाता है तो (इस बात की संभावना है कि) उनके “अपने ही” सांसद बिक जाएंगे और जन हित के क़ानून-ड्राफ्ट पारित करने से मना कर देंगे। उदाहरण के लिए वर्ष 1977 में जनता पार्टी के सांसदों ने चुनाव से पहले वायदा किया था कि वे प्रजा अधीन राजा (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू करेंगे और चुन लिए जाने के बाद, बाद में उन्होंने प्रजा अधीन राजा (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून पास करने से मना कर दिया। इसलिए मेरे विचार से, राईट टू रिकाल/प्रजा अधीन राजा कार्यकर्ताओं को `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) क़ानून-ड्राफ्ट पर जन-आन्दोलन पैदा करने पर ध्यान लगाना चाहिए और `जनता की आवाज` क़ानून-ड्राफ्ट पारित करवाना चाहिए न कि चुनाव में जीतने तक इंतजार करना चाहिए |