`राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के क़ानून-ड्राफ्ट को कौन-कौन समर्थन दे सकता है ? और कौन `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के क़ानून-ड्राफ्ट का विरोध अवश्य करेगा? |
1. यदि आप हम आम लोगों को “अच्छे बर्ताव/नैतिकता” का पाठ पढ़ाना चाहते हैं अथवा यदि आप आम लोगों के व्यवहार/दृष्टिकोण को बदलना चाहते हैं तो `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` आपके लिए नहीं है। `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` ड्राफ्ट/प्रारूप इस तथ्य/सुक्ति का अनुसरण करता है कि हम आम लोग मंत्रियों आई.ए.एस.(भारतीय प्रशाशनिक सेवक/बाबू), जजों, विशिष्ट/उच्च लोगों और बुद्धिजीवियों से ज्यादा अच्छा व्यवहार वाले(नैतिकतावादी) नहीं हैं और न ही इनसे कम अच्छे व्यवहार वाले(नैतिकतावादी) हैं।
2. यदि आप हम आम लोगों को “जगाने/सचेत करने” के इच्छुक हैं तब `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के कानून प्रारूप/ड्राफ्ट आपके लिए नहीं हैं। `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` ड्राफ्ट मौन/सांकेतिक रूप से यह मान कर चलता है कि हम आम लोग उतने ही जागरूक/सचेत हैं जितने जागरूक ये मंत्री आई.ए.एस., जज, विशिष्ट/उच्च लोग और बुद्धिजीवी हैं।
3. यदि आप आम लोगों की गरीबी दूर/कम करना चाहते हैं और जिस अत्याचार का ये आम लोग सामना करते हैं, उसे दूर करना चाहते हैं तो `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के कानून प्रारूप/ड्राफ्ट आपके लिए हैं।
4. सबसे ऊपर/शीर्ष पर बैठे 2 करोड़ लोगों में से अनेक लोगों का मानना है कि भारत के आम लोगों के पास अच्छा व्यवहार/नैतिकता नहीं है, इनका कोई अच्छा, राष्ट्रिय चरित्र/चाल-चलन नहीं है, ये नासमझ/अविवेकी होते हैं, ये भावुक होते हैं (पढ़ें : अनिश्चित स्वाभाव वाले) और आम लोगों बुरे व्यवहार वाले होते हैं, आदि। और उनका यह भी मानना है कि विशिष्ट/उच्च लोग और बुद्धिजीवी लोग, जो ईमानदार और `दूध के धुले` हैं, उन्हें पूरी तरह से अधिकार/शासन दिया जाना चाहिए। वे हम आम लोगों का अपमान करना पसंद करते हैं और यह कहने में गर्व महसूस करते हैं कि भारत के आम लोग कायर, डरपोक, आलसी आदि हैं। यदि आप इन सभी आम आदमी-विरोधी और विशिष्ट/उच्च हितैषी की फालतू/बेकार की बातों पर विश्वास रखते हैं तो `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के कानून प्रारूप/ड्राफ्ट आपके लिए नहीं हैं।
5 मैंने यह भी देखा/पाया है कि तथाकथित “जनता हितैषी” लोग शायद ही मेरे `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के कानून-ड्राफ्टों को पसंद करते हैं। ये तथाकथित “जनता हितैषी” जो अपने को सामाजिक कहते हैं और मिलना जुलना पसंद करते हैं और वे लोग जो “मानव स्वभाव” और संस्कार/संस्कृति को जानने/समझने का दावा करते हैं वे `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के ड्राफ्टों को कभी पसंद नहीं करते। सबसे खराब बात यह है कि वे इस बात/विचार से ही नफरत करते हैं कि पार्टी/दल के कानून प्रारूप/ड्राफ्ट होने चाहिएं – वे जोर देते हैं कि पार्टी की राजनीतिक कथन/विचार बिलकुल अनिश्चित/अस्पष्ट होने चाहिए, यानि समझ में आने लायक नहीं होने चाहिए। तकनीकी और हिसाब-किताब के काम-काज करने वाले लोग `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के प्रारूपों/ड्राफ्टों को कहीं ज्यादा पसंद करने वाले होते हैं।
6. सेना विरोधी लोगों की तुलना में, सेना समर्थक लोग द्वारा `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के प्रारूपों/ड्राफ्टों को पसंद करने की संभावना ज्यादा होती है।
7. भ्रष्टाचार के “छिपे सकारात्मक/अच्छा पक्ष ” को देखने वाले लोग, जैसे कि `भ्रष्टाचार से काम हो जाता है`, वे `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के कानूनों के प्रारूप/ड्राफ्टों को पसंद नहीं करना चाहेंगे।
8. कई लोगों का मानना है कि भ्रष्टाचार भारत के लोगों के स्वभाव में ही है, इसलिए जजों, आई.ए.एस., आई.पी.एस., मंत्रियों आदि के अधिकार कम करने के कोई प्रयास नहीं किए जाने चाहिए बल्कि केवल लोगों को ही सुधारना चाहिए। ऐसे लोग भी `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के कानून के प्रारूप/ड्राफ्टों से नफरत करेंगे।
9. सबसे बड़ी बात कि ऐसे लोग भी होते हैं, जो मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में भाई-भतीजावाद कभी नहीं चलता। ऐसे लोग भी ‘नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.) – प्रजा अधीन जैसे कार्य-सूची/ऐजेंडे से नफरत करेंगे क्योंकि ये कार्य-सूची/ऐजेंडे यह मानकर चलते हैं कि भाई भतीजावाद व्याप्त है, यानि भाई भतीजावाद का बोलबाला है।
10. और यदि आपका लक्ष्य चुनाव जीतना है या किसी सांसद या विधायक का नजदीकी/मित्र बनना है तो आपको कभी भी ‘नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.) – रिकॉल पार्टी/दल में शामिल नहीं होना चाहिए। इस पार्टी/समूह का आधारभूत और सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है – मुख्य मंत्रियों और प्रधानमंत्री को पहला प्रस्तावित सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर/बाध्य करना। चुनाव लड़ना केवल इन प्रस्तावित सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) का प्रचार-प्रसार करना मात्र है।
सामान्यतया, जनसंख्या के शीर्ष/सबसे उपर बैठे एक करोड़ में से 98,00,000 लोग जानबूझकर ‘नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.) समूह/पार्टी और इसके ऐजेंडे/कार्यसूची से घृणा करेंगे। भारत के शीर्ष 1 प्रतिशत लोगों में से केवल 2 प्रतिशत लोग ही ‘नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.) के कार्य-सूची/ऐजेंडे को पसंद करेंगे। जैसे-जैसे आम लोगों की आय/सम्पत्ति घटती जाएगी वैसे-वैसे (इस ऐजेंडे को) चाहने वाले लोगों का प्रतिशत बढ़ता जाएगा।
एक संक्षिप्त प्रश्नोत्तरी (प्रश्न और उत्तर)
मैं आपसे निम्नलिखित प्रश्न पूछूंगा। कृपया जैसे उत्तर/बात आप जनता के सामने खड़े होकर खुलासा करेंगे/बताएंगे, वैसे ही “पूरी तरह से, पक्के से सहमत” अथवा “पूरी तरह से, पक्के से सहमत नहीं” में से एक उत्तर दें। दूसरे शब्दों में, कल्पना कीजिए, कि निम्नलिखित प्रश्नों पर आपके दिए गए उत्तर की जानकारी आपके हरेक दोस्त, ग्राहक, साथी/सहकर्मी, रिश्तेदार आदि को हो जानी है। तब आपका उत्तर क्या होगा : “पूरी तरह से ,पक्के से सहमत” अथवा “ पूरी तरह से, पक्के से सहमत नहीं”?
1. प्रधानमंत्री को भेजी गई जनता की शिकायतें एवं सुझाव कुछ शुल्क लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर आनी चाहिए
2. जनता द्वारा प्रस्तावित सुझावों पर नागरिकों से कुछ शुल्क लेकर उन्हें हां/नहीं दर्ज करने की इजाजत/मंजूरी दी जानी चाहिए
3. जनता को सांसदों और विधायकों द्वारा पारित/पास किए गए कानूनों पर कुछ शुल्क देकर हां/नहीं दर्ज करने की इजाजत/मंजूरी देना चाहिए