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अध्याय 46 – यदि विशिष्ट / ऊंचे लोग या राजनेता तानाशाही चलाते हैं , तो महात्मा उधम सिंह योजना

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यदि विशिष्ट / ऊंचे लोग या राजनेता तानाशाही चलाते हैं, तो महात्मा उधम सिंह योजना

यदि विशिष्ट/ ऊंचे लोग भारत में तानाशाही चलाना चाहते हैं तो, यदि सिर्फ 500 महात्मा उधम (सिंह) कार्यकर्ता उधम सिंह योजना लागू करने का फैसला/निर्णय करें, तो ऐसी तानाशाही का तख्‍ता पलटा जा सकता है। कैसे?

  1. सबसे महत्‍वपूर्ण भाग यह है कि उधम को अकेले ही काम को अंजाम देना होगा और उसे कभी भी कोई संगठन नहीं बनाना होगा। यदि कोई व्‍यक्‍ति इतिहास पढ़े तो उसे पता चलेगा कि भगत सिंह (अपनी जान) हारे क्‍योंकि उनके समूह में विभिषण था। और कोई भी व्‍यक्‍ति ऐसी लंका नहीं बना सकता जिसमें विभिषण न हों। यदि हिंदुस्‍तान सामाजिक क्रांति दल(हिंदुस्‍तान सोसलिस्‍ट रिवोल्‍यूशन पार्टी) के सभी अच्‍छे लोग अकेले-अकेले काम कर रहे होते तो वे ज्‍यादा अंग्रेजों को मार सकते थे, अनेक अन्‍य लोगों को प्रेरणा दे सकते थे, और अंग्रेजों के लिए और अंदरूनी व गंभीर खतरा पैदा कार सकते थे। लेकिन चूंकि उन्‍होंने एक समूह बनाया और किसी भी समूह में एक विभिषण होता ही है, इसलिए वे सभी पकड़े गए और मारे गए और वे केवल एक ही अंग्रेज को मार सके। इसलिए किसी भी उधम सिंह को कोई समूह कभी बनाना/तैयार करने की गलती कदापि नहीं करनी चाहिए। क्‍योंकि ऐसे समूहों में 10 में से कोई 1 विभिषण होगा, और वह शेष/बाकी 9 लोगों को गिरफ्तार करवा देगा या मरवा देगा।

  2. प्रत्‍येक उधम को अकेले ही काम करना चाहिए और किसी तानाशाही शासन, जिसमें एक तानाशाह और उसके अनेक अधिकारी होते हैं, उनमें से क्रमरहित तरीके से किसी एक को चुन लेना चाहिए जो किसी डॉयर की ही तरह का हो।

  3. और उधम को इन डॉयरों से छोटे समूह या बड़े समूह में निपटना चाहिए। समूह के सदस्‍य जितने अधिक हों, उतना ही अच्‍छा होगा। और जितने ही ऊंचे पद पर बैठा अधिकारी हो, उतना ही अच्‍छा होगा। लेकिन बहुत ही ऊंचे पदों पर बैठे लोगों/डॉयरों को निशाना नहीं बनाएं क्‍योंकि इन लक्ष्‍यों/निशानों की सुरक्षा बहुत ही कड़ी होती है और इन तक पहुंचने में खतरा बहुत ही ज्‍यादा रहता है।

  4. सैकड़ों डॉयरों की मौत से डॉयर का उत्साह/मनोबल टूट जाएगा और तानाशाह अपने को अकेला महसूस करेगा।

चाहे कोई उधम अकेला काम करे या समूह में काम करे, किसी भी स्‍थिति में उसे मरना ही है। लेकिन यदि वह समूहों में काम करता है, मान लीजिए, 10 अथवा 50 उधम एक साथ काम करते हैं और उनमें से एक भी सदस्‍य विभिषण निकला तो सारे उधम एक भी डॉयर को मौत के घाट उतारे बिना खुद शहीद हो जाएंगे। जबकि यदि ये 10 या 50 उधम अकेले-अकेले काम करते हैं तो यह पक्‍का/गारंटी है कि हर एक उधम शहीद होने से पहले कम से कम 1 या 10 डॉयरों से निपटेगा। इस तरह यदि उधम समूह में काम करने की बजाए अकेले-अकेले काम करते हैं तो जिन डॉयरों से वे निपटेंगे उनकी संख्‍या कहीं ज्‍यादा होगी।

यदि पहले वर्ष में, यदि 10 उधम तैयार होते हैं तो अनेक लोगों को प्रेरणा मिलेगी और वे उनके (10 के) कदमों/पदचिन्‍हों पर चलेंगे।

उधमों का खतरा सभी डॉयरों का साहस/मनोबल तोड़ कर रख देगा और तानाशाह तो मर ही जाएगा।

मैं और थोड़ा भी विस्‍तार से बताना नहीं चाहता। और मुझे ऐसा करने/विस्‍तार से बताने की जरूरत भी नहीं है – कोई भी बुद्धिमान पाठक समझ जाएगा कि मैंने क्‍या लिखा है।

 

(46.1) सबसे अहिंसक तरीका

मैं अहिंसा को पूरी तरह से समर्थन करता हूँ और हिंसा को पूरी तरह से विरोध करता हूँ | लेकिन मोहनभाई (मोहन चंद करम दस गाँधी) के पास कोई एकाधिकार/समस्त अधिकार नहीं है | खुले मन से , बिना किसी पक्ष के , किसी को फैसला/निर्णय करना चाहिए कि उसे मोहनभाई के अहिंसक तरीकों पर चलना है या उधम सिंह के अहिंसक तरीकों पर | हरेक को फैसला/निर्णय करने की छूट होनी चाहिए कि उसे कौन से अहिंसक तरीकों पर चलना है, जब तक कि वो अहिंसक तरीकों पर चल रहा है |

कुल मिलाकर, मैं मोहनभाई के चेलों के मोहनभाई के अहिंसक तरीकों को थोपने का विरोध करता हूँ कि ये ही केवल और केवल तरीके हैं |

क्या हिंसा है और क्या अहिंसा(किसी को ना मरने की भावना ) है, इसपर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे परिभाषा करते हैं | मेरे अनुसार, मोहनभाई के तरीकों से ज्यादा हिंसा हुई उधम सिंह और भगत सिंह जी के तरीकों के मुकाबले |

मोहनभाई ने बाद में लोगों को हथियार न रखने के लिए राजी किया ( हथियार चलाना तो भूल ही जाएये) जब कि 1931 में उसने और दूसरे कांग्रेसी नेताओं ने `हथियार रखने के लिए अधिकार` की मांग की थी | और लाखों लोग बंगाल में गरीबी से मर गए क्योंकि वे अंग्रेजों के लूट से अपने को बचा नहीं सके |और लाखों , निहत्थे लोग , अपने आपको बटवारे के दौरान हिंसक लोगों से बचा नहीं पाये, जिससे लाखों लोगों की जानें गयीं | दूसरे व्यक्ति के पास हथियार है, का डर ,हथियार से भी ज्यादा काम करता है | और इसीलिए ये स्थिति ज्यादा अहिंसक है , उस स्थिति के मुकाबले जिसमें केवल एक पक्ष के पास ही (वैध/`लिसेंसे के साथ`  या अवैध/`बिना लिसेंस) के` हथियार हैं |

`हथियार रखने का अधिकार 1931 में मोहनभाई, सरदार, नेहरु आदि कांग्रेसी द्वारा माँगा गया था, ये कई लोगों को सदमा(शौक)/हैरानी हो सकता है, लेकिन नीचे लिखी ,इसका सबूत है, जो `महात्मा गाँधी के एकत्र लेख ` नाम की पुस्तक से लिए गया है |  उसका लिंक ये है-

http://www.gandhiserve.org/cwmg/VOL051.PDF

उसमें पन्ना 327 देखें और आयटम संख्या 1(h) देखें –

“ लोगों के मूल अधिकार , जिसमें सम्मिलित है-

(a)सम्बन्ध रखने की स्वतंत्रता;
)b)भाषण/बोलने और प्रेस की स्वतंत्रता

….

(h) हथियार रखने का अधिकार , उसके लिए बनाये गए नियम और रोक के अनुसार ;


तो नेहरु, सरदार और गांधी ने “ हथियार रखने का अधिकार” को एक मूल/मुख्य अधिकार बनाने की मांग की थी | एक तरह से, इस का मतलब एक वायदा था , कि `हम हथियार रखने का अधिकार` को नागरिकों के लिए मूल अधिकार बनायेंगे यदि हम सट्टा में आये !!

खूब निभाया गया वायदा !

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कोई काम/क्रिया तभी अहिंसक है जब, लंबे समय में, उससे कम से कम हिंसा होती है | उदाहरण, यदि दावूद आता है, और आप उसको मार देते हो —तो आपने एक व्यक्ति को मारा |  क्या ये हिंसा लगती है ? देखिये, यदि आप उसे नहीं मारते, तो वो 1000 लोगों को बम से उड़ा देगा | और इसीलिए आपका दावूद को ना मरने के कार्य ने 1000 लोगों को मारा | तो क्या कम हिंसक है ? मेरे अनुसार, दावूद को मारना कम हिंसक है उसको छोड़ देने से | इसीलिए कि कौन सा तरीका कम अहिंसक है- मोहनभाई का तरीका या भगत सिंह का तरीका या उधम सिंह का तरीका या सुभाष चन्द्र बोसे का तरीका या मदन लाल का तरीका आदि, ये सब व्यक्ति की सोच पर निर्भर है | मेरे अनुसार, उधम सिंह का तरीका सबसे अधिक अहिंसक है |

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एक कार्यकर्ता को केवल अहिंसक तरीकों तक ही सीमित रहना चाहिए | उसे पहले ये साबित करना होगा कि बहुमत उसका प्रस्ताव का समर्थन कर रहा है | फिर , वो या तो महात्मा गाँधी के अहिंसक तरीके का चुनाव कर सकता है, या तो महात्मा उधम सिंह जी का या महात्मा भगत सिंह का या तो महात्मा सुभाष चन्द्र बोस का | मैं महात्मा उधम सिंह का तरीका सबसे अच्छा मानता हूँ- हरेक अपने दम पर ,आज़ाद हो कर ,काम करे |

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