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अध्याय 43 – कच्‍चे तेल को बाहर से मंगाना (आयात), विदेशी कर्ज कम करने के लिए `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ के प्रस्‍ताव

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कच्‍चा तेल खरीदने की नागरिकों की ताकत/क्षमता बढ़ जाएगी और वे कुछ हद तक मूल्‍य वृद्धि को सह सकेंगे। आईए, मैं इसे विस्‍तार से बताता हूँ।

पेट्रोल का अंतिम/निर्णायक मूल्‍य इनका जोड़/योग होता है – रॉयल्‍टी, टैक्‍स/कर (तेल), खोज/अन्‍वेषण की लागत, खुदाई, (तेल) साफ करने की लागत, यातायात/परिवहन की

लागत, खुदरा लागत, खोज(अन्‍वेषण) में कम्‍पनियों के लाभ, खुदाई, शोधन/साफ करना और खुदरा बिक्री। खुदाई में यदि साफ करने का कार्य स्‍थानीय तौर पर किया जाता है तो

प्रजा अधीन – हिन्‍दुस्‍तान पेट्रोलियम अध्‍यक्ष, प्रजा अधीन – तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम अध्‍यक्ष, प्रजा अधीन – पेट्रोलियम मंत्री का प्रयोग करने से यह पक्‍का हो सकता है कि ये

कम्पनियां बहुत ज्‍यादा लाभ नहीं कमा सकें और न ही वे पैसा(आमदनी) चुरा रहीं हैं । खुदाई और साफ करने की लागतों के दो मुख्‍य घटक हैं – वेतन और सामग्री/माल। ये लागत

छोटे समय/दौर के लि‍ए तय होते हैं – ये क्रमर‍हित तरीके से बदलते नहीं/भिन्‍न नहीं होते हैं। मैं कच्चे तेल और गैस के अंदरूनी/घरेलू उत्पादन पर टैक्‍स न लगाने का प्रस्‍ताव करता हूँ

और टैक्‍स के स्‍थान पर नागरिकों को केवल रॉयल्‍टी दिलवाना चाहता हूँ।

इसलिए रॉयल्‍टी निर्धारित/तय करने के लिए मैं किस प्रक्रिया का प्रस्‍ताव करता हूँ? खुदाई करने वाली कम्‍पनियां जैसे `तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम(ओ.एन.जी.सी) अंतरराष्‍ट्रीय

दामों/मूल्‍यों (और सीमा शुल्‍क/कस्‍टम ड्यूटी जोड़कर) पर हिन्‍दुस्‍तान पेट्रोलियम जैसी कच्‍चा तेल साफ करने वाली कम्‍पनी को बेचेगी और खुदाई की लागत और जिस दाम पर `तेल

शोधक कम्‍पनी` को कच्चा तेल बेचा जायेगा,इन दोनों का फर्क/अंतर, सरकार को मिलने वाली रॉयल्‍टी होगी जिसमें से 67 प्रतिशत भाग नागरिकों को जाएगा। अब कच्‍चा तेल

खुदाई कम्‍पनियों आदि को तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओ. एन. जी. सी.) से पैसा चुसकर अपने कर्मचारियों को ज्‍यादा वेतन देकर अथवा ठेकेदारों को ज्‍यादा भुगतान करने से

कौन रोकेगा? प्रजा अधीन – ओ एन जी सी अध्‍यक्ष और ओ एन जी सी के कर्मचारियों पर जूरी प्रणाली(सिस्टम)  लागू करने से यह सुनिश्‍चित होगा कि ऐसी घटनाएं/बातें न हों।

इसलिए, अब मान लीजिए, (खोज(अन्वेषण) की लागत + खुदाई की लागत + (तेल) साफ करने की लागत + परिवहन की लागत + खुदरा लागत आदि के बाद) प्रति लीटर पेट्रोल

10 रूपए है। अब मान लीजिए, घरेलू उत्‍पादन प्रति नागरिक प्रति महीने 20 लीटर है। और यदि बाहर से माल मंगाना (आयात) शून्‍य हो तो इस सप्लाई (आपूर्ति) स्‍तर पर बिक्री दाम

60 रूपए प्रति लीटर होगा। तो इसमें से 50 रूपए रॉयल्‍टी का होगा जो सेना और नागरिकों को 33 प्रतिशत और 67 प्रतिशत के अनुपात/सम्बन्ध में मिलेगा/जाएगा। रॉयल्टी से आय

चाहे जितनी भी हो यह प्रत्‍यक्ष(सीधे) रूप से या परोक्ष(टेढ़ा) रूप से एक सीमा तक की राशि का पेट्रोल नागरिकों के लिए “नि:शुल्‍क” खरीदने की ताकत/क्षमता के बराबर है।

 

(43.5) दूसरे देशों से तेल मंगाने (आयात) का प्रबंध इस तरह से करना कि तेल आयात करने के लिए जरूरी विदेशी पैसा / विनिमय सरकार

की जवाबदेही न बन जाए

दूसरे देश से मंगाया माल(आयात) के साथ समस्‍या यह है कि : विदेशी पैसा/मुद्रा का भार कौन सहेगा? कच्‍चे तेल के दूसरे देश से मंगाने (आयात) के लिए आवश्‍यक/जरूरी विदेशी मुद्रा/पैसा का प्रबंधन करने के लिए मेरा प्रस्‍ताव निम्‍नलिखित प्रकार से है:-

1.    कोई कम्‍पनी जो तेल खुदाई अथवा शोधन/सफाई के धंधे/व्‍यवसाय में है, उसे एक `पूरी तरह से भारतीय (नागरिक) मालिकी वाली कंपनी (डब्ल्यू. ओ. आई. सी.)` कम्‍पनी होना चाहिए।

2.    भारत में तेल खुदाई अथवा तेल शोधन/सफाई का व्‍यावसाय कर रही कोई कम्‍पनी डॉलर के रूप में कोई कर्ज नहीं ले सकती।

3.    कोई धंधा करने वाली(व्यापारी) कम्‍पनी कच्‍चा तेल या पेट्रोल का आयात(बहार से मंगाना) कर सकती है और इसे (तेल) शोधन कारखानों अथवा पेट्रोल थोक विक्रेता अथवा खुदरा विक्रेता को बेच सकती है। यह व्‍यापारी कम्‍पनी डॉलर के रूप में कर्ज ले भी सकती है या उसे ऐसा करने की जरूरत नहीं है।

4.    व्‍यापारिक कम्‍पनी प्रचलित/वर्तमान बाजार दाम/मूल्‍य पर किसी भी कम्‍पनी जिसे वह ठीक समझे, से डॉलर खरीद सकती है।

5.    धंधा करने वाली(व्‍यापारी) कम्‍पनी कच्‍चे माल पर खर्च किए गए धन/पैसे को घटाए जा सकने वाले खर्च के रूप में नहीं दिखा सकती है। और शोधक कम्‍पनियों को इसके द्वारा की जानेवाली सम्‍पूर्ण/सभी बिक्री को आय के रूप में माना जाएगा।

6.    सरकार चाहे तो कच्‍चे तेल अथवा शोधित/तैयार पेट्रोल पर `आयात-शुल्‍क` लगा सकती है।

      इस प्रकार तेल का बाहर से मंगाने(आयात करने) वाली कम्‍पनी को स्‍वयं डॉलर प्राप्‍त करना होगा, न की भारत सरकार से। बाहर से तेल मंगाने वाली(आयातक) कम्‍पनी को आखिरकार उन कम्‍पनियों से डॉलर प्राप्‍त करना होगा जो भारत से सामान दूसरे देश भेजती(निर्यात) करती है। यदि दूसरे देश माल भेजने(निर्यात) में गिरावट आती है तो स्‍वयं ही/खुद ही दूसरे देशों से तेल मंगाने वाली(आयातक) कम्‍पनियों को कम डॉलर मिलेंगे और इस तरह आयात में कमी आएगी, लेकिन भारत सरकार को तेल आयात (के कार्य) को सहायता करने के लिए कोई कर्ज लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

 

(43.6) कारखाने के बने माल को दूसरे देश भेजने (औद्योगिक निर्यात) को बढाना

1.    कामगार/मजदूर विरोधी, गरीब विरोधी बुद्धिजीवियों की पोल खोलना: अधिकांश बुद्धिजीवी विशिष्ट/ऊंचे लोगों के एजेंट होते हैं और इसलिए वे गरीबों को भारत सरकार के प्‍लॉटों से खनिज रॉयल्‍टी और जमीन का किराया दिए जाने का विरोध करते हैं। और दुखद बात यह है कि कार्यकर्ता समझते हैं कि ये बुद्धिजीवी लोग गरीब समर्थक, मजदूर-समर्थक (श्रमिक-हितैषी) हैं। मैं `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ के सदस्‍य के रूप में यह प्रस्‍ताव करता हूँ कि हमें कार्यकर्ताओं को यह बताना चाहिए कि ये बुद्धिजीवी लोग गरीब विरोधी, अमीर-समर्थक हैं और उसका प्रमाण यह है : वे भारत सरकार के प्‍लॉटों से मिलने वाला किराया गरीबों को दिए जाने का विरोध करते हैं।

2.    मजदूरों/श्रमिकों की सुरक्षा:  ‘नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ कानून सभी कामगारों को एक कम से कम (न्‍यूनतम) आमदनी देगा और इस तरह यह उन्‍हें शोषण(परोक्ष उपायों से किसी की कमाई या धन धीरे धीरे अपने हाथ में करना ) से बचाएगा।

3.    आसानी से नौकरी पर रखने-हटाने संबंधी (हायर-फायर) कानून : ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) ’ का प्रयोग करके भारत में आसानी से नौकरी पर रखने-हटाने (हायर-फायर) कानून लागू करवाया जाए।

श्रेणी: प्रजा अधीन