चलिए दो स्थितियों के बारे में बात करते हैं –
(1) अगर भारत में ऊपर का 5% पतिशत पैसेवाला,विशिष्ट वर्ग का बहुमत आम नागरिक के हित करने वाले कानूनों का समर्थन करे-
इस परिस्थिति में भारत के सामान्य नागरिकों को शक्ति मिल जायेगी और भ्रष्टाचार तथा गरीबी कम हो जायेगी| इस परिस्थिति में पैसेवालों को कुछ भी खोना नहीं पड़ेगा | उनकी जीवन शैली वेसी ही रहेगी | कोई भी पैसेवाला गरीब लोगों का शोषण किये बिना भी अपनी समृद्ध जीवन- शैली जी सकती है | अंबानी सात माले के अपने महेल में ही रहेंगे सिर्फ उनको थोडा सा ही टेक्स ज्यादा देना पड़ेगा क्योंकि संपत्ति कर तथा एम.आर.सी.एम. के कानून आ जाएँगे| उनको बडी आसानी से नौकरी करने वाले लोग मिल जायेंगे ,सिर्फ अंतर यही होगा की वो बहुत सस्ता/कौडियों के मोल नहीं मिलेगा | ज्यूरी सिस्टम तथा राईट टू रिकोल न्यायाधीश, मंत्रियो, पुलिस पर आने से कोर्ट के हालात में सुधार होगा | वो आम नागरिकों का शोषण नहीं कर पाएंगे लेकिन उनकी अमीरी में कोई अंतर नहीं पड़ेगा |
(2) अगर भारत में ऊपर 5% पतिशत पैसेवाला,विशिष्ट वर्ग का बहुमत आम नागरिक के हित करने वाले कानूनों का विरोध करते हैं और बहुराष्ट्रीय कंपनीओ द्वारा हो रही लूट को सक्रीयता/निष्क्रियता से समर्थन करेगा तो भारत बहुराष्ट्रीय कंपनियों की गुलाम हो जायेगा-
भारत फिर से गुलाम हो जायेगा| बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अंग्रेजों की तरह ही भारत को लूटेंगी| गरीब और गरीब हो जायेगा | लाखों लोग मर जायेंगे | लेकिन यह बहुराष्ट्रीय कंपनी अधिकतर अमीर लोगों को भी नहीं छोड़ेंगी | बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अमीर लोगो की कोई सगी नहीं हैं कि उनको छोड़ दे| अगर भारत फिर से बहुराष्ट्रीय कंपनीओ का गुलाम बन गया तो वो किसी भी समय अंबानी की सात माले के महल छीन सकती हैं और वो अंबानी को मजबूर करेगी की उनको ज्यादा कर/टैक्स भरना पड़े | पैसा ही अपराधियों तथा बहुराष्ट्रीय कंपनी का जाति या धर्म है | भारत में रोजगार बिलकुल भी न मिले ऐसा हो सकता है , अराजकता में इतनी वृद्धि होगी कि ईमानदार व्यक्ति नहीं मिलेगा, कोर्ट तथा पुलिस बहुराष्ट्रीय कंपनी की गुलाम बनकर कुछ कानून और व्यवस्था संभाल नहीं पाएगी | सब जगह गुंडा-राज होगा और अधिकतर पैसे वाले लोगों को ही उसमें ज्यादा भुगतना पड़ेगा क्योंकि उनके पास पैसा है |
इस तरह जनसाधारण-समर्थक कानूनों का विरोध करके, और जनसाधारण को कमजोर बनाकर ,भारत के पैसे वाले लोग बहुराष्ट्रीय कंपनीओ के दोस्त बन रहे हैं, लेकिन यह दोस्ती ज्यादा नहीं चलेगी | जैसे ही बहुराष्ट्रीय कंपनीओ के पास सेना, पुलिस तथा कोर्ट पर नियंत्रण आ जायेगा तो इन पैसे वाले लोगों को भी लूट लेंगे और कमजोर सेना और आम नागरिक भी देश की रक्षा नहीं कर पाएंगे | क्या यह पैसे वाले लोग बहुराष्ट्रीय कंपनियों से खुदको लुटने से बचा पाएँगे ? क्या एक आध परिवार के अलावा कोई बच पाएगा ? कोरिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, फिलिपाईन्स, इराक इसके जिवंत उदाहरण हैं जहा पर इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अमीर तथा गरीब किसी वर्ग के लोगों को नहीं छोड़ा |
पहले अंग्रेजों ने `फूट डालो और राज करो` की निति अपनाई, अभी यह बहुराष्ट्रीय कंपनी भारत के अमीर तथा गरीब वर्ग के बीच में वो ही निति अपना रहे हैं |
अभी यह भारत के अमीर लोगों पर है की वो कौन सी परिस्थिति देखना चाहते हैं तथा वो आम-नागरिक-समर्थक सामान्य कानूनों जैसे कि पारदर्शी शिकायत प्रणाली/सिस्टम (चैप्टर 1), `नागरिक और सेना के लिए खनिज रोयल्टी (आमदनी)`(एम.आर.सी.एम)., राईट टू रिकोल(आम नागरिकों का भ्रष्ट को बदलने का अधिकार )(चैप्टर 6) के क़ानून-ड्राफ्ट , ज्यूरी सिस्टम (भ्रष्ट को सज़ा देने का आम नागरिकों का अधिकार) (चैप्टर 7,21) का विरोध या समर्थन करते हैं |
नोट – हमें कोई भी अमीर से या किसी और से, किसी भी प्रकार के दान की आवश्यकता नहीं है | सिर्फ सभी लोगों का कुछ समय चाहिए ये सब कानूनों का प्रचार करने के लिए | हम दान के सख्त खिलाफ हैं |
समीक्षा प्रश्न
1 `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी समूह` द्वारा हां अथवा नहीं दर्ज करने के लिए प्रस्तावित शुल्क कितना है ?
2 मान लीजिए हमारे द्वारा मांगी गई प्रथम सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर प्रधानमंत्री हस्ताक्षर कर देता है । मान लीजिए, 65 करोड़ दर्ज मतदाता आई पी सी 498 ए पर ना दर्ज करते हैं । तो क्या प्रथम सरकारी अधिसूचना(आदेश) के अनुसार यह कानून स्वत: रद्द हो जाएगा?
3 मान लीजिए, 35 करोड़ नागरिक किसी कानून पर ना दर्ज करते हैं। तो उनके द्वारा किया गया पैसों का खर्च कितना होगा?
4 मान लीजिए, औसतन, कोई नागरिक ऐसे 100 कानूनों पर हां /नहीं दर्ज करता है जिसे वह पसंद/नापसंद करता है। तो उपयोग किए गए कुल समग्र घरेलू उत्पाद (जी डी पी) का प्रतिशत क्या होगा? औसतन इस कार्य को पूरा करने के लिए कितने क्लर्कों की जरूरत होगी?
5 मान लीजिए, किसी प्रस्तावित सरकारी अधिसूचना(आदेश) को 51 प्रतिशत नागरिकों द्वारा अनुमोदित कर दिया जाता है तो क्या यह कानूनन अनिवार्य होगा कि प्रधानमंत्री इस सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर ह्स्ताक्षर करे?
6 मान लीजिए, कोई नागरिक 15 पृष्ठों की सरकारी अधिसूचना(आदेश) का प्रस्ताव प्रस्तुत करता है। दर्ज करने की लागत क्या होगी?
7 मान लीजिए, 40 करोड़ जनता किसी सरकारी अधिसूचना(आदेश) का अनुमोदन/स्वीकृति करती है। तो किया गया कुल खर्च कितना होगा?
अभ्यास
1. कृपया इस पाठ का अनुवाद अपनी मातृभाषा में करें।
2. स्वीट्जरलैण्ड, अमेरिका आदि देशों में तब के लोगों के शिक्षा के स्तर पर जानकारी जुटाएं जब उन्होंने जनमत-संग्रह समाज का का चलन शुरू किया था।
3. पिछले पांच वर्षों में कितने लोगों को धारा 498 ए के तहत कारावास की सजा हुई ? आपके अनुमान के अनुसार उन्हें कितना समय और पैसा खर्च करना पड़ा? आपके अनुमान के अनुसार, इन मुकद्दमों में पुलिसवालों और वकीलों ने कितना पैसा बनाया होगा? पुलिसवालों के बनाए पैसों में से कितना मंत्रियों, विधायकों और सांसदों को गया होगा?
4. क्या आप किसी ऐसे विधायक, सांसद को वोट देंगे जो खुले आम कहता है कि वह नागरिकों को हां/नहीं दर्ज करने की अनुमति नहीं देगा?
5. कृपया आप जिन मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री और पार्टी का समर्थन करते हैं उन्हें फोन कीजिए और उनका जवाब मांगिए कि क्यों वे इस आम लोगों की मांग का विरोध कर रहे हैं और हमें उनके बनाए कानूनों पर हां/नहीं दर्ज करने की अनुमति नहीं देते।