सूची
- (3.1) `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली (सिस्टम)` में बाद में जोड़े गए अंश जो इसे सुरक्षित बनाते हैं
- (3.2) क्या नागरिक हजारों बार केवल हां-नहीं ही दर्ज करवाते रहेंगे?
- (3.3) क्यों प्रमुख बुद्धिजीवी इस `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) – सरकारी अधिसूचना(आदेश) की मांग का विरोध करते हैं?
- (3.4) नागरिकों से हमारा अनुरोध
- (3.5) `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)` और नौकरियों में आरक्षण
- (3.6) क्यों हम पहले कदम के रूप में `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)` जैसे छोटे परिवर्तन की मांग कर रहे हैं?
- (3.7) क्या अमीर लोग हमारे नागरिकों को खरीदने में सफल नहीं हो जाएंगे?
- (3.8) भारत के अमीर वर्ग की गलतफहमी से उनके जनसाधारण-समर्थक कानूनों का विरोध
सूची
- (3.1) `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली (सिस्टम)` में बाद में जोड़े गए अंश जो इसे सुरक्षित बनाते हैं
- (3.2) क्या नागरिक हजारों बार केवल हां-नहीं ही दर्ज करवाते रहेंगे?
- (3.3) क्यों प्रमुख बुद्धिजीवी इस `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) – सरकारी अधिसूचना(आदेश) की मांग का विरोध करते हैं?
- (3.4) नागरिकों से हमारा अनुरोध
- (3.5) `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)` और नौकरियों में आरक्षण
- (3.6) क्यों हम पहले कदम के रूप में `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)` जैसे छोटे परिवर्तन की मांग कर रहे हैं?
- (3.7) क्या अमीर लोग हमारे नागरिकों को खरीदने में सफल नहीं हो जाएंगे?
- (3.8) भारत के अमीर वर्ग की गलतफहमी से उनके जनसाधारण-समर्थक कानूनों का विरोध
`जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली (सिस्टम)` पर कुछ और बातें |
(3.1) `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली (सिस्टम)` में बाद में जोड़े गए अंश जो इसे सुरक्षित बनाते हैं |
आगे चलकर, इस प्रस्ताव में निम्नलिखित विशेषताएं/अच्छाइयां जोड़ी जाएंगी जिसके गुण फर्जी मतदान को कम करने और इस तर्क का जवाब देने के लिए काम आएंगे कि इसमें फर्जी मतदान होगा और इसलिए इस प्रक्रिया/तरीके को कभी अस्तित्व में नहीं आने देना चाहिए—
1. नागरिकों की अंगुलियों के निशान (फिंगर प्रिंट्स) कम्प्यूटर में होंगे ताकि कम्प्यूटर अंगुलियों के निशान का उपयोग मतदान करने वाले मतदाता की पहचान के लिए कर सके।
2. पटवारी का कम्प्यूटर एक कैमरे से जुड़ा होगा ताकि वह नागरिकों की तस्वीर और फिंगर-प्रिन्ट को स्कैन कर ले और इसे स्टोर करके हां-नहीं रसीद पर डाल दे। इस प्रकार यदि कोई व्यक्ति बहुत से हां-नहीं दर्ज करेगा तो उसकी पहचान करना और उसे गिरफ्तार करना संभव हो जाएगा।
3. नागरिक को एक पासबुक दिया जाएगा जिसमें उसके द्वारा दर्ज किए गए सभी हां-नहीं की सूची होगी । इसलिए यदि कोई अन्य व्यक्ति फर्जी रूप से स्वयं को वह नागरिक बताकर हां-नहीं दर्ज करता है तो उस नागरि-मतदाता को पता चल जाएगा।
4. प्रत्येक नागरिक को हर महीने एक विवरण-पत्र मिलेगा जिसमें उसके द्वारा पिछले छह महीने में दर्ज किए गए हां-नहीं की सूची होगी । इसलिए यदि किसी फर्जी व्यक्ति ने हां-नहीं दर्ज कराया है तो विवरण से असली मतदाता नागरिक को इसका पता चल जाएगा।
5. यदि कोई नागरिक चाहे तो वह अपना मोबाइल फोन नम्बर दर्ज करा सकता है और जब भी वह हां-नहीं दर्ज करेगा, उसे एक एसएमएस प्राप्त होगा । इस तरह, यदि कोई ढोंगी व्यक्ति उसका छद्म रूप बनाकर हां-नहीं दर्ज कराता है तो उस नागरिक को इस बारे में तुरंत पता चल जाएगा।
6. यदि नागरिक चाहे तो वह अपना ई-मेल पता दर्ज करा सकता है और जब भी वह हां-नहीं दर्ज करेगा , उसे ईमेल संदेश प्राप्त होगा। इस तरह यदि कोई ढोंगी व्यक्ति छद्म रूप से उसका वेश बनाकर हां-नहीं दर्ज कराता है तो उस नागरिक को इस बारे में तुरंत पता चल जाएगा।
जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली – सरकारी अधिसूचना(आदेश) के लिए प्रत्येक शपथपत्र अथवा प्रत्येक प्रस्तावित कानून पर हां-नहीं दर्ज कराने की जरूरत नहीं है और नागरिकों से ऐसी आशा भी नहीं की जाती है और न ही इसका मतलब है कि सांसद, विधायक कोई और कानून नहीं बना सकते – वे ऐसा कर सकते हैं जैसा कि वे अभी करते हैं। जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली – सरकारी अधिसूचना(आदेश) का अर्थ केवल यह है कि यदि कोई नागरिक किसी कानून के संबंध में सरकारी वेबसाइट पर हां-नहीं दर्ज कराना चाहता है तो सरकार उसका रास्ता नहीं रोकेगी और सरकार उसकी हां-नहीं सरकारी वेबसाइट पर दर्ज कर लेगी । अपने सभी लोग यहां के हजारों कानूनों में से सभी कानूनों पर हां-नहीं दर्ज नहीं करेंगे। लेकिन कुछ प्रतिशत लोग लगभग 100-200 कानूनों पर हां-नहीं दर्ज कर सकते हैं और कुछ प्रतिशत लोग डी.वी.ए ,498 ए आदि कानूनों के लिए काफी उंचे जा सकते हैं । यह कुछ प्रतिशत हां अथवा नहीं उस कानून के पक्ष में अथवा विपक्ष में एक शक्तिशाली आन्दोलन तैयार कर सकता है। जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली – सरकारी अधिसूचना(आदेश) केवल एक अतिरिक्त राय का सृजन करता है । नागरिकगण अधिकांश कानूनों के लिए विधायकों, सांसदों पर निर्भर हो सकता है और किन्हीं कानूनों को रद्द करने की मांग कर सकता है लेकिन कई बार ऐसा होता है जब सांसद विधायक सूनने से मना कर देते हैं उदाहरण के लिए नागरिकों की बहुमत चाहती है कि 498 ए और डी वी ए रद्द हो जाए लेकिन सांसद, विधायक इस कानून पर अड़े हैं क्योकि यह कानून पुलिसवालों को बहुत घूस/रिश्वत दिलवाता है और विधायकों, सांसदों को आई पी एस अधिकारियों के जरिए इन घूसों में हिस्सा मिलता है। इसी प्रकार लगभग सभी आम लोगों की ही तरह मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि जजों, प्रोफेसरों, पुलिसवालों और छात्रों के भारतीय प्रबंधन संस्थान में भर्तियों के दौरान साक्षात्कार/इंटरवू पर रोक होनी चाहिए। लेकिन सभी सांसद, विधायक और बुद्धिजीवी वैसे कानून पर अड़ जाते हैं जो साक्षात्कार को बढ़ावा देते हैं । वे लोग साक्षात्कारों का समर्थन करते हैं क्योंकि यह उन्हें घूस/रिश्वत वसूल करने में मदद करता है, उनके संबंधियों को भर्ती में फायदा पहुंचाता है और मेधावी लेकिन “वैचारिक असुविधाजनक “ वाले लोगों को निकाल बाहर करता है। यही वह समय होता है जब यदि नागरिकों के पास कानूनों पर हां-नहीं दर्ज कराने की प्रक्रिया/तरीके का विकल्प होता है तो वे इसका प्रयोग करने में समर्थ होते हैं । जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली सरकारी अधिसूचना(आदेश) की इस मांग के लिए हजारों-करोड़ों रूपए की जरूरत नहीं और न ही इसके लिए हजारो स्टाफॅ को काम पर लगाने या हजारों भवन अथवा सड़क की जरूरत है। और नागरिकों द्वारा बताए हुए हमारे संविधान के अनुसार मुख्य मंत्री को इस परिवर्तन को लाने के लिए विधायकों के अनुमोदन/स्वीकृति की भी जरूरत नहीं पड़ती । तो भी सभी दलों के सांसद और सभी प्रमुख बुद्धिजीवी इस प्रस्तावित सरकारी अधिसूचना(आदेश) के दुश्मन हैं। सभी दलों के नेताओं ने इस प्रस्ताव से घृणा किया और और उनके मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री ने इस सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर हस्ताक्षर करने की हमारी मांग पूरी न करने की कसम खाई हुई है। भारत के सभी प्रमुख बुद्धिजीवियों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है और प्रधानमंत्री एवं मुख्य मंत्रियों से इस जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर हस्ताक्षर न करने को कहा है । आखिर क्यों? परिवर्तन की प्रक्रिया तब मूर्त रूप लेती है जब करोड़ों नागरिक बदलाव चाहते हैं और रोके से नहीं रूकते जब इन सभी करोड़ों नागरिकों को पता होता है कि करोड़ो साथी नागरिक उनके साथ हैं। मैं अपने इस वाक्य को दोहराता हूँ क्योंकि ये वाक्य उन सभी बड़े बदलाव का आधार— है जिन्हें नागरिकों ने पिछले 3000 वर्षों में लाया है। “यह बदलाव की प्रक्रिया तब होती है जब करोड़ों नागरिक सहमत हो जाते हैं और उन करोड़ों नागरिकों को यह पता होता है कि साथी करोड़ों नागरिक उनके साथ सहमत हो गए हैं ” करोड़ों नागरिक का यह जानना कि करोड़ों साथी नागरिक क्या चाहते है, यही राजनीतिक अंकगणित का शून्य है। ये बुद्धिजीवी और पत्रकार हमेशा हरेक आम लोगों को सन्देश देने की कोशिश करते रहते हैं कि वह अकेला है और बाकी करोड़ों आम आदमी जागरूक नहीं हैं और सो रहे है । यहजनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली न केवल लोगों को किसी प्रस्तावित बदलाव के लिए हां/ना दर्ज करने को अधिकार देता है बल्कि यदि करोड़ों लोग बदलाव लाने पर सहमत हो गए हैं, तो उन सबको पता चल जाता है कि करोड़ों अन्य लोग भी बदलाव चाहते हैं। यह प्रक्रिया मीडिया मालिकों को यह अफवाह फैलाने का मौका नहीं देता कि लोग परवाह नहीं करते। जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली मीडिया मालिकों की करोड़ों नागरिकों की प्राथमिकताओं की छवि को तोड़ मरोड़कर पेश करने की ताकत कम कर देता है। मैं प्रजा अधीन राजा समूह के सदस्य के रूप में यह शपथ लेता हूँ कि किसी भी पार्टी के लिए 5 वर्षों तक मुफ्त में प्रचार करूँगा और कर अदा की हुई अपनी गाढ़ी कमाई का 10 लाख रुपया खर्च करूँगा उस पार्टी के अभियान के लिए कि प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्रीजनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली कानून पर हस्ताक्षर करे। मैं इस जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली चाहता हूँ। चुनाव जीतना मेरा लक्ष्य नहीं है | मैं नहीं चाहता लोग मुझे वोट देने की तकलीफ उठाएं – मैं नागरिकों से केवल यही चाहता हूँ कि वे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों से इस सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर हस्ताक्षर करने की मांग करें। मैं लोगों से प्रजा अधीन राजा समूह के किसी उम्मीदवार को वोट देने को तब कहूंगा यदि और केवल यदि वो सचमुच जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली चाहते हैं और वे इस बात से संतुष्ट हों कि अन्य दलों के मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री इसपर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली हमारी प्रजा अधीन राजा समूह के राजनीतिक आन्दोलन का केंद्र है जो भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था को सुधारना चाहता है और हमारी प्रजा अधीन राजा समूह का दावा है : – नागरिकों द्धारा प्रधानमंत्री को जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य करने के बाद सिर्फ 4 महीनों के अन्दर गरीबी कम हो जाएगी और पुलिस, न्यायालय और शिक्षा से भ्रष्टाचार लगभग खत्म हो जायेगा और नागरिकों द्धारा प्रधानमंत्री को जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य करने के 10 वर्षों के अन्दर भारत प्रौद्योगिकी, अर्थव्यवस्था और सेना के मामले में पश्चिमी देशों के समकक्ष आ जाएगा। मैं अपने इस दावे को एक बॉक्स में दोहराता हूँ : `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)` का मेरा दावा :- नागरिकों द्धारा प्रधानमंत्री को जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य करने के बाद सिर्फ 4 महीनों के अन्दर गरीबी कम हो जाएगी और गरीबी से होने वाली मौंतें नगण्य हो जाएंगी और भारत के पुलिस, न्यायालय और शिक्षा में भ्रष्टाचार लगभग समाप्त हो जायेगा: और नागरिकों द्धारा प्रधानमंत्री को जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य करने के 10 वर्षों के अन्दर भारत प्रौद्योगिकी, अर्थव्यवस्था और सेना के मामले में पश्चिमी देशों के समकक्ष आ जाएगा। हम लोग सभी नागरिकों से निम्न प्रार्थना करते है :- 1. कृपया कुछ समय निकालकर जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रस्ताव पढ़ें जिसे मैंने प्रस्तावित किया है 2. कृपया जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली का अनुवाद अपनी मातृभाषा में करें जिस से यह सुनिश्चित हो सके कि आप जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली ज्यादा अच्छी तरह से समझते हैं 3 अगर आप जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली से नफरत करते है तो आप जा सकते हैं, हमारे पास आपको देने के लिए कुछ नहीं है – मेरे सभी प्रस्ताव जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर आधारित हैं। 4 जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट अगर आपको पसंद है, तो –(3.2) क्या नागरिक हजारों बार केवल हां-नहीं ही दर्ज करवाते रहेंगे?
(3.3) क्यों प्रमुख बुद्धिजीवी इस `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) – सरकारी अधिसूचना(आदेश) की मांग का विरोध करते हैं?
(3.4) नागरिकों से हमारा अनुरोध
अगर ये सभी जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्ताक्षर करने से मना कर दें तो मैं प्रधानमंत्री , मुख्यमंत्रियों को जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव बनाने का अनुरोध करूंगा और आपसे अनुरोध करूंगा कि आप प्रजा अधीन राज समूह के उम्मीदवार को वोट दें।
(3.5) `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)` और नौकरियों में आरक्षण |
मैं कुछ वर्षों से इस प्रस्ताव का प्रचार करता रहा हूँ जो लोगों को अधिकार देता है कि वे सरकारी वेबसाइट पर लिख सकें। मैं ऊँची जाति के अनेक युवाओं से एक वैध/जायज प्रश्न सुनता हूँ कि ‘क्या जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली से आरक्षण में वृद्धि नहीं होगी? क्या अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जाति इस सरकारी अधिसूचना(आदेश) का इस्तेमाल करके ज्यादा आरक्षण कि मांग नहीं करेंगे? इसका उत्तर है – नहीं।
वास्तव में, इससे आरक्षण कम होगा, क्योंकि दलित जाति के गरीब, अनुसूचित जाति के गरीब और पिछड़ी जाति के गरीब लोग “आर्थिक विकल्प बनाम आरक्षण” कानून का समर्थन करेंगे जिसका प्रस्ताव मैने ‘राजा अधीन प्रजा समूह का आरक्षण के मुद्दे पर विचार/स्टैण्ड’ अध्याय में किया है। इस कानून के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जाति के किसी व्यक्ति के पास यह विकल्प होगा कि वह आरक्षण के बदले 600 रुपये प्रति वर्ष ले सकता है। इसलिए यदि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जाति के 80% व्यक्ति आर्थिक/पैसे की मदद लेते हैं तो कुल आरक्षण 50% से कम होकर 10% रह जाएगा।
इस अध्याय में प्रस्तावित कानून को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जाति के उन 80% से ज्यादा लोगों का समर्थन मिलेगा जो गरीब हैं और 12 कक्षा तक भी नहीं पंहुच सकते और इससे जाति आधारित कुल आरक्षण में कमी आएगी। इसलिए यदि कोई यह चिंता करता है कि जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली से आरक्षण बढ़ेगा, तो वह गलती पर है। इस प्रकार, जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली हमें “आर्थिक विकल्प बनाम आरक्षण” की ओर ले जाएगा जिससे आरक्षण में कमी आएगी।
(3.6) क्यों हम पहले कदम के रूप में `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)` जैसे छोटे परिवर्तन की मांग कर रहे हैं? |
मेरे अंतिम उद्देश्य आम जनता को खनिज रॉयल्टी दिलाना है, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया दिलाना है, इत्यादि। लेकिन मेरी पहली मांग बहुत छोटी है – हम सर्वसाधारण लोगों को हाँ-ना दर्ज कराने का अधिकार मिले और वह भी ऐसे कि हाँ-ना का कोई कानूनी वजन नहीं है, इसलिए हालांकि हमारे कार्यसूची में अन्य शासनिक बदलाव शामिल हैं तो भी मेरी पहली मांग बहुत छोटी (मामूली) है । मैं नागरिकों से इस मामूली से बदलाव के लिए क्यों कह रहा हूँ ?
क्योंकि यदि हम नागरिक किसी बड़े बदलाव की मांग करेंगे तो हमें मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और बुद्धिजीवियों को वर्षों का समय देना पड़ेगा। यदि सर्वसाधारण बड़े बदलाव की मांग करता है जैसे रोजगार या गरीबी का पूर्ण उन्मूलन अथवा इसी प्रकार के बदलाव, तो इससे नेता को स्वत: ही महीनों और वर्षों का समय लेने का बहाना मिल जाएगा। इन लम्बे वर्षों में मुख्यमंत्री, बुद्धिजीवी कुछ भी नहीं करेंगे और हमारा लम्बा समया बेकार हो जाएगा ।
साथ ही जब कोई नेता किसी छोटे बदलाव से मना करता है तो कार्यकर्ताओं के लिए उसके विरूद्ध आन्दोलन के लिए लोगौं को इकट्ठा करना आसान हो जाएगा। नेताओं से बड़े बदलाव के लिए न कहकर छोटे बदलाव के लिए कहें और जब नेता, बुद्धिजीवी उस छोटे बदलाव को लागू करने से मना करता है तो नि:स्वार्थ कार्यकर्ताओं के लिए आम लोगों और आम लोगों के समर्थकों को इस बात पर संतुष्ट करना संभव हो जाएगा कि नेता,उच्चवर्गीय लोग और बुद्धिजीवी भ्रष्ट हैं।
(3.7) क्या अमीर लोग हमारे नागरिकों को खरीदने में सफल नहीं हो जाएंगे? |
एक प्रश्न जिसका सामना मुझे अक्सर करना पड़ता है – क्या अमीर लोग हमारे नागरिकों को खरीदने में सफल नहीं हो जाएंगे?
इसे एक उदाहरण से समझिए , मान लीजिए मैं एक सरकारी अधिसूचना(आदेश), विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) अधिनियम 2005 को रद्द करने का प्रस्ताव करता हूँ।
मान लीजिए भारत में 72 करोड़ मतदाता हैं । इस प्रकार प्रस्तावित सरकारी अधिसूचना(आदेश) को सफल होने के लिए लगभग 37 करोड़ नागरिक मतदाता से हां की जरूरत पड़ेगी । निश्चित तौर पर सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोग यह सुनिश्चित करने के लिए सैंकड़ो करोड रूपए खर्च करने का निर्णय कर सकते हैं कि इस प्रस्ताव को 37 करोड़ हां न मिल सके । क्या उनका रूपए मदद करेगा?
1 अब यदि यह प्रस्ताव 38 करोड़ नागरिकों के कानों तक पहुंचने में असफल रहता है तो यह असफल होगा लेकिन सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों के रूपए के कारण कदापि नहीं।
2 यदि यह प्रस्ताव 10 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं तक पहुंचता है और उन्होंने हां दर्ज करने से मना कर दिया तो यह असफलता सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों के कारण नहीं मिली।
3 मान लीजिए कुछ प्रस्ताव 50 करोड़ से 70 करोड़ मतदाताओं तक पहूंच ही गया । मान लीजिए लगभग 45 करोड़ मतदाताओं ने हां दर्ज करने का निर्णय लिया अर्थात सेज अधिनियम रद्द किया जाये |
4 अब सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों के लिए क्या यह संभव हो पाएगा कि वे 50 अथवा हजार रूपए या कुछ भी खर्च करें ताकि लगभग चार करोड़ मतदाता हां दर्ज न करें ?
मान लीजिए कि सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोग यह देखते हैं कि लगभग 40 करोड़ नागरिक सेज रद्द करो के प्रस्ताव पर हां रजिस्टर करने वाले हैं । मान लीजिए सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोग 5 करोड़ मतदाताओं को घूस/रिश्वत देने का निर्णय करते हैं और उन्हें हां दर्ज न करने को कहते हैं । मान लीजिए वे प्रति मतदाता 100 रूपए देने का प्रस्ताव देते हैं । यदि वे ऐसा करते हैं तो प्रत्येक नागरिक 100 रूपए की मांग करेगा और इसलिए सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों को सभी 75 करोड़ नागरिकों को 100-100 रूपए देने होंगे और इस प्रकार उनका 7200 करोड़ रूपया खर्च हो जाएगा। पर क्या यह कहानी यहीं खत्म हो जाएगी। नहीं !
मान लीजिए सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोग 72 00 करोड़ रूपए खर्च करते हैं और आम लोगों को इस प्रस्ताव पर हां दर्ज करने से रोकने में सफल हो जाते हैं तो मुझे बस इतना भर करने की जरूरत है कि मैं अपने मित्रों में से एक मित्र को कहूँगा कि वह सेज अधिनियम 2005 को खत्म करो का प्रस्ताव कुछ शब्दों को बदलकर प्रस्तुत कर दे । अब लोगों को इस नए प्रस्ताव पर हां दर्ज करना है आखिरकार यह एक नया प्रस्ताव है। पहले प्रस्ताव के लिए खर्च किया गया पैसा गिनती में नहीं आएगा। इसलिए सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों को 7200 करोड़ रूपए फिर से देना होगा ।यदि वे ऐसा कर भी लेते हैं तो मैं अपने एक और मित्र को कुछ शब्दों को बदलकर एक तीसरा प्रस्ताव प्रस्तुत करने को कह सकता हूँ।
अब या तो इस तीसरे प्रस्ताव पर नागरिक हां दर्ज करेंगे अथवा सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों से एक और सौ रूपए की मांग करेंगे । कुछ ही महीने में सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोग पीढ़ियों से जमा किए गए धन और सम्पत्ति से हाथ धो बैठेंगे। भारत में सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों की पूरी दौलत 100000000 करोड़ रूपए से ज्यादा नहीं होगी |
यदि वे आम जनता हितैषी और सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों के विरोधी प्रस्ताव को प्रति मतदाता सौ रूपए खर्च करके रोकने का निर्णय करते हैं तो लागत प्रति प्रस्ताव 7200 करोड़ रूपए होगी और छह महीने के भीतर 2000 ऐसे प्रस्ताव जिसमें मुझे और मेरे दास्तों को केवल 20000 रूपए की लागत आएगी, दर्ज करने से सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों का सारा धन छह से आठ महीने के भीतर उड़ जाएगा। उच्चवर्गीय लोग हानि-लाभ का ध्यान रखकर काम करते हैं ।
वे लोग इस प्रकार अपना धन बरबाद नहीं करेंगे जिससे कुछ ना मिले। दूसरे शब्दों में, `जनता की आवाज` यह सुनिश्चित करेगा कि नागरिकों को दिया गया घूस/रिश्वत पैसे को बरबाद करता है और इसका कोई लाभप्रद नतीजा नहीं निकलेगा। इसलिए किसी व्यक्ति का यह दावा करना कि जनता की आवाज कोई ऐसी चीज है जिसे सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोग खरीद सकते हैं, केवल यही दर्शाता है कि वह व्यक्ति अर्थात जीवन की गणित से निराशाजनक रूप से अनजान/अनभिज्ञ है । `जनता की आवाज` धन की ताकत का रोग प्रतिरोधक है क्योंकि यह नागरिकों को किसी प्रस्ताव को बार-बार और बार-बार दर्ज करने का विकल्प देता है और इस प्रकार बार-बार और बार-बार पैसा जमा करता है। निश्चित रूप से यह व्यवहारिक नहीं है।
(3.8) भारत के अमीर वर्ग की गलतफहमी से उनके जनसाधारण-समर्थक कानूनों का विरोध |
भारत बहुराष्ट्रीय कंपनी का दास या गुलाम बनने की रह पर है| पहले से ही बहुराष्ट्रीय कंपनी 50% या अधिक तो कामयाब (सफल) हो गयी है| बहुराष्ट्रीय कंपनी ने पूरी तरह से भारत को प्रौद्योगिकी/तकनीकी क्षेत्र में उनपर निर्भर बना दिया है , कृषि या खेती में आंशिक रूप से एवम रक्षा, सैन्य और युद्ध क्षेत्र में अपने ऊपर पूरी तरह से आश्रित या आधीन कर लिया है|
भारत में पैसेवाला विशिष्ट वर्ग का बहुमत ,आम नागरिको का अहित करने वाले कानूनों जैसे कि `पारदर्शी शिकायत प्रणाली के बिना जन-लोकपाल` का समर्थन करके तथा `भ्रष्ट अधिकारी को नौकरी में से निकालने की प्रक्रिया` (राइट टू रिकोल)(चैप्टर 6 देखें) का विरोध करके, कोर्ट, न्यायलय/कोर्ट में आम नागरिकों द्वारा भ्रष्ट को सजा देने का अधिकार (ज्यूरी सिस्टम)(चैप्टर 21 देखें), `नागरिक और सेना के लिए खनिज रोयल्टी (आमदनी)`(चैप्टर 5 देखें) का विरोध करके बहुराष्ट्रीय कंपनी की यह दासता (गुलामी) आगे बढा रहे हैं|
हम मानते हैं की भारत में ऊपर का 5% पतिशत, पैसेवाला ,विशिष्ट वर्ग का बहुमत यह सब भारत के गरीब लोगों को दबाकर रखने के लिए कर रहा है जिससे उन पैसे वाले लोगों को सस्ते दाम पर काम या नौकरी करने वाले लोग मिलें और उनका शोषण कर सके जिससे उनकी आने वाली पुश्तें आराम से जी सकें लेकिन पैसेवाला बहुमत वर्ग की यह सोच एक दम गलत है और ये उनकी गलतफहमी है ये दिखाना चाहेंगे |
चलिए दो स्थितियों के बारे में बात करते हैं –
(1) अगर भारत में ऊपर का 5% पतिशत पैसेवाला,विशिष्ट वर्ग का बहुमत आम नागरिक के हित करने वाले कानूनों का समर्थन करे-
इस परिस्थिति में भारत के सामान्य नागरिकों को शक्ति मिल जायेगी और भ्रष्टाचार तथा गरीबी कम हो जायेगी| इस परिस्थिति में पैसेवालों को कुछ भी खोना नहीं पड़ेगा | उनकी जीवन शैली वेसी ही रहेगी | कोई भी पैसेवाला गरीब लोगों का शोषण किये बिना भी अपनी समृद्ध जीवन- शैली जी सकती है | अंबानी सात माले के अपने महेल में ही रहेंगे सिर्फ उनको थोडा सा ही टेक्स ज्यादा देना पड़ेगा क्योंकि संपत्ति कर तथा एम.आर.सी.एम. के कानून आ जाएँगे| उनको बडी आसानी से नौकरी करने वाले लोग मिल जायेंगे ,सिर्फ अंतर यही होगा की वो बहुत सस्ता/कौडियों के मोल नहीं मिलेगा | ज्यूरी सिस्टम तथा राईट टू रिकोल न्यायाधीश, मंत्रियो, पुलिस पर आने से कोर्ट के हालात में सुधार होगा | वो आम नागरिकों का शोषण नहीं कर पाएंगे लेकिन उनकी अमीरी में कोई अंतर नहीं पड़ेगा |
(2) अगर भारत में ऊपर 5% पतिशत पैसेवाला,विशिष्ट वर्ग का बहुमत आम नागरिक के हित करने वाले कानूनों का विरोध करते हैं और बहुराष्ट्रीय कंपनीओ द्वारा हो रही लूट को सक्रीयता/निष्क्रियता से समर्थन करेगा तो भारत बहुराष्ट्रीय कंपनियों की गुलाम हो जायेगा-
भारत फिर से गुलाम हो जायेगा| बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अंग्रेजों की तरह ही भारत को लूटेंगी| गरीब और गरीब हो जायेगा | लाखों लोग मर जायेंगे | लेकिन यह बहुराष्ट्रीय कंपनी अधिकतर अमीर लोगों को भी नहीं छोड़ेंगी | बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अमीर लोगो की कोई सगी नहीं हैं कि उनको छोड़ दे| अगर भारत फिर से बहुराष्ट्रीय कंपनीओ का गुलाम बन गया तो वो किसी भी समय अंबानी की सात माले के महल छीन सकती हैं और वो अंबानी को मजबूर करेगी की उनको ज्यादा कर/टैक्स भरना पड़े | पैसा ही अपराधियों तथा बहुराष्ट्रीय कंपनी का जाति या धर्म है | भारत में रोजगार बिलकुल भी न मिले ऐसा हो सकता है , अराजकता में इतनी वृद्धि होगी कि ईमानदार व्यक्ति नहीं मिलेगा, कोर्ट तथा पुलिस बहुराष्ट्रीय कंपनी की गुलाम बनकर कुछ कानून और व्यवस्था संभाल नहीं पाएगी | सब जगह गुंडा-राज होगा और अधिकतर पैसे वाले लोगों को ही उसमें ज्यादा भुगतना पड़ेगा क्योंकि उनके पास पैसा है |
इस तरह जनसाधारण-समर्थक कानूनों का विरोध करके, और जनसाधारण को कमजोर बनाकर ,भारत के पैसे वाले लोग बहुराष्ट्रीय कंपनीओ के दोस्त बन रहे हैं, लेकिन यह दोस्ती ज्यादा नहीं चलेगी | जैसे ही बहुराष्ट्रीय कंपनीओ के पास सेना, पुलिस तथा कोर्ट पर नियंत्रण आ जायेगा तो इन पैसे वाले लोगों को भी लूट लेंगे और कमजोर सेना और आम नागरिक भी देश की रक्षा नहीं कर पाएंगे | क्या यह पैसे वाले लोग बहुराष्ट्रीय कंपनियों से खुदको लुटने से बचा पाएँगे ? क्या एक आध परिवार के अलावा कोई बच पाएगा ? कोरिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, फिलिपाईन्स, इराक इसके जिवंत उदाहरण हैं जहा पर इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अमीर तथा गरीब किसी वर्ग के लोगों को नहीं छोड़ा |
पहले अंग्रेजों ने `फूट डालो और राज करो` की निति अपनाई, अभी यह बहुराष्ट्रीय कंपनी भारत के अमीर तथा गरीब वर्ग के बीच में वो ही निति अपना रहे हैं |
अभी यह भारत के अमीर लोगों पर है की वो कौन सी परिस्थिति देखना चाहते हैं तथा वो आम-नागरिक-समर्थक सामान्य कानूनों जैसे कि पारदर्शी शिकायत प्रणाली/सिस्टम (चैप्टर 1), `नागरिक और सेना के लिए खनिज रोयल्टी (आमदनी)`(एम.आर.सी.एम)., राईट टू रिकोल(आम नागरिकों का भ्रष्ट को बदलने का अधिकार )(चैप्टर 6) के क़ानून-ड्राफ्ट , ज्यूरी सिस्टम (भ्रष्ट को सज़ा देने का आम नागरिकों का अधिकार) (चैप्टर 7,21) का विरोध या समर्थन करते हैं |
नोट – हमें कोई भी अमीर से या किसी और से, किसी भी प्रकार के दान की आवश्यकता नहीं है | सिर्फ सभी लोगों का कुछ समय चाहिए ये सब कानूनों का प्रचार करने के लिए | हम दान के सख्त खिलाफ हैं |
समीक्षा प्रश्न
1 `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी समूह` द्वारा हां अथवा नहीं दर्ज करने के लिए प्रस्तावित शुल्क कितना है ?
2 मान लीजिए हमारे द्वारा मांगी गई प्रथम सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर प्रधानमंत्री हस्ताक्षर कर देता है । मान लीजिए, 65 करोड़ दर्ज मतदाता आई पी सी 498 ए पर ना दर्ज करते हैं । तो क्या प्रथम सरकारी अधिसूचना(आदेश) के अनुसार यह कानून स्वत: रद्द हो जाएगा?
3 मान लीजिए, 35 करोड़ नागरिक किसी कानून पर ना दर्ज करते हैं। तो उनके द्वारा किया गया पैसों का खर्च कितना होगा?
4 मान लीजिए, औसतन, कोई नागरिक ऐसे 100 कानूनों पर हां /नहीं दर्ज करता है जिसे वह पसंद/नापसंद करता है। तो उपयोग किए गए कुल समग्र घरेलू उत्पाद (जी डी पी) का प्रतिशत क्या होगा? औसतन इस कार्य को पूरा करने के लिए कितने क्लर्कों की जरूरत होगी?
5 मान लीजिए, किसी प्रस्तावित सरकारी अधिसूचना(आदेश) को 51 प्रतिशत नागरिकों द्वारा अनुमोदित कर दिया जाता है तो क्या यह कानूनन अनिवार्य होगा कि प्रधानमंत्री इस सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर ह्स्ताक्षर करे?
6 मान लीजिए, कोई नागरिक 15 पृष्ठों की सरकारी अधिसूचना(आदेश) का प्रस्ताव प्रस्तुत करता है। दर्ज करने की लागत क्या होगी?
7 मान लीजिए, 40 करोड़ जनता किसी सरकारी अधिसूचना(आदेश) का अनुमोदन/स्वीकृति करती है। तो किया गया कुल खर्च कितना होगा?
अभ्यास
1. कृपया इस पाठ का अनुवाद अपनी मातृभाषा में करें।
2. स्वीट्जरलैण्ड, अमेरिका आदि देशों में तब के लोगों के शिक्षा के स्तर पर जानकारी जुटाएं जब उन्होंने जनमत-संग्रह समाज का का चलन शुरू किया था।
3. पिछले पांच वर्षों में कितने लोगों को धारा 498 ए के तहत कारावास की सजा हुई ? आपके अनुमान के अनुसार उन्हें कितना समय और पैसा खर्च करना पड़ा? आपके अनुमान के अनुसार, इन मुकद्दमों में पुलिसवालों और वकीलों ने कितना पैसा बनाया होगा? पुलिसवालों के बनाए पैसों में से कितना मंत्रियों, विधायकों और सांसदों को गया होगा?
4. क्या आप किसी ऐसे विधायक, सांसद को वोट देंगे जो खुले आम कहता है कि वह नागरिकों को हां/नहीं दर्ज करने की अनुमति नहीं देगा?
5. कृपया आप जिन मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री और पार्टी का समर्थन करते हैं उन्हें फोन कीजिए और उनका जवाब मांगिए कि क्यों वे इस आम लोगों की मांग का विरोध कर रहे हैं और हमें उनके बनाए कानूनों पर हां/नहीं दर्ज करने की अनुमति नहीं देते।
6. क्यों नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी(एम आर सी एम) के समर्थक हम लोग हां/नहीं की गिनती का प्रधानमंत्री के लिए बाध्य न बनाने का प्रस्ताव करते हैं?
7. क्यों धर्मनिरपेक्ष और हिंदूवादी बुद्धिजीवी लोग दूसरी सरकारी अधिसूचना(आदेश) नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी(एम आर सी एम) का विराध करते हैं?
8. यदि आप नागरिकों और राईट टू रिकाल ग्रुप/समूह (आर.आर.जी) की पहली दो सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) का समर्थन करते हैं तो हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप ऐसे 10 प्रमुख बुद्धिजीवियों के नामों की सूची/लिस्ट बनाइए जो आपको जानते हैं, और पता लगाइए कि वे इन दो प्रस्तावित सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) का विरोध क्यों करते हैं?
9. आप जिस पार्टी का समर्थन करते हैं कृपया उसके मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री को फोन करके उनसे संपर्क करें और जवाब मांगें कि क्यों वे सभी दूसरे नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) समूह की मांग के दुश्मन हैं?