मान लीजिए भारत में 72 करोड़ मतदाता हैं । इस प्रकार प्रस्तावित सरकारी अधिसूचना(आदेश) को सफल होने के लिए लगभग 37 करोड़ नागरिक मतदाता से हां की जरूरत पड़ेगी । निश्चित तौर पर सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोग यह सुनिश्चित करने के लिए सैंकड़ो करोड रूपए खर्च करने का निर्णय कर सकते हैं कि इस प्रस्ताव को 37 करोड़ हां न मिल सके । क्या उनका रूपए मदद करेगा?
1 अब यदि यह प्रस्ताव 38 करोड़ नागरिकों के कानों तक पहुंचने में असफल रहता है तो यह असफल होगा लेकिन सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों के रूपए के कारण कदापि नहीं।
2 यदि यह प्रस्ताव 10 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं तक पहुंचता है और उन्होंने हां दर्ज करने से मना कर दिया तो यह असफलता सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों के कारण नहीं मिली।
3 मान लीजिए कुछ प्रस्ताव 50 करोड़ से 70 करोड़ मतदाताओं तक पहूंच ही गया । मान लीजिए लगभग 45 करोड़ मतदाताओं ने हां दर्ज करने का निर्णय लिया अर्थात सेज अधिनियम रद्द किया जाये |
4 अब सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों के लिए क्या यह संभव हो पाएगा कि वे 50 अथवा हजार रूपए या कुछ भी खर्च करें ताकि लगभग चार करोड़ मतदाता हां दर्ज न करें ?
मान लीजिए कि सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोग यह देखते हैं कि लगभग 40 करोड़ नागरिक सेज रद्द करो के प्रस्ताव पर हां रजिस्टर करने वाले हैं । मान लीजिए सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोग 5 करोड़ मतदाताओं को घूस/रिश्वत देने का निर्णय करते हैं और उन्हें हां दर्ज न करने को कहते हैं । मान लीजिए वे प्रति मतदाता 100 रूपए देने का प्रस्ताव देते हैं । यदि वे ऐसा करते हैं तो प्रत्येक नागरिक 100 रूपए की मांग करेगा और इसलिए सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों को सभी 75 करोड़ नागरिकों को 100-100 रूपए देने होंगे और इस प्रकार उनका 7200 करोड़ रूपया खर्च हो जाएगा। पर क्या यह कहानी यहीं खत्म हो जाएगी। नहीं !
मान लीजिए सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोग 72 00 करोड़ रूपए खर्च करते हैं और आम लोगों को इस प्रस्ताव पर हां दर्ज करने से रोकने में सफल हो जाते हैं तो मुझे बस इतना भर करने की जरूरत है कि मैं अपने मित्रों में से एक मित्र को कहूँगा कि वह सेज अधिनियम 2005 को खत्म करो का प्रस्ताव कुछ शब्दों को बदलकर प्रस्तुत कर दे । अब लोगों को इस नए प्रस्ताव पर हां दर्ज करना है आखिरकार यह एक नया प्रस्ताव है। पहले प्रस्ताव के लिए खर्च किया गया पैसा गिनती में नहीं आएगा। इसलिए सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों को 7200 करोड़ रूपए फिर से देना होगा ।यदि वे ऐसा कर भी लेते हैं तो मैं अपने एक और मित्र को कुछ शब्दों को बदलकर एक तीसरा प्रस्ताव प्रस्तुत करने को कह सकता हूँ।
अब या तो इस तीसरे प्रस्ताव पर नागरिक हां दर्ज करेंगे अथवा सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों से एक और सौ रूपए की मांग करेंगे । कुछ ही महीने में सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोग पीढ़ियों से जमा किए गए धन और सम्पत्ति से हाथ धो बैठेंगे। भारत में सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों की पूरी दौलत 100000000 करोड़ रूपए से ज्यादा नहीं होगी |
यदि वे आम जनता हितैषी और सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों के विरोधी प्रस्ताव को प्रति मतदाता सौ रूपए खर्च करके रोकने का निर्णय करते हैं तो लागत प्रति प्रस्ताव 7200 करोड़ रूपए होगी और छह महीने के भीतर 2000 ऐसे प्रस्ताव जिसमें मुझे और मेरे दास्तों को केवल 20000 रूपए की लागत आएगी, दर्ज करने से सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोगों का सारा धन छह से आठ महीने के भीतर उड़ जाएगा। उच्चवर्गीय लोग हानि-लाभ का ध्यान रखकर काम करते हैं ।
वे लोग इस प्रकार अपना धन बरबाद नहीं करेंगे जिससे कुछ ना मिले। दूसरे शब्दों में, `जनता की आवाज` यह सुनिश्चित करेगा कि नागरिकों को दिया गया घूस/रिश्वत पैसे को बरबाद करता है और इसका कोई लाभप्रद नतीजा नहीं निकलेगा। इसलिए किसी व्यक्ति का यह दावा करना कि जनता की आवाज कोई ऐसी चीज है जिसे सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) समर्थक उच्चवर्गीय लोग खरीद सकते हैं, केवल यही दर्शाता है कि वह व्यक्ति अर्थात जीवन की गणित से निराशाजनक रूप से अनजान/अनभिज्ञ है । `जनता की आवाज` धन की ताकत का रोग प्रतिरोधक है क्योंकि यह नागरिकों को किसी प्रस्ताव को बार-बार और बार-बार दर्ज करने का विकल्प देता है और इस प्रकार बार-बार और बार-बार पैसा जमा करता है। निश्चित रूप से यह व्यवहारिक नहीं है।
(3.8) भारत के अमीर वर्ग की गलतफहमी से उनके जनसाधारण-समर्थक कानूनों का विरोध |
भारत बहुराष्ट्रीय कंपनी का दास या गुलाम बनने की रह पर है| पहले से ही बहुराष्ट्रीय कंपनी 50% या अधिक तो कामयाब (सफल) हो गयी है| बहुराष्ट्रीय कंपनी ने पूरी तरह से भारत को प्रौद्योगिकी/तकनीकी क्षेत्र में उनपर निर्भर बना दिया है , कृषि या खेती में आंशिक रूप से एवम रक्षा, सैन्य और युद्ध क्षेत्र में अपने ऊपर पूरी तरह से आश्रित या आधीन कर लिया है|
भारत में पैसेवाला विशिष्ट वर्ग का बहुमत ,आम नागरिको का अहित करने वाले कानूनों जैसे कि `पारदर्शी शिकायत प्रणाली के बिना जन-लोकपाल` का समर्थन करके तथा `भ्रष्ट अधिकारी को नौकरी में से निकालने की प्रक्रिया` (राइट टू रिकोल)(चैप्टर 6 देखें) का विरोध करके, कोर्ट, न्यायलय/कोर्ट में आम नागरिकों द्वारा भ्रष्ट को सजा देने का अधिकार (ज्यूरी सिस्टम)(चैप्टर 21 देखें), `नागरिक और सेना के लिए खनिज रोयल्टी (आमदनी)`(चैप्टर 5 देखें) का विरोध करके बहुराष्ट्रीय कंपनी की यह दासता (गुलामी) आगे बढा रहे हैं|
हम मानते हैं की भारत में ऊपर का 5% पतिशत, पैसेवाला ,विशिष्ट वर्ग का बहुमत यह सब भारत के गरीब लोगों को दबाकर रखने के लिए कर रहा है जिससे उन पैसे वाले लोगों को सस्ते दाम पर काम या नौकरी करने वाले लोग मिलें और उनका शोषण कर सके जिससे उनकी आने वाली पुश्तें आराम से जी सकें लेकिन पैसेवाला बहुमत वर्ग की यह सोच एक दम गलत है और ये उनकी गलतफहमी है ये दिखाना चाहेंगे |