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(29.7) आम लोगों का सशस्त्रीकरण (हथियारों का बनाना और रखना) : क्रांति की जननी |
वर्ष 950 में, जिस क्रांति ने इंग्लैण्ड को `कोरोनर जूरी` (की व्यवस्था) दिलाई वह सशस्त्र/`हथियारों से लैस` नागरिक-समाज के कारण संभव हुई । वर्ष 1200 की क्रान्ति, जिसमें राजा महा-अधिकारपत्र(मैग्ना कार्टा) पर हस्ताक्षर करने और आम लोगों (जूरी-सदस्यों) को “दण्ड देने का अधिकार” देने के लिए बाध्य हुआ, वह क्रान्ति सशस्त्र नागरिक-समाज के कारण हुई थी। ब्रिटेन की वर्ष 1650 की क्रान्ति, जिसके कारण राजशाही का प्रभावशाली ढ़ंग से अंत हुआ और चुने गए सांसदों का उदय हुआ वह सशस्त्र नागरिक-समाज के कारण हुई। और फ्रांसीसी क्रान्ति भी इसलिए हुई क्योंकि अधिकांश/बहुत से नागरिकों के पास हथियार थे। वर्ष 1917 में रूसी क्रान्ति इसलिए हुई क्योंकि ई. 1700 के शतक में (1700-1800 के दौरान) जार(रूस सम्राट) ने नागरिक समाज को हथियारों से लैस करना प्रारंभ कर दिया था, वर्ष 1800-1900 के दौरान, सेना में नौकरी लगभग अनिवार्य कर दिया गया था और वर्ष 1910 के दशक में 15 से 20 प्रतिशत रूसी नागरिक हथियारबन्द हो चुके थे। चीनी क्रान्ति भी इसीलिए हुई कि बहुत बड़ी संख्या में चीनी जनता हथियारों से लैस हो चुकी थी।
सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण/ध्यान देने योग्य बात यह थी कि अमेरिका, इंग्लैण्ड और लगभग सारे युरोप में वर्ष 1930 की दशक में “सशस्त्र अहिंसक क्रान्तियां” हुई थीं जिसके परिणामस्वरूप कल्याणकारी शासन/राज्यों की स्थापना हुई। चूंकि 60 से 70 प्रतिशत तक जनता के पास बंदूकें थीं, इसलिए इन क्रान्तियों को संगठित करने तक की जरूरत नहीं पड़ी ; विशिष्ट/उंचे लोग तो वैसे ही डर गए और उन्होंने अमेरिका और युरोप भर में कल्याणकारी राज्य स्थापित कर दिए।
लेकिन अंतत: भारत को भी केवल बंदूकों के कारण ही आजादी मिली न कि मोहनभाई और उनके साथियों यानि कांग्रेसियों द्वारा चलाई जा रही चरखा पलटन/ब्रिगेड के कारण और विश्वयुद्ध 2 के कारण अंग्रेजों/इंग्लैण्ड को 40 लाख भारतीयों को सैनिक या सेना में इंजिनियरिंग का प्रशिक्षण देना पड़ा। वर्ष 1945 में भारतीय इंजिनियर बंदूकों और गोलियों का निर्माण करने/इन्हें बनाने में सक्षम थे और इसलिए 1857 (की क्रान्ति) के विपरित, भारतीय सैनिकों के पास 1946 में गोलियों की कमी नहीं थी। 1857 के बाद से ही भारतीय सैनिकों के विद्रोह कर देने की आशंका थी, लेकिन वर्ष 1930 तक अंग्रेज इन्हें दबाने में सक्षम थे क्योंकि नागरिक यह नहीं जानते थे कि कैसे बंदूकें और गोलियां बनाई जाती हैं। लेकिन वर्ष 1946 में, अंग्रेजों ने देखा कि भारतीय सैनिकों को दबाया नहीं जा सकता यदि वे विद्रोह कर दें। नौसेना विद्रोह, जिसे बेशर्म भारतीय इतिहासकार नौसेना की बगावत बताते हैं, वह (अंग्रेजों की) ताबूत में (ठोंकी गई) अंतिम कील थी। अंग्रेजों का डर सच साबित हो गया था । इसलिए, अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया। दूसरे शब्दों में, अंग्रेज बंदूकों के कारण ही भागे, न कि चरखा, तकली, सत्याग्रह, अहिंसा और अन्य बेकार की बातों के कारण।
यह कहना पर्याप्त होगा कि आम लोगों को हथियारबन्द/हथियार से लैस करना ही मुख्य कारक/कारण है कि जिसने अब तक इतिहास में सभी हिंसक अथवा अहिंसक क्रान्तियों को जन्म दिया है।
(29.8) आम लोगों द्वारा हथियार बनाने और आम लोगों को हथियारों से लैस / ` हथियारों के रखने ` के विरूद्ध बुद्धिजीवियों का झूठा प्रचार |
भारतीय बुद्धिजीवी यह दावा करते हैं कि यदि हम आम लोगों के पास बंदूकें होंगी तो अपराध बढ़ेंगे। यह झूठ है। जिन देशों के नागरिक-समाज शस्त्रहीन/बिना हथियार के हैं, वहां अपराध ज्यादा होते हैं। क्यों? क्योंकि जिन अपराधियों के गठजोड़ पुलिसवालों, मंत्रियों और जजों के साथ किसी भी प्रकार से होते हैं, उनके पास अंतत: हथियार आ ही जाते हैं और इसलिए ये अपराधी बेलगाम हो जाते हैं। जिन देशों में नागरिक-समाज को पूर्ण रूप से हथियार देकर सशक्त बनाया गया है, वहां बहुत हद तक अपराधी नागरिकों पर हमला करने से बचते रहते हैं।
भारतीय बुद्धिजीवियों ने 1950 के दशक से ही एक झूठा प्रचार करना शुरू कर दिया है कि हम आम लोगों को हथियार देने से मौतें ज्यादा होंगी। स्विट्जरलैण्ड, कनाडा और अन्य कई देशों में, जहां आम लोगों के पास कई टन/बहुत ही ज्यादा बंदूकें हैं, वहां मानव-हत्या/नरसंहार एकदम कम है। अमेरिका एकमात्र देश है जहां नागरिक-समाज के पास शस्त्र हैं और मानव-हत्या/नरसंहार की दर ज्यादा है। लेकिन मानव-हत्या की दर कितनी ज्यादा है? और क्या यह शस्त्रविहीन नागरिक-समाजों से ज्यादा है? अमेरिका में बंदूकों से हुआ नरसंहार वर्ष 2005 में 16,000 से कम था (और वाहन दुर्घटना से हुई मौतों की संख्या 40,000 थी)। अमेरिका में बंदूकों से होनेवाली मौतों की संख्या ड्रग्स पर रोक/प्रतिबंध लगने के कारण है – ड्रग्स पर प्रतिबंध से लागत बहुत बढ़ गई है और इसलिए नशेबाज लोग अपराध का सहारा लेते हैं। और ड्रग्स पर प्रतिबंध के कारण (इसके व्यापार से) मुनाफा ज्यादा होता है और इसलिए ड्रग्स बेचने की सीमा/इलाके को लेकर गिरोहों का (आपस में) टकराव होता रहता है। लेकिन ऐसे कारकों/कारणों के बिना भी, मान लीजिए, हथियारबन्द/`हथियारों से लैस` नागरिक-समाज होने के कारण भारत में प्रतिवर्ष 10 गुना ज्यादा मौतें/हत्याऐं अर्थात 160,000 मौतें होती हैं। तब भी हथियार दिए जाने से मौतों की संख्या कम होगी। कैसे? क्योंकि आम लोगों को हथियार देने से “भूखमरी/गरीबी से होनेवाली मौतें” नहीं होंगी। जब नागरिकों के पास हथियार होंगे, जैसा कि वर्ष 1930 के दशक की अमेरिका/युरोप की घटनाएं दर्शाती हैं, शासक नागरिकों की तकलीफ/दुखों को ज्यादा गंभीरता से लेंगे और सिर्फ ऐसा करने से ही गरीबी घटेगी। दूसरे शब्दों में, यदि भारत का नागरिक-समाज हथियारबन्द/`हथियारों से लैस` होता तो यह कम गरीब होता। इसलिए आम लोगों को हथियारबन्द/`हथियारों से लैस` करने से भारत में “गरीबी से होने वाली मौतों” में कमी आएगी।
अर्थशास्त्रियों ने “गरीबी से होने वाली मौतों”, अर्थात भोजन, दवा, स्वच्छता के अभाव में मौत समय से पहले हो जाती है ; को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। लेकिन गरीबी से मौतें तो होती ही हैं। भारत में हर वर्ष 1000 नवजात बच्चों में से लगभग 60 बच्चों की मौत हो जाती है। यह संख्या प्रतिवर्ष की गणना करने पर 10,00,000 मौतों के बराबर (बैठती) है। यदि गरीबी थोड़ी कम होती तो कम से कम (इनमें से) 5,00,000 बच्चे कई और वर्ष जी सकते थे। इसी प्रकार, भारत में प्रतिवर्ष 60,000 महिलाओं की मौत गर्भावस्था के दौरान हो जाती है। इनमें से अधिकांश गरीब परिवारों की होती हैं। यदि उनके पास प्रतिवर्ष केवल 1000 रूपए और होते तो उनकी जिन्दगी बच जाती। भारत में प्रत्येक वर्ष प्राकृतिक कारणों से मरने वाले 1 करोड़ लोगों में से लाखों लोग कुछेक वर्ष और जी सकते थे यदि उनके पास प्रति वर्ष 2000 रूपए ज्यादा होते। उन 40 लाख बंगालियों पर विचार कीजिए जिनकी वर्ष 1940 के दशक में मौत हो गई थी। वे इसलिए नहीं मरे कि उनके पास अनाज नहीं था, बल्कि वे इसलिए मरे कि उनके पास अंग्रेजों और भारतीय बुद्धिजीवियों को अपना अनाज लूटकर ले जाने से रोकने के लिए बंदूकें नहीं थी। यदि 1940 के उस दशक में इन बंगालियों के पास बंदूकें होती तो भूख से उनकी मौत न हुई होती। केवल गरीबी से ही हुई मौतों को ही अगर हथियारों से लैस नागरिक “रोक” सकते तो नरसंहार से हो सकने वाली मौतों से कहीं ज्यादा जिन्दगियां बच जातीं। इतना ही नहीं, (देश के) बंटवारे के समय हुई हिंसा में 10 लाख भारतीय मारे गए। इनमें से बहुत ही कम लोगों की मौत हुई होती अगर उनके पास अपनी रक्षा के लिए बंदूकें होतीं। और इस के अलावा, गरीबी से हुई लगभग 10 लाख से 20 लाख मौतें भी नहीं होतीं। इसलिए यदि भारत में बंदूक से होनेवाली हिंसा के कारण प्रति वर्ष 1 लाख मौतें भी होती हैं, तो भी गरीबी से होनेवाली मौतों को रोकने/कम करने से लाभ ही ज्यादा होता।