सूची
- (29.1) आधुनिक भारत में हथियार रखने के अधिकार का इतिहास
- (29.2) हथियार रखने के अधिकार को मौलिक ( जरूरी ) अधिकार और मौलिक (जरूरी ) कर्तव्य बनाएं
- (29.3) आमलोगों का सशस्त्रीकरण- आम लोगों द्वारा शस्त्रों / हथियारों का 100 % स्थानीय उत्पादन और प्रयोग : लोकतंत्र की जननी
- (29.4) हम आम लोगों को हथियार बनाने देना और रखने देना : कल्याणकारी (नागरिकों की भलाई करने वाला ) राज्य की जननी
- (29.5) आम लोगों का सशस्त्रीकरण (हथियार बनाना व रखना) : आक्रमण / हमला रोकने का सच्चा साधन
- (29.6) आम लोगों का सशस्त्रीकरण (हथियारों का बनाना और रखना) : स्वतंत्रता का सच्चा साधन
- (29.7) आम लोगों का सशस्त्रीकरण (हथियारों का बनाना और रखना) : क्रांति की जननी
- (29.8) आम लोगों द्वारा हथियार बनाने और आम लोगों को हथियारों से लैस / ` हथियारों के रखने ` के विरूद्ध बुद्धिजीवियों का झूठा प्रचार
- (29.9) हम आम लोगों को हथियारबन्द / ` हथियार के रखने ` के संबंध में मेरे प्रस्ताव
सूची
- (29.1) आधुनिक भारत में हथियार रखने के अधिकार का इतिहास
- (29.2) हथियार रखने के अधिकार को मौलिक ( जरूरी ) अधिकार और मौलिक (जरूरी ) कर्तव्य बनाएं
- (29.3) आमलोगों का सशस्त्रीकरण- आम लोगों द्वारा शस्त्रों / हथियारों का 100 % स्थानीय उत्पादन और प्रयोग : लोकतंत्र की जननी
- (29.4) हम आम लोगों को हथियार बनाने देना और रखने देना : कल्याणकारी (नागरिकों की भलाई करने वाला ) राज्य की जननी
- (29.5) आम लोगों का सशस्त्रीकरण (हथियार बनाना व रखना) : आक्रमण / हमला रोकने का सच्चा साधन
- (29.6) आम लोगों का सशस्त्रीकरण (हथियारों का बनाना और रखना) : स्वतंत्रता का सच्चा साधन
- (29.7) आम लोगों का सशस्त्रीकरण (हथियारों का बनाना और रखना) : क्रांति की जननी
- (29.8) आम लोगों द्वारा हथियार बनाने और आम लोगों को हथियारों से लैस / ` हथियारों के रखने ` के विरूद्ध बुद्धिजीवियों का झूठा प्रचार
- (29.9) हम आम लोगों को हथियारबन्द / ` हथियार के रखने ` के संबंध में मेरे प्रस्ताव
आम लोगों का सशस्त्रीकरण करना / आम लोगों को हथियार बनाने देना और रखने देना |
“क्योंकि भगत सिंह आम नागरिकों से आते हैं और यदि आम नागरिक बिना हथियार के हैं, तो बहुत कम उनमें से भगत सिंह बन पाएंगे | “
(29.1) आधुनिक भारत में हथियार रखने के अधिकार का इतिहास |
भारतीय इतिहास में पीएच. डी. की डिग्री प्राप्त लोगों तक को भी यह पता नहीं है कि वर्ष 1931 में श्री सरदार वल्लभ भाई, जवाहर लाल नेहरू आदि ने कांग्रेस के करांची अधिवेशन में एक संकल्प पारित किया था जिसमें इन्होंने यह मांग रखी थी कि हथियार रखने के अधिकार को मौलिक (जरूरी / बुनियादी / मुख्य ) अधिकार बना दिया जाए। और इस करांची अधिवेशन के प्रारूप तैयार करने वालों में महात्मा गांधी खुद भी शामिल थे। यह मांग मांग-सह-वायदा था अर्थात महात्मा गांधी और सहयोगियों का भारत के लोगों से यह वायदा कि यदि और जब भी कांग्रेस सत्ता में आती है तो वे हथियार रखने के अधिकार को मौलिक अधिकार बना देंगे। मेरा मानना है कि मोहनभाई, वल्लभभाई, जवाहरभाई का इस वायदे को पूरा करने का तब कोई इरादा न था जब उन्होंने यह वायदा किया था। यह वायदा पूरा न करने के इरादे से ही किया गया था। उन्होंने यह वायदा सिर्फ इसलिए किया था कि श्री भगत सिंह जी ने यह विचार रखा था और यह (विचार) आम लोगों और सक्रिय कार्यकर्ताओं के बीच इतना लोकप्रिय हो गया था कि मोहनभाई और अन्य सभी लोगों के पास इसे अपने किताबों में दर्ज करने के अलावा और कोई चारा नहीं रह गया था ताकि वे कार्यकर्ताओं के बीच अपनी पकड़ बनाए रख सकें। मोहनभाई और उनके साथी कभी भी सशस्त्र नागरिक समाज नहीं चाहते थे क्योंकि ब्रिटेन/इंग्लैण्ड और भारत के विशिष्ट/ऊंचे लोग जो मोहनभाई और उनके साथियों के प्रायोजक थे, वे सशस्त्र नागरिक समाज नहीं चाहते थे।
वर्त्तमान बुद्धिजीवी लोग हम आम लोगों को कमजोर बनाए रखने पर जोर देते हैं ताकि उनके प्रायोजक/उन्हें खिलाने वाले विशिष्ट वर्ग के लोग हम आम जनता को अपराधियों और पुलिसवालों के जरिए पीट सकें और उन्हें जवाबी कार्रवाई और रोके जाने का खतरा न हो। यदि हम आम लोगों के पास हथियार होते तो हम आम लोगों को चौतरफा मार मारना और हमसे ही पैसे भी ठगना असंभव हो जाता। इसलिए भारत के बुद्धिजीवियों ने छात्रों और सक्रिय कार्यकर्ताओं को समाचार-पत्रों और पाठ्यपुस्तकों के जरिए यह कभी नहीं बताया कि मोहनभाई और उनके साथियों ने वर्ष 1931 में हथियार रखने के अधिकार की मांग की थी और यह भी मांग की थी कि इसे मौलिक / मुख्य अधिकार बना दिया जाए। इसके अलावा, बुद्धिजीवियों ने गैर 80 जी कार्यकर्ताओं को यह कहा/बताया कि भारतीय आमलोग अविवेकी, मूर्ख, सनकी, हिंसक प्रवृत्ति वाले, आक्रमक आदि होते हैं और इसलिए भारत के आम लोगों के “हथियार” केवल नेलकटर/नाखून काटने वाला , तकली, चरखा, सच्चाई, अहिंसा, सत्याग्रह आदि होने चाहिएं।
भारतीय बुद्धिजीवियों की दोहरी बात/चरित्र पर ध्यान देना चाहिए। जब उनसे यह पूछा जाता है कि क्यों रूस और चीन की तरह की क्रांति यहां नहीं हुई ? तो वे कहते हैं कि भारतीय स्वभाव से ही अहिंसक और सहनशील होते हैं। और जब उनसे यह पूछा जाता है कि भारतीय आमलोगों के पास बंदूकें/हथियार क्यों नहीं होनें चाहिए? वे 180 डिग्री का (यू) टर्न लेते हुए/अपनी बात से पलटते हुए कहेंगे कि भारतीय आम लोग इतने आक्रमक और हिंसक होते हैं कि इन्हें बंदूकें बिलकुल भी नहीं दी जानी चाहिए। मैं उनसे इसपर बहस करता यदि मुझे थोड़ा भी लगता कि वे ईमानदार हैं।
(29.2) हथियार रखने के अधिकार को मौलिक ( जरूरी ) अधिकार और मौलिक (जरूरी ) कर्तव्य बनाएं |
हम ‘नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम.)/प्रजा अधीन रजा समूह’ के सदस्यगण यह शपथ लेते हैं कि हम हथियार रखने को मौलिक अधिकार के साथ-साथ मौलिक कर्तव्य भी बनाएंगे अर्थात किसी व्यक्ति के लिए अपने घर में गैर-स्वचलित बंदूक और 240 बुलेट/गोली रखना जरूरी/अपेक्षित होगा। यह कर्तव्य शारीरिक रूप से सक्षम और 25 से 45 आयुवर्ग के सभी पुरूषों पर लागू होगा और महिलाओं के लिए इसे प्रोत्साहित किया जाएगा लेकिन यह अनिवार्य नहीं होगा। यह कर्तव्य स्विटजरलैण्ड के ही समान होगा, जहां 21 से 25 आयुवर्ग के पुरूषों के लिए घर पर बंदूक और 24 बुलेट/गोली रखना जरूरी होता है।
(29.3) आमलोगों का सशस्त्रीकरण- आम लोगों द्वारा शस्त्रों / हथियारों का 100 % स्थानीय उत्पादन और प्रयोग : लोकतंत्र की जननी |
लोकतंत्र अधिकांश युरोप में वर्ष 300 के आते आते अपना अर्थ खो चुका था। और यह लगभग वर्ष 900 में इंग्लैण्ड में पुन: प्रारंभ हुआ। इंग्लैण्ड में वर्ष 950 में राजा को एक प्रक्रिया लागू करनी पड़ी थी कि यदि कोई पुलिसवाला किसी नागरिक की मौत/हत्या में संलिप्त/शामिल पाया गया तो राजा के अधिकारी जिन्हें कोरोनर कहा जाता था, वे मतदाता सूची में से क्रमरहित तरीके से 7-12 नागरिकों को बुलाएगा । नागरिकों को पुलिसवालों से प्रश्न पूछने की अनुमति थी और पीड़ित के परिवार के सदस्यों आदि को अपने पक्ष की बात बताने का अधिकार था। जांच के अंत में, जूरी-मंडल/जूरर्स में से प्रत्येक सदस्य आरोपी अधिकारी के कार्यों पर तीन में से एक फैसला दिया करते थे – न्यायोचित, क्षमायोग्य अथवा आपराधिक। यद्धपि कोई स्पष्ट कानून नहीं था तथापि यदि जूरी-मंडल/जूरर्स बहुमत से कह देते थे कि “उस अधिकारी का आचरण/बर्ताव आपराधिक है” तो लगभग हर मामले/मुकद्दमें में उस अधिकारी को सेवा/नौकरी से हटा दिया जाता था।
अब प्रश्न उठता है कि वर्ष 950 में राजा ने इस प्रक्रिया को क्यों लागू करवाया? क्या उस समय के बुद्धिजीवियों की ऐसी कोई मांग थी कि सरकार में नागरिकों को भागीदारी दी जाए? नहीं। इसका कारण यह था कि उस समय के इंग्लैण्ड में बहुत से नागरिकों के पास हथियार हुआ करता था। राजा यह जान चुका था कि नागरिकों को सेना और पुलिस द्वारा अब और दबाया नहीं जा सकता है। और इसलिए नागरिकों को पुलिसवालों के विरूद्ध यह शक्ति मिल पाई।( अलग से: राजा ने इतने अधिक नागरिकों को हथियार बनाने और रखने दिया क्योंकि अरब सेना ने दक्षिण में स्पेन और पूर्व में तुर्की को जीत लिया था और इसलिए अरब सेना से लड़ने के लिए राजा और पुरोहितों के पास बड़ी संख्या में जनता को हथियारों से लैस करने के अलावा और कोई चारा/विकल्प नहीं बचा था।) तब बाद में लगभग 1100-1200 इस्वी में राजा को महा-अधिकारपत्र (मैग्ना कार्टा) पर हस्ताक्षर करने के लिए विवश होना पड़ा। इस महा-अधिकारपत्र (मैग्ना कार्टा) में उसे यह स्वीकार करना पड़ा कि जूरी-मंडल की आज्ञा के बिना नागरिकों को न तो बंदी बनाया जाएगा और न ही उनपर किसी प्रकार का जुर्माना ही लगाया जाएगा। नागरिक और सामंत(नाईट्स) राजा को महा-अधिकारपत्र(मैग्ना कार्टा) पर हस्ताक्षर करने के लिए इसलिए विवश कर पाए कि बहुत बड़ी संख्या में नागरिकों के पास हथियार थे। इसके अलावा, वर्ष 1650 में राजा को फांसी दे दी गई जब उसने संसद की आज्ञा नहीं मानी। इससे पहले, वर्ष 1650 में संसद 5 प्रतिशत से भी कम जनता का प्रतिनिधित्व कर रही थी। लेकिन विशिष्ट वर्ग (संख्या में) जनसंख्या का 0.1 प्रतिशत से भी कम था। और निम्नतम वर्ग के 95 प्रतिशत लोग इन 0.1 प्रतिशत से कहीं ज्यादा 5 प्रतिशत वालों के नजदीक थे और इसलिए उन्होंने 5 प्रतिशत वालों का साथ दिया। वर्ष 1650 में इंग्लैण्ड की संसद ने अपनी खुद की सेना बनाई और राजा की राजसी सेना को हरा दिया। राजा बन्दी बना लिया गया और संसद ने राजा को सजा सुनाने के लिए एक विशेष न्यायालय गठित करने का निर्णय लिया। जेनरल क्रॉमवेल, संसद की सेना का कमांडर था, उसने राजा-समर्थक सांसदों को संसद में प्रवेश करने से रोक दिया। राजा-विरोधी सांसदों ने 70 जजों वाला एक न्यायालय/कोर्ट स्थापित करने का संकल्प लिया !! और ये जज और कोई नहीं बल्कि राजा विरोधी सांसद ही थे। और इस न्यायालय/कोर्ट और इन सांसद-सह-जजों ने “न्यायपूर्ण और निष्पक्ष” सुनवाई के बाद वर्ष 1650 में राजा को फांसी देने का फैसला सुनाया। बाद में सांसदों ने उस राजा की प्रतिमा/मूर्ति को राजसी संग्रहालय में रखवा दिया। उस मूर्ति के नीचे यह लिखा था -“याद रखो”। मेरे विचार से, ये आने वाले समय के सभी राजाओं के लिए एक चेतावनी थी। लेकिन संसद सेना बना सकी थी, राजसी सेना को हरा सकी थी और राजा को फांसी दे सकी थी क्योंकि आम नागरिक पूर्ण से हथियारों से लैस थे/उनके पास भरपूर हथियार थे । एक शस्त्रविहीन नागरिक-समाज ऐसी लड़ाई नहीं लड़ सकता था।
दूसरे शब्दों में, आधुनिक लोकतंत्र सशस्त्र नागरिक समाज,जो हथियार बना सके और रख सके , के कारण ही आया है। वास्तव में, मैं यह दिखा सकता हूँ कि लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें आम लोगों के पास हथियार होते हैं और हथियार बना सकते हैं अथवा सही मायने में लोकतंत्र सशस्त्र नागरिक-समाज का स्वागतयोग्य लक्षण होता है, कुछ और नहीं।
(29.4) हम आम लोगों को हथियार बनाने देना और रखने देना : कल्याणकारी (नागरिकों की भलाई करने वाला ) राज्य की जननी |
वर्ष 1930 में, अनेक अमेरिकियों का रोजगार छिन गया और उनके पास अनाज/भोजन खरीदने तक के लिए पैसे नहीं थे और उन्हें अपने घरों से भी हाथ धोना पड़ा क्योंकि उनके पास किराया देने के लिए भी पैसे नहीं थे। अमेरिकी विशिष्ट लोगों ने तुरंत आयकर की दर को वर्ष 1928 में 25 प्रतिशत से वर्ष 1936 में 70 प्रतिशत चरणों में बड़ा दिया। और `विरासत कर` को 1928 में 20 प्रतिशत से बढ़ाकर वर्ष 1936 में 70 प्रतिशत कर दिया। और जमीन के अनुमानित मूल्य का लगभग 1 प्रतिशत `संपत्ति कर` भी थोप दिया गया। इन पैसों का उपयोग आश्रय-गृहों, सूप किचेन (नि:शुल्क भोजन देने का स्थान ), बेकारी भत्ता, सैन्य औद्योगिक परिसरों (रोजगार के सृजन के लिए) और अन्य औद्योगिक कार्यकलापों (जैसे सड़कें आदि) के लिए किया। घाटे का बजट/वित्त का उपयोग किया गया, लेकिन 1932-2008 तक की अवधि के दौरान कुल मिलाकर, सभी खर्चों में से 20 प्रतिशत से भी कम खर्चे घाटों से पूरे किए गए। शेष 80 प्रतिशत (व्यय) इन आयकर, `संपत्ति कर`, `विरासत कर` और अन्य प्रकार के करों/टैक्सों से पूरे किए गए।
अमेरिका के विशिष्ट/ऊंचे लोग ऐसे करों को चुकाने पर राजी कैसे हो गए? किसी चुनावी प्रक्रिया के कारण नहीं क्योंकि संघीय स्तर पर अमेरिका में चुनावी प्रक्रिया में ‘प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)’ कानून नहीं है और इसलिए यह(संघीय स्तर पर अमेरिका में चुनावी प्रक्रिया) बहुत ही कमजोर है। मजबूर कर देने वाला कारण, कि क्यों अमेरिकी विशिष्ट/ऊंचे लोगों ने कल्याणकारी व्यवस्था के लिए धन देने हेतु अधिक ऊंची दर पर टैक्स व्यवस्था का सृजन किया, वह यह था कि वहां 70 प्रतिशत से ज्यादा नागरिकों के पास बंदूकें थीं। दूसरे शब्दों में, आम लोगों द्वारा हथियारों का बनाना और आम लोगों को शस्त्रों से लैस करना ही कल्याणकारी राज्य की जननी है। भारत में नागरिकों के पास हथियार नहीं है और इसलिए विशिष्ट/ऊंचे लोग सरकारी पैसों को भूख की समस्या का समाधान करने पर (खर्च करने) की बजाए भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आई.आई.एम.), जवाहरलाल नेहरू विश्ववद्यालयों (जे.एन.यू.), विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.), राजमार्गों, वायुमार्गों, हवाई अड्डों आदि (बनाने/चलाने) पर बेतहाशा खर्च करते हैं। यह तथाकथित कल्याणकारी राज्य और कुछ नहीं बल्कि सशस्त्र(हत्यारों से लैस) नागरिक-समाज का स्वागतयोग्य लक्षण होता है, कुछ और नहीं। और कल्याणकारी राज्य का न होना नागरिक-समाज में हथियारों का अभाव होने के कारण है।
(29.5) आम लोगों का सशस्त्रीकरण (हथियार बनाना व रखना) : आक्रमण / हमला रोकने का सच्चा साधन |
भारत पाकिस्तान (सऊदियों के समर्थन से), चीन और अमेरिका से शत्रुता झेल रहा है। पाकिस्तान भारत पर हजार कारगिल युद्ध थोपने के लिए आवश्यकता से अधिक उत्सुक है। चीन अरूणाचल प्रदेश के मुद्दे पर आक्रमण करने की धमकी देता है। और अमेरिका सैकड़ों हजारों भारतीयों की हत्या करने के लिए आतंकवादियों को (भारत) भेजने में आई.एस.आई. की लगातार मदद कर रहा है ताकि “पाकिस्तान से सुरक्षा” के लिए भारत को अमेरिका पर निर्भर होना पड़े। इसके अलावा अमेरिका और इंग्लैण्ड भी कश्मीर को आजाद करने/करवाने पर जोर दे रहे हैं ताकि अमेरिका/इंग्लैण्ड वहां अपने अड्डे स्थापित कर सकें। अब यदि अमेरिका, चीन और सऊदियों ने सारे हथियार और धन पाकिस्तान को उपलब्ध करा दिए/दे दिए तो भारत गंभीर खतरे में पड़ सकता है। मात्र 11,00,000 (सैनिकों) की सेना और 10,00,000 सैनिकों वाले अर्ध सैनिक ही पर्याप्त नहीं होंगे।
इसे रोकने का सबसे बेहतर तरीका प्रत्येक नागरिक को हथियार से सज्जित/लैस करना है। जैसा कि जोसेफ स्टॉलिन ने 1941 में कहा था “हर हाथ जो बंदूक उठा सकते हैं, उनमें बंदूकें होनी चाहिए।” हम कहते हैं, “अपने सभी ऐसे (शारिरीक रूप से समर्थ) नौजवानों को जेल में डाल दो, जो बंदूक रखने से मना करते हैं।” पूरे नागरिक समाज को हथियारबन्द करना पाकिस्तान, अमेरिका आदि को रोकने का सबसे निश्चित और सबसे तेज तरीका है।
जब आम लोगों को हथियारों से लैस कर दिया जाता है, तो सबसे शक्तिशाली सेनाएं भी उस देश पर आक्रमण न करने का ही निर्णय करती हैं। उदाहरण – वर्ष 1940 में एकमात्र कारण कि ऐडोल्फ (हिटलर) ने स्विटजरलैण्ड पर आक्रमण नहीं किया, वह यह था कि स्विटजरलैण्ड के सभी नागरिकों को भरपूर हथियार देकर शक्तिशाली बनाया गया था। नहीं तो ऐडोल्फ स्विस बैंकों में पड़े सोने की ओर बहुत आकर्षित था जिसकी उसे अत्यधिक जरूरत थी, ताकि वह युद्ध में पैसे लगा सके। सच्चाई ये थी कि प्रत्येक स्विस नागरिक के पास बंदूक थी, जिसने ऐडोल्फ को रोक दिया। भारतीय बुद्धिजीवी लोग झूठ बोलते हैं कि ऐडोल्फ ने स्विट्जरलैण्ड पर आक्रमण इसलिए नहीं किया क्योंकि वह उनकी स्वायत्ता का सम्मान करता था। यह बिलकुल झूठ है और हथियारबन्द नागरिक-समाज के महत्व के बारे में भारत के छात्रों और कार्यकर्ताओं को अनजान रखने के लिए बनाई गई मनगढ़ंत कहानी है और झूठी बात है |
(29.6) आम लोगों का सशस्त्रीकरण (हथियारों का बनाना और रखना) : स्वतंत्रता का सच्चा साधन |
वर्ष 1938 में भारत में ब्रिटेनवासी/अंग्रेज जिनके पास हथियार थे, उनकी संख्या मात्र 80,000 थी और (फिर भी) उन्होंने 35 करोड़ की आबादी वाले हमारे राष्ट्र पर शासन किया !! और आज 100,000 अमेरिकी सैनिक मात्र 3 करोड़ की आबादी वाले अफगानिस्तान पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे हैं। क्यों? क्योंकि 99 प्रतिशत से ज्यादा आम भारतीयों के पास बंदूकें नहीं थीं, जबकि अफगानिस्तान में बंदूक का चलन/बंदूक संस्कृति इतनी ज्यादा है कि लोग किसी व्यक्ति और उसके पूरे परिवार का मजाक उड़ाएंगे यदि उसके पास बंदूक नहीं है। दूसरे शब्दों में, भारत गुलाम इसलिए हुआ, क्योंकि आम आदमी शस्त्रहीन/बिना हथियार के थे। और अफगानिस्तान अभी भी पूरी तरह गुलाम नहीं बन पाया है तो यह वहां के सशस्त्र/`हथियारों से लैस` समाज के कारण ही है।
बंगाल में लगभग 40 लाख लोगों की मौत 1940 के दशक में हुई। इसलिए नहीं कि वहां अनाज की कमी थी, बल्कि इसलिए कि उनके पास बंदूकें नहीं थीं और इसलिए वे अंग्रेजों और विशिष्ट लोगों को अपने अनाज चुराकर ले जाने से नहीं रोक सके। जहां नागरिकों के पास बंदूकें नहीं हैं, वहां आजादी भी नहीं है – बाहरी ताकतों से भी आजादी नहीं और स्थानीय विशिष्ट/ऊंचे लोगों से भी आजादी नहीं। सशस्त्र(हथियारों से लैस) नागरिक-समाज आजादी को कायम रखने का एकमात्र ज्ञात स्रोत है।
(29.7) आम लोगों का सशस्त्रीकरण (हथियारों का बनाना और रखना) : क्रांति की जननी |
वर्ष 950 में, जिस क्रांति ने इंग्लैण्ड को `कोरोनर जूरी` (की व्यवस्था) दिलाई वह सशस्त्र/`हथियारों से लैस` नागरिक-समाज के कारण संभव हुई । वर्ष 1200 की क्रान्ति, जिसमें राजा महा-अधिकारपत्र(मैग्ना कार्टा) पर हस्ताक्षर करने और आम लोगों (जूरी-सदस्यों) को “दण्ड देने का अधिकार” देने के लिए बाध्य हुआ, वह क्रान्ति सशस्त्र नागरिक-समाज के कारण हुई थी। ब्रिटेन की वर्ष 1650 की क्रान्ति, जिसके कारण राजशाही का प्रभावशाली ढ़ंग से अंत हुआ और चुने गए सांसदों का उदय हुआ वह सशस्त्र नागरिक-समाज के कारण हुई। और फ्रांसीसी क्रान्ति भी इसलिए हुई क्योंकि अधिकांश/बहुत से नागरिकों के पास हथियार थे। वर्ष 1917 में रूसी क्रान्ति इसलिए हुई क्योंकि ई. 1700 के शतक में (1700-1800 के दौरान) जार(रूस सम्राट) ने नागरिक समाज को हथियारों से लैस करना प्रारंभ कर दिया था, वर्ष 1800-1900 के दौरान, सेना में नौकरी लगभग अनिवार्य कर दिया गया था और वर्ष 1910 के दशक में 15 से 20 प्रतिशत रूसी नागरिक हथियारबन्द हो चुके थे। चीनी क्रान्ति भी इसीलिए हुई कि बहुत बड़ी संख्या में चीनी जनता हथियारों से लैस हो चुकी थी।
सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण/ध्यान देने योग्य बात यह थी कि अमेरिका, इंग्लैण्ड और लगभग सारे युरोप में वर्ष 1930 की दशक में “सशस्त्र अहिंसक क्रान्तियां” हुई थीं जिसके परिणामस्वरूप कल्याणकारी शासन/राज्यों की स्थापना हुई। चूंकि 60 से 70 प्रतिशत तक जनता के पास बंदूकें थीं, इसलिए इन क्रान्तियों को संगठित करने तक की जरूरत नहीं पड़ी ; विशिष्ट/उंचे लोग तो वैसे ही डर गए और उन्होंने अमेरिका और युरोप भर में कल्याणकारी राज्य स्थापित कर दिए।
लेकिन अंतत: भारत को भी केवल बंदूकों के कारण ही आजादी मिली न कि मोहनभाई और उनके साथियों यानि कांग्रेसियों द्वारा चलाई जा रही चरखा पलटन/ब्रिगेड के कारण और विश्वयुद्ध 2 के कारण अंग्रेजों/इंग्लैण्ड को 40 लाख भारतीयों को सैनिक या सेना में इंजिनियरिंग का प्रशिक्षण देना पड़ा। वर्ष 1945 में भारतीय इंजिनियर बंदूकों और गोलियों का निर्माण करने/इन्हें बनाने में सक्षम थे और इसलिए 1857 (की क्रान्ति) के विपरित, भारतीय सैनिकों के पास 1946 में गोलियों की कमी नहीं थी। 1857 के बाद से ही भारतीय सैनिकों के विद्रोह कर देने की आशंका थी, लेकिन वर्ष 1930 तक अंग्रेज इन्हें दबाने में सक्षम थे क्योंकि नागरिक यह नहीं जानते थे कि कैसे बंदूकें और गोलियां बनाई जाती हैं। लेकिन वर्ष 1946 में, अंग्रेजों ने देखा कि भारतीय सैनिकों को दबाया नहीं जा सकता यदि वे विद्रोह कर दें। नौसेना विद्रोह, जिसे बेशर्म भारतीय इतिहासकार नौसेना की बगावत बताते हैं, वह (अंग्रेजों की) ताबूत में (ठोंकी गई) अंतिम कील थी। अंग्रेजों का डर सच साबित हो गया था । इसलिए, अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया। दूसरे शब्दों में, अंग्रेज बंदूकों के कारण ही भागे, न कि चरखा, तकली, सत्याग्रह, अहिंसा और अन्य बेकार की बातों के कारण।
यह कहना पर्याप्त होगा कि आम लोगों को हथियारबन्द/हथियार से लैस करना ही मुख्य कारक/कारण है कि जिसने अब तक इतिहास में सभी हिंसक अथवा अहिंसक क्रान्तियों को जन्म दिया है।
(29.8) आम लोगों द्वारा हथियार बनाने और आम लोगों को हथियारों से लैस / ` हथियारों के रखने ` के विरूद्ध बुद्धिजीवियों का झूठा प्रचार |
भारतीय बुद्धिजीवी यह दावा करते हैं कि यदि हम आम लोगों के पास बंदूकें होंगी तो अपराध बढ़ेंगे। यह झूठ है। जिन देशों के नागरिक-समाज शस्त्रहीन/बिना हथियार के हैं, वहां अपराध ज्यादा होते हैं। क्यों? क्योंकि जिन अपराधियों के गठजोड़ पुलिसवालों, मंत्रियों और जजों के साथ किसी भी प्रकार से होते हैं, उनके पास अंतत: हथियार आ ही जाते हैं और इसलिए ये अपराधी बेलगाम हो जाते हैं। जिन देशों में नागरिक-समाज को पूर्ण रूप से हथियार देकर सशक्त बनाया गया है, वहां बहुत हद तक अपराधी नागरिकों पर हमला करने से बचते रहते हैं।
भारतीय बुद्धिजीवियों ने 1950 के दशक से ही एक झूठा प्रचार करना शुरू कर दिया है कि हम आम लोगों को हथियार देने से मौतें ज्यादा होंगी। स्विट्जरलैण्ड, कनाडा और अन्य कई देशों में, जहां आम लोगों के पास कई टन/बहुत ही ज्यादा बंदूकें हैं, वहां मानव-हत्या/नरसंहार एकदम कम है। अमेरिका एकमात्र देश है जहां नागरिक-समाज के पास शस्त्र हैं और मानव-हत्या/नरसंहार की दर ज्यादा है। लेकिन मानव-हत्या की दर कितनी ज्यादा है? और क्या यह शस्त्रविहीन नागरिक-समाजों से ज्यादा है? अमेरिका में बंदूकों से हुआ नरसंहार वर्ष 2005 में 16,000 से कम था (और वाहन दुर्घटना से हुई मौतों की संख्या 40,000 थी)। अमेरिका में बंदूकों से होनेवाली मौतों की संख्या ड्रग्स पर रोक/प्रतिबंध लगने के कारण है – ड्रग्स पर प्रतिबंध से लागत बहुत बढ़ गई है और इसलिए नशेबाज लोग अपराध का सहारा लेते हैं। और ड्रग्स पर प्रतिबंध के कारण (इसके व्यापार से) मुनाफा ज्यादा होता है और इसलिए ड्रग्स बेचने की सीमा/इलाके को लेकर गिरोहों का (आपस में) टकराव होता रहता है। लेकिन ऐसे कारकों/कारणों के बिना भी, मान लीजिए, हथियारबन्द/`हथियारों से लैस` नागरिक-समाज होने के कारण भारत में प्रतिवर्ष 10 गुना ज्यादा मौतें/हत्याऐं अर्थात 160,000 मौतें होती हैं। तब भी हथियार दिए जाने से मौतों की संख्या कम होगी। कैसे? क्योंकि आम लोगों को हथियार देने से “भूखमरी/गरीबी से होनेवाली मौतें” नहीं होंगी। जब नागरिकों के पास हथियार होंगे, जैसा कि वर्ष 1930 के दशक की अमेरिका/युरोप की घटनाएं दर्शाती हैं, शासक नागरिकों की तकलीफ/दुखों को ज्यादा गंभीरता से लेंगे और सिर्फ ऐसा करने से ही गरीबी घटेगी। दूसरे शब्दों में, यदि भारत का नागरिक-समाज हथियारबन्द/`हथियारों से लैस` होता तो यह कम गरीब होता। इसलिए आम लोगों को हथियारबन्द/`हथियारों से लैस` करने से भारत में “गरीबी से होने वाली मौतों” में कमी आएगी।
अर्थशास्त्रियों ने “गरीबी से होने वाली मौतों”, अर्थात भोजन, दवा, स्वच्छता के अभाव में मौत समय से पहले हो जाती है ; को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। लेकिन गरीबी से मौतें तो होती ही हैं। भारत में हर वर्ष 1000 नवजात बच्चों में से लगभग 60 बच्चों की मौत हो जाती है। यह संख्या प्रतिवर्ष की गणना करने पर 10,00,000 मौतों के बराबर (बैठती) है। यदि गरीबी थोड़ी कम होती तो कम से कम (इनमें से) 5,00,000 बच्चे कई और वर्ष जी सकते थे। इसी प्रकार, भारत में प्रतिवर्ष 60,000 महिलाओं की मौत गर्भावस्था के दौरान हो जाती है। इनमें से अधिकांश गरीब परिवारों की होती हैं। यदि उनके पास प्रतिवर्ष केवल 1000 रूपए और होते तो उनकी जिन्दगी बच जाती। भारत में प्रत्येक वर्ष प्राकृतिक कारणों से मरने वाले 1 करोड़ लोगों में से लाखों लोग कुछेक वर्ष और जी सकते थे यदि उनके पास प्रति वर्ष 2000 रूपए ज्यादा होते। उन 40 लाख बंगालियों पर विचार कीजिए जिनकी वर्ष 1940 के दशक में मौत हो गई थी। वे इसलिए नहीं मरे कि उनके पास अनाज नहीं था, बल्कि वे इसलिए मरे कि उनके पास अंग्रेजों और भारतीय बुद्धिजीवियों को अपना अनाज लूटकर ले जाने से रोकने के लिए बंदूकें नहीं थी। यदि 1940 के उस दशक में इन बंगालियों के पास बंदूकें होती तो भूख से उनकी मौत न हुई होती। केवल गरीबी से ही हुई मौतों को ही अगर हथियारों से लैस नागरिक “रोक” सकते तो नरसंहार से हो सकने वाली मौतों से कहीं ज्यादा जिन्दगियां बच जातीं। इतना ही नहीं, (देश के) बंटवारे के समय हुई हिंसा में 10 लाख भारतीय मारे गए। इनमें से बहुत ही कम लोगों की मौत हुई होती अगर उनके पास अपनी रक्षा के लिए बंदूकें होतीं। और इस के अलावा, गरीबी से हुई लगभग 10 लाख से 20 लाख मौतें भी नहीं होतीं। इसलिए यदि भारत में बंदूक से होनेवाली हिंसा के कारण प्रति वर्ष 1 लाख मौतें भी होती हैं, तो भी गरीबी से होनेवाली मौतों को रोकने/कम करने से लाभ ही ज्यादा होता।
(29.9) हम आम लोगों को हथियारबन्द / ` हथियार के रखने ` के संबंध में मेरे प्रस्ताव |
कांग्रेस और इसके नेता श्री वल्लभभाई पटेल, श्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने वर्ष 1931 में भारतीय नागरिकों से एक वायदा किया था कि कांग्रेस हथियार रखने के अधिकार को मौलिक ( जरूरी ) अधिकार बना देगी। और मैं इस वायदे को पूरा करने के लिए कानून लागू करने का प्रस्ताव करता हूँ।