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अध्याय 13 – हर हफते केवल दो-चार घंटे का समय देकर आप भारत में “प्रजा अधीन राजा” क़ानून-ड्राफ्ट को लाने में सहायता कर सकते हैं

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  • अगले पांच घंटे कृपया हर दो महीने में एक बार पूरे दिन के किसी प्रदर्शन में शामिल हों अथवा हर महीने आधे दिन के लिए एक प्रदर्शन में शामिल हों।
  • यदि आपकी नजर में प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के 100 समर्थक हैं तो उन सभी 100 समर्थकों को एक ही दिन न बुलाएं बल्कि 25-25 समर्थकों को 4 लगातार दिन बुलाएं।
  • यदि आपकी नजर में प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के 1000 समर्थक हैं तो उन सभी 1000 समर्थकों को एक ही दिन न बुलाएं बल्कि 25-25 समर्थकों को 40 लगातार दिन बुलाएं।
  • एक अच्‍छा लक्ष्‍य यह है कि एक ऐसे शहर को लें जहां 1000 से 2000 प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के समर्थक हों  और जिनमें से सभी प्रदर्शन के लिए हर महीने 5 घंटे समय देने को तैयार हों और उस शहर में 25 से 50 प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के समर्थकों का प्रदर्शन हर/प्रत्‍येक दिन हो।
  • मैं क्यों छोटे मध्‍यम आकार के प्रदर्शन हर दिन करने का समर्थन करता हूँ और एक ही दिन किसी बहुत बड़े प्रदर्शन का समर्थन नहीं करता? क्‍योंकि हर दिन एक प्रदर्शन करने से `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्‍ताव प्रणाली कानून – प्रारूप, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून – प्रारूप के बारे में सूचना/जानकारी ज्‍यादा तेजी से फैलेगी जबकि केवल एक ही दिन एक बहुत बड़े प्रदर्शन से इन प्रारूपों के समर्थकों की बड़ी संख्‍या का पता तो लोगों को चलेगा लेकिन इससे जानकारी नहीं फैलेगी। प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल समूह में मेरा लक्ष्‍य प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार), नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम. आर. सी. एम.), `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्‍ताव प्रणाली आदि कानूनों के प्रारूपों/ड्राफ्टों पर जानकारी का प्रचार-प्रसार करना है। और इसलिए हर दिन एक छोटा ही प्रदर्शन करके लक्ष्‍य प्राप्‍त करने में ज्‍यादा लाभ होगा। प्रदर्शन का उद्देश्‍य उन बहुसंख्‍य नागरिकों तक पहुंचना है जो किसी न किसी कारण से समाचार पत्र नहीं पढ़ते और जिन तक पर्चियों/पैम्फलेट के माध्‍यम से भी नहीं पहूंचा जा सकता। प्रदर्शन इस प्रतिबद्धता का सबूत होता है कि लोग किसी मुद्दे पर समय देने के इच्‍छुक हैं । यह मात्र समय की बरबादी नहीं है जैसा कि बहुत से जूनियर/कनिष्‍ठ कार्यकर्ता समझते हैं।

    ऑर्कूट / फोरम समुदायों की सूची जहां आप अपने शहर के राजनैतिक रूप से सक्रिय लोगों से सम्‍पर्क बना सकते हैं

    आम तौर पर, केवल 2 प्रतिशत से 5 प्रतिशत लोग ही अपने देश के कानूनों में सुधार करने/करवाने में रूचि रखते हैं। यह तथ्‍य/बात पूरे विश्‍व के लिए सच है। इसलिए हमें इस बात से शिकायत नहीं होनी चाहिए। अमेरिका के लोग इतनी ही छोटी जनसंख्‍या होने पर भी अमेरिका में सुधार करने में सफल रहे हैं और इसलिए हमें इस बात की शिकायत नहीं करनी चाहिए कि  केवल थोड़े से ही लोग इसमें रूचि ले रहे हैं। लेकिन ऑर्कूट पर, राजनैतिक समुदाय में 30-40 प्रतिशत से भी ज्यादा लोग इसमें रूचि दिखलाएंगे। इसलिए उनसे सम्पर्क करने से समय का ज्‍यादा सही उपयोग होगा। मेरे कहने का अर्थ यह बिलकुल नहीं है कि आप अपको अपने आस पास के लोगों से इस संबंध में मिलना ही नहीं चाहिए, आप उनसे भी मिलें लेकिन कृपया आप अपने शहर के निम्‍नलिखित समुदायों के सदस्‍यों को स्‍क्रैप(सन्देश) अवश्‍य भेजें।

    कृपया ध्‍यान दें कि नीचे केवल एक छोटी सी सूची का नमूना मात्र ही दिया गया है। अभी और भी कई समुदाय हैं और उन समुदायों के सदस्‍यों से भी सम्‍पर्क अवश्‍य करें।

    1. Right to Recall Group

    2. I will join Indian Politics

    3. Lok Satta Party Official Comm

    4. Che Guevara

    5. Bharat Swabhiman (trust)

    6. I Love India

    7. We Want To Improve INDIA

    8. Youth of India

    9. WE, the leaders

    10. we must change Indian Politics

    11. Shaheed Bhagat Singh (Homage)

    12. “Youth Democratic Front”

    13. Lead India ‟09

    14. Youth for Equality

    15. IYR NATIONAL

    16. Political Minds of Young India

    17. Jago Party

    18. INDIAN JUDICIARY

    19. India needs a Revolution

    20. BHARATUDAYMISSION

    21. Youth for India-OurTimeIsNow

    22. Bharat Swabhiman Trust Gujarat

    23. Right to Recall Group,Rajsthan

    24. Bharat Punarnirman Dal

    25. I can die for India

    26. LOK PARITRAN

    27. India needs a revolution

    28. Indian People’s Choice Party

    29. PROFESSIONALS PARTY OF INDIA

     

    (13.15) `प्रजा अधीन-राजा`/`राईट टू रिकाल`(भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार) के विरोधी , नकली `प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक के लक्षण / चिन्ह और चालें

    `प्रजा अधीन-राजा` कार्यकर्ता मित्रों ,

    कृपया ध्यान दें कि अभी `राईट टू रिकाल`/`प्रजा अधीन-राजा` नाम लोगों में बढ़ता जा रहा है | और नेताओं पर, अपने कार्यकर्ताओं द्वारा दबाव पड़ रहा है , `राईट टू रिकाल , नागरिकों द्वारा ` के बारे में बात करने के लिए | इसीलिए , नेताओं को अब मजबूरी से `प्रजा अधीन-राजा`/`राईट टू –रिकाल, नागरिकों द्वारा` के बारे में बात करने पर मजबूर हो जाते हैं |

    लेकिन `आम-नागरिक`-विरोधी लोग असल में `भ्रष्ट को नागरिक द्वारा बदलने/सज़ा देने के तरीके/प्रक्रियाएँ`(राईट टू रिकाल/प्रजा अधीन राजा) नहीं चाहते |

    उनको परवाह नहीं है कि देश विदेशी कंपनियों और विदेशी लोगों के हाथ बिक जायेगा और 99% देशवासी लुट जाएँगे |

    65 सालों से , लोग ऐसी प्रक्रियाएँ/तरीके मांग रहे हैं , जिसके द्वारा आम नागरिक भ्रष्ट को बदल सकते हैं /सज़ा दे सकते हैं और पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) की भी मांग कर रहे हैं | (`पारदर्शी` का मतलब, वो शिकायत/प्रस्ताव है जो कभी भी देखि जा सकती है और कभी भी जाँची जा सकती है, किसी के भी द्वारा, कभी भी और कहीं भी, ताकि कोई नेता, कोई बाबू, कोई जज या मीडिया उसे दबा नहीं सके |)

    लेकिन `राईट टू-रिकाल`के विरोधी ये मांग को दबाते आ रहे हैं |

    उसके लिए वे कुछ तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, उन में से कुछ की लिस्ट यहाँ नीचे है-

    1) वे अपने कार्यकर्ताओं को क़ानून-ड्राफ्ट(नक्शा) की बात करने के लिए भी मना करते हैं, क़ानून-ड्राफ्ट(नक्शा) को पढ़ने के लिए भी मना करते हैं, क़ानून-ड्राफ्ट(नक्शा) लिखना तो दूर की बात है | वे हवा में बात करते हैं , ना तो वो किस देश और जगह की प्रक्रिया की बात कर रहे हैं, बताते हैं, ना तो उसका नाम बताते हैं, न ही उसका ड्राफ्ट देंगे |

    क़ानून-ड्राफ्ट को पढ़ना और लिखना वकीलों का काम नहीं है, ना ही जजों का , ना ही सांसदों का , लेकिन नागरिकों का काम है !! जी हाँ, आप नागरिकों को क़ानून-ड्राफ्ट सांसदों को देना होता है, जो तब क़ानून-ड्राफ्ट पास करवाते हैं सांसद में | वकीलों का काम क़ानून-ड्राफ्ट(नक्शा) बनाना नहीं है, उनका काम मामले लड़ना है, जजों का कम क़ानून बनाना नहीं, उनका काम फैसले देना है |

    `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी दूसरों को क़ानून-ड्राफ्ट पढ़ने से रोकते हैं , कार्यकर्ताओं को ऐसे काम में लगवा कर जो भ्रष्टाचार, गरीबी कम नहीं करते जैसे स्कूल चलाना,योग सीखाना , विपक्ष के पार्टियों या अन्य नेताओं के खिलाफ नारे लगाना , किसी उम्मीदवार के लिए चुनाव प्रचार-अभियान करना , चरित्र(अच्छा व्यवहार) बनाना , आदि |

    लेकिन एक बार भी कार्यकर्ताओं को क़ानून-ड्राफ्ट पढ़ने के लिए नहीं कहते , उनपर चर्चा करना तो दूर की बात है |

    इसीलिए , क़ानून-ड्राफ्ट पढ़ना शुरू कर दें और क़ानून-ड्राफ्ट पढ़ना शुरू कर दें और उनपर अपनी राय दें , ड्राफ्ट को बताते हुए | और कुछ क़ानून-ड्राफ्ट पढ़ने के बाद और उनपर कमेन्ट/राय देने के बाद , आप ड्राफ्ट लिख भी पायेंगे |

    यदि आम नागरिक , अपना ये कर्तव्य/काम करना शुरू कर दें, तो कोई भी गलत और जन-विरोधी क़ानून और शब्द नहीं कह सकेगा |

    2) `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी और जाली-`प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक कभी भी सही तुलना और जांच/विश्लेषण नहीं करेंगे |

    वे कुछ ऐसे दो मुश्किल शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे दूसरा व्यक्ति चकरा जाये  और निराश हो जाये और कभी क़ानून-ड्राफ्ट को ना तो पढ़े , न तो चर्चा करे | और वे हमेशा एक-तरफ़ा चर्चा करेंगे |

    कृपया उनको तुलना करने के लिए कहें किसी भी मानी गयी परिस्थिति के लिए , पहले वर्त्तमान क़ानून के अनुसार उस पारिस्थि को देखें , फिर यदि उनका पसंद का क़ानून-ड्राफ्ट लागू होता है, या फिर जब `प्रजा-अधीन-राजा` के क़ानून-ड्राफ्ट या अन्य ड्राफ्ट लागू होते हैं उस पारिस्थि की तुलना करें और फैसला करें कि कौन से ड्राफ्ट देश के लिए फायदा करेंगे और कौन से देश को नुकसान करेंगे |

    उदाहरण के लिए , जाली `प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक अक्सर कहते हैं कि करोड़ों लोगों को ख़रीदा जा सकता है यदि `प्रजा अधीन-राजा ` के तरीके लागू होते हैं, लेकिन वे कभी बी इसकी तुलना अपने पसंद के क़ानून-ड्राफ्ट या आज के क़ानून –ड्राफ्ट या तरीकों से नहीं करते क्योंकि इन तरीकों/प्रक्रियाओं में कुछ ही लोग होते हैं ,जो विदेशी कंपनियों को खरीदना होता है प्रशाशन पर काबू पाने के लिए |

    3) वे हमेशा कहते हैं कि वे `प्रजा अधीन-राजा`/`राईट टू रिकाल` का समर्थन करते हैं लेकिन कभी भी नहीं बताते कि कौन से पद के लिए वे `प्रजा अधीन राजा` का समर्थन करते हैं ? प्रजा अधीन-सरपंच, प्रजा अधीन-मायर/महापौर जैसे चिल्लर या प्रजा अधीन-प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन-लोकपाल या प्रजा अधीन-मुख्यमंत्री | वे छोटे पदों के लिए अभी `प्रजा अधीन-राजा`/राईट टू रिकाल लाना चाहेंगे और ऊपर के पदों के लिए अगले जन्म में राईट टू रिकाल लाना चाहेंगे |

    उनसे पूछें इसको स्पष्ट/साफ़ बताने के लिए कि वो कौन से पद पर `राईट टू रिकाल` का समर्थन करते हैं और उसका क़ानून-ड्राफ्ट देने के लिए जिसका वे समर्थन करते हैं |

    हम उच्च-पदों के लिए आज और अभी `राईट टू रिकाल`(भ्रष्ट को निकालने का नागरिकों का अधिकार)  चाहते हैं क्योंकि बिना उसके देश को बहुत नुकसान होगा |

    4) वे कहते हैं कि वे `राईट टू रिकाल`/`प्रजा अधीन-राजा` का समर्थन करते हैं, लेकिन उसे `बाद में ` लायेंगे ( अगले जन्म में) | इसके लिए कुछ बहाने जो वो बोलते वो है-

    क) अभी सरकार इसको पास नहीं करेगी |

    `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधियों से पूछें कि क्या हमें सरकार की इच्छा के हिसाब से जाना चाहिए कि करोड़ों लोगों की इच्छा के अनुसार ?

    ख) सभी क़ानून के सुधार एक साथ नहीं आ सकते |

    `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधियों से कहें कि लोग 50-100 सालों के लिए इन्तेजार नहीं करना चाहते , सभी कानूनों में सुधार लाने के लिए |

    यदि `पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) आ जाये तो सभी सुधर कुछ ही महीनों में आ जाएँगे|

    कृपया इस प्रणाली (सिस्टम) को www.righttorecall.info/406.pdf  में देखें |

    ग) हमारी एकता भंग हो जायेगी |

    उनसे कहें कि हम एकता ही चाहते हैं, इसीलिए ये जन-हित की धाराएं आपके ड्राफ्ट में जोड़ने के लिए कह रहे हैं | और एकता चाहते हैं , तो `पारदर्शी शिकायत प्रणाली (सिस्टम) को क्यों नहीं लागू करवाते ,जो देश के लोगों को एक होने में मदद करता है |

    घ) हम पहले सांसद चुन कर सरकार लायेंगे , फिर `प्रजा अधीन-सांसद` के ड्राफ्ट बनायेंगे और ये क़ानून लायेंगे |

    उनसे कहें कि कभी नागरिकों के नौकर, सांसद, मंत्री, प्रधानमंत्री कभी अपने ऊपर अपने मालिक, 120 करोड़ जनता का लगाम आने देंगे ? वे तो सत्ता में आने के बाद , विदेशी कंपनी से रिश्वत के पैसे लेकर, कोई गुप्त विदेशी खाते में डाल देंगे  और `प्रजा अधीन-राजा` /`राईट टू रिकाल` को रद्दी में डाल देंगे | ये क़ानून लाना तो केवल देश के करोड़ों मालिक , करोड़ों नागरिकों के जनता के नौकर के ऊपर दबाव से ही आ सकता है |

    इसीलिए , उनसे कहें कि अभी सांसदों से या अपनी पार्टी से कहें कि अपनी पार्टी के घोषणा-पत्र में `प्रजा अधीन-सांसद` आदि `प्रजा अधीन-राजा` के ड्राफ्ट डालें |

    5) `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी कहेंगे कि कि एक नेता को समर्थन करो, जो क़ानून-ड्राफ्ट को लागू कराएगा और वो बोलते हैं कि उस नेता के सार्वजनिक/पब्लिक काम पर कोई भी न बोले क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनके पसंद के नेता की बदनामी हो रही है |

    कृपया उनको बताएं कि ड्राफ्ट हमारा नेता है | बिना ड्राफ्ट के , सरकारी तंत्र/सिस्टम में कोई भी बदलाव संभव नहीं है ,बुरा या अच्छा | उनसे पूछें कि क़ानून-ड्राफ्ट पर अपना रुख बताएं ,कि क्या वे उसको समर्थन करते हैं या विरोध करते हैं | यदि हमारे नेता, ड्राफ्ट का समर्थन करते हैं, तो उनको कहें कि हमारे नेता, ड्राफ्ट को अपने नेता से मिलवाएं और उनके नेता से पूछें कि वो क़ानून-ड्राफ्ट का समर्थन करते हैं या विरोध |

    हम कोई भी व्यक्तिगत/निजी टिपण्णी/बात नहीं करते हैं जैसे `क.ख.ग` का चरित्र(बर्ताव/व्यवहार) ऐसा है,या `क.ख.ग` के पिता/माता ऐसे हैं` आदि | हम केवल उनके सार्वजनिक/पब्लिक काम पर टिपण्णी/बात करते हैं,कि वो ईमानदार हैं या बेईमान है, उसी तरह जिस तरह लोग सड़क-बनने के देख-रेख करने वाले/निरीक्षक के काम पर बोलते हैं| अब यदि आप कहते हो कि सड़क-बनने के बनने वाले पर कोई टिपण्णी/बात ना करें , तो पहले तो आप अपना नागरिक का काम नहीं कर रहे, और हम को भी अपना कर्तव्य करने से रोक रहे हैं, जो देश के लिए खतरनाक है |

    क्या ये पक्षपात/तरफदारी नहीं है यदि मैं उन सरकारी नौकरों पर बात करूँ जो मेरे सम्बन्ध में नहीं हैं, या जो मैं पसंद नहीं करता और उन सरकारी नौकरों पर नहीं बोलूं जो मुझे अच्छे लगते हैं या मेरे सम्बन्ध में है ? क्या देश ज्यादा जरूरी है या व्यक्ति ?

    6) `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी कहते हैं कि वे `प्रजा अधीन-राजा` को समर्थन करते हैं, लेकिन कभी भी उसको समर्थन करने या उसके क़ानून-ड्राफ्ट लागू करवाने के लिए कुछ भी नहीं करते |

    उनको बोलें कि अपने प्रोफाइल नाम के पीछे लिखें `प्रजा अधीन-लोकपाल`या `राईट टू रिकाल नागरिकों द्वारा` आदि |

    उनको प्रक्रियाएँ / तरीकों के बारे में पर्चे बांटने के लिए कहें (www.righttorecall.info/406.pdf )

    या उनको समाचार-पत्र में प्रचार देने के लिए कहें, जो उनके नेता, सांसद, विधायक आदि से उनका `प्रजा अधीन-राजा` के ड्राफ्ट के बारे में रुख साफ़ करने के लिए पूछे और ये क़ानून-ड्राफ्ट के धाराओं को अपने कानूनों या घोषणा पत्र में जोड़ने के लिए बोले |

    और उनको बोलें कि अपने संस्था के लोगों को `प्रजा अदीन-राजा` के प्रक्रियाएँ/तरीके और क़ानून-ड्राफ्ट के बारे में बताएं |

    और उनको पूछें कि वे क्या कर रहे हैं, इन क़ानून-ड्राफ्ट को लागू करने के लिए |

    7) `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी/ नकली `प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक कोशिश करेंगे आप को बेकार के बिना क़ानून-ड्राफ्ट के चर्चा में उलझाने के , और आपका समय बरबाद करने के लिए, जो समय आप दूसरों को क़ानून-ड्राफ्ट के बारे में बताने में लगा सकते हो |

    साफ़ मना कर दो बेकार के समय-बरबादी करने वाले बिना क़ानून-ड्राफ्ट के चर्चाओं पर बात करने के लिए | `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी को बोलें कि पहले ड्राफ्ट पढ़ें | उसको क़ानून-ड्राफ्ट दें | और उसको बोलें , कि अनपढ़ बही क़ानून-ड्राफ्ट समझ सकते हैं |

    और उसको बोलें कि धाराओं का जिक्र /उलेख करे ,अपनी बात रखते समय |

    8) `प्रजा अधीन-रजा` के विरोधी / नकली `प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक घंटो-घंटो देश की समस्याओं पर  बात करेंगे , लेकिन एक मिनट भी समाधान पर बात नहीं करेंगे और कभी भी वे क़ानून-ड्राफ्ट नहीं देते जो गरीबी, भ्रष्टाचार आदि कम करेंगे | वे कुछ प्रस्ताव जरुर दे सकते हैं |

    उनको कहें कि उनके प्रस्तावों के लिए ड्राफ्ट दे जो देश की मुख्य समस्याओं जैसे गरीबी, भ्रष्टाचार का समाधान करे क्योंकि सरकार में लाखों कर्मचारी होते हैं और इन कर्मचारियों को आदेश या क़ानून-ड्राफ्ट चाहिए होते हैं , इन प्रस्तावों को लागू करने के लिए | प्रस्ताव उतने ही अच्छे या बुरे हैं जितने कि उनके ड्राफ्ट |

    9) कई `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी / नकली `प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक सही रुख नहीं लेंगे कि वे `प्रजा अधीन-राजा` ड्राफ्ट का समर्थन या विरोध करते हैं जो करोड़ों लोगों के हित में है या दूसरे ड्राफ्ट जो कुछ ही लोगों का फायदा करते हैं जैसे विदेशी कम्पनियाँ आदि |

    उदाहरण., वे बोलते हैं कि वे `जनलोकपाल बिना `राईट टू रिकाल-लोकपाल,नागरिकों द्वारा`  क़ानून-ड्राफ्ट का समर्थन करते हैं या विरोध करते हैं या वो `जनलोकपाल `राईट टू रिकाल-लोकपाल , नागरिकों द्वारा के साथ` ड्राफ्ट का सम्रथन करते हैं या विरोध करते हैं |

    वे कोई साफ़ रुख इसीलिए नहीं करते क्योंकि उनका अपना स्वार्थ होता है , उदाहरण., प्रायोजक उन्हें पैसे देना बंद कर देंगे यदि वे कहेंगे कि वे `प्रजा अधीन-लोकपाल` या अन्य कोई `भ्रस्त को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार` की प्रक्रिया का समर्थन करते हैं तो |

    और यदि वे कहते हैं कि `प्रजा अधीन-राजा` के प्रक्रियाओं का विरोध करते हैं, तो उनकी पोल खुल जायेगी कि वे आम नागरिक-विरोधी हैं |

    इसीलिए वे कोई साफ़ उत्तर/जवाब नहीं देते और कोई रुख/निश्चित फैसला नहीं लेते |

    कभी भी कोई चर्चा में आगे न बढ़ें , जब तक कि `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी का रुख साफ़ न हो जाये क्योंकि ऐसे चर्चाएं केवल समय की बर्बादी ही होगी , समय जो आप इस्तेमाल/प्रयोग कर सकते हैं दूसरे नागरिकों को `प्रजा अधीन-राजा`के प्रक्रियाओं/तरीकों के बारे में जानकारी देने के लिए |

    और एक बार , वो व्यक्ति अपना स्पष्ट/साफ़ रुख ले लेता है, तो तभी चर्चा में आगे बढ़ें, और फिर उनको कहें कि अपनी बात रखने के साथ , वे बताएं कि कौन से ड्राफ्ट और धाराओं के बारे में बात कर रहे हैं |

    10) `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी बहुत बार ये दावा करते हैं कि `भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने`की परक्रियें/तरीके “संभव नहीं” हैं या “ संविधान के खिलाफ” हैं |

    उनसे सबसे पहले पूछें कि ये साफ़ करें  कि कौन सी प्रक्रिया/तरीकों की बात कर रहे हैं | और उस धारा को बताएं जो संविधान के विरुद्ध है और वो धारा , संविधान के कौन सी धारा के विरुद्ध है |

    उनको पूछें कि प्रस्तावित `प्रजा अधीन-राजा` की प्रक्रिया/तरीका में से कौन सी धारा संभव नहीं है और कैसे ? क्या इसीलिए संभव नहीं क्योंकि लोग उतनी रिश्वत नहीं ले पाएंगे  या कि वो लागू नहीं हो सकती है और उसे लागू करने में क्या परेशानी आ रही है |

    उनसे पूछें कि वे `हस्ताक्षर(साइन)-आधारित` भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने की प्रक्रिया/तरीका (जहाँ लोगों को हस्तक्ष इकट्ठे करने होते हैं) या हाजिरी-आधारित भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने की प्रक्रिया/तरीका (जहाँ लोगों को कलक्टर के दफ्तर खुद जाना पड़ता है ,शिकायत लिखने या पटवारी के दफ्तर खुद जाना पड़ता है , पहले से दी हुई शिकायत पर अपनी हाँ/ना दर्ज करने ) ?

    उनसे पूछें कि वे `सकारात्मक` रिकाल (भ्रष्ट को बदलने की प्रक्रिया/तरीका नागरिकों द्वारा) की बात कर रहें हैं (जिसमें लोगों को विकल्प ढूँढना होगा वर्त्तमान `पब्लिक के नौकर` को बदलने के लिए ) या नकारात्मक रिकाल की बात कर रहे हैं (जिसमें लोगों को वर्त्तमान `पब्लिक के नौकर` के खिलाफ मत डालना होता है, उसे निकालने के लिए) ?

    `सकारात्मक` रिकाल अव्यवस्था की स्तिथि कम करता है , जो पद खाली रहने से होती है और ये भ्रष्ट (अधिकारी) को नागरिकों द्वारा हटाना भी आसान बना देता है , क्योंकि `नकारात्मक` रिकाल में , नागरिक भ्रष्ट (अधिकारी) को नहीं हटाएंगे क्योंकि उन्हें दर है कि अगला अधिकारी/व्यक्ति इससे भी बुरा हो सकता है | `सकारात्मक` रिकाल ये संभावना समाप्त कर देता है कि कोई व्यक्ति अपने पद से निकाला जायेगा कुछ ऐसा न कर पाने पर , जो कोई दूसरा भी नहीं कर सकता हो , क्योंकि नागरिक देखेंगे कि विकल्प/दूसरा व्यक्ति भी कर नहीं सकता |

    उनसे पूछें कि वो `राईट टू रिजेक्ट` की जो बात कर रहे हैं, वो एक बटन है जो हर पांच साल दबा सकते हैं (यानी इनमें से कोई नहीं) या `राईट टू रिजेक्ट,किसी भी दिन, नागरिकों द्वारा` /

    (राईट टू रिजेक्ट हर पांच साल ` से कोई भी बदलाव नहीं आएगा | क्यों? क्योंकि ज्यादातर वोट वैसे भी किसी पार्टी के खिलाफ होते हैं , जैसे जो कांग्रेस से नफरत करता है, उनके लिए और कोई चारा नहीं कि वे भा.ज.पा. के लिए वोट डालें ताकि कांग्रेस न जीत पाए और ऐसे ही भा.जा.पा से नफरत करने वाले कांग्रेस को वोट देंगे, `इनमें से कोई भी नहीं` बटन होने के बावजूद | इसीलिए `राईट टू रिजेक्ट हर पांच साल , कोई भी बदलाव नहीं लाएगा |)

    उसको पूछें कि पूरी परिस्स्थिति बताएं अपना दावा को समझाने के लिए , क़ानून-ड्राफ्ट और धाराएं बताते हुए |

    11) ज्यादातर `प्रजा अधीन-राजा`के विरोधी , विदेशी कंपनियों और अन्य कंपनियों के मालिकों की तरफदारी करते हैं |

    कम्पनियाँ `काम के समझौते` बनाती हैं, जिसमें `मर्जी पर कभी भी ` निकाल देने की शर्त लिखी होती है, वो भी बिना कोई सबूत दिए , कोई कारण-अच्छा, बुरा, या बिना कोई कारण दिए

    इसके आलावा , एक `परखने का समय` भी होता है, जिसमें मालिक अपने मजदूरों को कभी भी निकाल सकता है, बिना कोई कारण दिए |

    लेकिन सबूत-भगत (सबूतों की मांग करने वाले) अपनी सबूत की मांग सिर्फ आम नागरिकों के लिए करते हैं | वे कहते हैं कि ये अनैतिक है, कि किसी को बिना सबूत के निकालना | वो बड़े आराम से ये ही मुद्दा गोल कर देते हैं, जब कंपनियों के मालिकों के अधिकारों की बात होती है| तब वे कहते हैं ,कि कोई भी सबूत देने की मालिकों को जरूरत नहीं है और वो अपने कर्मचारी को निकाल सकता है , बिना कोई सबूत के !!

    क्या ये खुला भेद-भाव नहीं है ? क्या ये संविधान के खिलाफ नहीं है ?

    हम, आम नागरिक ,  कंपनी मालिकों के समान अधिकार की मांग करते हैं |

    जैसे कंपनी मालिकों को बिना कोई सबूत के , अपने कर्मचारियों को निकालने का अधिकार है, हम 120 करोड़ ,इस देश के मालिक , हमारे द्वारा देश को चलाने के लिए रखे गए नौकर, प्रधान-मंत्री, मुख्यमंत्री, लोकपाल,जज, और अन्य जरूरी अधिकारी को निकालने का अधिकार होना चाहिए ,बिना कोई सबूत | हमारे पास `राईट टू रिकाल(भ्रष्ट को बदलने का अधिकार), बिना कोई सबूत के ` होना चाहिए |

    12)  एक और चीज जो `प्रजा अधीन-रजा` के विरोधी बोलते हैं कि ` हमें क्यों सेना को मजबूत बनाने के लिए पैसे देना चाहिए टैक्स के रूप में , जैसे `विरासत टैक्स`, सीमा-शुल्क , `संपत्ति टैक्स` आदि ? वे अपने बारे में अधिक सोचते हैं, बजाय कि देश के |

    अरे, यदि वे ये सब टैक्स नहीं देंगे , तो देश की सेना, पोलिस और कोर्ट देश की सुरक्षा नहीं कर पाएंगी , विदेशी कंपनियों और देशों को हमें गुलाम बनाने से , और सबसे पहले तो पैसे-वाले ही लूटे जाएँगे , और देश का 99% धन लूट लिया जायेगा |

    और यदि कोई अपना धन-संपत्ति खुद सुरक्षा करने की कोशिश करता है , तो उसको कहीं ज्यादा खर्च करना होगा , मिलकर धन (सामूहिक धन-संपत्ति) की सुरक्षा करने पर जो खर्च होगा, उसकी तुलना में  |

    इसीलिए दोनों, आर्थिक(पैसे ) के नजरिये से और अच्छे-बुरे(नैतिक) के नजरिये से , ज्यादा पैसे-संपत्ति वालों को ज्यादा टैक्स देना चाहिए , कम पैसे और संपत्ति वालों कि तुलना में |

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    कुछ `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी / जाली `प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक अपने रुख पर जमे रहेंगे , कुछ `प्रजा अधीन-राजा` के समर्थक भी बन जाते हैं , सच्चाई जानने के बाद |

    लेकिन यदि व्यक्ति, क़ानून-ड्राफ्ट पर बात करने से मना कर दे, अपना रुख स्पष्ट/साफ़ करने से मना कर दे, तो उसके साथ आगे चर्चा बंद कर दें , क्योंकि ये केवल समय की बरबादी ही होगी , वो समय जो दूसरों को `प्रजा अधीन-राजा` के क़ानून-ड्राफ्ट की जानकारी देने के लिए प्रयोग /इस्तेमाल कर सकते हैं |

    उन लोगों को बोलना चाहिए कि ` हमें तुमसे चर्चा नहीं करनी क्योंकि तुम अपना नागरिक का कर्तव्य भी नहीं पूरा कर रहे, क़ानून-ड्राफ्ट ना पढ़ कर | हमें और दूसरों को कम से कम अपना कर्तव्य पूरा करने दो |`

     

    (13.16) सारांश (छोटे में बात)

    `प्रजा अधीन-रजा` के आंदोलन में मुश्किल हिस्सा ये है कि जब `प्रजा अधीन-राजा` के क़ानून-ड्राफ्ट भारतीय राज-पत्र में भी छाप जायें तो भी , कार्यकर्ताओं जिन्होंने अपना समय और पैसा लगाया है, उनको एक आम नागरिक से ज्यादा नहीं मिलेगा | कोई नाम, कोई सत्ता नहीं मिलेगी | इसमें तो देना ही देना है |और ये पहले दिन से हर कार्यकर्ता को साफ़ हो जाती है, कि इसमें फायदा शून्य/जीरो है | दूसरे पार्टियों और विचारधाराओं से अलग, `प्रजा-अधीन-राजा` के तरीके कोई भी गलत भ्रम नहीं पैदा करते  | इसीलिए, केवल 100% निस्वार्थ व्यक्ति ही अपना समय/पैसा `प्रजा अधीन-राजा` के क़ानून-ड्राफ्ट की जानकारी फैलाने में लगायेगा | ये शायद आंदोलन को धीमा बना सकती है |

    श्रेणी: प्रजा अधीन