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(11.3) प्रस्तावित कानूनों के प्रारूपों / क़ानून-ड्राफ्टों का महत्व |
मेरा मानना है कि प्रत्येक ईमानदार उम्मीदवार और हरेक ईमानदार राजनीतिक पार्टी को उन सभी सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) “और विधानों” की घोषणा अवश्य करनी चाहिए जो वे भारत की वर्तमान मौजूदा समस्याओं के समाधान के लिए लागू करवाने का इरादा रखते है। हमलोग यह भी मानते हैं कि प्रत्येक नागरिक को उम्मीदवार से कानूनों के उन ड्राफ्टों/प्रारूपों की मांग अवश्य करनी चाहिए जिन्हें पारित/ पास कराने का इरादा वह उम्मीदवार रखता है । बिना प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट के प्रस्तावित परिवर्तन देखने में तो सुंदर लगते हैं लेकिन बेकार हैं । – चुनाव के बाद नागरिक, चुनाव घोषणा-पत्र के विवरण , वायदों को कलेक्टर के कार्यालय अथवा कोर्ट/न्यायालय में नहीं ले जा सकते और इनमें लिखी गई नीतियों के लाभ की मांग नहीं कर सकते । सरकारी कार्यालयों और कोर्ट के भीतर जिस बात का महत्व है वह सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) का क़ानून-ड्राफ्ट है जिसपर लिखी गई सामग्री पर मंत्रियों ने हस्ताक्षर किया है। यही कारण है कि हमने उन सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) के प्रारूपों/ड्राफ्टों को पूरा महत्व दिया है जिसपर हस्ताक्षर करवाने की हमारी योजना है और राजनीतिक बयानों को हम जरा भी महत्व नहीं देते ।
सरकार में लाखों कर्मचारी होते हैं | उन कर्मचारियों को आदेश या प्रारूप देना होता है, केवल ये पर्याप्त नहीं है कि ये कहना कि भ्रष्टाचार कम करो| कोई भी प्रस्ताव उतना ही अच्छा या बुरा है जितना कि उसका क़ानून-ड्राफ्ट , इसीलिए हम कार्यकर्ताओं को कहते हैं कि क़ानून-ड्राफ्ट पर ध्यान दें /केंद्रित करें जिनसे भ्रष्टाचार ,गरीबी आदि देश की ज्वलंत समस्याओं का हल हो सकता है |
(11.4) भारत के अधिकतर बुद्धिजीवी – विशिष्ट / उच्च वर्ग के एजेंट हैं |
भारत के बुद्धिजीवी जो समाचार पत्र ,पाठ्यपुस्तकों में लिखते हैं विशिष्ट/उच्च वर्ग के एजेंट/कारिंदे हैं| और ये बुद्धिजीवी ने इतना जहर भर दिया है आज के शिक्षित युवा के दिमाग में , पाठ्यपुस्तकों और समाचार पत्र के स्तंभों द्वारा कि अब एक औसत शिक्षित व्यक्ति जनसाधारण-विरोधी है | और जितनी अधिक शिक्षा उसके पास है, उतनी अधिक संभावनाएं हैं कि वो उतना समय लगता है जो रद्दी ये बुद्धिजीवी लिखते हैं और उतनी अधिक संभावनाएं हैं कि वो जनसाधारण-विरोधी है |
बुद्धिजीवी लिखते हैं कि भारत का आम आदमी एक बदमिजाज , सरफिरा , एक जातिवादी, एक सांप्रदायिक है, उसका कोई राष्ट्रिय स्वभाव नहीं है ,उसके कोई नैतिक मूल्य नहीं हैं, वह एक चोर है और एक बदमाश है और वह यौन रूप से बिगड़ा हुआ है ,आदि आदि | और शिक्षित लोग ये सब पड़ते हैं अपने पाठ्यपुस्तकों और समाचार पत्र स्तंभों में , हमेशा और जनसाधारण-विरोधी हो जाते हैं | एक शिक्षित व्यक्ति को एक बदलाव के लिए क्या करना चाहिए — वो एक व्यसन/ बुरी आदत चिन्हित करे जो जज, बुद्धिजीवी ,शिक्षित ,मंत्रियों, बाबुओं (भारतीय प्रशाशनिक सेवक) ,पुलिस अफसरों आदि में सामान हो | सभी जज क़ानून की डिग्री प्राप्त किये हुए होते हैं और 95% से अधिक पूरी तरह से भाई-भातिजेवाद ग्रसित होते है | सभी पुलिस अफसर (भारतीय पुलिस सेवक ) उच्च शिक्षित होते हैं और उनमें से 95% से अधिक हर साल एक करोड़ से अधिक बनाते हैं | इसके बावजूद, “जनसाधारण बुरा ,विशिश्त्वर्ग अच्छा “ के गान चलते रहते हैं |
अधिकतर प्रसिद्ध बुद्धिजीवी विशिश्त्वर्ग/नेता के प्रतिनिधि/एजेंट हैं | वे इसी तरह प्रसिद्ध बनते हैं —पहले वे नेता/विशिश्त्वर्ग के वफादार समर्थक बनते हैं और फिर विशिष्ट/उच्च वर्ग /नेता उनपर धन खर्च करते हैं या शक्ति का उपयोग करते हैं उनको प्रसिद्ध बनाने के लिए | उच्च वर्ग के लोग लोकतांत्रिक प्रक्रियां जैसे जूरी(प्रजा अधीन न्याय्त्रंत्र), रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) आदि नहीं चाहते और इसीलिए जूरी प्रणाली, रिकाल भारत का पतन करेंगे ऐसा उन्होंने अपने पालतू बुद्धिजीवियों को भय का वातावरण पैदा करने के लिए कहा है |विद्यार्थियों और पाठकों के मन में भय कैसे पैदा होगा? सरल है — भारत के हम जनसाधारण लोगों को कोई अनियमित,असब्य,हिंसक,सांप्रदायिक,जातिवादी और मूर्ख के रूप में प्रस्तुत करो/दर्शाओ | इसीलिए पाठ्यपुस्तकाएं, समाचार पत्र स्तंभ निरंतर भारत के जनसाधारण को नीचा दिखाते हैं और शायद ही कभी इस बात का वर्णन/जिक्र करते हैं कि बाबू ,भारतीय पुलिस सेवक, बुद्धिजीवी भारत में कहीं अधिक बुरे हैं |
शिक्षा व्यक्ति को जनसाधारण को नफरत नहीं करवाती— वास्तव में यदि कोई सूचित है कि कैसे भारतीय न्यायालय/कोर्ट , रिसर्व बैंक , पुलिस आदि काम करते हैं, तो वह जानेगा कि कैसे उच्च वर्ग के लोग, खनिज खानों के मालिक,बाबू(भारतीय प्रशाशनिक सेवक), जज, आदि जनसाधारण को लुटते हैं और वो जनसाधारण के लिए दया महसूस करेगा | ये तथाकथित निरक्षरता इसीलिए है क्योंकि बुद्धिजीवी जनसाधारण को अनपढ़ रखना चाहते हैं ताकि वे आसानी से दबाये और पीटे जा सके | इसीलिए बुद्धिजीवी उन प्रक्रियां का विरोध करते हैं जिससे हम जनसाधारण को जिला शिक्षा अधिकारी को बदल सकें या बदलने से रोक सकें, क्योंकि ऐसी प्रक्रिया ऐसा जिला शिक्षा अधिकारी लाएगा जो जनसाधारण को शिक्षित करने में रूचि रखता हो |
अंग्रेजी पाठ्यक्रम ने हमेशा ये सूचित किया था कि भारतीय जनसाधारण निम्न है और उसे “शाषित” करने की आवश्यकता है ताकि भारतीय जनसाधारण को सभ्य किया जा सके | और वर्त्तमान बुद्धिजीवी भी यही सदस देते हैं उनकी समाचार पत्र स्तंभ और पथ्य्पुस्तिकाओं में | लेकिन मैं अंग्रेजों को वर्त्तमान स्तिथि के लिए दोष नहीं दूँगा | वर्त्तमान के बुद्धिजीवी जनसाधारण-विरोधी नजारिया//दृष्टिकोण पैदा कर रहे हैं विद्यार्थियों के मन में क्योंकि वे नहीं चाहते कि विद्यार्थी लोकतांत्रिक सोच के बनें और विद्यार्थियों को अल्पजन-तंत्र (कुछ ही लोग निर्णय लें) समर्थक बनाना चाहते हैं | और ये इसिलिय है कि नेता, बाबू, पुलिस सेवक , जज, विशिष्ट/उछ वर्ग के लोग की अल्पजन-तंत्रता उन्हें ऐसा करवाना चाहती है |
ना केवल विचार ,यहाँ तक कि समाचार-पत्र के लेख और पाठ्यपुस्तकाएं भी नियंत्रित की जाती हैं सेना-विरोधी, लोकतंत्र-विरोधी, जनसाधारण द्वारा भ्रष्ट को निकालने/सज़ा दिए जाने के विरोधी ,उद्धारण , मैं बहुत पड़े लिखे व्यक्तियों से मिलता हूँ और उनसे पूछता हूँ कि चीन और भारत के परमाणू शक्ति के अनुपात के बारें में, जो 100:1 है उच्चतम विस्फोटक परीक्षण के मामले में और 20:1 है परमाणु हथिया के मामले में और कुछ 100:1 कुल विस्फोटक शक्ति के मामले में| उत्तर तो क्या उनके पास इसका कोई सुराग भी नहीं होता | वो वोही रत्ता लगते हैं जो मीडिया/संचार माध्यम कहते हैं “ न्यूनतम विश्वशनीय रोक/निवारक हमारे पास है “ लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि सबसे बड़ा बम/गोला जो हमने परिक्षण किया है 45 किलो टन का है और चीन ने 4200 किलो टन का बम परिक्षण किया है| उन्हें ये इसलिए नहीं पता क्योंकि उन्हें मीडिया वालों ने कभी बताया नहीं| और मीडिया वालों ने इसीलिए उन्हें नहीं बताया क्योंकि उच्चवर्ग के लोगों को शांति-समर्थक, सेना-विरोदी नागरिक चाहिए, लेकिन ये सूचना(चीन/भारत के परमाणु शक्ति के बारे में) देने से उसका झुकाव सेना को सशक्त बनाने के और होगा | इसीलिए ये महत्पूर्ण ,मूल्यवान जानकारी सार्वजनिक स्थानों से हटा दी जाती है |