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अध्याय 11 – प्रजा अधीन राजा / राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह तथा सभी पार्टियों, प्रमुख बुद्धिजीवियों के बीच अंतर

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 प्रजा अधीन राजा / राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह तथा सभी पार्टियों, प्रमुख बुद्धिजीवियों के बीच अंतर

   

(11.1) हम अधिकांश दलों और अधिकांश बुद्धिजीवियों से पूरी तरह अलग हैं । मुख्‍य अंतर इस प्रकार है

प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह के हमलोगों का क्या कहना है

सभी दलों के सांसदों और भारत के प्रमुख बुद्धिजीवी लोगों का क्या कहना है  

1. खनिज के खान और सरकारी प्लॉट के स्वामित्व / मालिकी के संबंध में

प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह इस बात पर बल देता है की सभी खान और सरकारी प्लॉट हम भारतीयों (हम नागरिकों) के हैं न कि भारत राज्य के। और इसलिए हम इस बात पर जोर देते हैं कि हम नागरिकों और हमारी सेना को सारा किराया मिलना चाहिए। और भी सीधे शब्दों में, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह पूरी तरह यह मानती है कि नागरिकों को भारत सरकार के प्लॉटों जैसे कि आईआईएमए प्लॉट, जेएनयू प्लॉट, हवाई अड्डा प्लॉट इत्यादि से किराया अवश्य मिलना  चाहिए।

कांग्रेस, बीजेपी, सीपीएम और भारत के सभी बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों ने कहा है कि सभी खान और सरकारी प्लॉट भारत “राज्य” की संपत्ति है और आम भारतीयों का उनपर कोई स्वामित्व व नियंत्रण नहीं होगा। और उन्होंने आईआईएमए, जेएनयू, और हवाई अड्डों के प्लॉटों पर भारतीयों (नागरिकों) को किराया देने से सीधे तौर पर इनकार कर दिया है।

2. हमलोग लोकतंत्र के पक्षधर हैं, सभी वर्तमान पार्टियों के सांसद और भारत के प्रमुख बुद्धिजीवी फासीस्‍टवादी हैं।

`नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी `(एमआरसीएम)  समूह के हम लोग राजनीतिक परिदृश्य में अकेले समूह हैं जो इस बात पर जोर देते हैं कि हम आम लोगों को विधायी शक्तियाँ प्राप्त करनी होगी और हम आम लोगों के पास अधिकारियों/ जजों को हटाने और बदलने की शक्तियाँ होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, हमलोग लोकतंत्रवादी हैं।

सभी वर्तमान दल और भारत के सभी प्रमुख बुद्धिजीवी लोग हम आम आदमी और मतदाताओं को मूर्ख समझते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि हम आम लोगों के हाथों में कानून बनाने में कोई राय/मत नहीं होना चाहिए और अधिकारियों, पुलिसवालों, न्यायाधीशों की नियुक्तियों / बदलाव का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। और हम आम लोगों का न्यायालय में फैसला लेने में कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। भारत के अधिकांश बुद्धिजीवियों की मानसिकता फासीस्‍टवादी है। और इसलिए वे दृढ़ता से जोर देते हैं कि प्रशासन के सभी विवेकाधिकार केवल मंत्रियों, आईएएस, आईपीएस अधिकारियों जजों व बुद्धिजीवियों के पास होने चाहिए। विवेकाधिकार की शक्तियों की बात तो छोड़ ही दीजिए, फासीस्‍टवादी वैसे भारतीय हैं जो जनता की आवाज(सूचना का अधिकार -2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली तक का विरोध करते हैं – और नागरिकों को केवल प्रधानमंत्री की वेवसाइट पर शिकायत दर्ज करने की ही छूट नहीं देते हैं। हम उनके फासीस्‍टवाद की निंदा करते हैं और वे हमारे लोकतंत्रवाद की निंदा करते हैं।

3. नागरिकों द्वारा संविधान की, की गई व्याख्या अंतिम होगी; सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा की गई व्याख्या अंतिम नहीं होगी

हमलोग भारत में एकमात्र समूह हैं जो इस बात पर विश्वास करते हैं कि हम भारत के नागरिकों द्वारा कि गई भारत के संविधान की व्याख्या अंतिम आवाज होगी और सुप्रीम-कोर्ट के दो दर्जन जज द्वारा संविधान की व्याख्या महत्वपूर्ण हो सकती है लेकिन अंतिम नहीं। हम इस बात पर सहमत हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जजों की व्याख्या मंत्रियों की व्याख्या से उपर है और यह नागरिकों के लिए वास्तव में महत्वपूर्ण है कि वे इस बात का ध्यान दें । लेकिन  यह अंतिम नहीं है, स्वयं हमारे संविधान में इसकी प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत एक लोकतंत्र और एक गणतन्त्र होगा जो स्पष्ट रूप से “नागरिक समीक्षा प्रणाली” का समर्थन करता है। इस प्रणाली में यह उल्लेख है कि नागरिकों द्वारा संविधान की, की गई व्याख्या अंतिम है और यह न्यायिक पुनर्विचार से उपर है। यही कारण है की हम निचली अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक निर्णायक मंडल (जूरी) प्रणाली पर जोर दे रहे हैं और नागरिक समीक्षा प्रणाली की माँग करते हैं जिसमें नागरिकगण उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा   दिये गए निर्णयों की संवैधानिक वैधता पर हाँ/नहीं दर्ज कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, हम संवैधानिक लोकतंत्र पर विश्वास करते हैं।

सभी मौजूद पार्टियों के सांसद और भारत के सभी प्रमुख बुद्धिजीवियों ने हमेशा नागरिक समीक्षा प्रणाली का विरोध किया है और निर्णायक मंडल (जूरी) प्रणाली का भी विरोध किया है। उन्‍होंने हमेशा जज सिस्टम का और न्‍यायतांत्रिक समीक्षा का समर्थन किया है। जबकि वर्तमान सभी पार्टियां और सभी बुद्धिजीवी इस बात पर जोर देते हैं कि‍ सुप्रीम-कौर्ट के दो दर्जन जजों द्वारा संविधान की, की गई व्‍याख्‍या अंतिम होगी और हम आम लोगों की व्‍याख्‍या बेकार की बात मानी जाएगी। सभी दल और बुद्धिजीवी इस बात पर जोर देते हैं कि हम नागरिकों द्वारा की गई व्‍याख्‍या की अनदेखी की जानी चाहिए और सुप्रीम-कोर्ट के जजों पर हमारे हॉं/ नहीं की राय ली नहीं जानी चाहिए। और सभी बुद्धिजीवी इस बात पर जोर देते हैं कि सुप्रीम-कोर्ट द्वारा की गई व्‍याख्‍या आम लोगों पर मीडिया, शिक्षा और पुलिस और यदि जरूरत पड़ी तो सेना का प्रयोग करके निर्दयतापूर्वक और कठोरता से थोपी जानी चाहिए। दूसरे शब्‍दों में, वर्तमान सभी दल और बुद्धिजीवी संवैधानिक न्‍यायतांत्रिक फासीस्‍टवाद पर विश्‍वास करते हैं।

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 4. सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) और सरकारी आदेशों, अध्‍यादेशों , के क़ानून-ड्राफ्ट का जनता के समक्ष प्रस्तुत करना जो देश की समस्याओं का समाधान कर सकें

हमलोग भारत में पहले और एकमात्र समूह हैं जो उन सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) के प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट दिखलाते हैं जिसकी हम मांग करते हैं। हम लोगों से यह नहीं कहते कि वे हमपर विश्‍वास करें। हम लोगों से यह अनुरोध करते हैं कि वे हमारी सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) को पढ़ें और खुद निर्णय करें कि क्‍या ये अधिसूचनाएं(आदेश) ऐसी नहीं हैं जिनका समर्थन किया जाना चाहिए। इस प्रकार से एक नागरिक मतदाता को यह निर्णय करने का पूर्ण अधिकार होगा कि उन्‍हें हमारा समर्थन करना चाहिए या विरोध।

हरेक समूह नीति बनाने के संबंध में वायदे करता है, लेकिन हर दल, सांसद और विधायक उस सरकारी आदेश के क़ानून-ड्राफ्ट प्रकाशित करने से मना कर देता है जो अपने वायदों को पूरा करने के लिए वे पारित करते  । उनका उत्‍तर होता   है,“ पहले आप हमारे पक्ष में मतदान करें और तब हम मंत्री बनने के बाद आपको प्रारूप(क़ानून-ड्राफ्ट ) दिखलाएंगे। ” अच्‍छा, प्रत्‍याशी महोदय, यदि प्रारूप(क़ानून-ड्राफ्ट ) निरर्थक और हम आम जनता के लिए  कल्‍याणकारी न निकला तो ? उत्‍तर फिर से यही है ,“मुझपर भरोसा रखिए ” हम लोग आपको ऐसे अस्‍पष्‍ट और घुमाफिरा कर उत्‍तर नहीं देते।

5. `राजनीतिक संस्‍कृति` की झूठी कहानी/मिथक के संबंध में

भारत की समस्‍या कानून के उन गलत/खराब ड्राफ्टों के कारण है जिन्‍हें बुद्धिजीवियों और दूसरी पार्टियों के सांसदों ने लागू करवाया है। हम आम लोगों की संस्‍कृति में कुछ भी गलत नहीं है।

प्रमुख बुद्धिजीवियों ने राजनीतिक संस्‍कृति की एक झूठी कहानी/मिथ को लागू करवाया है और वे दावा करते हैं कि भारत की समस्‍याएं हम आम भारतीयों की इस संस्‍कृति के कारण है न कि उन गलत कानूनों के कारण जिनका वे समर्थन करते हैं।

6. सभी दलों / पार्टियों को चुनाव जीतना है, घूस वसूलना है; हमे केवल उन कानूनों को लागू करवाना है जिनकी हम मांग करते हैं।

हमारा पहला लक्ष्‍य कुछ सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) को लागू करवाना है, चुनावों में जीत हासिल करना नहीं। हम केवल इसलिए चुनाव लड़ते हैं कि हम उन सरकारी आदेशों और कानूनों का प्रचार कर सकें जिनकी हम मांग करते हैं और जिनको लागू करवाने का हम वायदा करते हैं। हम इस बात पर जोर नहीं देते कि मतदातागण हमें वोट/मत दें – हम सिर्फ इस बात पर जोर देते हैं कि जनता अपने मुख्‍यमंत्रियों, प्रधानमंत्री, विधायकों और सांसदों पर दबाव डालें कि वे उन कानूनों को लागू करवाएं जिनका प्रस्‍ताव हम कर रहे हैं। और हम जनता से हमें वोट देने के लिए केवल तभी कहते हैं जब वे इस बात से संतुष्‍ट हों कि अन्‍य समूहों/दलों के नेता इन सरकारी आदेशों पर हस्‍ताक्षर नहीं करेंगे।

 सभी दलों/पार्टियों का मुख्‍य लक्ष्‍य चुनाव जीतना मात्र है और वे प्रशासन में कोई बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध/समर्पित नहीं हैं।

7. कोर्ट में भ्रष्‍टाचार, भाई-भतीजावाद में कमी लाने के संबंध में

हमलोग एकमात्र समूह हैं जो न्‍यायालयों/कोर्ट में भाई-भतीजावाद के खिलाफ बोलते हैं।

अन्‍य सभी समूहों के नेतागण और बुद्धिजीवी कोर्ट/न्‍यायालय में भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने वाले कानूनों (जैसे साक्षात्कार/इंटरव्‍यू प्रणाली और जज/न्‍यायाधीश प्रणाली) का समर्थन करके न्‍यायालयों में भाई-भतीजावाद का समर्थन करते हैं।

8. आम जनता के लिए सम्‍मान के संबंध में

आम जनता का हम पूरा – पूरा सम्मान करते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि कानूनी और प्रशासनिक मुद्दों पर जनता की हां/नहीं को दर्ज/रजिस्‍टर किया जाना चाहिए और इसे महत्‍व दिया जाना चाहिए।

भारत के सभी दलों के नेताओं और बुद्धिजीवियों के पास हम आम जनता के लिए अपमान के सिवाय और कुछ भी नहीं है । वे हम आम लोगों को “अपरिपक्व” समझते हैं ( पढ़िए: मुर्ख, मंदबुद्धि आदि)। और इसलिए वे इस बात पर जोर देते हैं कि कानूनों, निर्णयों, नियुक्‍तियों आदि पर हम आम लोगों के हां/नहीं को दर्ज तक नहीं किया जाना चाहिए, महत्‍व देने की बात तो भूल ही जाइए।

9. दान/चन्‍दा के विरोध के संबंध में

हम दान/चन्‍दा के खिलाफ हैं। हमारा मानना हैं कि कार्यकर्ता हमें समय दें और वे जेरोक्‍स/फोटोकॉपी कराने, समाचारपत्र के विज्ञापनों आदि पर खर्च कर सकते हैं लेकिन उन्‍हें दल के नेताओं के पास पैसा बिलकुल नहीं भेजना चाहिए।

सभी पार्टियां कार्यकर्ताओं को दान/चन्‍दा जमा करने/वसूलने के लिए कहती हैं। और दान देने वाले दान देकर केवल इन पार्टियों को बरबाद ही कर रहे हैं और भारत के राजनीतिक परिदृष्‍य को और बिगाड़ रहे हैं।

10.  लगभग 100-120 और अंतर/भिन्नताएं

और लगभग 120 अंतर हैं। इतने अधिक अंतर? हां। इतने अधिक और इससे भी अधिक/ज्यादा । हमने प्रशासन में सुधार लाने के लिए लगभग 120 से अधिक सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) का प्रस्‍ताव किया है। इन अंतरों/भिन्नताओं को जानने के लिए कृपया http://www.righttorecall.info/all_drafts.pdf पर उन सरकारी आदेशों की सूची देखें/पढ़ें जिनकी हम मांग करते हैं और जिनका हम वायदा करते हैं।

और भारत की वर्तमान सभी पार्टियों और सभी बुद्धिजीवियों ने इनमें से प्रत्‍येक (अधिसूचना(आदेश)) का विरोध किया है। और इस प्रकार `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी` (एम आर सी एम) समूह और भारत की अन्‍य सभी पार्टियों के सांसदों तथा सभी बुद्धिजीवियों के बीच लगभग 120 अंतर है।

11.  सभी दलों / पार्टियों के स्‍वैच्‍छिक कार्यकर्ताओं /वोलंटियर्स के प्रति दृष्‍टिकोण

मैं और आर आर जी के अन्‍य सभी स्‍वयंसेवक किसी पार्टी के कार्यकर्ताओं, गैर सरकारी संगठनों से कभी नहीं कहते कि वे अपनी पार्टी / गैर सरकारी संगठन को छोड़ दें। बल्‍कि हम उनसे आग्रह /अनुरोध करते हैं कि “क्‍या आप अपने नेताओं को उनके चुनाव घोषणापत्र में प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन – मुख्‍यमंत्री, प्रजा अधीन – उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश आदि /क़ानून-ड्राफ्ट शामिल करने के लिए कह सकते हैं ? मेरा लक्ष्‍य/उद्देश्‍य ज्‍यादा से ज्‍यादा राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं को प्रभावित करने, उन्‍हें दल के चुनाव घोषणा पत्र में प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) ,जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली आदि प्रारूप शामिल करवाकर उन्‍हें प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह के हमशक्‍ल/क्‍लोन में बदलने का है।”

 जबकि सभी वर्तमान पार्टियों के नेतागण कार्यकर्ताओं से दूसरी पार्टियां छोड़ने और उनकी अपनी पार्टी में आ जाने के लिए कहते हैं।

   

(11.2) प्रचार के तरीकों में सबसे महत्‍वपूर्ण अंतर

कम से कम 50 या उससे अधिक अंतर मौजूद हैं । उपर उल्‍लिखित 11वां अंतर, तरीके  के साथ-साथ उद्देश्‍य में मूलभूत अंतर को दर्शाता है । सभी वर्तमान दलों के नेता कार्यकर्ताओं से हमेशा कहते हैं कि वे दूसरे दलों को छोड़ दें और उनकी अपनी पार्टी में आ जाएं। क्‍योंकि ये नेता सत्‍ता के केन्‍द्र बनना चाहते हैं। जबकि मैं और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह के मेरे अन्‍य स्‍वयंसेवी कार्यकर्ता, किसी भी पार्टी, गैर सरकारी संगठन के कार्यकर्ताओं को उनकी पार्टियां, गैर सरकारी संगठन छोड़ने को नहीं कहते । इसके बदले, हम उनसे अनुरोध करते हैं “क्‍या आप अपने नेताओं को मना सकते हैं कि वे प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन – मुख्‍यमंत्री, प्रजा अधीन – उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश आदि प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट अपने चुनाव घोषणा पत्र में शामिल कर लें? ”

और मैं खुलेआम इस बात पर जोर देता हूं कि मुझे ज्‍यादा खुशी होगी यदि कार्यकर्ता एक और अलग प्रतियोगी प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह का गठन करें अथवा अपने नेताओं पर दबाव डालना जारी रखें कि वे `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)`, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार), नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम आर सी एम) प्रारूपों/ड्राफ्टों को अपने संगंठन के ऐजेंडे में शामिल करें!! क्‍यों? क्यों मैं किसी आर.टी.आर(प्रजा अधीन रजा) कार्यकर्ताओं को एक प्रतियोगी प्रजा अधीन राजा पार्टी का गठन करने के लिए कहता हूँ ? अथवा मैं उनसे यह क्‍यों कहता हूँ  कि वे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) प्रारूपों/ड्राफ्टों को अपने संगठन के एजेंडे में शामिल करें? क्‍योंकि जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूपों/ड्राफ्टों के लिए केवल एक प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह द्वारा प्रचार करने के बदले मैं इस बात को ज्‍यादा पसंद करूंगा कि 1000 प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह हों और उनमें से प्रत्‍येक `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी` (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट , प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट आदि की मांग करे। अब यदि 1000 प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) ड्राफ्टों की मांग करते हैं और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) ड्राफ्टों के लिए एक अत्‍यधिक प्रतियोगी राजनीति प्रारंभ कर देते हैं तब सभी प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह वोटों के बटवारे के चलते चुनाव हार सकते हैं लेकिन प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट के बारे में जानकारी भारत के नागरिकों मे अधिक से अधिक लोगों के बीच फैलेगा। और सबसे तेजी से फैलेगा । साथ ही यदि 1000 संगठन प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट की मांग कर रहे हों तो विरोधियों के लिए प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट  की मांग को ठुकराना ज्‍यादा कठिन होगा। जैसा कि मैं कई बार कह चुका हूँ कि मेरा लक्ष्‍य चुनाव जीतना नहीं है——- मेरा लक्ष्‍य `जनताकी आवाज-पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) क़ानून-ड्राफ्टों , प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) प्रारूपों/ड्राफ्टों  को पास / पारित करवाना है।  और इसलिए 1000 प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह और संगठन जिनमें से हरेक प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट की मांग कर रहा हो, वह ज्‍यादा बेहतर काम करेगा न कि केवल एक प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट की मांग करे। और इसलिए मुझे खुशी होगी जब एक सच्‍चा कार्यकर्ता मेरे समूह का सदस्‍य न बने लेकिन वह एक और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह गठित करे अथवा अपने संगठन के ऐजेंडे में प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के प्रारूपों/ड्राफ्टों को शामिल करवाने की कोशिश करे।

   

(11.3) प्रस्‍तावित कानूनों के प्रारूपों / क़ानून-ड्राफ्टों का महत्‍व

मेरा मानना है कि प्रत्‍येक ईमानदार उम्‍मीदवार और हरेक ईमानदार राजनीतिक पार्टी को उन सभी सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) “और विधानों” की घोषणा अवश्‍य करनी चाहिए जो वे भारत की वर्तमान मौजूदा समस्‍याओं के समाधान के लिए लागू करवाने का इरादा रखते है। हमलोग यह भी मानते हैं कि प्रत्‍येक नागरिक को उम्‍मीदवार से कानूनों के उन ड्राफ्टों/प्रारूपों की मांग अवश्‍य करनी चाहिए जिन्‍हें पारित/ पास कराने का इरादा वह उम्‍मीदवार रखता है । बिना प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट  के प्रस्‍तावित परिवर्तन देखने में तो सुंदर लगते हैं लेकिन बेकार हैं । – चुनाव के बाद नागरिक, चुनाव घोषणा-पत्र के विवरण , वायदों को कलेक्‍टर के कार्यालय अथवा कोर्ट/न्‍यायालय में नहीं ले जा सकते और इनमें लिखी गई नीतियों के लाभ की मांग नहीं कर सकते । सरकारी कार्यालयों और कोर्ट के भीतर जिस बात का महत्व है वह सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) का क़ानून-ड्राफ्ट है जिसपर लिखी गई सामग्री पर मंत्रियों ने हस्‍ताक्षर किया है। यही कारण है कि हमने उन सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) के प्रारूपों/ड्राफ्टों को पूरा महत्‍व दिया है जिसपर हस्‍ताक्षर करवाने की हमारी योजना है और राजनीतिक बयानों को हम जरा भी महत्‍व नहीं देते ।

सरकार में लाखों कर्मचारी होते हैं | उन कर्मचारियों को आदेश या प्रारूप देना होता है, केवल ये पर्याप्त नहीं है कि ये कहना कि भ्रष्टाचार कम करो| कोई भी प्रस्ताव उतना ही अच्छा या बुरा है जितना कि उसका क़ानून-ड्राफ्ट , इसीलिए हम कार्यकर्ताओं को कहते हैं कि क़ानून-ड्राफ्ट पर ध्यान दें /केंद्रित करें जिनसे भ्रष्टाचार ,गरीबी आदि देश की ज्वलंत समस्याओं का हल हो सकता है |

 

 

   

(11.4) भारत के अधिकतर बुद्धिजीवी – विशिष्ट / उच्च वर्ग के एजेंट हैं

भारत के बुद्धिजीवी जो समाचार पत्र ,पाठ्यपुस्तकों में लिखते हैं विशिष्ट/उच्च वर्ग के एजेंट/कारिंदे हैं| और ये बुद्धिजीवी ने इतना जहर भर दिया है आज के शिक्षित युवा के दिमाग में , पाठ्यपुस्तकों और समाचार पत्र के स्तंभों द्वारा कि अब एक औसत शिक्षित व्यक्ति जनसाधारण-विरोधी है | और जितनी अधिक शिक्षा उसके पास है, उतनी अधिक संभावनाएं हैं कि वो उतना समय लगता है जो रद्दी ये बुद्धिजीवी लिखते हैं और उतनी अधिक संभावनाएं हैं कि वो जनसाधारण-विरोधी है |

बुद्धिजीवी लिखते हैं कि भारत का आम आदमी एक बदमिजाज , सरफिरा , एक जातिवादी, एक सांप्रदायिक है, उसका कोई राष्ट्रिय स्वभाव नहीं है ,उसके कोई नैतिक मूल्य नहीं हैं, वह एक चोर है और एक बदमाश है और वह यौन रूप से बिगड़ा हुआ है ,आदि आदि | और शिक्षित लोग ये सब पड़ते हैं अपने पाठ्यपुस्तकों और समाचार पत्र स्तंभों में , हमेशा और जनसाधारण-विरोधी हो जाते हैं | एक शिक्षित व्यक्ति को एक बदलाव के लिए क्या करना चाहिए — वो एक व्यसन/ बुरी आदत चिन्हित करे  जो जज, बुद्धिजीवी ,शिक्षित ,मंत्रियों, बाबुओं (भारतीय प्रशाशनिक सेवक) ,पुलिस अफसरों आदि में सामान हो | सभी जज क़ानून की डिग्री प्राप्त किये हुए होते हैं और 95% से अधिक पूरी तरह से भाई-भातिजेवाद ग्रसित होते है | सभी पुलिस अफसर (भारतीय पुलिस सेवक ) उच्च शिक्षित होते हैं और उनमें से 95% से अधिक हर साल एक करोड़ से अधिक बनाते हैं | इसके बावजूद, “जनसाधारण बुरा ,विशिश्त्वर्ग अच्छा “ के गान चलते रहते हैं |

अधिकतर प्रसिद्ध बुद्धिजीवी विशिश्त्वर्ग/नेता के प्रतिनिधि/एजेंट हैं | वे इसी तरह प्रसिद्ध बनते हैं —पहले वे नेता/विशिश्त्वर्ग के वफादार समर्थक बनते हैं और फिर विशिष्ट/उच्च वर्ग /नेता उनपर धन खर्च करते हैं या शक्ति का उपयोग करते हैं उनको प्रसिद्ध बनाने के लिए | उच्च वर्ग के लोग लोकतांत्रिक प्रक्रियां जैसे जूरी(प्रजा अधीन न्याय्त्रंत्र), रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) आदि नहीं चाहते और इसीलिए  जूरी प्रणाली, रिकाल भारत का पतन करेंगे ऐसा उन्होंने अपने पालतू बुद्धिजीवियों को भय का वातावरण पैदा करने के लिए  कहा है  |विद्यार्थियों और पाठकों के मन में भय कैसे पैदा होगा? सरल है — भारत के हम जनसाधारण लोगों को कोई अनियमित,असब्य,हिंसक,सांप्रदायिक,जातिवादी और मूर्ख के रूप में प्रस्तुत करो/दर्शाओ | इसीलिए पाठ्यपुस्तकाएं, समाचार पत्र स्तंभ निरंतर भारत के जनसाधारण को नीचा दिखाते हैं  और शायद ही कभी इस बात का वर्णन/जिक्र करते हैं कि बाबू ,भारतीय पुलिस सेवक, बुद्धिजीवी भारत में कहीं अधिक बुरे हैं |

शिक्षा व्यक्ति को जनसाधारण को नफरत नहीं करवाती— वास्तव में यदि कोई सूचित है कि कैसे भारतीय न्यायालय/कोर्ट , रिसर्व बैंक , पुलिस आदि काम करते हैं, तो वह जानेगा कि कैसे उच्च वर्ग के लोग, खनिज खानों के  मालिक,बाबू(भारतीय प्रशाशनिक सेवक), जज, आदि जनसाधारण को लुटते हैं और वो जनसाधारण के लिए दया महसूस करेगा | ये तथाकथित निरक्षरता इसीलिए है क्योंकि बुद्धिजीवी जनसाधारण को  अनपढ़ रखना चाहते हैं ताकि वे आसानी से दबाये और पीटे जा सके | इसीलिए बुद्धिजीवी उन प्रक्रियां का विरोध करते हैं जिससे हम जनसाधारण को जिला शिक्षा अधिकारी को बदल सकें या बदलने से रोक सकें, क्योंकि ऐसी प्रक्रिया ऐसा जिला शिक्षा अधिकारी लाएगा जो जनसाधारण को शिक्षित करने में रूचि रखता हो |

अंग्रेजी पाठ्यक्रम ने हमेशा ये सूचित किया था कि भारतीय जनसाधारण निम्न है और उसे “शाषित” करने की आवश्यकता है ताकि भारतीय जनसाधारण को सभ्य किया जा सके | और वर्त्तमान बुद्धिजीवी भी यही सदस देते हैं उनकी समाचार पत्र स्तंभ और पथ्य्पुस्तिकाओं में | लेकिन मैं अंग्रेजों को वर्त्तमान स्तिथि के लिए दोष नहीं दूँगा | वर्त्तमान के बुद्धिजीवी जनसाधारण-विरोधी नजारिया//दृष्टिकोण पैदा कर रहे हैं विद्यार्थियों के मन में क्योंकि वे नहीं चाहते कि विद्यार्थी लोकतांत्रिक सोच के बनें और विद्यार्थियों को अल्पजन-तंत्र (कुछ ही लोग निर्णय लें) समर्थक बनाना चाहते हैं | और ये इसिलिय है कि नेता, बाबू, पुलिस सेवक , जज, विशिष्ट/उछ वर्ग के लोग की अल्पजन-तंत्रता उन्हें ऐसा करवाना चाहती है |

ना केवल विचार ,यहाँ तक कि समाचार-पत्र के लेख और पाठ्यपुस्तकाएं भी नियंत्रित की जाती हैं सेना-विरोधी, लोकतंत्र-विरोधी, जनसाधारण द्वारा भ्रष्ट को निकालने/सज़ा दिए जाने के विरोधी ,उद्धारण , मैं बहुत पड़े लिखे व्यक्तियों से मिलता हूँ और उनसे पूछता हूँ कि चीन और भारत के परमाणू शक्ति के अनुपात के बारें में, जो 100:1 है  उच्चतम विस्फोटक परीक्षण के मामले में और 20:1 है परमाणु हथिया के मामले में और कुछ 100:1 कुल विस्फोटक शक्ति के मामले में| उत्तर तो क्या उनके पास इसका कोई सुराग भी नहीं होता | वो वोही रत्ता लगते हैं जो मीडिया/संचार माध्यम कहते हैं “ न्यूनतम विश्वशनीय रोक/निवारक हमारे पास है “ लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि सबसे बड़ा बम/गोला जो हमने परिक्षण किया है 45 किलो टन का है और चीन ने 4200 किलो टन का बम परिक्षण किया है| उन्हें ये इसलिए नहीं पता क्योंकि उन्हें मीडिया वालों ने कभी बताया नहीं| और मीडिया वालों ने इसीलिए उन्हें नहीं बताया क्योंकि उच्चवर्ग के लोगों को शांति-समर्थक, सेना-विरोदी नागरिक चाहिए, लेकिन ये सूचना(चीन/भारत के परमाणु शक्ति के बारे में) देने से उसका झुकाव सेना को सशक्त बनाने के और होगा | इसीलिए ये महत्पूर्ण ,मूल्यवान जानकारी सार्वजनिक स्थानों से हटा दी जाती है |

   

(11.5) समीक्षा प्रश्‍न

( इस किताब/पुस्‍तक के प्रत्‍येक पाठ में यह बताने के लिए समीक्षा प्रश्‍न हैं कि उनका उत्‍तर देकर पाठक अपने आप को संतुष्‍ट कर सकता है कि उसने इस पाठ को पढ़ लिया है|)

  1. हमारे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह के दृष्‍टिकोण/हिसाब से संविधान की, किसके द्वारा की गई व्‍याख्‍या अंतिम है? बुद्धिजीवियों के हिसाब/विचार में संविधान की किसके द्वारा की गई व्‍याख्‍या अंतिम है?

  2. क्‍या बुद्धिजीवी लोग खनिजों को हम आम लोगों की संपत्‍ति समझते हैं? क्या बुद्धिजीवी लोग भारत सरकार के प्‍लॉटों जैसे दिल्‍ली हवाई अड्डे और आई आई एम ए प्लॉट को हम आम लोगों की संपत्‍ति समझते हैं?

  3. क्या प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह “राजनैतिक संस्‍कृति” के सिद्धांत में विश्‍वास करता है?

   

(11.6) अभ्‍यास

( इस किताब/पुस्‍तक के प्रत्‍येक पाठ में पाठक के लिए कुछ अभ्‍यास-प्रश्‍न हैं ताकि वह भारतीय प्रशासन से परिचित हो सके।)

  1. कृपया राष्‍ट्रीय पहचान-पत्र प्रणाली लागू कराने के लिए भारतीय संसद में शौरी और अन्‍य बी जे पी सांसदों या किसी अन्य सांसद द्वारा प्रस्‍तुत किए गए कानूनों के क़ानून-ड्राफ्ट प्राप्‍त करें।

  2. कृपया उच्‍चतम न्‍यायालय, उच्‍च न्‍यायालय और लोअर कोर्ट/निचले न्‍यायालय में भाई –भतीजावाद को कम करने के लिए सीपीएम, बीजेपी, कांग्रेस आदि द्वारा संसद में प्रस्‍तावित किए गए कानूनों के क़ानून-ड्राफ्ट प्राप्त करें।

  3. कृपया प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों, विधायकों, सांसदों आदि के रिकॉल के संबंध में कांग्रेस, बीजेपी और सीपीएम के सांसदों द्वारा संसद में प्रस्‍तावित कानूनों के ड्रॉफ्ट प्राप्‍त करें।

  4. कृपया प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों, विधायकों, सांसदों आदि के रिकॉल के संबंध में जय प्रकाश नारायण द्वारा संसद में प्रस्‍तावित कानूनों के ड्रॉफ्ट प्राप्‍त करें।

श्रेणी: प्रजा अधीन