5. `राजनीतिक संस्कृति` की झूठी कहानी/मिथक के संबंध में
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भारत की समस्या कानून के उन गलत/खराब ड्राफ्टों के कारण है जिन्हें बुद्धिजीवियों और दूसरी पार्टियों के सांसदों ने लागू करवाया है। हम आम लोगों की संस्कृति में कुछ भी गलत नहीं है।
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प्रमुख बुद्धिजीवियों ने राजनीतिक संस्कृति की एक झूठी कहानी/मिथ को लागू करवाया है और वे दावा करते हैं कि भारत की समस्याएं हम आम भारतीयों की इस संस्कृति के कारण है न कि उन गलत कानूनों के कारण जिनका वे समर्थन करते हैं।
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6. सभी दलों / पार्टियों को चुनाव जीतना है, घूस वसूलना है; हमे केवल उन कानूनों को लागू करवाना है जिनकी हम मांग करते हैं।
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हमारा पहला लक्ष्य कुछ सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) को लागू करवाना है, चुनावों में जीत हासिल करना नहीं। हम केवल इसलिए चुनाव लड़ते हैं कि हम उन सरकारी आदेशों और कानूनों का प्रचार कर सकें जिनकी हम मांग करते हैं और जिनको लागू करवाने का हम वायदा करते हैं। हम इस बात पर जोर नहीं देते कि मतदातागण हमें वोट/मत दें – हम सिर्फ इस बात पर जोर देते हैं कि जनता अपने मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री, विधायकों और सांसदों पर दबाव डालें कि वे उन कानूनों को लागू करवाएं जिनका प्रस्ताव हम कर रहे हैं। और हम जनता से हमें वोट देने के लिए केवल तभी कहते हैं जब वे इस बात से संतुष्ट हों कि अन्य समूहों/दलों के नेता इन सरकारी आदेशों पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे।
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सभी दलों/पार्टियों का मुख्य लक्ष्य चुनाव जीतना मात्र है और वे प्रशासन में कोई बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध/समर्पित नहीं हैं।
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7. कोर्ट में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद में कमी लाने के संबंध में
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हमलोग एकमात्र समूह हैं जो न्यायालयों/कोर्ट में भाई-भतीजावाद के खिलाफ बोलते हैं।
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अन्य सभी समूहों के नेतागण और बुद्धिजीवी कोर्ट/न्यायालय में भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने वाले कानूनों (जैसे साक्षात्कार/इंटरव्यू प्रणाली और जज/न्यायाधीश प्रणाली) का समर्थन करके न्यायालयों में भाई-भतीजावाद का समर्थन करते हैं।
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8. आम जनता के लिए सम्मान के संबंध में
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आम जनता का हम पूरा – पूरा सम्मान करते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि कानूनी और प्रशासनिक मुद्दों पर जनता की हां/नहीं को दर्ज/रजिस्टर किया जाना चाहिए और इसे महत्व दिया जाना चाहिए।
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भारत के सभी दलों के नेताओं और बुद्धिजीवियों के पास हम आम जनता के लिए अपमान के सिवाय और कुछ भी नहीं है । वे हम आम लोगों को “अपरिपक्व” समझते हैं ( पढ़िए: मुर्ख, मंदबुद्धि आदि)। और इसलिए वे इस बात पर जोर देते हैं कि कानूनों, निर्णयों, नियुक्तियों आदि पर हम आम लोगों के हां/नहीं को दर्ज तक नहीं किया जाना चाहिए, महत्व देने की बात तो भूल ही जाइए।
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9. दान/चन्दा के विरोध के संबंध में
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हम दान/चन्दा के खिलाफ हैं। हमारा मानना हैं कि कार्यकर्ता हमें समय दें और वे जेरोक्स/फोटोकॉपी कराने, समाचारपत्र के विज्ञापनों आदि पर खर्च कर सकते हैं लेकिन उन्हें दल के नेताओं के पास पैसा बिलकुल नहीं भेजना चाहिए।
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सभी पार्टियां कार्यकर्ताओं को दान/चन्दा जमा करने/वसूलने के लिए कहती हैं। और दान देने वाले दान देकर केवल इन पार्टियों को बरबाद ही कर रहे हैं और भारत के राजनीतिक परिदृष्य को और बिगाड़ रहे हैं।
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10. लगभग 100-120 और अंतर/भिन्नताएं
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और लगभग 120 अंतर हैं। इतने अधिक अंतर? हां। इतने अधिक और इससे भी अधिक/ज्यादा । हमने प्रशासन में सुधार लाने के लिए लगभग 120 से अधिक सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) का प्रस्ताव किया है। इन अंतरों/भिन्नताओं को जानने के लिए कृपया http://www.righttorecall.info/all_drafts.pdf पर उन सरकारी आदेशों की सूची देखें/पढ़ें जिनकी हम मांग करते हैं और जिनका हम वायदा करते हैं।
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और भारत की वर्तमान सभी पार्टियों और सभी बुद्धिजीवियों ने इनमें से प्रत्येक (अधिसूचना(आदेश)) का विरोध किया है। और इस प्रकार `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम आर सी एम) समूह और भारत की अन्य सभी पार्टियों के सांसदों तथा सभी बुद्धिजीवियों के बीच लगभग 120 अंतर है।
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11. सभी दलों / पार्टियों के स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं /वोलंटियर्स के प्रति दृष्टिकोण
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मैं और आर आर जी के अन्य सभी स्वयंसेवक किसी पार्टी के कार्यकर्ताओं, गैर सरकारी संगठनों से कभी नहीं कहते कि वे अपनी पार्टी / गैर सरकारी संगठन को छोड़ दें। बल्कि हम उनसे आग्रह /अनुरोध करते हैं कि “क्या आप अपने नेताओं को उनके चुनाव घोषणापत्र में प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन – मुख्यमंत्री, प्रजा अधीन – उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश आदि /क़ानून-ड्राफ्ट शामिल करने के लिए कह सकते हैं ? मेरा लक्ष्य/उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं को प्रभावित करने, उन्हें दल के चुनाव घोषणा पत्र में प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) ,जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली आदि प्रारूप शामिल करवाकर उन्हें प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह के हमशक्ल/क्लोन में बदलने का है।”
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जबकि सभी वर्तमान पार्टियों के नेतागण कार्यकर्ताओं से दूसरी पार्टियां छोड़ने और उनकी अपनी पार्टी में आ जाने के लिए कहते हैं।
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(11.2) प्रचार के तरीकों में सबसे महत्वपूर्ण अंतर
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कम से कम 50 या उससे अधिक अंतर मौजूद हैं । उपर उल्लिखित 11वां अंतर, तरीके के साथ-साथ उद्देश्य में मूलभूत अंतर को दर्शाता है । सभी वर्तमान दलों के नेता कार्यकर्ताओं से हमेशा कहते हैं कि वे दूसरे दलों को छोड़ दें और उनकी अपनी पार्टी में आ जाएं। क्योंकि ये नेता सत्ता के केन्द्र बनना चाहते हैं। जबकि मैं और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह के मेरे अन्य स्वयंसेवी कार्यकर्ता, किसी भी पार्टी, गैर सरकारी संगठन के कार्यकर्ताओं को उनकी पार्टियां, गैर सरकारी संगठन छोड़ने को नहीं कहते । इसके बदले, हम उनसे अनुरोध करते हैं “क्या आप अपने नेताओं को मना सकते हैं कि वे प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन – मुख्यमंत्री, प्रजा अधीन – उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश आदि प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट अपने चुनाव घोषणा पत्र में शामिल कर लें? ”
और मैं खुलेआम इस बात पर जोर देता हूं कि मुझे ज्यादा खुशी होगी यदि कार्यकर्ता एक और अलग प्रतियोगी प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह का गठन करें अथवा अपने नेताओं पर दबाव डालना जारी रखें कि वे `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)`, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार), नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) प्रारूपों/ड्राफ्टों को अपने संगंठन के ऐजेंडे में शामिल करें!! क्यों? क्यों मैं किसी आर.टी.आर(प्रजा अधीन रजा) कार्यकर्ताओं को एक प्रतियोगी प्रजा अधीन राजा पार्टी का गठन करने के लिए कहता हूँ ? अथवा मैं उनसे यह क्यों कहता हूँ कि वे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) प्रारूपों/ड्राफ्टों को अपने संगठन के एजेंडे में शामिल करें? क्योंकि जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूपों/ड्राफ्टों के लिए केवल एक प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह द्वारा प्रचार करने के बदले मैं इस बात को ज्यादा पसंद करूंगा कि 1000 प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह हों और उनमें से प्रत्येक `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट , प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट आदि की मांग करे। अब यदि 1000 प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) ड्राफ्टों की मांग करते हैं और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) ड्राफ्टों के लिए एक अत्यधिक प्रतियोगी राजनीति प्रारंभ कर देते हैं तब सभी प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह वोटों के बटवारे के चलते चुनाव हार सकते हैं लेकिन प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट के बारे में जानकारी भारत के नागरिकों मे अधिक से अधिक लोगों के बीच फैलेगा। और सबसे तेजी से फैलेगा । साथ ही यदि 1000 संगठन प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट की मांग कर रहे हों तो विरोधियों के लिए प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट की मांग को ठुकराना ज्यादा कठिन होगा। जैसा कि मैं कई बार कह चुका हूँ कि मेरा लक्ष्य चुनाव जीतना नहीं है——- मेरा लक्ष्य `जनताकी आवाज-पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) क़ानून-ड्राफ्टों , प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) प्रारूपों/ड्राफ्टों को पास / पारित करवाना है। और इसलिए 1000 प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह और संगठन जिनमें से हरेक प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट की मांग कर रहा हो, वह ज्यादा बेहतर काम करेगा न कि केवल एक प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट की मांग करे। और इसलिए मुझे खुशी होगी जब एक सच्चा कार्यकर्ता मेरे समूह का सदस्य न बने लेकिन वह एक और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह गठित करे अथवा अपने संगठन के ऐजेंडे में प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) के प्रारूपों/ड्राफ्टों को शामिल करवाने की कोशिश करे।