सूची
- (24.1) भारतीय सेना में सुधार लाने के लिए प्रजा अधीन राजा समूह / राइट टू रिकॉल ग्रुप के प्रस्तावों का सारांश (छोटे में बात )
- (24.2) सेना की ताकत को निश्चित करने वाले प्रमुख कारण / कारक
- (24.3) इंजिनियरिंग में प्रतिभा / कुशलता बढ़ाना
- (24.4) क्या होगा यदि हम सेना में सुधार नहीं करते हैं?
- (24.5) कैसे कारगिल युद्ध अमेरिका जीत गया और भारत और पाकिस्तान दोनों ही कारगिल की लड़ाई हार गए?
- (24.6) हथियार निर्माण के उद्योग-कारखानों में सुधार लाना
- (24.7) हमारी परमाणु हथियार और परमाणु क्षमताएं की परिस्थिति कितनी बुरी हैं ?
- (24.8) आत्मघाती बटन – बहार के देशों से मंगाए हुए (आयातीत) हथियारों से खतरा
- (24.9) भारतीय सेना की चीनी सेना से तुलना
- (24.10) बहार के देशों से मंगाए हुए (आयातित) हथियारों की समस्या का समाधान
- (24.11) अमेरिका द्वारा लीबिया पर हवाई हमलों से सीख : क्या होगा अगर चाइना या अमेरिका ने भारत पर हमला किया या पाकिस्तान के द्वारा करवाया ? इसीलिए, भारत के हर नागरिक को हथियार रखने व बनाने की छूट दे दो जितनी जल्दी हो सके
- (24.12) सेना में सुधार करने के संबंध में सभी दलों और बुद्धिजीवियों का रूख / राय
सेना-उद्योग परिसर (समूह) में सुधार लाने के लिए प्रजा अधीन राजा समूह / राइट टू रिकॉल ग्रुप के प्रस्ताव |
(24.1) भारतीय सेना में सुधार लाने के लिए प्रजा अधीन राजा समूह / राइट टू रिकॉल ग्रुप के प्रस्तावों का सारांश (छोटे में बात ) |
मैं प्रजा अधीन राजा समूह/राइट टू रिकॉल ग्रुप के सदस्य के रूप में भारतीय सेना में निम्नलिखित परिवर्तनों का प्रस्ताव करता हूँ :-
- सेना और नागरिकों के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम.) : ऐसी प्रक्रियाऐं लागू की जाएं जिनसे सभी खदानों से और भारत सरकार के सभी प्लॉटों से मिलने वाली रॉयल्टियों को इस प्रकार बांटा जाए जिसमें भारतीय सेना को इसका एक तिहाई (1/3) और भारत के नागरिकों को इसका दो तिहाई (2/3) हिस्सा मिले। इससे सेना के वित्तपोषण/आमदनी में वृद्धि होगी।
- 25 वर्ग मीटर प्रति व्यक्ति से ज्यादा गैर-कृषि भूमि/जमीन पर बाजार मूल्य के 1 प्रतिशत के बराबर सम्पत्ति कर लागू किया जाए और इस निधि/फंड का उपयोग केवल सेना पर किया जाए।
- 5 एकड़ प्रति व्यक्ति से ज्यादा कृषि भूमि/जमीन पर बाजार मूल्य के 1 प्रतिशत के बराबर सम्पत्ति कर लागू की जाए और इस निधि/फंड का उपयोग केवल सेना पर किया जाए।
- 25 वर्ग मीटर गैर-कृषि भूमि से अधिक की संपत्ति, 50 वर्ग मीटर से अधिक किया गया भवन-निर्माण,5 एकड़ से अधिक की कृषि संपत्ति और 1 करोड़ से अधिक की अन्य प्रकार की संपत्ति पर 35 प्रतिशत का `विरासत कर` लागू किया जाए। यह कर/टैक्स 65 प्रतिशत होगा जब वह व्यक्ति ‘निकट’ संबंधी नहीं हो।
- सिपाहियों/सैनिकों की संख्या 12,00,000 से बढ़ाकर 40,00,000 कर दी जाए।
- सैनिकों के वर्तमान (जून, 2010 के) वेतन में 200 प्रतिशत की वृद्धि की जाए जो जनवरी, 2002 से प्रभावी हो।
- सर्वजन/सभी के लिए सैनिक प्रशिक्षण : भारत के कक्षा X और उससे ऊपर के सभी नागरिकों के लिए हथियारों के प्रयोग/इस्तेमाल की शिक्षा अनिवार्य रूप से देनी प्रारंभ की जाए। साथ ही, वयस्क लोगों के लिए अस्त्र-शस्त्र/हथियार शिक्षा की कक्षाएं प्रारंभ की जाएं। जैसे-जैसे नागरिकों को हथियार चलाने की ज्यादा से ज्यादा शिक्षा दी जाएगी वैसे-वैसे वे बड़े हथियारों के महत्व के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त कर पाएंगे और इसलिए वे उन नेताओं का विरोध करेंगे, जो सेना को कमजोर करते हैं।
- 5,00,000 इंजिनियरों और 10,00,000 मजदूरों/श्रमिकों की भर्ती की जाए ताकि बंदूकों से लेकर टैंकों, हवाई जहाज अथवा परमाणु बम से लेकर मिसाइल/प्रक्षेपास्त्र तक सभी प्रकार के हथियारों के उत्पादन में वृद्धि हो सके। क्योंकि भारतीय सेना को मजबूत बनाना, परमाणु मिसाईल, क्रुज मिसाईल आदि जैसे अमेरिकी-स्तर के हथियारों के निर्माण (निर्माण न कि आयात) की हमारे देश की क्षमता पर निर्भर करेगा।
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान(आई.आई.टी) और भारतीय विज्ञान संस्थान(आई.आई.एस.सी) दोनों रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग (डी.आर.डी.ओ.) के अंतर्गत आएंगे। 15 वर्षों का प्रतिज्ञा पत्र/बांड उन लोगों पर लागू होगा जो स्नातक कर लेने के बाद इन कॉलेजों मे प्रवेश लेंगे, ऐसे लोगों को रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग (डी.आर.डी.ओ.) आदि की सेवा 15 वर्षों तक करनी होगी।
- चीन की बराबरी हासिल करने के लिए भारत के परमाणु हथियारों (की संख्या) बढ़ाई जाए। चीन ने 23 जमीनी परमाणु परीक्षण और 22 वायुमंडलीय परीक्षण किए हैं जबकि भारत ने केवल 4 जमीनी परमाणु परीक्षण किए हैं और कोई भी वायुमंडलीय परीक्षण नहीं किया है। और सबसे बड़ा परीक्षण जो चीन ने किया था, वह था – 4500 किलो-टन (का परीक्षण) जबकि हमारे देश का सबसे बड़ा परीक्षण मात्र 45 किलो-टन का ही था। और चीन के पास भारत की तुलना में 20 से 30 गुना से भी ज्यादा परमाणु विस्फोटक शीर्ष(वारहेड्स) हैं। हमें कम से कम दस 3000 किलो-टन का वायुमंडलीय परमाणु परीक्षण और चालीस अन्य जमीनी/वायुमंडलीय परमाणु परीक्षण करना होगा जिसकी क्षमता 100 किलो-टन से लेकर 4500 किलो-टन की हो ताकि भारत चीन के बराबर में आ सके।
- कच्चे माल को छोड़कर प्रत्येक/हरेक आयातित वस्तुओं पर 300 प्रतिशत का आयात शुल्क : सेना को हथियार निर्माण कौशल की जरूरत है। आयात किए गए सभी हथियार बेकार होते हैं। और इंजिनियरिंग(अभियांत्रिकी) कौशल बढ़ाने का एकमात्र रास्ता भारत में एक निर्माण सेक्टर का बनाना है जो केवल कच्चे माल का ही आयात करेगा और किसी उच्च तकनीकी वाले समानों का आयात बिलकुल भी नहीं करेगा। पूर्ण स्थानीय उदारीकरण , अमीरों को अपना खुद का उद्योग लगाने के लिए इंजिनियरों को काम पर रखने में सक्षम बनाएगा और 300 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने से उन्हें अपना माल स्थानीय स्तर पर बेचने में सक्षम बनाएगा।
- श्रमिक/मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा और श्रम/मजदूरी (के क्षेत्र में) नौकरी पर आसानी से रखने और निकालने की नीति / पोलिसी (हायर-फायर): इंजिनियरिंग कौशल में सुधार के लिए भारत में बड़ी संख्या में निर्माण करने वाले उद्योगों और (सामान्य) उद्योगों की जरूरत है। और औद्योगिक विकास अधिकतम तब होता है जब मजदूर(श्रमिकों) के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रणाली(सिस्टम) होती है और मालिक(नियोक्ता) के पास नौकरी पर रखने और नौकरी से निकालने की पूरी क्षमता होती है। `सेना और नागरिकों के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) कानून ऐसी सामाजिक सुरक्षा देता है जिससे मालिक(नियोक्ता) के लिए किसी कर्मचारी का शोषण करना असंभव हो जाता है। और नौकरी पर रखने और नौकरी से निकलने संबंधी कानून उत्पादन कम होने पर मालिक(नियोक्ता) को वित्तीय/आर्थिक भार कम करने में समर्थ बनाता है।
संक्षेप में, भारतीय सेना में सुधार करने के लिए हमें सेना में सैनिकों की भर्ती करने, वेतन बढ़ाने आदि जैसे अनेक कदम उठाने की जरूरत पड़ेगी। लेकिन हमें सेना से बाहर और देश के अन्दर भी दसियों/दसों महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि भारतीय सेना की मजबूती ऐसे अनेक कारकों पर निर्भर करती है जो कारक सेना से बाहर के हैं। उदाहरण के लिए, सेना को ऐसे इंजिनियरों की जरूरत है जो अमेरिकी स्तर के हथियार बना सकें। अभी भारत की आर्थिक नीतियां ऐसी हैं कि ये नीतियां इंजिनियरिंग/निर्माण की प्रतिभाओं को कमजोर बना देती हैं जिससे सेना को नुकसान होता है। इसी प्रकार सेना को बड़ी संख्या में ,समाज से देशभक्त सैनिकों की जरूरत है ।
लेकिन यदि सरकार में भ्रष्ट मंत्रियों, पुलिसवालों और जजों की भरमार रहेगी तो नागरिकों में देशभक्ति (की भावना) घटेगी और इससे भी सेना कमजोर होती है। इस प्रकार, सेना में सुधार करना तो आसान है लेकिन यह बहुत ही बड़ा काम है क्योंकि सेना में सुधार के लिए कई सिविल/असैनिक विभागों में सुधार करना होगा। कोई भी सेना किसी राष्ट्र की सुरक्षा केवल तभी कर सकती है जब राष्ट्र भी अपनी सेना के उन सभी क्षेत्रों की सुरक्षा करे और मजबूत बनाए जिसकी सेना को जरूरत हो।
(24.2) सेना की ताकत को निश्चित करने वाले प्रमुख कारण / कारक |
सैनिकों का वेतन और उनका प्रशिक्षण/ट्रेनिंग महत्वपूर्ण है और उतना ही महत्वपूर्ण है – उनका वेतन, इंजिनियरों और टेक्निशियनों का कौशल स्तर और अनुशासन। और कोई भी व्यक्ति किसी देश में तभी अनुशासित हो सकता है जब वहां का प्रशासन व न्यायालय कम अन्याय करता हो। आइए, मैं इस तथ्य को फिर से तुलनात्मक ढ़ग से बताता हूँ –
वे तत्व जो सेना की ताकत और सुदृढ़ता/ मजबूती पर प्रभाव डालते हैं |
ये तत्व सेना की मजबूती पर कैसे प्रभाव डालते हैं? |
* |
* |
सैनिकों का वेतन, प्रशिक्षण | जिस देश में सैनिकों को बेहतर वेतन व प्रशिक्षण मिलेगा वहां की सेना ज्यादा मजबूत होगी और जिस देश में कम वेतन और खराब प्रशिक्षण दिया जाएगा वहां की सेना भी कमजोर होगी। |
हथियार के निर्माण/ विनिर्माण की क्षमता | ज्यादा प्रतिभाशाली इंजिनियरों वाले किसी देश में बेहतर हथियार के निर्माण की क्षमता होगी और जिस देश में इंजिनियरों की प्रतिभा कम होगी उस देश में बेहतर हथियार विनिर्माण क्षमता नहीं होगी। इसलिए वे कौन से कारक हैं जो भारत में इंजिनियरिंग प्रतिभा को बढ़ा सकते हैं ?(अध्याय 26 में विस्तार से पड़ें) |
आम नागरिकों को हथियार के प्रयोग/चलाने का प्रशिक्षण | जिस देश में आम लोगों के पास जितना ही ज्यादा हथियार होगा उस देश की सेना उतनी ही ज्यादा मजबूत होगी क्योंकि हथियार के प्रयोग का प्रशिक्षण किसी भी व्यक्ति को बड़े हथियारों से परिचित कराता है और इसीलिए नागरिकगण मिलकर ऐसे नेताओं को नकार देते हैं जो अपने विदेशी प्रायोजकों को खुश करने के लिए सेना को कमजोर करते हैं। इसलिए कैसे हम अपने अधिक से अधिक नागरिकों को हथियार देकर शक्तिशाली बना सकते हैं?(पूरी जानकारी के लिए अध्याय 29 देखें) |
नागरिकों में अनुशासनहीनता | कोई देश जहां नागरिकों में कम/कमतर अनुशासनहीनता होगी उस देश में सेना ज्यादा मजबूत होगी और जिस देश में नागरिकों में अनुशासनहीनता ज्यादा होगी उस देश में सेना भी कमजोर होगी। इसलिए कौन से कारक/तत्व भारत के नागरिकों में अनुशासनहीनता कम कर सकते हैं? |
टैक्स प्रणाली प्रतिगामी(प्रतिगामी = आमदनी बढने पर कर/आय का प्रतिशत घटता है) न होना | जिस देश के टैक्स प्रणाली जितनी कम प्रतिगामी(प्रतिगामी = आमदनी बढने पर कर/आय का प्रतिशत घटता है) होगी उस देश में टैक्स का पैसा उतना ही ज्यादा जमा हो पाएगा और ज्यादा पैसे का उपयोग सेना के लिए किया जा सकेगा और इस प्रकार एक मजबूत सेना बन सकेगी। और जिस देश में प्रतिगामी(प्रतिगामी = आमदनी बढने पर कर/आय का प्रतिशत घटता है) वाली टैक्स प्रणाली होगी उस देश में सेना के लिए पैसा कम होगा और इसलिए उस देश में सेना कमजोर होगी।(अधिक जानकारी के लिए अध्याय 24 देखें) |
नारेबाजी | नारेबाजी करना बेकार है और इससे सेना में 1 प्रतिशत का भी सुधार नहीं होता। वास्तव में, नारेबाजी एकदम अनुपयोगी/बेकार है। |
देशभक्ति | जिस देश के नागरिक जितने ही देशभक्त होंगे उस देश में सेना उतनी ही मजबूत/सुदृढ़ होगी। |
स्वतंत्र अर्थव्यवस्था | परमाणु हथियार विकसित करने के लिए हमें परमाणु हथियार विकसित करने के खिलाफ अमेरिकी आदेश को खत्म करना होगा। और इसके लिए हमें भारत के अन्दर एक ऐसी तकनीक स्थापित करने की जरूरत होगी जो अकेले ही काम कर सके। इसलिए कच्चे माल के अलावा, हमें उन सब (वस्तुओं) का निर्माण करना होगा जिसका निर्माण विश्व के अन्य देश करते हैं। |
हटाए जा सकने वाले प्रधान मंत्री | सेना में प्रमुख व्यक्ति प्रधान मंत्री हैं क्योंकि प्रधान मंत्री ही सेना, रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग (डी. आर. डी. ओ.) आदि में वेतन तय करते हैं और प्रधान मंत्री ही उन नीतियों को तय करते हैं जो नीतियां उन नागरिक/असैनिक विभागों पर प्रभाव डालती है जिनकी जरूरत सेना को पड़ती है। इसलिए जब तक प्रधान मंत्री को हटाने/बदलने का अधिकार नागरिकों को नहीं होगा तब तक प्रधान मंत्री अमेरिका के हाथों बिक भी सकते हैं और ऐसी नीतियां बना सकते हैं जिससे भारत कमजोर हो। मेरे विचार से, आज हो भी यही रहा है। |
इसके अलावा और भी बहुत से कारक हैं। मैने यह चर्चा की है कि कैसे उस सिविल/असैनिक विभाग, जिस पर सेना निर्भर करती है, उसमें सुधार लाया जा सकता है। यह बात मैंने संबंधित सिविल/नागरिक विभागों से संबंधित पाठों में बताया है। उदाहरण के लिए, सेना को देशभक्त नागरिकों की जरूरत है और देश के नागरिकों में देशभक्ति (की भावना) पैदा करने के लिए ऐसे कोर्ट/पुलिस जरूरी हैं जिनमें भ्रष्टाचार न हो। इसलिए मेरे जैसा कोई भी व्यक्ति जो सेना को मजबूत करना चाहता है तो ऐसे कानून लाने की जिम्मेदारी भी उसी व्यक्ति की है जिससे पुलिस और कोर्ट में भ्रष्टाचार कम हो सके। मैंने पहले ही उन कानूनों की सूची उपलब्ध करा दी है जिससे पुलिसवालों/कोर्ट में भ्रष्टाचार कम हो सकेगा।
(24.3) इंजिनियरिंग में प्रतिभा / कुशलता बढ़ाना |
एक महत्वपूर्ण कारक, जिससे सेना सुदृढ़/मजबूत होती है, वह है – भारत में इंजिनियरिंग कौशल स्तर। और इसके लिए आर्थिक कानूनों में काफी परिवर्तन की जरूरत होगी। देश में ही कौशल के विकास के लिए, हमें भारत के अन्दर बड़े पैमाने पर उत्पादन/निर्माण की जरूरत पड़ेगी और यह केवल तभी संभव है जब –
- कानून यह सुनिश्चित करे कि श्रमिक/मजदूर सुरक्षित हैं
- नौकरी पर रखने और नौकरी से निकालने सम्बंधित(हायर-फायर) कानून
- उद्योगों में प्रतियोगिता को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने के लिए आसानी से धंधा/कंपनी खोलने और बंद करने संबंधी कानून
- उच्च सीमा शुल्क, सीमा शुल्क का एक तिहाई हिस्सा नागरिकों को मिले
उपर्युक्त शर्तें आवश्यक हैं और लगभग पर्याप्त भी। ऊपर बताए गए तीनों कानून निर्माण की क्षमता को बढ़ाने के लिए कैसे जरूरी हैं? और प्रजा अधीन राजा समूह/राइट टू रिकॉल ग्रुप इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कैसे प्रस्ताव करता है? आइए, मैं पहले ‘क्यों और कैसे’ हिस्से का जवाब देता हूँ –
- श्रमिक/मजदूर की सुरक्षा : श्रमिक सुरक्षा का अर्थ है कि श्रमिक (सभी नागरिक) के पास परिवार के लिए रोटी, कपड़ा, मकान और शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए न्यूनतम आय की गारंटी तब भी हो जब उसका रोजगार छिन जाए यानि वह कुछ न्यूनतम मजदूरी घर ले जा सके। सुरक्षा के अभाव में मालिक(नियोक्ता) उसका शोषण कर सकता है और उसे ऐसे काम भी करने को कह सकता है जिससे समाज को नुकसान हो। मेरे प्रजा अधीन राजा समूह/राइट टू रिकॉल ग्रुप समूह ने `सेना और नागरिकों के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) कानून का पस्ताव किया है जिससे नागरिकों को खनिज की रॉयल्टी और जमीन का किराया सीधे ही मिलेगा। यह श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था के समान ही सुरक्षा प्रदान करेगा। हर मालिक(नियोक्ता) को सामाजिक सुरक्षा (प्रदान करने) का भार नहीं उठाना पड़ेगा। कुछ सामाजिक सुरक्षा, मालिक(नियोक्ता) को हुए लाभ में से दिए गए आयकर और संपत्ति कर से आ सकेगी। इस प्रकार, मालिक(नियोक्ता) कुल मिलाकर, श्रमिक सुरक्षा प्रणाली के कुछ अंश के लिए योगदान देंगे।
- मजदूर को आसानी से नौकरी पर रखना और आसानी से नौकरी से निकालने सम्बंधित क़ानून (हायर-फायर) : मजदूर को आसानी से नौकरी पररखने और नौकरी से निकालने के कानूनों के अभाव में, अनुशासनहीनता और गैर-जिम्मेदारी बढ़ती जाएगी। और जब मालिक(नियोक्ता) को (व्यापार में) घाटा होता है तो श्रमिकों/मजदूरों को पगार/वेतन देने की मजबूरी उसे अपने उद्योग को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथों में बेच देने पर बाध्य कर देती है। इससे केवल बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और धनवान लोगों की ताकत ही बढ़ती है। दूसरे शब्दों में, यदि हम किसी ऐसे कानून को समर्थन दें जिससे कि कोई मालिक(नियोक्ता) लागत में कटौती करने के नाम पर किसी श्रमिक/मजदूर को नहीं हटा सके तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और धनवान व्यक्तियों, जिनके पास बैंकों के निदेशकों और वित्त मंत्रियों को घूस देने की क्षमता होती है, वे कम ब्याज पर कर्ज लेकर इस भार को सहन कर लेंगे। लेकिन छोटे-मोटे मालिक(नियोक्ता), जो लगातार प्रतियोगिता के वातावरण में रहते हैं और जिनकी बैंक निदेशकों और वित्त मंत्रियों तक पहूँच नहीं होती कि वे उन्हें घूस दे सकें, तब उनके पास अपनी कम्पनी को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और धनवान व्यक्तियों के हाथों बेच देने के अलावा और कोई चारा/विकल्प नहीं बचेगा। दूसरे शब्दों में, मालिक को नौकरी से निकालने से रोकने वाले कानून केवल धनवान और भ्रष्ट लोगों को ही लाभ होता है।
- प्रतियोगिता को अधिकतम (स्तर तक) बढ़ाने के लिए आसानी से धंधा/कंपनी खोलने और बंद करने सम्बंधित कानून: हथियार निर्माण के लिए इंजिनियरिंग कौशल की आवश्यकता होती है। इंजिनियरों में इंजिनियरिंग कौशल के निर्माण का एकमात्र तरीका ऐसी (अनुकूल) परिस्थितियों का निर्माण करना है जिसमें उन्हें अन्य इंजिनियरों के साथ कठोर (अहिंसक) प्रतियोगिता होती है। कालेजों में प्रशिक्षण से उन्हें केवल मुद्दों के बारे में जानकारी मिल पाती है और विश्वविद्यालयों में अनुसंधान से या तो कुछ नई दिशा के काम(पाथब्रेकिंग वर्क) होते हैं या तो उनका समय बरबाद हो जाता है। किसी इंजिनियर को जमीनी कौशल केवल तभी प्राप्त होता है जब वह इंजिनियर वास्तविक उद्योगों में काम करता है और जब उसे वास्तविक प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा होता है। और (किसी उद्योग में ) आसानी से धंधा/कंपनी शुरू करने और बंद करने सम्बंधित कानून, प्रतियोगिता को अधिकतम बनाने के लिए आवश्यक है।
- उच्च सीमा शुल्क : या तो देश को तकनीकी रूप से विश्व के सबसे विकसित देश के बराबर (स्तर पर) रहना होगा या तो उस देश के कानून द्वारा प्राकृतिक कच्चे माल को छोड़कर सभी माल/सामानों पर बहुत अधिक आयात शुल्क लगाना सुनिश्चित करना होगा। चूंकि भारत उस क्षमता को प्राप्त करने से काफी पीछे है जिससे उसकी तुलना कम से कम वियतनाम से की जा सके, चीन अथवा जर्मनी, जापान या अमेरिका की बात तो छोड़ ही दीजिए, इसलिए हमलोगों के लिए यह आवश्यक है कि हम आयात पर 300 प्रतिशत का सीमा शुल्क लगाएं ताकि स्थानीय स्तर पर निर्मित वस्तुओं को स्थानीय बाजार उपलब्ध हो सके। और इस प्रकार जमा की गई सीमा शुल्क का एक तिहाई हिस्सा सीधे नागरिकों को मिलना चाहिए। तस्करी के खिलाफ नागरिकों में घृणा पैदा करने के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि नागरिक सीमा शुल्क बोर्ड के अध्यक्ष के विरूद्ध प्रजा अधीन- नागरिक सीमा शुल्क बोर्ड अध्यक्ष (कानून) का प्रयोग अवश्य ही प्रभावी ढ़ंग से कर पाए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि सीमा शुल्क का अध्यक्ष सीमा शुल्क का पैसा (सही प्रकार से) उचित तरीके से जमा कर रहा है, सीधा भुगतान महत्वपूर्ण है।
(24.4) क्या होगा यदि हम सेना में सुधार नहीं करते हैं? |
यदि हम सेना में सुधार नहीं करते हैं तो भारत इराक के रास्ते पर चल पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय राजनीति दो सामान्य कानूनों पर आधारित है –
- मजबूत (बड़ी) मछली कमजोर (छोटी) मछली को चबा (खा) जाएगी। मजबूत सेना वाले देशों के लोग कमजोर सेना वाले देशों के लोगों को लूट लेंगे और गुलाम बना लेंगे। अर्थात यदि भारतीय लोग अपनी सेना में सुधार नहीं करते हैं तो अमेरिकी लोग भारतीयों को लूट लेंगे और गुलाम बना लेंगे।
- कोई दया नहीं। कोई छूट नहीं। अमेरिकी लोग भारतीयों के रिश्तेदार नहीं हैं।
अंतर-राष्ट्रिय राजनीतिक परिवर्तन केवल सेना की ताकत में परिवर्तन का ही परिणाम होते हैं और कुछ नहीं। उदाहरण के लिए – वर्ष 1700 में, इंग्लैण्ड की सेना की ताकत बेहतर हथियारों और इंग्लैण्ड के समाज के सुदृढ़/संगठित (न्यायपूर्ण प्रशासन और न्यायपूर्ण कोर्ट के कारण ज्यादा सुदृढ़ता/संगठित थी) होने के कारण भारतीय सेना से 20-25 गुनी मजबूत हो गई थी। और इसलिए, वे भारत को गुलाम बनाने में समर्थ थे। पश्चिमी देशों की सेना द्वितीय विश्व युद्ध के कारण कमजोर हो गई और भारत के सैनिकों को द्वितीय विश्व युद्ध से ताकत मिली जिससे भारत और अनेक एशियाई और अफ्रीकी देश आजाद हो गए। लकिन अब पश्चिमी सेनाओं ने अपनी खोई ताकत फिर से प्राप्त कर ली है और इसलिए इन्होंने पनामा और इराक को निगल (खा) लिया और अब ईरान की बारी है और फिर भारत की बारी आ जाएगी। यदि भारत अपनी सेना मजबूत नहीं करता तो भारत भी इराक के रास्ते चला जाएगा।
आज की स्थिति के अनुसार, अमेरिका के विशिष्ट/ऊंचे लोग अमेरिकी सेना की टूकडियों को विभिन्न देशों जैसे इराक, इरान और फिर भारत (का नम्बर आएगा) में दो मुख्य कारणों से भेज रहे हैं। पहला खनिज पदार्थ/अयस्क के सभी खदानों को हड़पने के लिए और दूसरा इसाई धर्म को फैलाने के लिए। भारत को “(धर्म परिवर्तन की जा सकने वाली) एक करोड़ आत्मा रूपी फसल की कटाई वाले राष्ट्र” के रूप में देखा जाता है और अमेरिका के ईसाई धर्म के कट्टरपंथी लोग भारत से हिन्दुत्व, सिख, बौद्ध आदि धर्मों को मिटाना चाहते हैं और ईसाई धर्म को मुख्य धर्म के रूप में लाना चाहते हैं। इसी प्रकार का एक सपना इस्लाम धर्मवाले कट्टरपंथी, सऊदी अरब और पाकिस्तान में देखते हैं – वे सम्पूर्ण भारत में इस्लाम स्थापित करना चाहते हैं। लेकिन इस्लामिक लोग कट्टरपंथी वास्तविक/बड़े खतरे नहीं हैं क्योंकि वे स्वयं ही अमेरिकी सेना के अधीन हैं। हमें चीन के भी खतरे का सामना करना पड़ता है जो भारत को नष्ट करना चाहता है ताकि वह विश्व निर्यात में बेहतर हिस्सेदारी पा सके और अरूणाचल प्रदेश के साथ-साथ असम के कच्चे तेल के कुओं को हथिया सके।
पाकिस्तान अपने आप में/खुद ही बहुत कमजोर है लेकिन पाकिस्तानी विशिष्ट/उच्चवर्गीय लोग पाकिस्तानी सेना और पूरे पाकिस्तान को पश्चिमी देशों, अरब या चीन, इनमें से जो भी सबसे ऊंची बोली लगाएगा, उसका खिलौना बनाने को तैयार हैं जबकि अमेरिका अथवा चीन भारत को तोड़ने के लिए अपने सैनिकों का सीधे तौर पर इस्तेमाल नहीं करना चाहेंगे लेकिन वे हथियार और सेटेलाईट से प्राप्त सूचना प्रदान करके पाकिस्तान का उपयोग भारत को तोड़ने के लिए कर सकते हैं।
(24.5) कैसे कारगिल युद्ध अमेरिका जीत गया और भारत और पाकिस्तान दोनों ही कारगिल की लड़ाई हार गए? |
कुछ ऐसे बिन्दु हैं जो मीडियावालों (जो अमेरिका के प्रभाव में हैं क्योंकि उन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से बहुत ज्यादा विज्ञापन मिलता है) ने हमें कभी नहीं बताया। लेकिन मुख्य घटनाओं पर एक सरसरी नजर डालने से ही यह पता चल जाता है कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश कारगिल का युद्ध हार गए और यह अमेरिका था जिसने यह युद्ध जीता। निश्चित रूप से, अमेरिका ने यह निर्णय किया था कि वह तत्कालीन (भारतीय) प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी को अमेरिका को चुनौती देते हुए परमाणु परीक्षण कर डालने के लिए सबक सिखाएगा। इसलिए अमेरिका ने कारगिल के पहाड़ पर पाकिस्तानी सेना की टुकड़ी रखवाने/भिजवाने में जनरल मुशर्रफ की सहायता की। जब युद्ध शुरू हुआ तो उस समय हमलोगों के पास लेजर गाईडेड/निर्देशित मिसाइल/प्रक्षेपास्त्र अथवा लेजर निर्देशित बम तक नहीं थे कि जिससे उन घुसपैठियों को मार गिराएं जो पहाड़ की चोटी पर थे। विमानों/जहाजों और हेलिकॉप्टरों को निशाने पर वार करने के लिए नीची उड़ान भरनी पड़ी थी और ऐसा करने में हमलोगों के अपने जहाज/विमान और हेलिकॉप्टरों को खो दिया यानि वे मार गिराए गए। बोफोर्स तोप के गोले पहाड़ पर दुश्मनों/शत्रुओं को मार गिराने में उपयोगी तो थे लेकिन उनका उपयोग कम ही किया जा सका क्योंकि उनका निशाना उतना अच्छा नहीं था और इसीलिए अधिकांश गोले (लक्ष्य से) इतने ज्यादा दूर गिरते थे कि उनसे ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता था। और इसलिए, हमें अपने हजारों सैनिकों को पहाड़ पर चढ़ने के लिए कहना पड़ा था। दुश्मन चोटी पर था और हमारे सैनिक ऊपर चढ़ रहे थे इसलिए इनमें से अनेकों को अपने प्राण गंवाने पड़े।
स्थिति तब और ज्यादा खराब हो गई जब हमें बोफोर्स तोप के गोले तक भी आयात करने पड़े क्योंकि हमारे पास गोलों तक के निर्माण की क्षमता नहीं थी। और हमें जितनी मात्रा में इन गोलों का प्रयोग करने की जरूरत थी, उससे हमारे गोले महीनों में ही खत्म हो जाते। और अमेरिका ने तानाशाही से अपनी शर्तें हम पर थोपीं जिन्हें मानने पर ही हमें बोफोर्स तोप के गोले मिलने थे। इसी दौरान घुसपैठियों को रसद वगैरह पहुंचाने के लिए जिन हेलिकॉप्टरों आदि की जरूरत पाकिस्तान को थी, उनके जरूरी कल-पुर्जे यूरोपियन नाटो देशों के बने हुए थे जो फिर से अमेरिका के नियंत्रण में ही था।
इसलिए जब अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन ने मुशर्रफ और नवाज शरीफ से युद्ध रोक देने के लिए कहा तो दोनों को ही अमेरिका की बात माननी पड़ी थी। और जब क्लिंटन ने भारत के प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी से 25 जुलाई की सुबह 2 बजे (दुश्मन को) सुरक्षित रास्ता दे देने के लिए कहा तो श्री अटल बिहारी बाजपेयी को बात माननी ही थी और दो घंटे के भीतर ही भारत ने पाकिस्तानी सैनिकों को सुरक्षित रास्ता देने की घोषणा कर दी। इसलिए कुल मिलाकर भारत युद्ध हार गया – इसने उन पाकिस्तानी सैनिकों तक को नहीं मारा जो भारत में घुस आए थे और जिन्होंने 800 भारतीय सैनिकों को मार दिया था। पाकिस्तान भी हारा क्योंकि उन्हें अमेरिकी आदेश पर वापस जाना पड़ा और वे अपने मृत सैनिकों के शव/मृत शरीर तक को वापस नहीं ले जा सके। यदि श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने क्लिंटन का आदेश किसी अच्छे आज्ञाकारी बालक की तरह नहीं माना होता तो अमेरिका बोफोर्स गोलों की आपूर्ति/सप्लाई रोक देता और सारी मदद पाकिस्तान को उपलब्ध कराता और तब उस परिस्थिति में पाकिस्तान जीत जाता। यदि मुशर्रफ ने क्लिंटन की बात नहीं मानी होती तो क्लिंटन भारत को दी जाने वाली सहायता बढ़ा देते और पाकिस्तान को दी जाने वाली सारी सहायता बाधित करके रोक देते और तब उस परिस्थिति में पाकिस्तान बुरी तरह हार जाता। यह अमेरिका ही था जिसने युद्ध जीता।
जब कारगिल युद्ध प्रारंभ हुआ तो हमने रूस, फ्रांस, अमेरिका और अन्य अनेक देशों से लेजर गाइडेड/निर्देशित मिसाइल/प्रक्षेपास्त्र और लेजर निर्देशित बम हमें बेचने को कहा लेकिन किसी ने भी हमें अंतिम क्षण तक कुछ नहीं बेचा। अंतिम क्षणों में हम केवल कुछ ही ऐसे लेजर गाईडेड बम खरीद सके जिससे पहाड़ की चोटी पर घुसपैठियों को मार सकते थे।
(24.6) हथियार निर्माण के उद्योग-कारखानों में सुधार लाना |
यहां मैं पाठकों से एक बिन्दु पर ध्यान देने का अनुरोध करता हूँ : यदि हमलोग लेजर गाईडेड मिसाइल/प्रक्षेपास्त्र और लेजर गाईडेड बम का निर्माण कर रहे होते (बना रहे होते) तो भारत का एक भी सैनिक नहीं मरता। एक भी सैनिक का जीवन खतरे में डाले बिना हम लेजर गाईडेड मिसाइल/प्रक्षेपास्त्र और लेजर गाईडेड बम का प्रयोग करके सभी घुसपैठिए पाकिस्तानी सैनिकों को मार सकते थे। यहीं पर सेना सिविल/असैनिक विभागों पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है। प्रधान मंत्री, वित्त मंत्री आदि के भ्रष्टाचार के कारण हम इन हथियारों का विनिर्माण/निर्माण नहीं कर पाए। कुल मिलाकर, भ्रष्ट राज्यव्यवस्था को देखते हुए, इंदिरा गाँधी की मौत के बाद से हमारा हथियार निर्माण कार्यक्रम अस्त व्यस्त ही था और हमें इसमें जल्दी से जल्दी सुधार करना ही होगा।
प्रजा अधीन राजा समूह/राइट टू रिकॉल ग्रुप की मांगों में से एक प्रमुख मांग यह है कि अर्थव्यवस्था और राज्यव्यवस्था में सभी जरूरी परिवर्तन किए जाएं ताकि हथियार बनाने की भारत की क्षमता अमेरिकी क्षमता के स्तर की बराबरी पर आ जाए।
(24.7) हमारी परमाणु हथियार और परमाणु क्षमताएं की परिस्थिति कितनी बुरी हैं ? |
निम्नलिखित तालिका यह दिखलाएगी कि हमारी परमाणु क्षमताएं कितनी निराशाजनक हैं–
रूस |
अमेरिका |
चीन |
इंग्लैण्ड |
भारत |
|
परमाणु विस्फोटों की संख्या |
715 |
1054 |
45 |
45 |
6 |
वायुमंडलीय परमाणु विस्फोटों की संख्या |
>200 |
331 |
22 |
8 |
शुन्य |
उच्च क्षमता वाले विस्फोटों की संख्या |
7 |
14 |
योजना बना ली गई है |
0 |
शुन्य |
लेजर विस्फोट, किलो टन में |
50000 |
15000 |
4300 |
200 |
45 |
न्यूटॉन बम |
हां |
हां |
हां |
?? |
नहीं |
चीन ने वर्ष 1968 में 3000 किलो टन का एक वायुमंडलीय विस्फोट किया। हमारी सबसे ज्यादा क्षमता वाला/बड़ा विस्फोट मात्र 45 किलो टन का था, जो किसी कौवे को भी नहीं डरा सकता था। इसलिए 40 वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद भी हमारी परमाणु क्षमता चीन के 1/75 वें हिस्से के बराबर है। और भी ज्यादा हताश करने वाली बात यह है कि पोखरण – 2 असफल रहा था। पाठकों को शायद यह मालूम नहीं होगा, लेकिन सारे आंकड़े अब यही साबित करते हैं कि परमाणु विस्फोट तो हुआ था लेकिन थर्मो- न्युक्लियर विस्फोट, जिसे परमाणु विस्फोट के बाद होना था वह असफल हो गया। अटल बिहारी बाजपेयी, अब्दुल कलाम आजाद आदि लोगों ने भारतीय नागरिकों के सामने झूठ बोला लेकिन अमेरिका और चीन जैसे दुश्मन देश जानते हैं कि हमारे परमाणु हथियार असफल/बेकार हैं।
इसका हल वायुमंडलीय टेस्ट/परीक्षण हैं। भूगर्भ परीक्षणों की ताकत सेस्मिक कम्पन/तरंगों से की जाती है जिनमें आंकड़ों में फेरबदल कर देना आसान होता है। लेकिन वायुमंडलीय परीक्षणों में परीक्षण स्थल से विभिन्न स्थानों/दूरियों पर हवा/वायुमंडल् में तापमान द्वारा इनकी माप की जा सकती है। इससे तापमान/उष्मा का सही-सही माप मिलता है जिससे विस्फोट की ताकत का मापन कर लिया जाता है। यदि चीन वर्ष 1968 में ही 3000 किलो टन के वायुमंडलीय बम विकसित करके उसका विस्फोट (करके परीक्षण) कर सका और यदि रूस 1950 के दशक में ही 50,000 किलो टन का विस्फोट कर सका तो हम भी आने वाले 10 वर्षों में कम से कम एक 3000 किलो टन का निर्माण करके उसका परीक्षण तो कर ही सकते हैं। प्रजा अधीन राजा समूह/राइट टू रिकॉल ग्रुप के प्रस्तावों में से मेरा एक प्रस्ताव अगले 10 वर्षों में एक 3000 किलो टन का वायुमंडलीय परमाणु परीक्षण आयोजित करना है।
इसके अलावा, हमारे परमाणु हथियार भंडार चीन का 1/20 वां हिस्सा भी नहीं हैं और यह अमेरिका और रूस की तुलना में तो यह बहुत मामूली है। हमें कम से कम एक ऐसा परमाणु हथियार (भण्डार) तैयार करना चाहिए जो कम से कम चीन के परमाणु हथियार (भण्डार) की बराबरी का हो।
(24.8) आत्मघाती बटन – बहार के देशों से मंगाए हुए (आयातीत) हथियारों से खतरा |
आयातीत जटिल हथियार जैसे मिसाइल/प्रक्षेपास्त्र, (युद्धक) विमान आदि में तथाकथित आत्मघाती बटन/कील स्विच (रेडियो स्विच) होते हैं। ये आत्मघाती बटन/कील स्विच (रेडियो स्विच) क्या होते हैं? ये ऐसे सर्किट वगैरह होते हैं जो जब किसी सेटेलाईट या किसी वैन से किसी विशेष गुप्त भाषा से डाले गए(कोड किये गए) रेडियो तरंग/संकेत पकड़ते हैं तो वह मिसाईल, लड़ाकू विमान आदि काम करना बन्द ही कर देता है। आयातित रेडियो-यंत्र(रडार) में भी ये आत्मघाती बटन/कील स्विच (रेडियो स्विच) लगे होते हैं। इस आत्मघाती बटन/कील स्विच (रेडियो स्विच) की समस्या तब आती है जब उपकरण(सामग्री) का आयात किया जाता है। बिक्रेता देश हमेशा दसों जगहों पर आत्मघाती बटन/कील स्विच (रेडियो स्विच) स्थापित कर सकते हैं और इन आत्मघाती बटन/कील स्विचों का पता लगाना असंभव कार्य होता है। अब मान लीजिए, हमने अमेरिका से युद्धक विमान खरीदे, तो आत्मघाती बटन/कील स्विचों का भी होना लगभग तय है। और यदि भारत और अमेरिका के बीच युद्ध (प्रारंभ) हो जाए तो अमेरिका मात्र इन आत्मघाती बटन/कील स्विचों को जाग्रत/एक्टिवेट करके इन विमानों को बेकार कर देगा। इससे भी बुरी स्थिति यह होगी कि यदि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हो जाता है और यदि अमेरिका चाहता है कि भारत हार जाए या भारत का बहुत ज्यादा नुकसान हो तो वह इन आत्मघाती बटन/कील स्विचों को जाग्रत करके इन विमानों को बेकार कर सकता है। और भी बुरी स्थिति होगी यदि भारत और चीन के बीच युद्ध हो जाता है और यदि (युद्धक) विमान फ्रांस से आयात किए गए हैं तो चीन फ्रांस को पैसे देकर कभी भी आत्मघाती बटन/कील स्विचों के ब्यौरों को खरीद ले सकता है। इस समस्या का समाधान है: सभी हथियारों का स्थानीय स्तर पर/देश में ही निर्माण करना। मैं प्रजा अधीन राजा समूह/राइट टू रिकॉल ग्रुप के सदस्य के रूप में भारत में ही फैक्ट्रियां स्थापित करने का प्रस्ताव करता हूँ ताकि आज मानवजाति की जानकारी वाले/दुनिया के हर हथियार का निर्माण भारत में ही हो, ये हथियार भारत के इंजिनियरों द्वारा बनाए गए हों और इनमें किसी आयातित कलपुर्जे का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा हो। ऐसा हर आधुनिक, विकसित देश करता है |
(24.9) भारतीय सेना की चीनी सेना से तुलना |
चीन |
भारत |
टिप्पणियां |
|
नियमित सैनिकों की संख्या |
22,00,000 |
14,00,000 |
चीन के पास “सैन्य-तैयार” युवा जो सेना प्रशिक्षण/ट्रेनिंग सहित हैं की संख्या भारत की तुलना में बहुत-बहुत अधिक है क्योंकि चीन में सर्वजन/वैश्विक सैनिक प्रशिक्षण की व्यवस्था है। |
विमानों की संख्या |
9300 |
3000 |
चीन लड़ाकू विमान का निर्माण करता है, हम नहीं करते। (भारत में ऐसी व्यवस्था नहीं है) |
लड़ाकू विमानों की संख्या |
2300 |
1335 |
चीन लड़ाकू विमान का निर्माण करता है, हम नहीं करते। |
नौसेना के जहाज |
284 |
145 |
चीनी नौसेना का अड्डा ग्वादर(पाकिस्तान) में है और यह बांग्लादेश, श्रीलंका, में अड्डे स्थापित कर रहा है। भारतीय नौसेना का कोई अड्डा/बेस चीनी तटरेखा के निकट नहीं है। इसलिए भारतीय नौसेना चीन पर आक्रमण नहीं कर सकती लेकिन चीनी नौसेना भारत पर आक्रमण कर सकती है। |
परमाणविक वारहेड्स/स्फोटक शीर्ष(हथियार) |
200 |
50 |
चीन ने 4300 किलो टन विस्फोट का परिक्षण सफलतापूर्वक किया है। हमने केवल 45 किलो टन विस्फोट का परिक्षण किया है। |
मिसाइल की मारक क्षमता (किलो मीटर) |
12000 |
2000 |
|
परमाणु हथियार से सज्जित नौसैनिक जहाज |
>4 |
शुन्य |
|
क्रुज मिसाइल/प्रक्षेपास्त्र |
?? |
?? |
चीन क्रुज मिसाइल/प्रक्षेपास्त्र का निर्माण करता है और इसलिए यह भारत पर सैंकड़ों क्रुज मिसाइलों गिरा सकता है। हम काफी ऊंची दरों पर इनका आयात करते हैं। |
लेजर गाईडेड मिसाइल और लेजर निर्देशित बम |
?? |
?? |
चीन लेजर गाईडेड मिसाइल/प्रक्षेपास्त्र और लेजर निर्देशित बम का निर्माण करता है और इसलिए यह भारत पर सैंकड़ों क्रुज मिसाइलों गिरा सकता है। हम काफी ऊंची दरों पर इसका आयात करते हैं। |
(24.10) बहार के देशों से मंगाए हुए (आयातित) हथियारों की समस्या का समाधान |
यह तथ्य कि भारत किसी हथियार का निर्माण नहीं करता है और हरेक हथियार का आयात ही करता है, बहुत ही खौफनाक है। आयात किये गए हथियार (आत्मघाती बटन/किल स्वीच के कारण) तब काम करना बंद हो सकते हैं जब युद्ध/लड़ाई शुरू हो जाती है या हमें आपूर्तिकर्ता देशों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ सकता है कि वह आत्मघाती बटन/किल स्वीच को सक्रिय न करे। और इसके लिए हमें मूल्य चुकाना पड़ता है। साथ ही, आयातित उपकरणों और कलपुर्जों आदि की कीमत युद्ध प्रारंभ हो जाने के बाद 5-50 गुनी बढ़ा दी जाती है। इसलिए हमलोगों के पास भारत में बड़े पैमाने पर हथियार निर्माण उद्योग अर्थात सेना-औद्योगिक परिसर शुरू करने/स्थापित करने के अलावा कोई चारा/विकल्प नहीं है। प्रजा अधीन राजा समूह/राइट टू रिकॉल ग्रुप के सदस्य के रूप में मैं भारत में फैक्ट्रियां स्थापित करने का प्रस्ताव करता हूँ ताकि मानवजाति की जानकारी वाले/दुनिया के हर हथियार का निर्माण भारत में ही हो, ये हथियार भारत के इंजिनियरों द्वारा बनाए गए हों और इनमें किसी आयातित कलपुर्जे का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा हो।
संक्षिप्त : एक संभावना यह है कि चीन , पाकिस्तान के द्वारा हमला करेगा | साउदी अरब पाकिस्तान को पैसा देगा, चीन अपने हथियार देगा और पाकिस्तान अपने सैनिक देगा | अगर यह दीवार जिसको हम भारतीय सेना कहते हैं, अगर तूट गयी तो भारतीय नागरिकों के पास पाकिस्तानी सेना को आसाम, चेन्नई तक पहुँचने से तथा वहा पर लूट मचाने से रोकने के लिए बंधूक या अन्य हथियार नहीं है | उस हालात में भारत के पास एक ही रास्ता होगा कि अमेरिका से भीख मांगे | अमेरिका मदद भी जरुर करेगा लेकिन बदले में भारत के सारे खनिज खानों और कच्चे तेल के कुओं की रोयल्टी (आमदनी) अपनी अमेरिकी कंपनी को देने की शर्त रखेगा |
एक बार सारी खनिज खानों और कच्चे तेल के कुओं की रोयल्टी (आमदनी) अपनी अमेरिकी कंपनी के पास चली गयी तो, वो लोग भ्रष्ट नेताओ को पैसे देकर भारत में गणित, विज्ञानं एवंम इंजीनियरिंग की शिक्षा का स्तर गिरा देंगे और यह स्थिति भारत तो पश्चिम के देशों पर और आश्रित बनाएगी |
धीरे धीरे यह परिस्थिति भारत के हिंदू नागरिकों को ईसाई धर्म में बदल देगी जैसे उन लोगों ने दक्षिण कोरिया में किया और फिर फिलीपींस जैसे देश की तरह जागीरदार/दास राज्य या अपने ऊपर आश्रित देश बना देगा | पश्चिमों देशों को धर्म-परिवर्तन करने के लिए इसी लिए रूचि है क्योंकि इससे देश की जनता बंट जाती है और बंटी हुई जनता को लूटना आसान है| उनका मकसद `बांटो और राज करो` है, ना कि उनको किसी धर्म के प्रति हमदर्दी है| लूटने के समय वे ये नहीं देखते कि जिसको लूट रहे हैं, वो कौन सा धर्म का है| लेकिन यदि हम नागरिक प्रधान मंत्री को `जनता की आवाज़-पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली (सिस्टम) और भ्रष्ट को बदलने जैसे लोकतांत्रिक कानूनों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर कर देते हैं, तो जनता को किसी भी तरह बांटना संभव नहीं होगा|
समाधान – एक कम समय के लिए उपयोगी ,समाधान यह है कि भारत में बंदूक का निर्माण करने की और उसे रखने का लाइसेंस दिया जाए जिससे भारत के काफी नागरिकों के पास बंदूक आ जाए और पाकिस्तानी सेना भारत में बहत अंदर तक घुसने में सफल ना होने पाए और हमें अपना बचाव करने की लिए पश्चिम के देशो से भीख ना मांगनी पड़े |
उदहारण –
(1) 1999 के कारगिल युद्ध में भारत के पास लेसर निर्देशित बोम (Laser Guided Bomb) नहीं थे भारत तो उसके लिए अमेरिका से भीख मांगनी पड़ी थी | फिर उसके बाद अमेरिका ने ये शर्त राखी कि भारत में विदेशी बीमा कंपनियो को काम करने की इजाज़त दी जाए और फिर बाद में उनको वो इजाज़त मिल गई और उन्होंने 2001 से भारत में आकार व्यापार करना शुरू कर दिया| |
– भारत में तो 1991 से वैश्वीकरण/ग्लोबलाईसेसन हो चूका था तो उन्हें 2001 तक प्रतीक्षा क्यूँ करनी पड़ी थी ? हालाँकि सभी और क्षेत्र में भारत में विदेशी कंपनिया आ चुकी थी ?
– भारत अमेरिका की भीख पर निर्भर नहीं था तो कारगिल युद्ध की समाप्ति के एलान के बाद आतंकवादियों को पाकिस्तान वापस जाने के लिए सुरक्षित मार्ग (Safe Passage) क्यों दिया गया था ? और भारत के सेना उनका खात्मा नहीं कर सकी |
– और उसके तुरंत बाद में ही 2004 में दवाई बनाने का पेटंट कानून बदल डाला जिससे जीवन जरूरियात की कुछ दवाइयां 10 से 1000 गुना महंगी हो गयीं|
– कारगिल के युद्ध में इस्तमाल हुई बोफर्स तोप का खोल/आवरण का भी उत्पादन भारत में नहीं होता हे | उसके लिए भी भारत तो पश्चिमी देशों से भीख मांगनी पडती है |
(2) अगर भारत 1965 और 1997 का पाकिस्तान के साथ युद्ध अपने दम पर ही जीता था तो जीता हुआ इलाका पाकिस्तान को क्यूँ वापस दे दिया ? क्यूँ कि अमेरिका/रूस ने बता दिया था की अगर तुम पाकिस्तान को जमीन वापस नहीं करोगे तो फिर अमेरिका/रूस की सेना के साथ युद्ध करने के लिए तैयार रहना , जिसमें सैनिक तो पाकिस्तान के होंगे लेकिन हथियार और मदद अमेरिका/रूस से आयेगी |
लीबिया के ऊपर आया हुआ संकट एक अलग, उलटा मोड़ ले चूका है | अगर हम राजनैतिक पहलुओं को अलग रखें ,तो लीबिया में हुए हमलों को देखकर भारत में किसी को भी यह सोचने पर मजबूर करेगा की क्या होगा अगर किसी दिन भारत-पश्चिमी देशों अथवा भारत-चीन के बीच युद्ध हुआ तो | अगर पश्चिमी देशों और चीन, भारत के साथ अगर प्रत्यक्ष युद्ध नहीं करेगा तो फिर वो लोग पाकिस्तानी सेना का उपयोग करेंगे | भारतीय पत्रकारों और पाठ्यपुस्तक लेखकों को पश्चिमी देशो से पैसा मिला है ,इसी लिए उन्होंने हमेशा यह प्रयास किया है की प्रत्येक भारतीय को हथियारों का महत्व और भारत की सेना की पश्चिमी देशों और चीन की सेना के मुकाबले में कमजोरी का पता कम से कम हो | कोई भी सामान्य अखबार के पाठक को ना तो हथियार के विवरण के बारे में पता नहीं बल्कि उसको हथियार के महत्व का भी पता नहीं जिससे हम हमारी जिंदगी और देश बचा सके | हमारे जैसे कुछ लोग जिनको पत्रकारों और पाठ्यपुस्तक लेखकों की बेईमानी का पता चला, तो उन्होंने काफी समय पहले समाचार पत्र और पाठ्यपुस्तकों को कचरे के डब्बे में डाल दिया और सिर्फ इंटरनेट के ऊपर ही जानकारी और विचार के लिए निर्भर रहते हैं और उन्हें लोगो तक पहुंचाना शुरू किया | लेकिन बाकी लोग, जो पत्रकारों और पाठ्यपुस्तक लेखकों पर भरोसा करते हैं ,वो लोग जानकारी और विचार के लिए इंटरनेट पर नहीं आते और इसी लिए उनको कुछ जानकारी नहीं होती है | हम सिर्फ आशा कर सकते हैं कि लीबिया के ऊपर हुए हवाई हमलों से उन्हें कुछ जानकारी मिली हो और वो आगे भी कुछ जानकारी लेने के लिए इन्टरनेट पर आगे आयें |
यहाँ लीबिया पर हुआ हवाई हमलों के बारे में और कुछ जानकारी है | लीबिया पर पश्चिमी देशो द्वारा उसके तेल के लिए हवाई हमले किये जा रहे हैं नाकि अन्य कोई कारण है | 1990 के आसपास हमने और श्री राजीव दीक्षीत जी ने यही कहा था की एक बार अगर इराक की बारी खतम हो गई तो इरान की बारी आएगी और फिर बाकी सब देशो की और उसमे भारत भी लाइन में ही है | भारत में भी कारपेट बोम्बिंग (हवाई जहाज़ द्वारा बम से व्यापक हमला) हो सकती है अगर भारत ने कब्ज़ा किये जाने का विरोध किया |
अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों का एक ही उद्देश्य है कि पूरी दुनिया में से सभी तेल के कुएं और खनिज खानों पर कब्ज़ा करना और पूरी दुनिया के हर इन्सान को ईसाई बनाना | पैसों से ख़रीदे गए पाठ्यपुस्तकों के लेखक इसकी बात भी नहीं करते | लेकिन ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पूरे जोर से साम, दाम, दंड और भेद लगाकर ईसाई धर्म के प्रचार का प्रयास किया था | और इसीलिए उन्होंने भैंस की चरबी की जगह गाय और सूअर की चरबी का उपयोग उनकी बंधूक की गोली बनाने में किया जिससे वो भारतीय सैनिकों को अपने धार्मिक / सामाजिक समुदायों से बाहर निकाला जाये और फिर बाद में उनके लिए उन सैनिक को ईसाई बनाना आसान हो जाए | उनका मकसद सारे देशों को आफ्रिका और फिलीपींस की तरह जागीरदार/घुलाम राज्यों में रूपांतरित करना है | भारत उनकी सूची में पेहला नहीं है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वो सूची में है ही नहीं | इसीलिए 2004 में इराक पर हमला करने के बाद कुछ लोगों ने सोचा था की अब वो इरान पर हमला करेंगे लेकिन उन्होंने लीबिया पर हमला कर दिया | इसी साजिश को लागू करने के विवरण में एक छोटा सा परिवर्तन किया गया हे लेकिन साजिश तो वो ही है |
अब हमें क्या सीखना चाहिए ?
अगर भारत का पश्चिमी देशों के साथ युद्ध हुआ तो
मान लो की यदि भारत में ईसाई का धर्मपरिवर्तन बंध हो जाता है, बहुराष्ट्रीय कंपनियो को भारत की खनिज खानों मे कोई भी हिस्सा नहीं मिलता हे तो और पश्चिम विरोधी शासन या स्वदेशी चलन अपनाता है तो फिर भारत और पश्चिम के देशो के बीच में जंग एक वास्तविक संभावना है | जब लीबिया पर हमला हुआ तब हवाई जहाज़ की सूचना देने वाली लीबिया की रडार ने काम करना बंध कर दिया | रडार के बिना हवाई हमलों से सुरक्षा ऐसी है जैसे एक व्यक्ति आँख या कान बिना | अब भारत की रडार केसी हैं ? कुछ भी अलग नहीं है | सभी रडार का उत्पादन पश्चिमी देशों में हुआ है और वो लोग कभी भी “कील स्विच/रेडियो स्विच” का इस्तमाल करके उसे बंध कर सकते हैं | काफी सारे आम नागरिकों को यह पता नहीं है कि “कील स्विच/रेडियो स्विच” क्या है ? देखिये कोई भी आधुनिक हथियार या हथियार से रक्षण देने वाला यन्त्र एक जटिल “सॉफ्टवेर” और “हार्डवेर” के साथ आता है और उसमे “कील स्विच/रेडियो स्विच” का पता लगाना नामुमकिन है |
जो देश इस तरह के हथियार या हथियार से रक्षण देने वाले यन्त्र का उत्पादन करता है , वो इस बात का ध्यान रखता है कि उनका इस्तमाल उनके खिलाफ ही ना हो | इसी लिए वो उस हथियार या यन्त्र में “कील स्विच/रेडियो स्विच” रखते हे | कील स्विच और कुछ नहीं बस उस हथियार या हथियार से रक्षण देने वाले यन्त्र को बंध करना है रेडियो तरंगें द्वारा | वो देश जो हथियार बेचता है यदि उन देशो के खिलाफ ही उस हथियारों का इस्तमाल होने लगे तो वो “रेडियो स्विच” का इस्तमाल कर के उनको बंध कर देगा | उदाहरण के लिए अमेरिका से सारे विमान कील/रेडियो स्विच के साथ आते हैं जिससे अमेरिका के खिलाफ युद्ध होने की हालात में वो विमान काम में नहीं आयेंगे | इस तरह भारत और पश्चिमी देशों के बीच होने वाले युद्ध में भारत के पास अपना बचाव करने के लिए कुछ भी नहीं है | लेकिन पश्चिम भारत को भारत पर सीधा हमला करने की जरुरत नहीं है | वो पाकिस्तानी उच्च वर्ग जेसे की प्रधान मंत्री को पैसा देंगे, उनको हथियार और उपग्रह की जानकारी देंगे | साउदी अरब हमेशा पाकिस्तान को ऐसे हमलों के लिए पैसे देने के लिए तैयार है | पाकिस्तान की सेना के पास 5,00,000 (पांच लाख) सैनिक हैं और उनके लाखों आम नागरिको के पास हथियार हैं जैसे ऐ-के 47| पश्चिमी देशो की सहायता और साउदी अरेबिया के पैसे से वो भारतीय सेना को तोड़ देंगे | और इसके बाद पाकिस्तानी सेना और नागरिकों को भारत में आसाम और चेन्नई तक पहुँचने में और लूट मचाने से कोई रोक नहीं पाएगा | जिस तरह से भारत पाकिस्तान के बीच विभाजन से हिंसा हुई थी वेसी ही होगी और लूट 20 से 50 गुना बढ़ जायेगी |
आगे जाकर पश्चिमी देश पाकिस्तान को भारत पर कब्ज़ा करना नहीं देंगे | पश्चिमी देशो का मकसद भारत को और भारत के लोगों को तोड़ने के लिए पाकिस्तान का उपयोग करना है | इससे भारत पश्चिम के देशो से भीख मांगेगा और वो मदद भी जरुर करेंगे लेकिन बदले में वो भारत की सारी खनिज खानें तथा तेल पर अपनी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का अधिकार जमा लेंगें | फिर बाद में, पश्चिमी देश भारत के गणित, विज्ञान और इंजीनियरिंग को कमजोर कर देंगे जिससे पूरी तरह से भारत उनपर तकनिकी के लिए निर्भर/आश्रित हो जाए |
अंत में पश्चिम देश वो ही करेंगे जो उन्होंने दक्षिण कोरिया और फिलीपिंस के साथ किया, देश के बड़े हिस्से को ईसाई बनाया और उनके आधीन भी | यदि भारत के आबादी के 5-10 % का नरसंहार कर के , बाकी के जन संख्या के बड़े हिस्से के लोगों को ईसाई धर्म अपनाने पर मजबूर कर देते हैं | ईसाईयों और गैर-ईसाईयों के बीच फूट डलवा सकते हैं और दोनों को लूट लेंगे | ऐसा ही दक्षिण कोरिया और फिलीपिंस में हुआ |
उपाय ? अगली समस्या के विवरण के बाद आपको उपाय बताऊंगा|
अगर भारत का चीन के साथ युद्ध हुआ तो
अगर भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ तो नतीजा तो वो ही निकलेगा. पश्चिमी देशो ने इराक पर हमला करके उन्हें पत्थर युग में पीछे धकेल दिया है और वो धीरे धीरे इराक के नागरिकों को ईसाई में धर्म-परिवर्तन करने के लिए मजबूर कर रहे हैं | पाकिस्तान में भी ज्यादा से ज्यादा गरीब मुस्लिम ईसाई धर्म को अपना रहे हैं और इसमें दोष पाकिस्तान के भ्रष्ट पैसेवाले, विशिष्ट लोगों का है | उन्होंने ही यह गरीबी का पाकिस्तान में निर्माण किया था | इराक और लीबिया में हुए इस हमले के बाद पाकिस्तान का एक बड़ा वर्ग पश्चिमी देशो के खिलाफ हो गया और चीन के नजदीक आ गया है | चीन इसका लाभ उठा कर पाकिस्तान को हथियार दे सकता है जिससे पाकिस्तान भारत पर हमला करे | पाकिस्तान चीन के हथियार और साउदी अरब से मिले पैसों का इस्तमाल कर के बडी आसानी से भारत को हरा सकता हे अगर भारत अमेरिका से भीख ना मांगे | फिर से भारत के पास कोई रास्ता नहीं होगा और हमारे प्रधानमंत्री को तो पश्चिमी देशो से भीख मांगने के लिए जाना पड़ेगा | और मदद भी जरुर मिलेगी लेकिन उस शर्त के मुताबिक जिससे भारत को अपना तेल और खनिज खानें पश्चिम के देशों को सौपना पड़े | और इसके बाद , पश्चिमी देश भारत के गणित, विज्ञान और इंजीनियरिंग को कमजोर कर देंगे जिससे पूरी तरह से भारत उनपर तकनिकी लिए आश्रित/निर्भर हो जाए | अंत में पश्चिम देश वो ही करेंगे जो उन्होंने दक्षिण कोरिया और फिलीपिंस के साथ किया, देश के बड़े हिस्से तो ईसाई बनाया और उनके आधीन भी |ईसाईयों और गैर-ईसाईयों के बीच फूट डलवाया और दोनों को लूट लिया|
उपाय
इसका एक ही सिर्फ उपाय हे की भारत में ही हथियारों का निर्माण शुरू किया जाए जिससे हमें बहार से ख़रीदे गए हथियारों के ऊपर आधीन रेहना ना पड़े | हम किसी भी हालात में बहार से ख़रीदे गए हथियारों के ऊपर अधीन नहीं रह सकते क्यूंकि उनमें कही भी “कील/रेडियो स्विच” छुपा हो सकता है | भारत को बडी मात्रा में अपने देश में ही, अत्याधुनिक युद्ध विमान से लेकर सामान्य बंधूकें जैसे हथियारों का निर्माण करना होगा जितना जल्दी हम कर सकें उतना जल्दी |
युद्ध विमान जैसे अत्याधुनिक हथियार बनाने में भारत तो 5 से 10 साल लगेंगे अगर हम आज से ही बनाना चालू करते हैं और उसके लिए जरुरी राजपत्र हमें मिल जाते हैं तो | लेकिन क्या होगा अगर चीन या पश्चिमी देशो ने उन १० साल के बीच में ही हम पर हमला कर दिया तो ? सबसे जल्दी का रास्ता है कि बंधूक निर्माण करने और रखने के लिए लिसेंस की जरुरत को रद्द कर देना चाहिए | और जिसको बंधूक का निर्माण करना है या बंधूक रखना है , करने देना चाहिए| इस तरह से पाकिस्तानी सैनिकों और पाकिस्तानी नागरिकों को भारत के हर चौराहे, हर गली में जंग लड़नी होगी | जिससे वो भारत की सीमा तो तोड़ सकते हैं लेकिन भारत में अंदर घूस नहीं सकते | इतिहास में हमने कई बार ऐसा देखा हे की जहा नागरिकों के पास हथियार होते हैं, वहाँ सेना का जीतना और आगे जाना नामुमकिन हो जाता हे | जैसे कि हिटलर ने स्वीत्जेर-लैंड पर इसीलिए आक्रमण नहीं किया था क्यूंकि वहाँ हर नागरिक के पास बंधूक थी | आज भी स्वीटजर-लैंड में कायदे के अनुसार एक बंधूक रखना और १०० गोली रखना जरुरी है | स्वीटजर-लैंड के हर आम नागरिक के पास भारत के सैनिक या डी.वाय.एस.पी. से ज्यादा बंधूक की गोलियाँ होती हैं | एक दूसरा उदाहरण है आधुनिक अफघानिस्तान | अफघानिस्तान और 1938 के भारत की तुलना करें | 1938 में भारत को इंग्लेंड ने 38 करोड की आबादी को 80,000 सैनिक द्वारा नियंत्रित किया और राज किया | और आज अमेरिका के 2 लाख सैनिक अफघानिस्तान के 3 करोड नागरिकों को नियंत्रित नहीं कर सकते| ऊँची-नीची भूमि एक कारण है लेकिन मुख्य कारण है कि वहाँ हर औरत, हर बच्चे के पास बंधूक है और इसी लिए अमेरिका के लिए अफघानिस्तान में लूटना और आराम से वहाँ के लोगो को मारना आसान नहीं है |
भारत में कुछ 11 लाख सैनिक हैं, 10 लाख सह-सैनिक बल हैं और कुछ 15 लाख पुलिस वालों के पास बंधूकें हैं | भारत के आम नागरिको में सिर्फ २% नागरिकों के पास बंधूकें हैं | इतनी कम संख्या में लोगों के पास बंधूक होने से पाकिस्तानी सैनिक और नागरिको को खुल्ला मैदान मिल जाएगा अगर एक बार भारतीय सेना की नीव टूट गयी | भारत तो एसी हालत से बचाने के लिए एक ही तरीका हे की भारत के नागरिक को बंधूक रखने का अधिकार दिया जाए | हथियार रखना और उसका इस्तमाल करने का परवाना (लाईसंस) दिया जाए और हर नागरिक ज्यादा से ज्यादा 3 बंधूक रख सके, और फिर बाद में किसी भी मदद के बिना, भारत के 70% से 80% लोगो के पास खुद की बंधूक आ जाएगी | गरीब से गरीब आदमी भी खुद की बंधूक रखेगा क्यूंकि अमीर आदमी अपनी पुरानी बंधूक सस्ते में बेच देगा जैसे कि आज कल मोबाइल-फोन के साथ होता है |
अगर एक बार भारत के 50% से 80% लोगो के पास हथियार या बंधूक आ जाए तो हम लोग बड़ी आसानी से चीन और पाकिस्तान का मुकाबला, पश्चिम के देशो की मदद के बिना कर सकते हैं | हम नहीं कहते की आज के आज ही पश्चिम से हथियार खरीदना बंध कर देना चाहिए | आज हमारे पास कोई विकल्प नहीं है, इसके अलावा कि हम बाहर से हथियार खरीदें | लेकिन एक बार सबके पास बंधूक आ गई और बंधूक का उत्पादन करना शुरू कर दिया, हम पश्चिम के हथियारों को चरणबद्ध तरीके से हटा सकते हैं क्यूँकि उनमें से लगभग सभी में कील/रेडियो स्विच होना निश्चित है |
(24.12) सेना में सुधार करने के संबंध में सभी दलों और बुद्धिजीवियों का रूख / राय |
सभी राजनैतिक दलों के नेतागण और बुद्धिजीवीगण सेना में सुधार करने के पक्के विरोधी हैं। सभी दलों के नेताओं ने `सर्वजन हथियार शिक्षा` लागू करने से मना कर दिया है क्योंकि वे डरते हैं कि नागरिकगण उनके भ्रष्टाचार और अत्याचार के खिलाफ विद्रोह/बगावत कर देंगे। और वे सैनिकों के वेतन बढ़ाए जाने का भी विरोध करते हैं क्योंकि वे विशिष्ट/ऊंचे लोगों पर (लगनेवाले) टैक्सों/करों को कम ही रखना चाहते हैं। सभी दलों के नेताओं ने परमाणु हथियारों को चीन तक के बराबर (के स्तर पर) लाने से मना कर दिया है, अमेरिका और रूस की बात तो जाने ही दीजिए। सैन्य क्षेत्र में इंजिनियरों को दिया जाने वाला वेतन इतना कम है कि कुछ ही इंजिनियर यहां भर्ती होते हैं और इसलिए निर्माण की हालत खराब/खास्ता है। हथियार निर्माण कार्यक्रम इतना कमजोर है कि हमलोग बोफोर्स तोप के गोले तक का आयात कर रहे हैं। ह्विटजर तोप के निर्माण की बात तो जाने ही दीजिए। और तो और हम `ए. के. 47` रायफलों तक का दूसरे देशों से मांगा (आयात कर) रहे हैं। अर्जुन टैंक, एल.सी.ए. और कावेरी इंजिन आदि जैसी सभी परियोजनाएं खस्ता/अस्त-व्यस्त हालत में हैं क्योंकि इन कम वेतन वाली परियोजनाओं में इंजिनियर भर्ती नहीं हो रहे हैं। और प्रधान मंत्रियों ने वर्ष 1991 से ही इंजिनियरों के वेतनों में बढ़ोत्तरी/वृद्धि करने से इनकार कर दिया है।
सेना के मध्यम-स्तरीय अधिकारियों के वेतन इतने कम हैं कि सैनिक परिवारों के नौजवान भी अब सेना में भर्ती होने से इनकार कर रहे हैं। सेना के अधिकारीगण कभी अपने बेटों और भतीजों आदि को सेना में भर्ती होने के लिए उत्साहित किया करते थे और अब दयनीय रूप से कम वेतनों के चलते वे ऐसा नहीं करना चाहते और वेतन कम सिर्फ इसलिए है कि राजनैतिक नेता वेतनों को बढ़ाने के खिलाफ हैं। वेतन इतने कम हैं कि 40,000 अधिकारियों के स्वीकृत/मंजूर पदों में से 12,000 पद खाली पड़े हुए हैं। और वास्तव में, हमें केवल 40,000 अधिकारियों की ही नहीं बल्कि 2,00,000 अधिकारियों की जरूरत है।
नेतागण इस बात पर जोर देते हैं कि सैनिकों का वेतन पुलिसवालों के वेतन से 20 प्रतिशत ही अधिक होने चाहिए, इससे अधिक नहीं !! हम सभी जानते हैं कि कोई भी नौजवान पुलिस बल में भर्ती नहीं होता यदि उसकी आमदनी का एकमात्र जरिया वेतन ही होता। दलाल मीडिया वालों ने यह छवि बना दी है कि सैनिक भ्रष्ट होते हैं और इसलिए उनके वेतन बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है। यह कोरी बकवास है। 10,00,000 पैदल सैनिकों (जवान,सिपाही) की तुलना 15,00,000 सरकारी क्लर्कों से कीजिए। प्रत्येक कांस्टेबल अथवा क्लर्क के पास नागरिक के रूप में कुछ विवेकाधीन अधिकार/शक्ति है जबकि सैनिकों को (यह अधिकार) नहीं है। इसलिए जब 80 प्रतिशत कांस्टेबलों और क्लर्कों को घूस वसूलने के अवसर होते हैं तो वहीं 1 प्रतिशत से भी कम सैनिकों को ऐसे अवसर उपलब्ध होते हैं। सेना के 40,000 अधिकारियों की तुलना 40,000 पुलिस सब इंस्पेक्टर, पुलिस इंस्पेक्टर, डी.वाई.एस.पी(उप-पुलिस-अधीक्षक), एस.पी(पुलिस अधीक्षक) अथवा तहसीलदार व कलेक्टर से कीजिए। 5 प्रतिशत से भी कम अधिकारियों के पास वह विवेकाधीन अधिकार है जिससे उन्हें किसी प्रकार का घूस मिल सकेगा। रक्षा मंत्रालय में आई.ऐ.एस.(भारतीय प्रशासनिक सेवा) के अधिकारियों द्वारा खरीद की जाती है और केवल बहुत ऊंचे स्तर के अधिकारी (शीर्ष 200 के लगभग) ही निर्णय लेने में भागीदार होते हैं। इसलिए, पुलिस या बाबू/सरकारी स्टॉफ, जिनमें से 90 प्रतिशत से 95 प्रतिशत से भी अधिक (पदाधिकारियों) के पास घूस लेने के अधिकार/ताकत होती है ,वहीं 98 प्रतिशत से अधिक सैनिकों के पास ऐसी कोई अधिकार/ताकत नहीं होती है कि वे घूस ले सकें।
हम सभी नागरिकों से अनुरोध करते हैं कि वे अपनी पार्टी के प्रिय नेताओं से पूछें कि वे सेना को मजबूत/सुदृढ़ बनाए जाने के मुद्दे पर क्या करने का इरादा/राय रखते हैं और तब यह निर्णय करें कि क्या वे वोट दिए जाने के लायक हैं ? और हम कार्यकर्ताओं से यह भी अनुरोध करते हैं कि वे बुद्धिजीवियों से इन मुद्दों पर प्रश्न पूछें और तब निर्णय करें कि क्या वे मार्गदर्शक बनने के योग्य हैं?
अभ्यास
- कितने-कितने परमाणु विस्फोट अब तक भारत और चीन ने किए हैं और कैसे/किस तरह से किए हैं? सबसे ऊंचे/बड़े विस्फोट के नतीजे/परिणाम क्या रहे हैं?
- अमेरिका के पास प्रति एक लाख नागरिकों पर कितने सैनिक हैं? भारत, पाकिस्तान, चीन और रूस के पास ऐसी संख्या (प्रति एक लाख नागरिकों पर सैनिकों की संख्या) क्या है?
- भारतीय रक्षा अकादमी/एन.डी.ए. में भर्ती होने के मान लीजिए, 10 वर्षों के बाद सेना में भर्ती होने वाले भारतीय जवानों का वेतन कितना होता है?
- कॉलेज से पढ़कर निकलने के 10 वर्ष के बाद किसी सामान्य इनफोसिस अथवा सूचना प्रौद्योगिकी/आई.टी. कम्पनी का कर्मचारी कितना वेतन पाता है?
- मैं पाठकों से जोरदार आग्रह करता हूँ कि वे निम्नलिखित फिल्म अवश्य देखें – ओमार मुख्तार।