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प्रजा अधीन राजा / राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समूह का पांचवां प्रस्ताव – दलितों के हां द्वारा आरक्षण कम करना |
(8.1) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के गरीब लोगों के समर्थन से आरक्षण कम करना |
मैंने एक सरकारी अधिसूचना(आदेश) का प्रस्ताव किया है जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के गरीब लोगों के हां द्वारा आरक्षण कम कर देगा।यह प्रणाली/तरीका, जिसका प्रस्ताव मैंने किया है, उसे मैंने आर्थिक-विकल्प का नाम दिया है।
(8.2) प्रस्तावित आर्थिक-विकल्प प्रणाली(सिस्टम) का विस्तृत ब्यौरा |
1. किसी उपजाति का कोई भी सदस्य जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अथवा अन्य पिछड़े वर्ग का हो, वह तहसीलदार के कार्यालय जाकर अपना सत्यापन करवाकर आर्थिक- विकल्प के लिए आवेदन कर सकता है। इस आर्थिक-विकल्प में निम्नलिखित बातें/तथ्य हैं -:
- उस व्यक्ति का अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग का दर्जा बरकरार/बना रहेगा।
- उसे समायोजित मुद्रास्फीति (इनफ्लेशन एडजस्टेड) के बदले/लिए 600 रूपए हर साल मिलेगा जब तक कि वह अपने आर्थिक- विकल्प के चयन को रद्द/समाप्त नहीं कर देता।
- जब तक उसे पैसे का भुगतान होता रहेगा, तब तक वह आरक्षण कोटे में आवेदन नहीं कर सकता।
- उस दिन से वह आरक्षण के लाभ के लिए पात्र/योग्य माना जाएगा, जिस दिन से वह अपने दूसरे विकल्प को रद्द/समाप्त कर देगा।
- जिन्होंने विकल्प लिया है, उनकी संख्या के आधार पर आरक्षित पदों की संख्या में कमी की जाएगी।
- इसके लिए पैसा सभी जमीनों पर कर की वसूली से आएगा कहीं और से नहीं।
2. उदाहरण – भारत की आबादी (लगभग) 100 करोड़ है जिसमें से 14 प्रतिशत अर्थात 14 करोड़ लोग अनुसूचित जाति के हैं । इसलिए यदि किसी कॉलेज में 1000 सीटें हैं तो उनमें से 140 सीटें आरक्षित रहेंगी। अब मान लीजिए, इन 14 करोड़ लोगों में से लगभग 6 करोड़ लोग आर्थिक-विकल्प का का रास्ता अपनाते हैं तो उनमें से प्रत्येक को हर महीने 100 रूपए मिलेगा और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 14 * 0.66 * 6/14 = 5.94 प्रतिशत कम हो जाएगा अर्थात यह 8.06 प्रतिशत रह जाएगा।
3. यदि किसी व्यक्ति ने आर्थिक-विकल्प का चयन किया है और फिर वह बदलकर सामाजिक-विकल्प ले लेता है तो वह उसी दिन समुदाय आधारित आरक्षण (सी बी आर) लाभ का पात्र होगा । लेकिन यदि वह फिर से आर्थिक विकल्प की ओर लौटता है तो उसे 6 महीने के बाद से 600 रूपए हर वर्ष मिलेंगे।
4. यदि दलित या अन्य पिछड़े वर्ग के किसी व्यक्ति ने आर्थिक-विकल्प को चुना है तो वह फिर से आरक्षण का लाभ लेकर सीट ले सकता है लेकिन वह तभी पात्र माना जाएगा जब वह आर्थिक -विकल्प छोड़ देता है/रद्द कर देता है।
5. यदि किसी व्यक्ति ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़े वर्ग के आरक्षण का लाभ लेकर सीट लिया है तो वह आर्थिक-विकल्प का पात्र नहीं होगा।
6. यदि माता-पिता दोनों ने आर्थिक-विकल्प लिया है तो उनके 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को 300 रूपए प्रति वर्ष मिलेगा जो अधिकतम (दो बेटे या दो बेटी ) पर लागू होगा।
(8.3) क्यों उपर लिखित प्रस्तावित कानून को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों की `हां` मिलेगी ? |
गाँव में सरपंच का बेटा आगे आकार आरक्षण का लाभ उठाता है और आर्थिक तंगी एवं निरक्षरता /अनपढ़ होने के कारण बाकी गांववालों को कुछ नहीं मिलता , यह स्वतंत्रा के बाद हर पीड़ी में होता आया है | उस सरपंच के बेटे को लाभ मिलने से ज्यादा अगर बाकी गांववालों को 600 रुपया मिल जाये तो कल को वो अपने बच्चों को स्कुल में भेजना भी शुरू कर सकते हैं | उन्हें आरक्षण नहीं आर्थिक सहायता की जरुरत है|
क्योंकि 80 प्रतिशत से अधिक गरीब अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के लोग 12 वीं कक्षा तक भी पास नहीं कर पाते और इस प्रकार उनके लिए आरक्षण का कोई अर्थ नहीं है। पांच सदस्यों के एक परिवार को हर वर्ष 3000 रूपए मिलेंगे यदि वह परिवार आर्थिक-चुनाव के तरीके को स्वीकार करता है और इसमें उसका कुछ नुकसान नहीं होगा। 80 प्रतिशत से अधिक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों द्वारा आर्थिक-विकल्प/चुनाव चुनने के साथ ही – आरक्षण कोटा घटकर 10 प्रतिशत से भी कम रह जाएगा। अब योग्यता सूची/मेरिट लिस्ट में वैसे भी 10 प्रतिशत ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के लोग तो रहते ही हैं । इसलिए प्रभावी/लगाया जाने वाला आरक्षण घटकर न के बराबर रह जाएगा। इसलिए यदि एक बार `जनता की आवाज- पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)` पर हस्ताक्षर हो जाए और यदि आर्थिक-चुनाव/विकल्प की मांग करने वाला एफिडेविट जमा हो जाए तो 80 प्रतिशत से अधिक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के लोग हां दर्ज करवा देंगे।
(8.4) लागत |
जनवरी, 2010 की स्थिति के अनुसार, भारत की जनसंख्या 116 करोड़ है जिसमें से लगभग 79 करोड़ लोग अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अथवा अन्य पिछड़े वर्ग के हैं। यदि इनमें से, सभी आर्थिक-विकल्प चुनते हैं अर्थात 600 रूपया प्रति वर्ष लेना शुरू कर देते हैं तो भी इसकी कुल लागत 48 हजार करोड़ रूपए से कम ही रहेगी यानि सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी) के एक प्रतिशत से कम रहेगी। मेरे प्रस्ताव के अनुसार, यह धन केवल संपत्ति कर से ही एकत्र किया जाना चाहिए।