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भारत में इंजिनियरिंग कौशल में सुधार करने के लिए ‘प्रजा अधीन राजा समूह’ / ‘राईट टू रिकॉल ग्रुप’ के प्रस्ताव |
(26.1) भारत में इंजिनियरिंग की हालत कितनी खराब है ? |
हम लगभग हर मोबाईल फोन का आयात करते हैं और जो भी छोटे-मोटे मोबाईल का हम निर्माण करते भी हैं तो वास्तव में वह निर्माण नहीं होता बल्कि बने बनाए पूर्जों को जोड़कर तैयार किया जाता है। कुछ प्रकार की कार का तकनीकी रूप से भारत में निर्माण होता है लेकिन ऐसेम्बली/फिटिंग लाइन का आयात किया जाता है, कारों के निर्माण में जिन रोबोर्टों का उपयोग किया जाता है उनका भी आयात किया जाता है और कार बनाने में उपयोग में लाए जाने वाले अधिकांश जटिल हिस्सों का भी आयात किया जाता है। फोन कम्पनियों के सभी स्वीचिंग(सर्किट में कनेक्शन बदलने) उपकरणों का आयात किया जाता है। सभी कम्प्यूटरों का या तो आयात किया जाता है या उनके पुर्जों को जोड़कर उन्हें बनाया जाता है। हमलोग 8 बीट सी.पी.यू. की चीपों तक का भी निर्माण नहीं करते और इन सभी का आयात ही किया जाता है और चीन 32 बीट सी.पी.यू. का भी निर्माण करता है।
(26.2) भारत में इंजिनियरिंग कौशल और उत्पादकता में सुधार कैसे किया जाए ? |
- 1. प्रजा अधीन – जिला शिक्षा अधिकारी, प्रजा अधीन – शिक्षा मंत्री, प्रजा अधीन – विश्वविद्यालय के कुलपति: ‘प्रजा अधीन राजा समूह’/‘राईट टू रिकॉल ग्रुप’ जिला शिक्षा अधिकारी, राज्य शिक्षा मंत्री, केन्द्रीय शिक्षा मंत्री, विश्वविद्यालय कुलपति और शिक्षा के क्षेत्र में मुख्य पदों (पर बैठे अनेक अन्य पदाधिकारियों) पर ‘प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)’ कानून लागू करने का प्रस्ताव करता है। मैं ‘जनता की आवाज़ – पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली’ का प्रयोग करके इन ‘प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)’ कानूनों को लागू करवाने का प्रस्ताव करता हूँ। ये ‘प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)’ कानून कक्षा I से कक्षा 12 की शिक्षा और कॉलेज की शिक्षा में सुधार करने के लिए जरूरी हैं।
- 2. गणित व विज्ञान में सात्य प्रणाली(सिस्टम): मैं ‘जनता की आवाज़ – पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली’ का प्रयोग करके गणित, विज्ञान आदि जैसे विषयों में सत्या प्रणाली(सिस्टम) ( पाठ 30 में इसे विस्तार से बताया गया है) प्रारंभ करने का प्रस्ताव करता हूँ। यह सत्या प्रणाली(सिस्टम) गणित, विज्ञान आदि विषयों में प्रौढ़ (बुजुर्ग) शिक्षा को भी बढ़ावा देगी।
- 3. मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा लागू करना: मैं ‘जनता की आवाज़ – पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली’ का प्रयोग करके ‘नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम.)’ कानून लागू करने/करवाने का प्रस्ताव करता हूँ। यह ‘नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम.)’ कानून यह सुनिश्चित/पक्का करेगा कि श्रमिकों/मजदूरों सहित सभी नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा मिले। सामाजिक सुरक्षा प्रणाली(सिस्टम) अपनाने पर श्रमिकों को शोषण से सुरक्षा मिलती है। और यह प्रणाली नियोक्ता/मालिक को बाध्य/मजबूर करती है कि वह श्रमिकों को बिना किसी कानून के कुछ न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करे। इससे प्रौद्योगिकी/तकनीकी में सुधार करने की नियोक्ता/मालिक की इच्छा को बढ़ावा मिलता है ताकि मजदूरों का प्रयोग कम हो। इससे निर्माण और इंजिनियरिंग कौशलों में सुधार आता है। सामाजिक सुरक्षा प्रणाली रचनात्मक/सृजनात्मक क्षमता वाले मजदूरों/श्रमिकों को भी रोजगार छोड़ने और व्यक्तिगत स्तर पर अपने अनुसंधान पर ध्यान लगाने में सक्षम बनाता है। यह बाजार में नई पहलों को बढ़ावा देता है।
- 4. मजदूरों को (काम पर) रखने और (काम से) निकालने संबंधी (हायर-फायर) कानून: (मजदूरों को) नौकरी पर रखने और नौकरी से निकालने सम्बन्धी क़ानून(हायर फायर) से संबंधित कानून के न होने से, अनुशासनहीनता और गैर-जिम्मेदारी बढ़ती जाएगी। और जब नियोक्ता/मालिक को (व्यापार में) घाटा होता है तो श्रमिकों/मजदूरों को पगार/वेतन देने की मजबूरी उसे अपने उद्योग को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथों में बेच देने पर मजबूर/विवश कर देती है। इससे केवल बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और धनवान लोगों की ताकत ही बढ़ती है। दूसरे शब्दों में, यदि हम किसी ऐसे कानून को समर्थन दें जिससे कि कोई नियोक्ता/मालिक लागत में कटौती करने के नाम पर किसी श्रमिक/मजदूर को नहीं हटा सके तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और धनवान व्यक्तियों, जिनके पास बैंकों के निदेशकों और वित्त मंत्रियों को घूस देने की क्षमता होती है, वे कम ब्याज पर कर्ज लेकर इस भार को सहन कर लेंगे। लेकिन छोटे-मोटे नियोक्ता/मालिक, जो लगातार प्रतियोगिता के वातावरण में रहते हैं और जिनकी बैंक निदेशकों और वित्त मंत्रियों तक पहूँच नहीं होती कि वे उन्हें घूस दे सकें, तब उनके पास अपनी कम्पनी को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और धनवान व्यक्तियों के हाथों बेच देने के अलावा और कोई चारा/विकल्प नहीं बचेगा। दूसरे शब्दों में, मजदूरी पर श्रमिक रखने और हटाने संबंधी कानून के न होने से केवल धनवान और भ्रष्ट लोगों को ही लाभ होता है।
- 5. प्रतियोगिता को अधिकतम (स्तर तक) बढ़ाने के लिए आसानी से धंधा / कंपनी शुरू करने और बंद करने सम्बंधित कानून: हथियार निर्माण के लिए इंजिनियरिंग कौशल की आवश्यकता होती है। इंजिनियरों में इंजिनियरिंग कौशल के निर्माण का एकमात्र तरीका ऐसी (अनुकूल) परिस्थितियों का निर्माण करना है जिसमें उन्हें अन्य इंजिनियरों के साथ कठोर (अहिंसक) प्रतियोगिता होती है। कालेजों में प्रशिक्षण से उन्हें केवल मुद्दों के बारे में जानकारी मिल पाती है और विश्वविद्यालयों में अनुसंधान से या तो कुछ नई दिशा के काम(पाथब्रेकिंग वर्क) होते हैं या तो उनका समय बरबाद हो जाता है। किसी इंजिनियर को जमीनी कौशल केवल तभी प्राप्त होता है जब वह इंजिनियर वास्तविक उद्योगों में काम करता है और जब उसे वास्तविक प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा होता | और आसानी से धंधा/कंपनी शुरू करने और बंद करने सम्बंधित कानून, प्रतियोगिता को अधिकतम बनाने के लिए आवश्यक है।
- 6. उच्च सीमा शुल्क : या तो देश को तकनीकी रूप से विश्व के सबसे विकसित देश के बराबर (स्तर पर) रहना होगा या तो उस देश के कानून द्वारा प्राकृतिक कच्चे माल को छोड़कर सभी माल/सामानों पर बहुत अधिक आयात शुल्क लगाना सुनिश्चित/तय करना होगा। चूंकि भारत उस क्षमता को प्राप्त करने से काफी पीछे है जिससे उसकी तुलना कम से कम वियतनाम से की जा सके, चीन अथवा जर्मनी, जापान या अमेरिका की बात तो छोड़ ही दीजिए, इसलिए हमलोगों के लिए यह आवश्यक है कि हम आयात पर 300 प्रतिशत का सीमा शुल्क लगाएं ताकि स्थानीय स्तर पर निर्मित वस्तुओं को स्थानीय बाजार उपलब्ध हो सके।
- 7. भूमि की लागत कम करना: (उद्यम) प्रारंभ करने में सबसे बड़ी तय/नियत लागतों में से एक है – हानि/घाटों को पूरा करने की प्रारंभिक अवधि के दौरान प्राप्त किराया। यह किराया जितना कम होगा, किसी व्यक्ति के लिए एक नया उद्यम/धंधा प्रारंभ करना उतना ही आसान होगा। ‘प्रजा अधीन राजा समूह’/‘राईट टू रिकॉल ग्रुप’ के सदस्य के रूप में मैंने जमीन की लागत/किराया कम करने का प्रस्ताव कैसे किया है? ‘जनता की आवाज़ – पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके ‘नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम.)’ और `सम्पत्ति कर` कानूनों को लागू करवाना। ‘नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम.)’ से जमीन का किराया कम हो जाता है क्योंकि वे सभी हस्तियां, जिन्होंने अपनी जरूरत से कहीं ज्यादा भारत सरकार की जमीन अपने कब्जे में रखा है, वे इसके (इस कानून के आ जाने के) बाद (आवश्यकता से) अधिक ली हुई जमीनें छोड़ देंगे और इससे जमीन की आपूर्ति/उपलब्धता बढ़ जाएगी। साथ ही, `सम्पत्ति कर` के कारण जमीन की जमाखोरी की क्षमता कम होगी और इस प्रकार इससे भी जमीन की कीमत कम होगी। इससे उद्योगों और दूकानों की संख्या बढ़ेगी और तब रोजगार और इंजिनियरिंग कौशलों का भी वृद्धि/बढावा होगा।
- 8. आम लोगों की क्रय शक्ति / खरीद क्षमता बढ़ाना: ‘नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम.)’ से आम लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी। ‘नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम.)’ और `सम्पत्ति कर` कानूनों से (भूमि/भाव के) किराए में कमी आएगी और इस प्रकार आम लोग जो पैसा किराया देने में खर्च करते हैं, उन्हें कम खर्च करना पड़ेगा और इससे आम लोगों के पास वस्तुओं को खरीदने के लिए अधिक पैसा बचेगा। वैट और सेवा-कर समाप्त होने से भी आय बढ़ेगी या लागतें कम होंगी या तो ये दोनों ही बातें कुछ हद तक होंगी। इसलिए मेरे द्वारा प्रस्तावित इन कानूनों को ‘जनता की आवाज़ – पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके पारित/पास करवाना है और इससे क्रय शक्ति/खरीद क्षमता बढ़ेगी। क्रय शक्ति बढ़ने से और आयात शुल्क बढ़ाकर 300 प्रतिशत करने से स्थानीय निर्माण बढ़ेगा और इससे इंजिनियरिंग कौशल में भी बढ़ोत्तरी होगी।
- 9. भारतीयों के सम्पूर्ण स्वामित्व वाली कम्पनियों (WOICs) का सृजन करना (बनाना) और इसे बढ़ावा / प्रोत्साहन देना: कम्पनी अधिनियम में, मैं एक और श्रेणी/प्रकार की कम्पनी के जोड़े जाने का प्रस्ताव करता हूँ जिसका नाम है – भारतीयों के सम्पूर्ण स्वामित्व वाली कम्पनियां (WOICs)। यदि कोई कम्पनी भारतीयों के सम्पूर्ण स्वामित्व वाली कम्पनी (WOICs) के रूप में दर्ज की जाती है तो केवल भारतीय नागरिक (भारत में रहने वाले), सरकारी निकाय/संस्था और अन्य भारतीयों के सम्पूर्ण स्वामित्व वाली कम्पनियां (WOICs) ही इसके शेयर खरीद सकेंगी और व्यक्तिगत स्तर के शेयर के स्वामित्व को इंटरनेट पर डाला जाएगा और अनेक व्यवसाय जैसे टेलिकॉम, तेल-खुदाई, बीमा, बैंकिंग आदि को ही भारतीयों के सम्पूर्ण स्वामित्व वाली कम्पनी (WOICs) होने की अनुमति दी जाएगी। इससे भारत में निर्माण के कार्य को और बढ़ावा मिलेगा।
(26.3) उच्च सीमा शुल्क के खिलाफ तर्क |
बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों ने भारत के हजारों अर्थशास्त्रियों को घूस देकर उनसे यह दावा करवाया है कि आयात शुल्क का कम रहना भारतीय नागरिकों के लिए अच्छा है। ये अर्थशास्त्री इस तथ्य को जानबुझकर नजरंदाज़ करते हैं कि यदि कम आयात शुल्क लेकर आयात की अनुमति दी जाती है तो भारत में इंजिनियरिंग में कभी सुधार नहीं आएगा और भारतीय सेना भी कमजोर होगी और भारतीय एक बार फिर से गुलाम हो जाएंगे। इन अर्थशास्त्रियों के रिश्तेदार अमेरिका में रहते हैं जिनके पास (अमेरिका का) ग्रीन कार्ड है अथवा उनके अमेरिका में विशिष्ट/उंचे लोगों के साथ संबंध/सम्पर्क हैं जिनका उपयोग करके ये अमेरिका का ग्रीन कार्ड किसी भी दिन प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए, इन अर्थशास्त्रियों को भारतीय सेना के कमजोर होने की कोई परवाह नहीं है। लेकिन मैं जागरूक नागरिकों से अनुरोध करता हूँ कि वे इन अर्थशास्त्रियों, जो कम सीमा शुल्क का समर्थन करते हैं, का विरोध करें और उनसे पूछें कि उनके पास हथियार निर्माण की भारत की क्षमताओं में सुधार करने के लिए क्या योजना है। आप पाएंगे कि ये अर्थशास्त्री हां-हूँ करके मामले को टालना चाहेंगे।
(26.4) मजदूर को आसानी से नौकरी पर रखने और नौकरी से हटाने के कानून के विरोध में तर्क |
बहुत से ऐसे लोग हैं जो कड़े श्रम/मजदूरी कानून बनाने पर जोर देते हैं और वे नौकरी पर रखने और नौकरी से हटाने के कानूनों(हायर-फायर) के खिलाफ हैं। वे दावा करते हैं कि नौकरी पर रखने और नौकरी से हटाने के कानून (हायर-फायर) अमीर-हितैषी और गरीब-विरोधी है। आईए, हम इन तथाकथित स्व-प्रमाणित, श्रम-समर्थक/मजदूर-समर्थक लोगों के विचारों की सम्पूर्णता से जांच करें।
तथाकथित स्व-प्रमाणित, श्रम समर्थक, गरीब समर्थक ये अधिकांश लोग ‘नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम.)’ कानून का विरोध करते हैं। अर्थात् वे इस प्रस्ताव का भी विरोध करते हैं कि खनिज रॉयल्टी और जमीन किराया सीधे ही नागरिकों को मिलना चाहिए। क्यों? उनसे पूछिए। पर मेरा यह आरोप है कि ये लोग गरीब समर्थक बिलकुल भी नहीं हैं, नहीं तो इन्हें ‘नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम.)’ कानून का तुरंत समर्थन करना चाहिए था। लेकिन ‘नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम.)’ के प्रति उनके शत्रुपूर्ण भाव रखने और नागरिकों को सीधे भुगतान देने का विरोध करने से यह साबित हो जाना चाहिए कि ये नौकरी पर रखने और नौकरी से हटाने के कानूनों(हायर-फायर) के विरोधी लोग गरीब-हितैषी तो बिलकुल ही नहीं हैं।
तब ये लोग नौकरी पर रखने और नौकरी से हटाने के कानूनों(हायर-फायर) का विरोध क्यों करते हैं? आइए, श्रम कानूनों का पूरा विश्लेषण करें जो मजदूरों को अत्यधिक सुरक्षा देता है और मजदूरी पर मर्जी से श्रमिक रखने और हटाने (हायर-फायर) को नकारता है। मजदूरी पर मर्जी से श्रमिक रखने और हटाने संबंधी (हायर-फायर) विरोधी कानून अत्यधिक अमीर कम्पनियों से कहीं ज्यादा मध्यम स्तरीय कम्पनियों को नुकसान पहुंचाता है। क्यों? अत्यधिक अमीर लोग श्रम न्यायालयों/कोर्ट और उच्च न्यायालयों(हाई-कोर्ट) के जजों के रिश्तेदारों को पैसे (घूस) दे सकते हैं और श्रम कानूनों (के दायरे में आने) से बच निकलते हैं। मध्यम स्तरीय (कम्पनियों के) नियोक्ता/मालिकओं के लिए यह सब करना इतना आसान नहीं होता। साथ ही, जब मंदी/कम बिक्री का समय होता है तो ये अत्यधिक अमीर लोग बैंक निदेशकों और वित्त मंत्री को घूस दे सकते हैं और बड़ी मात्रा में ऋण/कर्ज प्राप्त कर सकते हैं और मजदूरों (श्रमिकों) को रोक पाते हैं। लेकिन एक मध्यम स्तरीय कम्पनी का मालिक मंदी/कम व्यापार के समय में श्रमिकों को नौकरी से निकालने(फायर) में असमर्थ रहने के कारण बरबाद हो जाता है।
इसलिए कुल मिलाकर, अत्यधिक/जरूरत से ज्यादा संरक्षा देने वाले श्रम कानूनों से अत्यधिक अमीरों को मध्यम स्तरीय अमीरों की तुलना में ज्यादा लाभ मिलता है। और इसने विदेशी कम्पनियों को सबसे ज्यादा लाभ पहुंचाया क्योंकि सख्त/कड़े श्रम कानूनों ने भारत में विकास में रूकावट पैदा किया। और यही कारण हैं कि तथाकथित श्रम नेताओं ने अति सुरक्षा प्रदान करने वाले श्रम कानूनों का समर्थन जारी रखा – क्योंकि उन्हें विदेशी विशिष्ट/उंचे लोगों और स्थानीय अत्यधिक अमीर/विशिष्ट लोगों का समर्थन/प्रायोजन प्राप्त हो रहा था और श्रम कानूनों का उपयोग मध्यम स्तरीय कम्पनियों पर शिकंजा रखने के लिए हो रहा था। तृणमूल/सबसे निचले स्तर पर मजदूर यह विश्वास करके मूर्ख बनता रहा कि वे गरीबों की मदद कर रहे हैं। वास्तव में, अति-संरक्षावादी श्रम कानूनों का समर्थन करके वे केवल इन अत्यधिक अमीरों को ही मदद पहुंचा रहे थे।
आसानी से नौकरी पर रखने और नौकरी से हटाने के कानूनों(हायर-फायर) के खिलाफ एक और तर्क यह दिया जाता है कि नियोक्ता/मालिक अच्छे दिनों के दौरान लाभ कमाते हैं इसलिए श्रमिकों के बेरोजगार रहने के दौरान उन्हें ही बेरोजगारी भत्ता देना चाहिए। लेकिन यह मध्यम स्तरीय कम्पनियों पर अन्याय है क्योंकि वे सरकार को टैक्स/कर देते हैं और लाभ बढ़ने के साथ-साथ इन टैक्सों में भी वृद्धि/बढ़ोत्तरी की जाती है। इसलिए सरकार को लिए गए टैक्स में से ही बेरोजगारी बीमा देना चाहिए।
(26.5) सभी राजनैतिक दलों का रूख / राय |
सभी राजनैतिक दल भारत में इंजिनियरिंग कौशलों को बढ़ाने के मुद्दे को बेशर्मी से नजरअन्दाज कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि इन पार्टियों के नेताओं को बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों से धन/पैसा मिलता रहता है। मैं कार्यकर्ताओं से अनुरोध करता हूँ कि वे अपनी पार्टी के नेताओं से कहें कि भारत में इंजिनियरिंग कौशलों को बढ़ाने के लिए जिन कानूनों का मैंने प्रस्ताव किया है उसे वे स्वीकार करें। इन कानूनों को स्वीकार करने से उनके इंकार करने पर कार्यकर्ताओं को यह समझ लेना चाहिए कि नेताओं की स्वामी-भक्ति सही जगह/देश के साथ नहीं है|