होम > प्रजा अधीन > अध्याय 42 – बिजली बनने (पैदावार) और सप्लाई (आपूर्ति) में सुधार करने के लिए `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीनराजा समूह’ के प्रस्‍ताव

अध्याय 42 – बिजली बनने (पैदावार) और सप्लाई (आपूर्ति) में सुधार करने के लिए `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीनराजा समूह’ के प्रस्‍ताव

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14.   राज्‍य/केन्‍द्र सरकार अपनी अपनी यूनिटों को अपने अपने विभागों जैसे सेना, कोर्ट और पुलिस आदि को देगी(आवंटित करेगी)। कितनी यूनिट दी जाएँगी, ये रक्षा-मंत्री, प्रधान-मंत्री और पोलिस विभाग के अध्यक्ष तय करेंगे और कम से कम 51 % नागरिकों की  `जनता की आवाज़- पारदर्शी शिकायत प्रणाली(सिस्टम)` का प्रयोग करके स्वीकृति लेंगे | शेष (यूनिटों) की खुले बाजार में नीलामी की जाएगी।

15.   कोई नागरिक अपनी बिजली यूनिटों को निम्‍नलिखित तरीके से आवंटित कर सकता है:-

किसी खास/विशेष मीटर संख्‍या को क1 यूनिट, किसी अन्‍य विशेष मीटर नम्‍बर को क2 यूनिट और (उपभोग से) ज्‍यादा यूनिट किसी विशेष कंपनी को। यह “मीटर संख्‍या” उसके अपने घर का हो सकता है और/या उसके अपने दुकान का हो सकता है।

16.   यदि कोई नागरिक यह महसूस करता है कि कतिपय/कुछ श्रेणियों के लोगों जैसे खेती- भूमि के मालिक आदि को ज्‍यादा बिजली(आवंटन) मिलना चाहिए तो वह इस क्‍लॉज को एफिडेविट के रूप में प्रस्‍तुत कर सकता है और तब नागरिकगण ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) ’ का प्रयोग करके निर्णय करेंगे अथवा संसद वर्तमान/मौजूदा अथवा नए कानूनों के अनुसार निर्णय करेगी।

17.      अंतिम/वास्‍तविक उपभोक्‍ता(ऐंड यूजर्स) बिजली(विद्युत) प्रभंध-कर्ताओं/नियामकों द्वारा किए गए निर्णय के अनुसार वास्‍तविक रूप में किए गए अपने खर्च/उपभोग के लिए शुल्‍क देगा।

 

(42.4) सभी के लिए पंखा-ट्यूबलाईट के लिए बिजली अथवा उतनी बिजली के बराबर का नकद


वर्ष 2009 में भारत की प्रति व्‍यक्‍ति प्रति वर्ष बिजली खपत (क्षमता) 612 किलो-वाट थी अर्थात 612 यूनिट थी। एक यूनिट कितना होता है? एक यूनिट एक 60 वाट के ट्यूबलाईट को 16 घंटे या एक 60 वाट के पंखे को 16 घंटे चला सकता है। यदि कोई परिवार एक बल्‍ब प्रतिदिन 8 घंटे और एक पंखा प्रतिदिन 12 घंटे चलाता है तब वह परिवार एक वर्ष में 438 यूनिट उपभोग/खपत करेगा। बिजली के अन्‍य मशीनों/उपकरणों के लिए उन्‍हें निश्‍चित रूप से अधिक बिजली की जरूरत पड़ेगी।
(42.4) सभी के लिए पंखा-ट्यूबलाईट के लिए बिजली अथवा उतनी बिजली के बराबर का नकद

मेरे द्वारा किए गए  “बिजली के लिए समान मासिक राशन” के प्रस्‍ताव में प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति के उपभोग/खपत की सीमा है और यह दूसरों को भी हवाले कर सकते हैं। इस प्रकार, कोई व्‍यक्‍ति जिसके घर में बिजली नहीं है अथवा वह बिजली बन्‍द रखता है तो वह अपने खपत/उपभोग के अधिकार को किसी ऐसे व्‍यक्‍ति को बेच सकता है जिसे अधिक यूनिट की जरूरत है। दूसरे शब्‍दों में, बिजली की कटौती(लोड शेडिंग) को बिजली के मूल्‍य में वृद्धि करके इस तरह से न्‍यूनतम किया जाएगा कि केवल उन व्‍यक्‍तियों को इसका अधिक भुगतान करना पड़ेगा जो औसत से अधिक खपत/उपभोग करेंगे और इस अधिक(एक्‍सेस) (खपत) के भुगतान का निर्णय खुले बाजार में (अर्थात प्रत्‍येक नागरिक) द्वारा किया जाएगा और यह पैसा सीधे उन नागरिकों को जाएगा जो कम बिजली की खपत करते हैं।

उदाहरण के लिए, प्रत्‍येक नागरिक प्रति महीने खपत का मासिक राशन(आवंटन)(कम दाम पर बिजली) 40 यूनिट है तब कोई परिवार, जिसे बिजली का कनेक्‍शन नहीं है वह प्रति माह 40 यूनिट बिजली किसी उद्योग को बेच सकता है और बाजार मूल्‍य के बराबर पैसे ले सकता है। मान लीजिए, चार व्‍यक्‍तियों का एक परिवार प्रति दिन 5 घंटे तक एक ट्यूबलाईट और प्रति दिन 12 घंटे एक पंखा उपयोग करता है तो उन्‍हें एक महीने में 30 यूनिट की जरूरत होगी। इसलिए वे 30 यूनिट का उपभोग कर सकते हैं और 130 यूनिट का अधिकार किसी अन्‍य को बेच सकते हैं। इसी प्रकार कोई व्‍यक्‍ति जो प्रति दिन 20 घंटे एयर कंडिशनर(ए.सी) का उपयोग करता है वह एक महीने में 600 यूनिट का उपभोग करेगा। उसे किसी अन्‍य ऐसे व्‍यक्‍ति से 560 यूनिट खरीदने की जरूरत पड़ेगी जो कम खर्च करता है।

इस प्रकार, कैसे इस `समान मासिक बिजली राशन प्रणाली(सिस्टम)` से बिजली कटौती(पावर कट) कम होगी? क्‍योंकि यदि प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति उतनी ही बिजली का उपयोग करते हैं जितनी यूनिट उसे मिली है तो पावर कट बिलकुल भी नहीं होगा। अब यह तथ्‍य कि किसी व्‍यक्‍ति को शुल्क का 10 गुना भुगतान करना पड़ेगा, यह पक्का/सुनिश्‍चित करेगा कि वह यूनिट बाजार से खरीदेगा ना कि नियम तोड़कर ज्‍यादा यूनिट का खपत/उपभोग करेगा। अथवा यदि वह यूनिट नहीं खरीद सकता है तो वह खुद ही अपना खपत कम कर देगा। दूसरे शब्‍दों में, कोई मॉल/बड़ी दुकान जो रात दिन 24 घंटे एसी चलाती है तो ऐसा करने के लिए उसका स्‍वागत है लेकिन अच्‍छा होगा यदि वह यूनिट उनसे प्राप्‍त करे जो कम उपभोग कर रहे हैं। यदि कम खपत करने वाले यूनिट दे देने की बजाए ज्‍यादा खपत करने का निर्णय करते हैं तो मॉल को बिजली खपत/उत्‍पादन बढ़ने तक इंतजार करना पड़ेगा।

 

(42.5) बिजली / ऊर्जा की परिस्थिति में ‘नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ से कैसे सुधार होगा ?


‘नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ गरीबों की आय बढ़ा देगा। यह उसकी बिजली खरीदने की ताकत/क्षमता बढ़ा देगा। साथ ही ‘नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ यह पक्का/सुनिश्‍चित करेगा कि नागरिकों को कच्‍चे तेल, कोयले की रॉयल्‍टी से सीधी आय प्राप्‍त हो। इसलिए यदि बिजली की मांग बढ़ती है और यदि बिजली बनाने/उत्‍पादन करने वाली कम्‍पनी कच्‍चे तेल अथवा कोयले के लिए ज्‍यादा भुगतान करने का निर्णय लेती है तो नागरिकों की आय खुद ही बढ़ जाएगी। इस प्रकार ‘नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ यह पक्का/सुनिश्‍चित करता है कि प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति कम से कम कुछ बिजली का उपयोग कर पाए।
(42.5) बिजली / ऊर्जा की परिस्थिति में नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ से कैसे सुधार होगा ?

 

(42.6) कैसे प्रजा अधीन – जज बिजली उत्‍पादन में सुधार करेगा?

प्रजा अधीन- जज यह सुनिश्‍चित करेगा कि जज योजनाओं को रोकने/बलॉक करने के लिए रोक(स्‍टे आर्डर) का आदेश नहीं देंगे। उदाहरण के लिए नर्मदा डैम योजना विभिन्‍न जजों द्वारा दिए गए रोक(स्‍टे आर्डर) के कारण 40 वर्षों तक रूका रहा। इसलिए जैसे ही रोक (स्‍टे आर्डर) कम कर दिए जाएंगे, जल बिजली(विद्युत) कारखाना और अन्‍य बिजली-घर(पावर प्‍लान्‍ट्स/ऊर्जा संयंत्र) का विकास/निर्माण तेजी से होगा। इससे बिजली पैदावार/उत्‍पादन में सुधार होगा

श्रेणी: प्रजा अधीन