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राम जन्म-भूमि पर `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ के प्रस्ताव ; मंदिरों, मस्जिदों पर सरकार का नियंत्रण / व्यवस्था नहीं रहेगा |
(35.1) सामुदायिक ट्रस्ट
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‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके मैं `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ के सदस्य के रूप में सभी समुदायों और पंथों के लिए एस.पी.जी.सी.(शिरोमणी गुरूद्वारा प्रबंधक कमिटी) की ही तरह राष्ट्रीय/राज्य स्तरीय सामूहिक ट्रस्ट/न्यास/संस्था बनाने/लागू करने और वर्तमान में सरकार के अधीन सभी मंदिरों को उन्हें सौंप देने का प्रस्ताव करता हूँ। ट्रस्ट/न्यास/संस्था का प्रमुख (समूह के) सदस्यों द्वारा बदला/हटाया जा सकेगा और सदस्यता जन्म से या धर्मपरिवर्तन के जरिए मिलेगी। इसके प्रमुख वंशानुगत नहीं होंगे अथवा वैटिकन(इटली में एक ईसाई संस्था) जैसी किसी बाहरी/विदेशी ताकत द्वारा रखे नहीं जाएँगे। प्रत्येक समूह के तीन संगठन होने जरूरी होंगे – जिला स्तरीय, राज्य स्तरीय और राष्ट्र स्तरीय (पंथ स्तरीय यानि पंथ के स्तर का संगठन केवल राष्ट्रीय होगा)। भारत का कोई भी नागरिक जो उस धर्म का अनुयायी/मानने वाला हो, वह उस समूह का सदस्य बन सकता है और मुख्य पुजारियों का चयन/चुनाव उन धार्मिक समूहों के सदस्य-नागरिकों द्वारा किया जाएगा। सभी मुख्य पुजारी बदले/हटाए जा सकेंगे और शीर्ष/प्रमुख पुजारियों को ट्रस्ट/न्यास/संस्था के सदस्यों द्वारा, किसी सरकारी ऐजेंसी द्वारा अथवा किसी विदेशी ऐजेंसी द्वारा रखा/नियुक्त नहीं किया जा सकेगा।
सामूहिक ट्रस्ट/न्यास/संस्था ही समूह/समुदाय के मंदिरों, मस्जिदों और चर्च आदि के स्वामी/मालिक होंगे। वर्तमान सभी मंदिर ट्रस्टों के अधीन रहेंगे जैसा कि वे वर्तमान में होते हैं और वे सामूहिक/सामुदायिक ट्रस्ट/न्यास/संस्था के मालिक केवल तभी बन सकेंगे जब सभी वर्तमान ट्रस्ट/न्यास/संस्था के सदस्य स्वेच्छा से उन्हें जिला, राज्य अथवा राष्ट्रीय सामूहिक/सामुदायिक ट्रस्ट/न्यास/संस्था को सौंप देंगे। और सभी मंदिर जो वर्तमान में/अभी सरकार के अधीन है, उन्हें राज्य अथवा राष्ट्रीय हिंदू सामूहिक/सामुदायिक ट्रस्ट/न्यासों को सौंपा जाएगा और सभी मस्जिद जो सरकार के अधीन है, उन्हें राष्ट्रीय मुस्लिम ट्रस्ट/न्यासों को सौंपा जाएगा। और चर्च के लिए भी यही (नियम) लागू होगा। सरकार को मंदिरों, मस्जिदों और चर्च की व्यवस्था/देखभाल करने का कार्य करते रहना नहीं चाहिए।
(35.2) राम जन्म-भूमि, कृष्ण जन्म-भूमि व काशी विश्वनाथ के मामले/मुद्दे |
भारत भर के अधिकांश हिन्दुओं ने 3 मंदिरों की ही मांग की थी – राम जन्म-भूमि, कृष्ण जन्म-भूमि और काशी विश्वनाथ (मंदिर)। पुरातत्व (प्राचीन इतिहास और संस्कृतियों का अध्ययन) सबूतों से यह नि:संदेह साबित हो गया है कि इन तीनों में से प्रत्येक पहले कभी मंदिर हुआ करते थे। यह बार-बार साबित हो चुका है कि हिन्दुओं द्वारा मांगे गए इन तीनों भूखण्डों/प्लॉटों पर मुसलमानों को कोई आपत्ति ही नहीं थी । समस्या इसलिए गंभीर हो गई है कि बीजेपी इस संख्या को 3 से बढ़ाकर 3000 अथवा 30,000 करती जा रही है। निश्चित रूप से, मुसलमानों का बीजेपी पर भरोसा न होने के कारण ही यह गतिरोध/रूकावट आई है और यह गतिरोध मुसलमानों के हिन्दुओं पर भरोसा न होने के कारण पैदा नहीं हुआ है। मुसलमानों को बीजेपी सांसदों पर भरोसा नहीं है (न ही हिन्दुओं का ही है, यह और बात है)। लेकिन कुल मिलाकर, मुसलमानों का हिन्दुओं पर भरोसा है। इसलिए यदि कानून कहता है कि भूखण्ड/प्लॉट के हस्तांतरण के लिए 51 प्रतिशत से अधिक नागरिकों के अनुमोदन की जरूरत पड़ेगी तो यह सुनिश्चित/तय करना होगा कि हिन्दू अपनी मांग को तीन ही प्लॉट तक सीमित रखेंगे। मैं `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ के सदस्य के रूप में यह प्रस्ताव करता हूँ कि ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके नागरिकों को राम जन्म-भूमि, काशी विश्वनाथ और कृष्ण जन्म-भूमि के प्लॉटों का अधिग्रहण करना चाहिए और उन्हें हिन्दू समुदायिक न्यासों/ट्रस्ट को सौंप देना चाहिए। इससे 20 वर्ष पुरानी इस समस्या का हमेशा के लिए/स्थायी समाधान हो जाएगा और भारत में जातीय/साम्प्रदायिक शांति/सदभाव फिर से बहाल/कायम हो जाएगा।