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अध्याय 14 – `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली (सिस्टम)` आन्‍दोलन के जरिए लाना न कि चुनाव जीतकर

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 `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली (सिस्टम)` आन्‍दोलन के जरिए लाना न कि चुनाव जीतकर

   

(14.1) भारत में सतयुग लाने के लिए तीन कदमों का तरीका

प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल समूह के सदस्‍य के रूप में मैं भारत में सतयुग लाने के लिए निम्‍नलिखित तीन कदमों के तरीके का प्रस्‍ताव करता हूँ –

  1. पहला कदम अथर्ववेद और सत्‍यार्थ प्रकाश पाठ 6 पृष्‍ठ 1 के इन संदेशों को भारत के करोड़ों नागरिकों के बीच फैलाना है “राजा को प्रजा के अधीन होना चाहिए नहीं तो वह जनता को लूट लेगा।”

  2. करोड़ों नागरिकों को यह बताना है कि `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली राजा को प्रजा के अधीन लाने के लिए सबसे आसान ज्ञात तरीका है और इसलिए हमें प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों आदि को `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूप पर हस्‍ताक्षर करने के लिए बाध्‍य करना होगा।

  3. यदि एक बार प्रधानमंत्री , मुख्‍यमंत्रीगण `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्‍ताक्षर करने के लिए बाध्‍य हो गए तो `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली  के खण्‍ड/ कॉलम का उपयोग करके हम नागरिकगण नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम. आर. सी. एम.) प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट , प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री प्रारूप , प्रजा अधीन – उच्चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश प्रारूप , प्रजा अधीन – भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर प्रारूप , जूरी प्रणाली/सिस्टम प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट  और सैकड़ों ऐसे अन्‍य प्रारूपों को लागू कर सकते हैं ।

ये क़ानून-ड्राफ्ट भ्रष्‍टाचार, गरीबी आदि को कम कर देंगे। अब दूसरा कदम एक छोटा कदम है। अब मैं विस्‍तार से बताउंगा कि मैं कैसे प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों को `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्‍ताक्षर करने के लिए बाध्‍य करने का  प्रस्‍ताव करूंगा।

   

(14.2) आन्‍दोलन (व्यापक आन्दोलन / जन आंदोलन) से मेरा क्‍या मतलब है?

सबसे पहले “ व्‍यापक(फैला हुआ) / जन आन्‍दोलन  ” अर्थात आन्‍दोलन से मेरा क्‍या मतलब है? , खासकर “प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों को `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्‍ताक्षर करने के लिए बाध्‍य करने का आन्‍दोलन” अथवा “प्रजा अधीन राजा के लिए आन्‍दोलन” के संदर्भ में आन्‍दोलन से मेरा अर्थ है कि जिसमें लाखों और करोड़ों लोग इस कार्य के लिए पैसे लिए बिना पार्टी कार्यकर्ताओं, विधायक, सांसद, मंत्रियों के पास जाना शुरू कर देंगे और उनके माध्‍यम से मुख्‍यमंत्रियों व प्रधानमंत्री को बिना देरी किए `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्‍ताक्षर करने के लिए कहेंगे। नागरिक मुख्‍यमंत्रियों, प्रधानमंत्री से कहेंगे कि वे बिना देरी किए `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्‍ताक्षर कर दें। नागरिकगण स्‍वयं ऐसा करेंगे, इसलिए नहीं कि उनपर कार्यकर्ताओं द्वारा भावात्‍मक रूप से दबाव डाला गया है। यह “तरीका/ऐप्रोच” पत्रों, टेलिफोन कॉल, एस. एम. एस., रैलियों, घेराव, प्रदर्शनों, समाचारपत्रों में विज्ञापनों, नारों आदि के रूप में हो सकता हैं। प्रधानमंत्री , मुख्‍यमंत्रीगण एक ऐसी प्रणाली की स्‍थापना कर सकते हैं जो यह बात ठीक-ठीक बता सके कि कितने नागरिक `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) चाहते हैं और नागरिकों को तब तक कोई हिंसात्‍मक कार्रवाई बिलकुल नहीं करनी होगी जब तक कि यह पूरी तरह से स्‍थापित/पक्का नहीं हो जाता कि अधिकतर नागरिक `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली अवश्‍य चाहते हैं ।

इसलिए इस आन्‍दोलन को खड़ा करने में मुझे किन कार्यों को करने की जरूरत पड़ेगी जिस आन्‍दोलन में लाखों नागरिक मुख्‍यमंत्रियों व प्रधानमंत्री से `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूप पर हस्‍ताक्षर करने के लिए कहना शुरू कर दें? ये कार्य हैं-

  1. मुझे करोड़ों नागरिकों को संतुष्‍ट करना होगा कि `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली से उन्‍हें लाभ होगा।

  2. मुझे करोड़ों नागरिकों को संतुष्‍ट करना होगा कि यह नागरिकों के लिए संभव है कि वे प्रधानमंत्री , मुख्‍यमंत्रियों पर `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट पर हस्‍ताक्षर करने के लिए उनकी अपनी इच्‍छा के विरूद्ध और अभिजात/उच्‍च वर्ग के लोगों की इच्‍छा के विरूद्ध दबाव डाल सकते हैं।

  3.  मुझे करोड़ों नागरिकों को संतुष्‍ट करना होगा कि यह संभव है कि नागरिकगण प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों को बुद्धिजीवियों, मीडिया-मालिकों आदि की मदद के बिना, सांसदों व विधायकों की मदद के बिना और चुनाव का इंतजार किए बिना `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट पर हस्‍ताक्षर करने के लिए बाध्‍य कर सकते हैं।

  4.  जब करोड़ों नागरिक संतुष्‍ट हो जाएं कि प्रधानमंत्री `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूप पर हस्‍ताक्षर कर देंगे तब मुझे करोड़ों नागरिकों को इस बात के लिए आश्‍वस्‍त करना होगा कि करोड़ों अन्‍य नागरिक संतुष्‍ट हैं कि प्रधानमंत्री को `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूप पर हस्‍ताक्षर करना ही होगा।

अंतिम/पिछले लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए मुझे केवल एक संचार-तंत्र की जरूरत पड़ेगी। और पहले तीन उप-लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने के लिए –

  1. मुझे लाखों कार्यकर्ताओं को आश्‍वस्‍त करना होगा कि `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली से नागरिकों को लाभ होगा।

  2. मुझे लाखों नागरिकों को संतुष्‍ट करना होगा कि यह संभव है कि वे प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों पर `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूप पर हस्‍ताक्षर करने के लिए उनकी अपनी इच्‍छा के विरूद्ध और अभिजात/उच्‍च वर्ग के लोगों की इच्‍छा के विरूद्ध दबाव डाल सकते हैं।

  3. मुझे करोड़ों नागरिकों को संतुष्‍ट करना होगा कि यह संभव है कि नागरिकगण प्रधानमंत्री व मुख्‍यमंत्रियों को बुद्धिजीवियों, मीडियामालिकों आदि की मदद के बिना, सांसदों व विधायकों की मदद के बिना और चुनाव का इंतजार किए बिना `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूप पर हस्‍ताक्षर करने के लिए बाध्‍य कर सकते हैं।

  4. मुझे कार्यकर्ताओं को इस बात के लिए संतुष्‍ट करने की जरूरत पड़ेगी कि उन्‍हें हर सप्‍ताह कम से कम 1 घंटा साथी कार्यकर्ताओं और नागरिकों को उपर उल्‍लिखित मदों के बारे में संतुष्‍ट करने में लगाना पड़ेगा।

   

(14.3) क्‍या नागरिकगण इतने शक्‍तिशाली हैं कि वे प्रधानमंत्री को बाध्‍य / मजबूर कर दें ? अथवा क्‍या आन्दोलन एक बेकार का विचार है |

भारत के बुद्धिजीवियों ने एक गलत भ्रम फैला दिया है कि नागरिक के हाथों और पैरों में ताकत नहीं होती । वे इतने कमजोर होते हैं कि वे प्रधानमंत्री को उनकी इच्‍छा के विरूद्ध कागज के एक टूकड़े पर भी हस्‍ताक्षर करने के लिए कभी बाध्‍य नहीं कर सकते हैं। मुझे यह दिखलाने की जरूरत है कि यह एक सफेद झूठ है ।

नागरिक प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों को उनकी इच्‍छा के विरूद्ध `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) पर हस्‍ताक्षर करने के लिए दबाव डालने की ताकत रखते हैं और साथ ही प्रधानमंत्री और मुख्‍यमंत्री बहुत ही कमजोर लोग होते हैं। उनमें इतनी भी ताकत नहीं होती कि वे कुछ लाख नागरिकों के खिलाफ भी विरोध नहीं झेल सकें। वास्‍तव में हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह इतने कमजोर हैं कि वे बहुराष्‍ट्रीय कम्‍पनियों को भी ना नहीं कह सकते। और पाकिस्‍तान जैसे छोटे देश भी खुलेआम उनका मजाक उड़ाते हैं। निश्‍चित रूप से हम नागरिकगण इतने शक्‍तिशाली तो हैं ही कि ऐसे कमजोर प्रधानमंत्री को कागज के एक टूकड़े पर हस्‍ताक्षर करने के लिए बाध्‍य कर दें।

सिद्धांत की बात छोड़ दें, मैं आपको कुछ वास्‍तविक उदाहरण देता हूँ कि आन्‍दोलन कितने सफल रहे हैं –

1.    वर्ष 1974 में गुजरात में लगभग 50000 छात्रों ने  उस समय के मुख्‍यमंत्री चिमनभाई पटेल से त्‍यागपत्र देने की मांग की और कई लाख नागरिकों ने उनका समर्थन किया और बाद में छात्रों ने प्रत्‍येक /हरेक विधायक के त्‍यागपत्र की मांग की। कुछ महीनों के भीतर मुख्‍यमंत्री ने त्‍यागपत्र दे दिया। हरेक विधायक ने भी ऐसा ही किया। नागरिकों का दबाव इतना तीव्र होता है कि मुख्‍यमंत्री और विधायकों को न चाहते हुए भी ऐसा काम करना पड़ा। इसलिए, यह नागरिकों के लिए संभव है कि वे मुख्‍यमंत्री, विधायकों को `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)` क़ानून-ड्राफ्ट पर हस्‍ताक्षर करने के लिए बाध्‍य करना तो भूल जाइए, त्‍यागपत्र तक देने को बाध्‍य कर सकते हैं।

2.    1984 में गुजरात में गुजरात के कुछ छात्रों ने तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री माधवसिंह सोलंकी के त्‍यागपत्र की मांग की और कई लाख नागरिकों ने उनका समर्थन किया। यह विरोध कई महीनों तक चला। अंत में मुख्‍यमंत्री ने त्‍यागपत्र दे दिया। निश्‍चित रूप से मुख्‍यमंत्री ने अपनी मर्जी से त्‍यागपत्र नहीं दिया। नागरिकों का दबाव इतना था कि मुख्‍यमंत्री को त्‍यागपत्र देना पड़ा। इसलिए यह नागरिकों के लिए संभव है कि वे मुख्‍यमंत्री व विधायकों को `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट पर हस्‍ताक्षर करने के लिए बाध्‍य करना तो भूल जाइए, त्‍यागपत्र तक देने को बाध्‍य कर सकते हैं।

3.    1972 में देवी इंदिरा गाँधी ने आपातकाल समाप्‍त की । इसका सबसे महत्‍वपूर्ण कारण यह था कि जेलों में सभी उम्र के कार्यकर्ता भरे पड़े थे । कार्यकर्ताओं से पूरी तरह भरा हुआ कोई भी जेल किसी जेलर और प्रधानमंत्री के लिए बुरे सपने की तरह होता है। क्‍यों? क्‍योंकि पुलिस और कैदी का अनुपात बहुत घट जाए तो कैदी अन्‍दर से जेल को तोड़ने का साहस कर सकते हैं। अब यदि पुलिसवालों ने हत्‍यारों, बलात्‍कारियों अथवा चोरों को जेल के अन्‍दर गोलियों से भून दिया तो नागरिकगण उनका समर्थन करेंगे। लेकिन यदि पुलिसवालों ने कार्यकर्ताओं को गोलियों से भून दिया जिनका और कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है तो नागरिकगण सारे जेल को जलाकर खाक कर सकते हैं । और जब एक जेल टूट जाए तो इसकी खबर देश भर के जेलों में बन्‍द कैदियों को हिम्‍मत / ताकत दे देगी और कई अन्‍य जेल भी टूट जाऐंगे और जब जेल टूट जाएंगे तो स्‍थानीय पुलिस स्‍टेशनों के पुलिसवाले के पास आन्‍दोलनकारी कैदियों से निपटने का केवल एक ही रास्‍ता बच जाएगा – गोली मारना। क्‍योंकि आन्‍दोलनकारियों को बंदी बनाकर जेल में डालने के लिए कोई जेल ही नहीं बचेगा। चूंकि हजारों लोगों को गोली मार देना कोई विकल्‍प नहीं है इसलिए जब जेलें टूटेंगी तो पुलिसवालों के पास मूक दर्शक बनकर आन्‍दोलनकारियों को देखने के सिवाय कोई चारा नहीं रह जाएगा। इससे नागरिकों की हिम्‍मत बढ़ जाएगी और अधिक से अधिक नागरिक आन्दोलनकारी बन जाऐंगे और आन्‍दोलन बढ़ेगा। देवी इंदिरा गाँधी को पूर्वानुमान हो गया कि अब जेलें टूट सकती हैं और यदि ऐसा हुआ तो उनके खिलाफ आन्‍दोलन जंगल की आग की तरह भड़क जाएगा। इसलिए कुल मिलाकर यह आन्‍दोलन अथवा आन्‍दोलन का डर ही था जिसने देवी इंदिरा अम्‍मा को आपातकाल समाप्‍त करने के लिए राजी कर दिया।

4.    एक छोटे उदाहरण के रूप में, वर्ष 1991 में छात्रों के आन्‍दोलन ने तत्‍कालीन प्रधानमंत्री श्री वी. पी. सिंह को त्‍यागपत्र देने के लिए मजबूर करने में एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई।

इसलिए मैंने दो राष्‍ट्रीय उदाहरण और दो गुजरात-स्‍तरीय ठोस उदाहरण देकर यह दर्शाया है कि नागरिकगण प्रधानमंत्री और मुख्‍यमंत्री को उनकी इच्‍छा के विरूद्ध भी कार्य करने के लिए बाध्‍य कर सकते हैं। कोई व्‍यक्‍ति भारत के अन्‍य/दूसरे राज्‍यों के अनुभव भी इसमें जोड़ सकता है। जिला स्‍तर पर आन्‍दोलनों की सफलता तो और भी ज्‍यादा स्‍थापित बात है। वास्‍तव में, तथाकथित चुनाव की प्रक्रिया नियमित चलाई जाती है क्‍योंकि विशिष्ट वर्ग/उच्च वर्ग के लोग ऐसा करना आन्दोलन से बचने के लिए एक जरूरी शर्त मानते हैं। दूसरे शब्‍दों में, एक मात्र कारण कि चुनाव क्‍यों होते हैं यह केवल आन्दोलनों का डर होता है।

इसलिए, जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत प्रणाली(सिस्टम) के लिए आन्‍दोलन कैसे शुरू किया जाए? यह एक आसान काम तो है, लेकिन इसमें काफी काम करना होगा। बुद्धिजीवी लोग यह दावा करते हैं कि नागरिक मूर्ख होते हैं और वे जागरूक नहीं होते, लेकिन ये बुद्धिजीवी लोग झूठे हैं। नागरिकगण बहुत ज्‍यादा समझदार हैं और अपने हितों के लिए जागरूक भी होते हैं – उनके पास केवल उन तरीकों और साधनों की जानकारी नहीं है कि कैसे पश्‍चिमी देशों के लोगों ने अपनी इस समस्‍या का समाधान किया और किन प्रारूपों/ड्राफ्टों के माध्‍यम से भारत में वे तरीके और साधन लागू किए जा सकते हैं। यदि एक बार नागरिकों को उनके हित के ड्राफ्टों की जानकारी मिल जाए तो उनके अपने हित ही उन्‍हें इसके(`जनता की आवाज़`पारदर्शी शिकायत प्रणाली(सिस्टम)) लिए कार्रवाई करने की प्रेरणा दे देंगे। उन्‍हें इसके लिए बताना नहीं पड़ेगा और न ही कोई जोर-जबरदस्‍ती ही करनी पड़ेगी।

   

(14.4) जयप्रकाश नारायण वर्ष 1977 से पहले इस कानून को लागू कराने में असफल रहे थे। जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत प्रणाली (सिस्टम)) के लिए आन्‍दोलन कैसे सफल होगा?

एक उचित प्रश्‍न जिसका सामना मुझे करना होता है, वह है : जयप्रकाश नारायण कांग्रेस नेताओं को इन कानूनों को लागू करने के लिए बाध्‍य करने में असफल रहे थे| इसीलिए `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम), प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार), नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम. आर. सी. एम.) प्रारूपों/ड्राफ्टों के समर्थकों कों ये क़ानून-ड्राफ्ट नागरिकों को बताने/सूचित करने की जरूरत है।

   

(14.5) एकमात्र कार्य – संचार / संपर्क कार्य

इसलिए वे लोग जो `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार),  नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम. आर. सी. एम.) के प्रारूपों/ड्राफ्टों का समर्थन करते हैं उनका काम नागरिकों को यह बताना है –

  1. कि `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार),  नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम. आर. सी. एम.) प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट के खण्‍ड गरीबी, पुलिसवालों में भ्रष्‍टाचार, न्‍यायालयों में भ्रष्‍टाचार आदि को कम कर देंगे।

  2. और नागरिकों को यह भी बताएं कि वे बुद्धिजीवी झूठे हैं जो यह दावा करते हैं कि नागरिक प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों को बाध्‍य करने में सक्षम नहीं हैं/ बाध्‍य नहीं कर सकते और वे ये झूठी बातें केवल कार्यकर्ताओं को रास्‍ते से भटकाने के लिए कहते हैं ताकि कार्यकर्तागण केवल गैर सरकारी संगठनों अथवा राजनैतिक पार्टियों के लिए ही काम करें और कोई आन्दोलन करने का लक्ष्‍य नहीं बनाएं।

ये दोनों बातें (लोगों को) बताना आवश्‍यक/जरूरी है और इतना करना ही काफी होगा।

 

   

(14.6) अपनी बात का प्रचार-प्रसार कैसे किया जा सकता है?

यह बताने में लगभग 20-25 घंटे लगते हैं कि कैसे `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट, नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (आमदनी) (एम. आर. सी. एम.) क़ानून-ड्राफ्ट और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) ड्राफ्ट गरीबी और भ्रष्‍टाचार कम कर सकती है|

नागरिकों  के उचित प्रश्नों का उत्तर देने के लिए और उन्हें `जनता की आवाज़` पारदर्शी शिकायत प्रणाली ड्राफ्ट , नागरिक और सेना के लिए खनिज रोयल्टी(आमदनी) (एम.आर.सी.एम) ड्राफ्ट और भ्रष्ट कों निकालने का अधिकार के ड्राफ्ट कों उन्हें समझाने के लिए , पहले स्वयं कों ये प्रस्तावित क़ानून-ड्राफ्ट कों समजने के लिए 200-2000 घंटों की आवश्यकता होती है | बुद्धिजीवियों के अधिक प्रश्न होंगे बनस्पत के अन्य लोगों के |

इसीलिए जिन्हें ये क़ानून-ड्राफ्ट भारत में लागू करवाने हैं . उनको अपने आसपास के अधिक से अधिक नागरिकों कों ये ड्राफ्ट कों सूचित करना है|

तो ये सूचना कैसे फ़ैल सकती है, इसका अनुमानित मॉडल/नक्शा निम्नलिखित है

पहला (प्रसारण) स्‍तर        

  1. अपना समय और वित्‍तीय संसाधन/पैसा खर्च करके मैं `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली के खण्‍ड, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट , नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम. आर. सी. एम.) प्रारूपों आदि के बारे में भारत के सबसे उपर के लगभग 2 लाख से 5 लाख नागरिकों में जानकारी फैलाउंगा और भारत के सबसे नीचे के 110 करोड़ लोगों में से लगभग  10000 से 20000 नागरिकों तक भी कोशिश करके पहूंच सकूंगा।

  2. 10000 से 20000 नागरिक यह देख पाएंगे कि नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम. आर. सी. एम.) का लागू होने से उन्‍हें सीधा लाभ है। लेकिन वे इंतजार करेंगे कि सबसे उपर के 5 करोड़ लोगों के समूह के मध्‍यम स्‍तर के लोग पहल करें/पहला कदम उठाएं।

  3. इन 2 से 5 लाख लोगों में से लगभग 2000 से 5000 लोग प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानूनों के लिए आगे प्रचार अभियान चलाने में हर सप्‍ताह एक घंटे का समय देने के लिए सहमत हो जाएंगे/मान जाएंगे

  4.  इन कानूनों के लिए प्रचार अभियान चलाने के लिए लगभग 5000 लोग प्रति/हर सप्‍ताह 1 घंटा समय देने के इच्‍छुक होंगे, लगभग 500 लोग प्रति/हर सप्‍ताह 2 घंटा समय देने के इच्‍छुक होंगे, लगभग 50 लोग हर सप्‍ताह 4 घंटा समय देने के इच्‍छुक होंगे और लगभग 5 लोग हर सप्‍ताह 10 घंटे का समय देने के लिए सहमत हो जाऐंगे।

इसके बाद के स्‍तर

  1. 1000 वैसे लोगों, जो `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली के क़ानून-ड्राफ्ट , प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) प्रारूपों और `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी(आमदनी)` क़ानून-ड्राफ्ट को चाहते हैं, उनमें से लगभग 900 लोग इसके बारे में जानकारी किसी को भी नहीं देंगे, लगभग 50 लोग अपनी पूरी जिन्‍दगी में औसतन 5 लोगों को यह जानकारी देंगे, लगभग 40 लोग में से हरेक व्‍यक्‍ति अपनी पूरी जिन्‍दगी में 20 लोगों को यह जानकारी देंगे, लगभग 9 लोग अपनी पूरी जिन्‍दगी में 100 लोगों को यह जानकारी देंगे और 1000 लोगों में से 1000 में से एक व्‍यक्‍ति अपनी पूरी जिन्‍दगी में यह जानकारी कुछ हजार से लेकर कई लाख लोगों को देगा।

  2. अनेक राजनैतिक दलों/पार्टियों में सैकड़ों समर्पित नेता हैं। और उनमें से लगभग 10-20 की पहूंच टेलिविजन चैनलों, समाचारपत्रों आदि के जरिए लाखों और करोड़ों लोगों तक है। जब वे देखेंगे कि सैकड़ों कार्यकर्ता प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) का समर्थन कर रहे हैं तो उनमें से थोड़े नेता प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट का समर्थन करने का निर्णय करेंगे और इससे कुछ ही महीनों के भीतर (इसके बारे में) जानने वालों में लाखों और करोड़ों लोग बढ़ जाऐंगे। इस कदम का सबसे ज्‍यादा प्रभाव होगा। लेकिन यदि कहीं ऐसा हो जाता है तो ऐसा केवल उपर उल्‍लिखित 1 से 6 कदमों को लगातार अमल में लाने के ही कारण ही हो सकेगा।

अंतिम/सबसे निचला स्‍तर

  1. जब `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली (सिस्टम), प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार), नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी(आमदनी)` आदि कानून के खण्‍डों के बारे में जानकारी लाखों और करोड़ो नागरिकों तक पहूंचेगी तो प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों आदि पर दबाव बढ़ेगा ।

`जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) क़ानून-ड्राफ्ट , प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) प्रारूपों और नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम. आर. सी. एम.) क़ानून-ड्राफ्ट के बारे में जानकारी फैलाने के लिए विस्‍तार से उठाए जा सकने वाले कुछ कदमों  की सूची “ हर सप्‍ताह केवल एक घंटे देकर आप —— लाने में सहायता दे सकते हैं “ नाम के पाठ में दी गई है। वे लोग जो प्रजा अधीन राजा (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के समर्थक हैं वे इन कार्रवाइयों के बारे में पढ़ना और उन्‍हें अमल में लाना शुरू कर सकते हैं।

यदि प्रधानमंत्री आदि हिंसा का सहारा लेते हैं, तो अगले स्‍तर की कार्यवाईयां प्रारंभ/शुरू  कर दी जाएंगी ( कृपया अध्याय 46 “ उधम सिंह योजना “ नाम के पाठ को देखें/पढ़ें)।

सार- यदि दो लाख से तीन लाख कार्यकर्ता अपना महीने का कमसे कम 10 घंटा और अपना स्वयं का कुछ धन खर्च करते हैं ,पैम्फलेट , सी.डी. ,विज्ञापन आदि में ,कोई चंदा नहीं (चंदा देना/लेना इस कार्य के लिय के हम सख्त खिलाफ हैं) तो केवल एक साल में वे कार्यकर्ता सभी भारत के मतदाता-नागरिकों कों सूचित कर सकेंगे इन जनसाधारण-समर्थक क़ानून-ड्राफ्ट के बारे में | और ये सूचना मिलने पर वो इसके लिए मांग करेंगे विशेषकर पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए और तब कुछ ही महीनों के बाद ये क़ानून भारत में आ जाएँगे|

श्रेणी: प्रजा अधीन