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(6) और दूसरे विषयों पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

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सूची

 

(1) क्या जजों और अफसरों का वेतन बढ़ाने से भ्रष्टाचार कम हो जायेगा ?

छोटे मामलों में , जज रिश्वत नहीं लेते क्योंकि उसमें पकड़े जाने का खतरा होता है और ज्यादा पैसा भी नहीं मिलता | और बड़े मामलों में, वे लगभग हमेशा रिश्वत लेते हैं | इसका उपाय जूरी सिस्टम, राईट टू रिकाल-जज / प्रजा-अधीन-जज(भ्रष्ट जज को आम-नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार , `जनता की आवाज़ –पारदर्शी शिकायत प्रणाली(सिस्टम)`,बहुमत नागरिकों के स्वीकृति द्वारा कैद , बहुमत नागरिकों के स्वीकृति द्वारा जुर्माना |

मंत्रियों, `आई.ऐ.एस`, पोलिस-कर्मी , जज के पास रिश्वतें लेने के लिए कोई कारण नहीं था | और यदि वेतन 10 गुना भी बढ़ा दिया जाता है , तो भी वे रिश्वतें लेते रहेंगे ,जब तक हम आम-नागरिकों के पास उनको नौकरी से निकालने, सज़ा देने, फांसी देने या जुर्माना करने के अधिकार नहीं हों | केवल वेतन बढ़ाना, `सज़ा रखने` के बदले  काम नहीं कर सकता है |

अमेरिका में, 1950 के दशकों में, सरकारी अफसरों के वेतन, महंगाई के अनुसार नहीं बढ़े | तब अफसरों ने रिश्वतें लेना नहीं शुरू किया, उन्होंने नौकरी छोड़ना शुरू किया | क्योंकि भ्रष्ट को आम-नागरिकों के पास बदलने / सज़ा देने के अधिकार थे, जिससे यदि अफसर रिश्वत लेते , तो उनको जेल जाना पड़ता | और जैसे अफसरों ने नौकरी छोड़ना शुरू किया, नागरिकों ने उनके वेतन बढ़ा दिए और फिर से नौकरी पर आने के लिए मौका दिया | दूसरे शब्दों में, जब भ्रष्टाचार कम हो, तो वेतन आदि, सब अपने-आप बढ़ जाते हैं |

 

(2) क्या गरीबी भ्रष्टाचार का मुख्य कारण है ?

सरकार के निचले स्तर के कर्मचारी भी आम नागरिकों से , पैसों के अनुसार,अच्छी स्थिति में हैं | और यदि गरीबी भ्रष्टाचार का कारण होता, तो क्या नेता-बाबू-जज-पुलिसवाले रिश्वत लेते , जब उन्होंने कुछ लाख रुपये कमा लिए हैं ? लेकिन हम तो देखते हैं कि रिश्वत लेना तो बढ़ता ही जाता है, घटता नहीं है |

ऐसे कई सरकारी विभाग हैं जहाँ प्रक्रियाएँ / तरीके इतनी अच्छी हैं कि सरकारी कर्मचारी को कोई मौका नहीं मिलता रिश्वत लेने के लिए |  उदाहरण , एक बैंक के क्लर्क को लें | उसे 1-2  दिनों में  चेक पास करना होता है नहीं तो वापस करना होता है | उसके पास कोई फैसला लेने का अधिकार नहीं होता है | इसीलिए वो रिश्वत नहीं लेता और कम पैसों के साथ रहता हैं  राजस्व (सरकार/राज्य की आमदनी) विभाग के मुकाबले , जो सचमुच सालाना एक लाख से दस लाख रुपये बनाते हैं रिश्वत ले कर | अभी दोनों क्लर्क मिलते-जुलते वातावरण/हालात से आते हैं और फिर भी बैंक के क्लर्क को स्थिति से संतोष करना पड़ता है और साधारण / सामान्य जीवन जीना पड़ता है | जबकी राजस्व(सरकार की आमदानी) विभाग के क्लर्क को मौका मिलता है और सज़ा का कोई डर नहीं है , वो भ्रष्टाचार करता है |

और हाँ , शक्ति ऊच स्तर में इतनी केंद्रित है कि हर कोई कैसे भी चाहता है कि वो और उसके रिश्तेदार न्यायतंत्र,नेता और बाबूओं, आदि की उच्च पदों को पा ले |

 

(3) लोगों को वो ही सरकार मिलती है , जिसके वे लायक होते हैं ?

प्रश्नकर्ता- एक बार ऐसा हुआ, मैंने रेलवे में कुछ सामान की बुक किया .,…

आप ऐसे उदाहरण दे रहे हो, जिसमें खोने के लिए कुछ ज्यादा नहीं है ( दांव बहुत कम है ) | ऐसे उदाहरण दीजिए जहाँ खोने को बहुत कुछ है |

मान लीजिए आप एक फक्ट्री चला रहे हैं , और प्रदुषण रोकने वाला अफसर आता है और रिश्वत देने के लिए कहता है या फिर फैक्ट्री को बंद करने की धमकी देता है | फिर आप क्या करेंगे ??
यदि आप रिश्वत नहीं देते, वो आप की फैक्ट्री बंद कर देगा | आपने जो माल बनने का आर्डर लिया है, वो पूरा नहीं हो पायेगा | कर्मचारियों के वेतन और कर्जे का सूद इकठ्ठा होता जायेगा और कोई आमदनी होगी नहीं | ग्राहक भाग जाएँगे और फिर कभी नहीं आयेंगे यदि आप समय पर माल बना कर देने का वायदा नहीं पूरा कर पाते |

तो फिर, क्या आप रिश्वत ना देने की हिम्मत करेंगे ?

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दूसरे शब्दों में, कृपया उन्हीं स्थिति तक सीमित रहें, जहाँ खोने को बहुत कुछ है | कोई भी व्यक्ति , जिसको खोने के लिए कुछ नहीं है चिल्ला सकता है “ देखो, मैंने बलिदान दे दिया, लिए कोई उसूल नहीं तोड़े “ | तो ये बहुत बड़ी बात नहीं है |

एक तरह से  आप इन मुजरिमों को पोलिस-वालों / जजों के ही एजेंट मान सकते हैं | पोलिस-कर्मी / जज , धंधों से रिश्वत लेना चाहते हैं, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सकते क्योनी कई सौ धंधो से रिश्वत लेने से उनकी पोल खुल जायेगी | इसीलिए वे मुजरिमों का प्रायोजन करते हैं, उनको सुरक्षा देते हैं और उनको हफता इकठ्ठा करने के लिए कहते हैं |

आपको लगता है कि मुजरिमों ने आपका पैसा लिया है , लेकिन मुजरिम , जो पैसा इकठ्ठा करते हैं, उसका 90% बड़े पोलिस-वालों, विधायक, मंत्री, सांसद, मंत्री,मुख्यमंत्री और जजों को जाता है | और जिन्होंने रिश्वत नहीं दी है, वे संत नहीं हैं | उनमें से बहुत सारे लोग , बेशर्मी से ऐसे कानूनों का समर्थन करते हैं , जो प्रशासन में ऐसी स्थितियां बना देती हैं, जहाँ पर व्यापारी आदि, रिश्वत देने के लिए मजबूर हो जाते हैं |

उदाहरण., ये क़ानून लें, “ जज फैसला देगा और जूरी-सदस्य नहीं |”” बहुत सारे इसमें गर्व महसूस करते हैं कि उन्होंने रिश्वत नहीं दी है, बेशर्मी से ये बुरे क़ानून का समर्थन करते हैं | फिर जज फैसला , उन्हीं आसिल (मुवक्किल) के पक्ष में देते हैं , जो उनके रिश्तेदार / दोस्त की सेवायें लेते हैं | फिर आसिल के पास क्या रास्ता होता है ?

जो बुरे कानूनों का समर्थन करते हैं, उनको रिश्वत देने और लेने वालों के बराबर मानना चाहिए |
क्या लोगों को उनके लायक जज मिलते हैं?

क्या लोगों को उनके लायक `आई.ऐ..एस`(बाबू) या पोलिस-कर्मी मिलते हैं ?

मैं आप इस बात पर ध्यान केंद्रित करूँगा “ वो(नेता-जज-बाबु-पुलिसकर्मी .,आदि) उतने ही भ्रष्ट हैं , जितने शायद आम-नागरिक हैं |”

ये बात झूठी है | हम आम-नागरिक के भ्रष्ट होने की “सम्भावना” नेता, `आई.ऐ.एस`, पोलिस-कर्मी,जज के जितने हो सकती है — लेकिन असल में हम आम-नागरिक उनके जितनी 0.01% भ्रष्टाचार भी नहीं है | कुछ 80% भारतीय 20 रूपए हर दिन से काम कमाते हैं | और बाकी 20% में से ,कुछ 15 % 10,000 रुपये प्रति महीने से कम कमा पाते हैं | केवल ऊपर के 5% ही `आई.ऐ.एस`(बाबू), पुलिसकर्मी, जज या मंत्री जितना पैसा कामते हैं |

तो फिर 80% भारत के लोग भ्रष्ट नहीं हैं | और 15% लोग , केवल थोड़ा भ्रष्ट हैं | और केवल %% हैं , जो बड़े रिश्वतें लेते/देते हैं |

प्रश्नकर्ता- जो आप 5% की बात कर रहे है ,वे व्यापारी, नेता, बाबू हैं ,जो देश की नीतियां बनाते हैं, देश चलाते हैं, जो नौकरी / धन पैदा करते हैं , जो भारत की 9% कुल घरेलु उत्पाद (जी.डी.पी) , विकास दर का कारण हैं |

धन का बड़ा हिस्सा अभी भी खदानों से आता है | और करोड़ों मजदूर भी काम करते हैं, इस 9% विकास बनाने के लिए |

प्रश्नकर्ता- यदि ये 5% लग नहीं होते, तो भारत अभी भी दूसरे देशों से भीख मांग रहा होता | रिलायंस का उदाहरण लीजिए, यदि उन्होंने अपनी विकास भ्रष्टाचार के द्वारा नहीं बधाई होती, तो क्या आज वे होते ?

रिश्वत के कारण, हमारे देश में कम उद्योग है | पश्चिम में कम भ्रष्टाचार है, जिसके कारण वहाँ ज्यादा उद्योग है | और जापान में कहीं कम भ्रष्टाचार है, जिससे वहाँ ज्यादा उद्योग है | भ्रष्टाचार विकास का दर कम कर देता है क्योंकि इससे एक-अधिकार और अवसरों की कमी हो जाती है |

 

(4)  रिश्वत से अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है |

भाई, कृपया कई देशों के आंकडे इकठ्ठा करो, कोई भी अनुमान लगाने से पहले | जो देश जटिल/पेचीदा इंजीनियरिंग का सामान बनाती है , जैसे स्वीडन , नॉर्वे , फिनलैंड, इंग्लैंड , अमेरिका , जर्मनी,जापान, आदि, वो देश हैं, जहाँ भ्रष्टाचार कम है | इसलिए भ्रष्टाचार से उद्योगों को कम करते हैं, बढ़ते नहीं |

प्रश्नकर्ता- हमारा देश अभी भी विकास कर रहा हैं और इसीलिए हम भ्रष्टाचार को समाप्त करने के तरीके बना रहे हैं |

1800 और 1900 के शताब्दी में जब, पश्चिम और जापान विकास कर रहे थे, तो पोलिस, कोर्ट और बहुत से क्षेत्रों में (लगभग सारी सरकार में,  विदेशी मामले और कुछ हथियारों के ठेकों को छोडकर) , भ्रष्टाचार ना के बराबर थी |

और जब हम भारत को अभी भी विकास कर रहा है, कृपया ध्यान दें कि हमारी विकास दूसरे देशों से मंगाई गयी तकनीक पर निर्भर है | हम असली ,जटिल (उलझा हुआ;मुश्किल) सामान नहीं बना रहे हैं | ये भ्रष्टाचार के वजह से है | भ्रष्टाचार से असली निर्माण रुक जाती है |

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प्रश्नकर्ता- जब हम विकसित हो जाएँगे, तो फिर हमारे पास ज्यादा अच्छे भ्रष्टाचार के खिलाफ क़ानून होंगे |

यदि भ्रष्टाचार ऐसे ही चलती रहेगी , तो ऐसे संभावना है कि हम पूरी तरह टूट जायें और इतने कमजोर हो जायें कि अमेरिका जैसा देश हम को पूरी तरह गुलाम बना ले |

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1500 और 1757 के बीच के सालों की बात करें, तो भारत में भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा था और इंग्लैंड में कम था | इसका परिणाम क्या हुआ ? इंग्लैंड में उद्योग बढ़े और तकनीक बढ़ी , जिससे हथियारों में सुधार हुआ | और 1757 तक , इंग्लैंड ने भारत का कुछ हिस्सा कब्ज़ा कर लिया था और 1857 तक , उसने पूरा भारत कब्ज़ा कर लिया था |

प्रश्नकर्ता- आज के समय , भ्रष्टाचार करना बहुत मुश्किल हो रहा है |

वे पद, जहाँ निर्णय करने का अधिकार है, वहाँ भ्रष्टाचार 1991 से ज्यादा है ., उदाहरण- कोर्ट, `आई.ऐ.एस`, पोलिस-कर्मी आदि में | केवल कुछ ही जगहों पर भ्रष्टाचार कम हुई है, जैसे रेलवे टिकेट पाने में, कुछ निचली स्तर के सरकारी लेन-देन , आदि में |

 

(5) निचली जातियों में धर्म-परिवर्तन क्यों बढ़ रहा है ?

असल में, हिंदू ऊच-जाती के लोगों का एक बड़ा वर्ग दलितों को गरीब और अनपढ़ बने रहना देना चाहता है | कौन उनके घर साफ़ करेगा, उनके कपडे धोएगा,उनके बर्तन साफ़ करेगा, उनकी गटर(नालियां) साफ़ करेगा और उनके बच्चों को नह्लायेगा ? इसीलिए , उनको ये नहीं अच्छा लगता , जब ईसाई धर्म-प्रचारक दलितों को पैसे और अंग्रेजी शिक्षा देते हैं |

और दलितों के पास अपना दिमाग होता है | गरोब से गरीब दलित जिनसे मैं मिला हूँ , अभी तक , समाज के बारे में पूरी जानकारी है , ना कि लाचार और बिना दिमाग के , जैसे कि मीडिया में बताया जाता है | मैं बहुत सारे धर्म-परिवर्तन किये हुए, दलितों से मिला हूँ ,जिन्होंने गीता और बाईबल दोनों पड़ी है , और वे कहते हैं कि उन्होंने धर्म-परिवर्तन का फैसला दोनों को पढ़ने के बाद किया है | और ये फैसला इसके बावजूद किया है, जब उनको पता है कि उनको जाती आधारित (वाला) आरक्षण के फायदे नहीं मिलेंगे , धर्म-परिवर्तन के बाद |

धर्म-परिवर्तन बढ़ रहा है , और इसका कारण एक दूसरा प्रश्न पूछने पर मिल सकता है “ अभी तक अनुसूचित जाती और जनजाति के लोगों ने धर्म-परिवर्तन क्यों नहीं किया ?” देखिये, इसका उत्तर `जाती आधारित (वाला) आरक्षण` है | `जाती वाला आरक्षण` एक शक्तिशाली साधन था , जिसने दलित/जनजाति के मध्य वर्ग, उच्च मध्य वर्ग और ऊच वर्ग को हिंदुओं में रखे रखा | लेकिन जैसे निजीकरण बढ़ता जा रहा है ,`जाती वाला आरक्षण` बेकार होता जा रहा है (क्योंकि प्रायवेट में आरक्षण नहीं होता)| इसीलिए दलित और जनजाति के मध्य वर्ग के लोगों को हिंदू बने रहने के लिए कोई फायदा नजर नहीं आता |

और हर ऊंचे वर्ग का व्यक्ति, जो धर्म-परिवर्तन करता है , अपने साथ 10 मध्य वर्ग के व्यक्तियों को और 1000 गरीबों को अपने साथ ले जाता है (क्योंकि उनका समाज में प्रभाव होता है)| और हर मध्य (बीच का) वर्ग का व्यक्ति, जो धर्म-परिवर्तन करता है, उसके साथ 100 गरीब भी धर्म-परिवर्तन करते हैं | भारत में , ज्यादातर ईसाई धर्म-परिवर्तन वाले, दलित मध्य वर्ग से हैं या उनके माता-पिता दलित मध्य वर्ग से हैं , और बाहर से नहीं आये हैं |

(  http://www.stephen-knapp.com/christian_persecution_in_india.htm )

सबसे बड़ा कारण क्यों ये लोग धर्म-परिवर्तन कर रहे हैं — भारत में ऊच वर्गों का फैसला , कि दलितों को गरीब और अनपढ़ रखा जाये , उनको पब्लिक जमीन का किराया और खदानों की आमदनी ना देकर और उनको अंग्रेजी शिक्षा ना देकर | इसलिए दलित और जनजाति ईसाई-धर्म परिवर्तन करने वालों (मिशनरी) के रराफ जाते हैं, जो उनको पैसे देने के लिए तैयार हो जाते हैं ( या कुछ और सुविधाएं जैसे दवा आदि ) और अंग्रेजी शिक्षा भी देते हैं |

बहुत से हिदुत्वादी सोचते हैं कि वे , ये लड़ाई गुंडों द्वारा और मोदी जैसे भ्रष्ट नेता का चुनाव करके कर सकते हैं |

गुंडों की ताकत भ्रष्ट जजों, भ्रष्ट पोलिस-कर्मी और भ्रष्ट विधायकों में होती है | बिना भ्रष्ट जजों, पोलिस-कर्मी और नेताओं के , गुंडे कुछ भी नहीं कर सकते, ईसाई-धर्म परिवर्तन करने वालों को क्या मरेंगे ?

लेकिन इन हिंदुत्वादियों ने ये नहीं सोचा है कि ये भ्रष्ट जज, नेता और पोलिस-कर्मी , इन ईसाई धर्म-प्रचारकों की भी सहायता करेंगे, यदि ये ईसाई धर्म-प्रचारक इनको दुगना पैसा देंगे, और साथी ही ऊपर से राजनैतिक दबाव भी होगा , जो विदेशी कंपनियों द्वारा दिया जायेगा |

हिंदुत्वादियों को पता होना चाहिए कि कांग्रेस, सी.पी.एम, भा.ज.पा, आई.ए.एस (बाबू), पोलिस-कर्मी, सीबीआई, सुप्रीम कोर्ट आदि के सबसे ऊपर के अधिकारी, बहुराष्ट्रीय कंपनी के भुगतान रेजिस्टर पर हैं |

और हिंदुत्वादियों को ये भी पता होना चाहिए कि विदेशी कंपनियों ने 1980 से , पूरे विश्व में वैटिकन (ईसाई धर्म-प्रचारक) की मदद की है (उधाहरण., दक्षिण कोरिया में , एक ईसाई को विदेशी कंपनी में एक बौद्ध से जल्दी तरक्की मिलने की संभावना है ) और भारत में विदेशी कम्पनियाँ, अपने भा.जा.प्, कांग्रेस, सी.पी.एम., आई.ऐ.एस. (बाबू) , पुलिसकर्मी, सी.बी.आई.,और सुप्रीम-कोर्ट में अपने संपर्कों का खुशी से प्रयोग करेंगे , वैटिकन और उनके ईसाई धर्म-प्रचारकों कि मदद करने के लिए |

इसीलिए, ये थोड़े समय की ही बात है, कि भ्रष्ट जज, भ्रष्ट बाबू, भ्रष्ट नेता आदि, ईसाई धर्म-प्रचारकों से मिल जाएँगे | और जब वो होगा, तो आधे विश्व हिंदू परिषद के गुंडे भी ईसाई धर्म-प्रचारकों से जुड़ जाएँगे और आधे जेल में होंगे, यदि मर नहीं गए हों तो |

और फिर कुछ हिन्दुत्वादी ये आशा करते हैं कि मोदी जैसे भ्रष्ट नेता उन्हें बचा सकते हैं | देखिये, अडवानी (अभी हज अडवानी) जिन्ना की पूजा करने तक गिर सकता है, उस जिन्ना की जिसने लाखों हिंदुओं की हत्या और करोड़ों हिंदुओं को बाहर निकालने का जिम्मेदार था | उसके नाम के बेटे , मोदी , उसकी जगह ले लेगा , जब ईसाई धर्म प्रचारक, उसके ऊपर दबाव डालेंगे , विदेशी कंपनियों के द्वारा |

अफ़सोस की बात है कि हिन्दुत्वादी अपने कार्य को पूरा करने के लिए , कुछ गुंडे और मोदी जैसे भ्रष्ट नेता ही खोज पाए थे , और कोई ज्यादा अच्छा नहीं खोज सकते |

भारत के ऊच जाती के ऊंचे लोग , आम-नागरिकों को अच्छी शिक्षा देने का खुले-आम विरोध करते हैं और उनकी अंग्रेजी शिक्षा देने के प्रति विरोध बहुत ज्यादा है | वैसे सभी ऊच जाती के ऊंचे लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी स्चूलों में भेजते हैं या कम से कम स्थानीय स्चूलों में ,जो अंग्रेजी को पहली कक्षा से पढाते हैं , फिर भी वे इसपर जोर देते हैं कि हम आम-नागरिकों के बच्चों को अंग्रेजी कक्षा 7 से पहले नहीं सीखनी चाहिए , ताकि हम आम-नागरिकों की अंग्रेजी हमेशा के लिए कमजोर हो | ये इसीलिए ताकि ऊंचे जाती के ऊंचे लोगों के बच्चे आगे बढ़ जायें और हम आम-नागरिकों के बच्चे उनके नौकर की तरह काम करें | `राष्ट्रिय स्वयं सेवी ` और `विश्व हिंदू परिषद` के स्कूल इसीलिए ही आम-नागरिकों के बच्चों को अंग्रेजी नहीं सिखाते |

हम आम-नागरिकों में अंग्रेजी के प्रति खिंचाव/आकर्षण बहुत ज्यादा है | इसीलिए जब ईसाई धर्म-प्रचारक आते हैं, इस मांग और सपलाई के अंतर का फायदा उठाने के लिए | वे कहते हैं “ ईसाई बन जाओ और हम आपके बच्चों को अच्छी अंग्रेजी शिक्षा देंगे |” अभी दलित और जनजाति के लोग वैसे भी उच्च जाती के ऊंचे लोगों से और ऊच जाती के पुलिस-वालों,बाबुओं, जजों,ऊंचे लोगों के अत्याचारों से तंग आ चुके हैं | और फिर जब अच्छी शिक्षा , जब मिलती है, तो वे खुशी से धर्म-परिवर्तन करते हैं |

उच्च-जाती के ऊंचे लोगों को दलितों को अंग्रेजी की शिक्षा पाने से नफरत है, ईसाई धर्म-प्रचारकों से ज्यादा | यदि दलितों और जनजातियों को अंग्रेजी शिक्षा मिलती है, तो वे भी अमेरिका चले जाएँगे और फिर भारत में ज्यादा ताकतवर बन जाएँगे , जब वे अपने कमाए हुए डॉलर भारत भेजेंगे | इससे भविष्य में ,उनके बच्चों के अवसर कम होंगे | इसीलिए वे ईसाई धर्म-प्रचारकों से भी नफरत करते हैं |

अलग : अभी हाल ही में मोदी, जो एक `अन्य पिछड़ी जाती` का है, उसने अंग्रेजी जरूरी / अनिवार्य बनने की कोशिश की थी, गुजरात में सभी बच्चों के लिए , पहली कक्षा से | ज्यादातर गुजरात के बजरंग दल , विश्व हिंदू परिषद और भा.जा.पा के कार्यकर्त्ता, जो `अन्य पिछड़े जातियों` से हैं  , ने मोदी का समर्थन किया | अनुमान लगाएं किसने उसका विरोध किया ? कांग्रेस ने नहीं | सी.पी.एम ने नहीं ( जिसके पास गुजरात में वैसे भी कम नेता हैं ) | `राष्ट्रिय स्वयं सेवा` और भा.जा.पा के वरिष्ट/सीनियर नेता ( जो सभी ऊच-जाती के थे !!), और कुछ गांधीवादियों (वो भी ऊच-जाती के थे !!) ने विरोध किया था |

प्रश्नकर्ता- क्या आप `धोखाधड़ी से धर्म-परिवर्तन को रोकने वाला` क़ानून का समर्थन करते हैं?

देश में पहले से ही ,`भारतीय दण्ड संहिता` में क़ानून हैं जो किसी भी प्रयोजन के लिए बल प्रयोग या झूठ पर प्रतिबन्ध लगाती है, धर्म-परिवर्तन की तो बात ही छोड़ दें | यदि बल प्रयोग या झूठ पर प्रतिबन्ध लगाना है, तो हमें कोई नए क़ानून की जरूरत नहीं है |

उच्च-जाती के ऊंचे लोग ये क़ानून चाहते हैं पैसे और अंग्रेजी शिक्षा के प्रयोग से धर्म-परिवर्तन को रोकने के लिए | उनको मालूम है कि एक बार ईसाई धर्म-प्रचारकों को अंग्रेजी शिक्षा का धर्म-परिवर्तन के लिए प्रयोग करने से रोक दिया जाये , तो ईसाई धर्म-प्रचारक अंग्रेजी सिखाना बंद कर देंगे | येही उच्च-जाती के ऊंचे लोगों को चाहिए —- वे नहीं चाहते की आम-नागरिक अंग्रेजी सीखें |

और, आप धर्म-परिवर्तन के लिए पैसे और अंग्रेजी शिक्षा के उपयोग का विरोध क्यों करते हैं ? हिंदू ऊंचे लोगों की इच्छा कि हम आम-नागरिकों को कमजोर रखा जाये हर तरीके से ( हमें हथियार रखने का अधिकार नहीं देना, हमें अंग्रेजी नहीं सिखाना, हमें क़ानून नहीं पढ़ाना आदि ) भारत को बहुत बड़ा नुकसान होगा |

हिदू मंदिरों को बहुत पैसा देते हैं | अभी मंदिरों के मालिक उस पैसे का प्रयोग हम आम-नागरिकों को हथयार का प्रयोग सिखाने, अंग्रेजी, क़ानून आदि सिखाने के लिए , ताकि हमारा स्तर सुधारे, का विरोध करते हैं |

लगभग सभी नेता अभी विदेशी कंपनियों के और ईसाई धर्म-प्रचारकों के अड्डे (वैटिकन) के एजेंट हैं , जिसमें आपके प्रिय भा.ज.पा. नेता भी आते हैं | अभी हाल ही में, `विश्व हिंदू परिषद` के कार्यकर्ताओं ने डांग, गुजरात में लाल किशन अडवानी को कहा कि वे गृह-मंत्री और विदेश मंत्रालय को चिट्टी लिखे ,कुछ ईसाई धर्म-प्रचारकों को देश से बाहर करने के लिए , जिनके वीसा समाप्त हो गए थे और जो धर्म-प्रचार कर रहे थे | अडवाणी ने मना कर दिया !!

लाल किशन अडवानी चाहते हैं कि विदेशी कम्पनियाँ `तिमेस ऑफ इंडिया` को कहें कि उसका समर्थन करें या उसका विरोध करना कम कर दे , जितना कि संभव है | तप अडवानी एक विदेशी कंपनी का एजेंट बन चुका है और एक तरह से ईसाई धर्म-प्रचारकों का भी एजेंट , क्योंकि विदेशी कंपनियों और ईसाई धर्म-प्रचारकों की आपस में मिली-भगत है |

प्रश्नकर्ता- एक रिपोर्ट के अनुसार , हिंदुओं कि आबादी 2.52 % बढ़ी है और ईसाई जन-संख्या 0.008% कम हुई है 1991 1998 के बीच |

कृपया `क्रिप्टो-ईसाई (क्रिप्टो-क्रिश्चियन)` शब्द पर गूगल करें |

उच्च-जाती द्वारा नियंत्रित कांग्रेस आरक्षण देने के लिए मजबूर थी | निचली जाती के लिए आरक्षण , उच्च-जाती के सुरक्षा के लिए थी (यदि आरक्षण नहीं दिया जाता , तो बड़े स्तर पर धर्म-परिवर्तन हो जाता और ऊच-जातियों के खिलाफ हो जाते  | नक्सल वाले क्षेत्र देखें, वहाँ भी ऐसा कुछ हो रहा है |)

 

(6) लोकतंत्र छोटे देशों और राज्यों में ज्यादा अच्छा चलता है |

बहुत से लोग देश के छोटे आकार / साइज का मतलब ही लोकतंत्र समझते हैं | इसमें दलील ये दी जाती है  “ देखो,  लोकतंत्र के कारण ही अथेन्स (पूराने समय के यूनान), इतना ताकतवर बन सका कि वो एक बड़े क्षेत्र पर राज कर सका और एक ऐसा प्रभाव छोड़ दिया जिसे हम आज भी याद करते हैं | अथेन्स में 60,000 युवक थे , 60,000 युवती और कुछ एक लाख बच्चे थे | तो आजाद जन-संख्या लगभग दो लाख थी |

इतने कम लोगों के पास कुछ 3 लाख गुलाम थे अथेन्स में और अथेन्स के आस-पास के क्षेत्र पर हावी थे जो अथेन्स के आकार और आबादी से 10-20 गुना थे | असल में, जो लोकतंत्र का पालन कर रहे थे, उसने उनको इतना ताकतवर बना दिया कि वे इतने सारे लोगों को गुलाम बना सके और दूसरों पर हावी कर सके |इसीलिए ऐसा कहना कि “ लोकतंत्र केवल छोटे क्षेत्र या जनसंख्या में ही संभव है “ , सही बात ये होगी कि “ लोकतंत्र छोटे जन-संख्या को भी इतना ताकतवर / शक्तिशाली बना देता है कि वो बड़ी जन-संख्या पर हावी हो सकता है |”

जैसे जन-संख्या / आकार बढ़ता है,  हमें तरीका बदलना होता है ताकि बड़ी जनसंख्या भाग ले सके | इतना ही है | इसके अलावा, आकार/जनसंख्या और लोकतंत्र का कोई सम्बन्ध नहीं है |

एक अच्छे तरह से बनाया गया प्रशासन का सिस्टम में, कार्यक्षमता (कार्य-क्षमता की कमी) `क` के अनुपात में नहीं होग लेकिन log (क) के अनुपात में होगा | उर आकार में बढ़ोतरी के साथ साथ तकनीक में भी बहुत सुधार होता है, जिसके द्वारा आम-नागरिक अफसरों की निगरानी कर सकते हैं, यदि ऐसे क़ानून-ड्राफ्ट और तरीके हैं , उन अफसरों की निगरानी करने के लिए | आज की समस्या ऐसे तरीकों की कमी की है, देश के आकार/जन-संख्या की नहीं |

प्रश्नकर्ता-  जितना बड़ा देश का आकार / जनसंख्या , उतना ज्यादा मुश्किल है , नागरिकों का असल में और सीधा भाग लेना, देश के मामलों

में फैसले लेने में , और इसीलिए उतनी ज्यादा जरूरत है प्रतीनिधियों (नेता) और तरीकों की  | लेकिन प्रतिनिधियों (नेता) और तरीकों से और

ज्यादा सम्भावना हो जाती है सिस्टम के भ्रष्ट हो जाने की |

हाँ, तरीकों की ज्यादा जरूरत होती है, लेकिन प्रतिनिधियों की नहीं | उदाहरण., आज की तकनीक आम-नागरिकों को हर साल 100-200 सीधे निर्णय लेने देते हैं , देश के मामलों में | लेकिन कितने निर्णय लिए जाते हैं सीधे , आज ? केवल 3 ५ सालों में ( पार्षद का चुनाव, विधायक का चुनाव, और सांसद का चुनाव) | इसीलिए आम-नागरिकों का अफसरों पर सीधे नियंत्रण/कंट्रोल की कमी , तरीकों की कमी के कारण है, आकार/जनसंख्या के कारण नहीं |

प्रश्नकर्ता- इसीलिए जब भ्रष्टाचार के अवसर होंगे, तो जिनको भ्रष्टाचार से फायदा होगा, वे उन अवसरों का उपयोग करेंगे |

यदि आम-नागरिकों के पास निर्णय लेने वाले अधिकारियों को सजा देने के तरीके होंगे , तो ऐसा नहीं होगा | उदाहरण ., आज भारत में हम आम-नागरिकों के पास सुप्रीम-कोर्ट जज को कैद करने या फिर एक आई.ऐ.एस. (बाबू) या पोलिस-कर्मी को भी कैद करने का कोई अधिकार नहीं है | और ये ही कारण है कि ये अधिकारी खुले-आम रिश्वत लेते हैं | एक बार उन्हें कैद करने, उनकी काले धन को जब्त करने ,आदि का अधिकार हम आम-नागरिकों को मिल जायेगा ,तो 99 % अधिकारी अच्छा बर्ताव करेंगे aur 1% बदल दिए जाएँगे | यहं फिर से, कारण तरीकों की कमी है, आकार / जन-संख्या नहीं |

 

(7) पढ़े-लिखे और चिंतित नागरिक अच्छे उम्मीदवार और प्रशासन में लोग / नेता क्यों नहीं ला पते ?

क्यों हम अटल बिहारी , प्रमोद, येचुरी,अरुण शौरी , नरेन्द्र मोदी , करात , मनमोहन सिंह, सोनिया गाँधी, चिदंबरम आदि नेताओं के साथ अटके हुए हैं ?

क्यों हम अटल बिहारी वाजपेयी, प्रमोद,येचुरी, अरुण, नरेन्द्रभाई, करात, मनमोहन सिंह ,सोनिया, चिदंबरम आदि के साथ क्यों अटके हुए हैं ?

शिक्षित/पढ़े लिखे लोग इनसे अच्छे विकल्प/लोग पदों पर लाने के लिए केरल ,उत्तर प्रदेश और बाकी भारत में भी असफल/फेल हो गए हैं क्योंकि –

(1) बहुत से चिंतित नागरिक नैतिकता(अच्छा बर्ताव) और राष्ट्रिय चरित्र/चाल-चलन के बकवास में विश्वास करते हैं | वो ये बकवास में विश्वास करते हैं “ कि बर्ताव/व्यवहार को सुधारों और देश सुधर जायेगा”| इसीलिए वे बर्ताव/व्यवहार और चरित्र-निर्माण (अच्छा चाल-चलन बनाना) की बेकार पढ़ाई पर ध्यान देते हैं | इसीलिए वे प्रशासन, कोर्ट आदि में कोई रूचि नहीं लेते जहाँ समस्या है |

और उनकी राजनीती में कोई भागीदारी / हिस्सेदारी नहीं है या केवल एक नेता को दूसरे से बदलने तक सीमित है | वे व्यक्ति पूजन से आगे नहीं सोच सकते , चाहे वो मोदी हो, बसु हो , अटल बिहारी हो, या लाल कृष्ण अडवानी हो आदि | इसीलिए वे ये नहीं सोचते कि उनको कोर्ट, प्रशाशन के कानूनों में बदलाव लाने के लिए क्या करना चाहिए | तो नेता बदलते हैं, कोर्ट और प्रशासन की व्यवस्था नहीं बदलती है और गड़बड़ चलती रहती है |

(2) हमारे पाठ्य-पुस्तक लिखने वाले कालेज के प्रोफेस्सर (बढ़ा मास्टर) , उनके प्रायोजक- विशिष्ट वर्ग/ऊंचे लोग को खुश करने के लिए , पाठ्य-पुस्तकों में आम नागरिक-विरोधी कचरा भर दिया है | केवल यही पढ़ने के लिय मिलता हिया “ आम भारतीय जातिवाद है, भावुक हैं ,सांप्रदायिक है ,बदमाश हैं आदि, आदि |” और वे ये छुपाते हैं कि ये बुराईयां भारतीय नेता-बाबु-जज-पोलिस-प्रभंधक-बुद्धिजीवी-ऊंचे/विशिष्ट लोग में भी है और भारतीय भ्रष्ट गठबंधन (नेता-बाबु-जज-पोलिस-प्रभंधक-बुद्धिजीवी-ऊंचे/विशिष्ट लोग ) में दो और बुराइयां हैं जो आम नागरिकों में नहीं है – भाई-भतिजेवाद और गुंडों और दूसरे भ्रष्ट गठबंधन से मिली-भगत | इसीलिए भारत में छात्र/विद्यार्थी , चिंतित नागरिकों समेत, लोकतंत्र (सारे देश के लोगों द्वारा देश के मामलों का फैसला ) के विरोधी हो गए हैं |

इसीलिए वे अल्प लोक-तंत्र (कुछ ही लोगों द्वारा देश के मामलों का फैसला ) समाधानों के समर्थक हो गए हैं और लोकतान्त्रिक समाधानों जैसे `भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने/सज़ा देने`, पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम),`एक से अधिक लोगों को वोट पसंद अनुसार`,  चुनाव फॉर्म को सरल बनाना, चुनाव जमा राशि बढ़ाना ,आदि का विरोध करते हैं , जो अधिक अच्छे उम्मीदवारों को बढ़ावा देंगे

नेता(उम्मीदवार) वायदा करता है व्यापारियों आदि को कि यदि वो चुनाव जीतता है और सांसद/मंत्री आदि बनता है , तो वो भारत सरकार के तोहफे/उपहारों की बौछार कर देगा , यदि ये आम नागरिकों का जीवन बरबाद कर देता हो तो भी | यहाँ शून्य विचारधारा या व्यक्तिवाद है – ये 100 % सौदेबाजी है या रिश्वतखोरी |

सभी विचार-धाराएं जैसे हिंदुत्व, धर्म-निरपेक्षता (सभी धर्म सामान हैं) ,और सबसे नए- शिक्षा- वाद, 85% बढौतरी-दर का वाद , कुछ नहीं ,केवल इस सौदेबाजी को छुपाने के लिए मुखौटे हैं | और ज्यादातर नेता आजकल केवल दलाल हैं , पूरे दलाल ,लेकिन दलाल भी ज्यादातर ईमानदार होते हैं |

सभी नेता, भारत में या पश्चिम में , का झुकाव रहता है कि उन लोगों को बढ़ावा देने के लिए, जो उसके लिए खतरा नहीं है | इसीलिए, सभी नेता का झुकाव दूसरे नेताओं को काटने का रहता है ताकि दूसरे नेताओं का नाम न हो जाये और उनके लिए खतरा ना बनें | और ये पक्का करते हैं कि केवल उनका “कमजोर” जूनियर/निचला व्यक्ति को ही बढ़ावा मिले | पश्चिम देशों ने ये समस्या को कम कर दिया है एक ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था बनाई है , जहाँ पहले तो , नेता इतना शक्तिशाली ही नहीं होता | उदाहरण- अमेरिका का राष्ट्रपति भारतीय प्रधानमंत्री जितना देश के आंतरिक/भीतर के मामलों में 5% भी शक्ति-शाली नहीं है |

और एक अमेरिका का गवर्नर के पास 1% भी  भारतीय मुख्यमंत्री जितने अधिकार नहीं हैं | उदाहरण एक अमेरिका का गवर्नर जिला पोलिस मुखिया का तबादला नहीं कर सकता , जबकि भारतीय मुख्यमंत्री पलक जपकते ये काम कर सकता है | इसीलिए अमेरिका के नेता इस स्थिति में नहीं है कि गुणवान/कुशल जूनियर/निचले लोगों को ऊपर बढ़ने से रोक सकें | लेकिन भारत में , प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के पास प्रशासन में इतने अधिकार है, कि वे पार्टियों में अपने विरोधियों को कुचल सकते हैं और ये पक्का कर सकते है कि केवल कमजोर निचले लोग ही ऊपर आयें और ताकतवर निचले लोगों को कोई ध्यान न मिले |

ऊंचे/विशिष्ट लोगों के आई.ऐ.एस.(बाबू) , पोलिस , कोर्ट और पार्टियों में दखल-अंदाज और पहुँच के कारण , एक अच्छे व्यवहार/बर्ताव वाला व्यक्ति कभी भी आई.ऐ.एस(बाबू), पोलिस, कोर्ट, राजनीति में ऊपर नहीं उठ सकता | `स्वतंत्र-सेनानियों` को छोड़ कर जो 1951 तक पहले ही ऊपर ऊठ चुके थे , कोई भी अच्छे व्यवहार/बर्ताव वाले लोगों को ऊंचे लोगों/विशिष्ट वर्ग से प्रयोजन नहीं मिला 1951 के बाद | और विदेशी कंपनियों/ ईसाई धर्म के कट्टरपंथी लोगों की पहुँच और दखल-अंदाज़ कांग्रेस, भा.जा.पा और दूसरी पार्टियों में, ने इस समस्या को और ज्यादा खराब कर दिया | अभी ,एक सच्चा राष्ट्रवादी/देशभक्त गुणवान व्यक्ति की कोई सम्भावना नहीं है कि वो आई.ऐ.एस (बाबू), पोलिस,कोर्ट और राजनैतिक पार्टियों में तरक्की कर सके |

केवल वे ही राष्ट्रवादी को विदेशी कम्पनियाँ/ईसाई धर्म के कट्टरवादी/रूढ़िवादी बढ़ावा देंगे ,जो बजरंगी किस्म के लोग है, जो गरम मिसाजी हैं ,जिससे देश को नुकसान पहुंचे | यदि कोई राष्ट्रवादी/देशभक्त किसी पार्टी ,आई.ऐ.एस(बाबू) , पोलिस में ठन्डे दिमाग का, दूर की सोच वाला, चुस्त/चतुर है , तो विदेशी कम्पनियाँ/ईसाई धर्म के कट्टरपंथी , ये सुनिश्चित करेंगे कि वो कभी भी ऊपर ना उठे , यानी तरक्की ना करे | तो उसका रास्ता रोक दिया जायेगा | इसीलिए वो पसंद करेगा कि वो इस सरकारी सिस्टम के बाहर काम करे , यानी प्राइवेट में काम करे |

 

(8) भारत में हालात अभी अच्छे हुए हैं, जैसे के पश्चिम में एक समय हुए थे | अमेरिका में लोक-तंत्र , चुनाव, जूरी द्वारा फैसला 200 सालों से ज्यादा था, लेकिन वहाँ की औरतों को वोट करने का अधिकार केवल भारत की औरतों से 10-15 साल पहले ही मिला था |

    अमेरिका या इंग्लैंड में औरतों के हालत ज्यादा अच्छे थे, भारत के औरतों की हालात से, उनको वोट मिलने से भी पहले | ऐसे तो स्विजरलैंड में, औरतों को वोट करने का अधिकार भारत में औरतों को वोट करने का अधिकार मिलने से बहुत बाद में मिला था | फिर भी स्विजरलैंड में, औरतों की स्थिति कहीं ज्यादा अच्छी थी |

अंग्रेजों ने चुनाव-प्रक्रिया (तरीका) 1934 में सबसे पहले लायी थी और वो `सार्वजानिक (सभी के लिए ) मताधिकार` के बिना थी | एक कारण ये था कि वो पहली कोशिश थी और दूसरा कारण ये था कि भारत के ऊंचे वर्ग के लोग , पढ़े-लिखे लोग जैसे विकइल और कई कांग्रेस के सदस्य सहित, सार्वजनिक (सभी के लिए ) चुनाव का विरोध करते थे | और कई भारतीय राजाओं ने अपने राज्यों में चुनाव के अधिकार ही नहीं दिए, अंग्रेजों के देने के बाद भी | 1936 में, राजकोट में, जहाँ भारतीय राजा का शाशन चलता था और सीधा अंग्रेज शाशन नहीं करते थे, एक प्रदर्शन किया , चुनावों की मांग करते हुए | राजा ने कैसे  जवाब दिया ? उसने हिंसक तरीके से उनको कुचला | तो इतना तो श्रेय अंग्रेजों को मिलना चाहिए कि उन्होंने चुनाव की प्रक्रिया लाए , सार्वजनिक (सभी के लिए) चुनाव ना भी लायें हो तो भी |

और , अमेरिका के नींव डालने वाले लोगों ने और ऊंचे वर्ग के लोगों ने कभी भी लोकतंत्र का स्तर नहीं कम किया , जो अंग्रेज उनके देश में छोड़ कर गए थे | जबकि भारत के नींव डालने वाले लोग और ऊंचे वर्ग के लोगों ने लोकतंत्र का स्तर कम कर दिया , लोकतंत्र के स्तर से जब अंग्रेज भारत छोड़ कर गए थे | मैं आशा करता हूँ कि ये सच कि भारतीय नेता-बाबू-जज-बुद्धिजीवी-ऊंचे वर्ग के लोग ने 1950 के दशक में जूरी सिस्टम को समाप्त कर दिया , सभी को ये विश्वास दिला देगा कि भारत के नेता-बाबू-जज-बुद्धिजीवी-ऊंचे वर्ग के लोग लोकतंत्र के खिलाफ हैं |  और कोई सबूत / प्रमाण नहीं चाहिए

 

(9) बुनियादी शिक्षा (बारवीं कक्षा) पास करना जरूरी होना चाहिए चुनाव लाधने के लिए | और ऐसा नियम होना चाहिए कि एक 3 महीने का बुनियादी क़ानून का पाठ्यक्रम (स्थानीय भाषा में या अंग्रेजी में) में भाग लेना होगा और उसको पास करना होगा उन विधायकों / सांसदों को, जिनका कोई भी कानूनी अनुभव नहीं है

75% से ज्यादा सांसदों ने कालेज पास किया है | और बहुत सारे क़ानून की पढ़ाई भी पढ़े हुए हैं | और एक अनपढ़ व्यक्ति भारत में (या कहीं भी दुनिया में) को बुनियादी क़ानून जैसे `भारतीय दण्ड संहिता` आदि का ज्ञान है | पढ़े-लिखे सांसद उतने ही भ्रष्ट हैं ,जितने कि अनपढ़ | इसलिए शिक्षा आदि उनके क़ानून पारित करने की क्षमता नहीं बढ़ाएगा |

और सांसद का काम है

1) अध्यक्ष के सामने क़ानून-ड्राफ्ट रखना
2) `हां`/`ना` बोलना उस क़ानून-ड्राफ्ट पर जब अध्यक्ष उस पर लोक-सभा में मतदान कराये

सांसद को 1) और 2) ,ये दोनों काम आम-नागरिकों के इच्छा के अनुसार करने होते हैं | ये आम-नागरिकों का काम है कि अपने क्षेत्र के सांसद को क़ानून-ड्राफ्ट बना कर दे | जब तक आम-नागरिक कोई भी क़ानून-ड्राफ्ट , सांसदों को नहीं देते , उनको एक मांसपेशी भी हिलानी की जरुरत नहीं है , मतलब कि कुछ भी करने की जरूरत नहीं है |

 

(10) “ सिस्टम अच्छा है, लोग ही हैं जो अच्छे नहीं हैं |”

गलत |

भ्रष्ट गठबंधन (नेता-बाबू-जज-पोलिस-नियामक(प्रबंधक)-बुद्धिजीवी-ऊंचे वर्ग के लोग) भ्रष्ट इसीलिए हैं क्योंकि उनको पता है कि हम आम-नागरिक उनको सज़ा नहीं दे सकते , न ही जुर्माना कर सकते हीं, किगना भी वे आम-नागरिकों को लूटें | इसीलिए हमें ये समस्या को दोनों स्तर पर हल करना होगा – लोग और सिस्टम | हमें कुछ बुरे लोग हटाने होंगे और कुछ अच्छे क़ानून (जैसे जूरी सिस्टम , भ्रष्ट को बदलने का नागरिकों का अधिकार ., आदि) लागू करने होंगे , जिससे भ्रष्ट लोगों को जेल डाल सकें |


(11) सेना में तरक्की और चुनाव का तरीका बहुत व्यवस्थित है क्योंकि सभी लोगों को मालूम रहता है कि उसपर नजर रखी जा रही है उनके सीनियर द्वारा और उनको ये भी मालूम होता कि दूसरा मौका नहीं मिलेगा यदि वे पकड़े गए तो |

सेना कम भ्रष्ट है क्योंकि निचले और बीच के स्तर के अफसर, पब्लिक / जनता से ज्यादा बातचीत, मिलती-जुलती नहीं है , न ही उनके पास नागरिकों के ऊपर कोई अधिकार होता है और उनको मिलने वाले बजट (खर्च करने के लिए पैसा) भी बहुत ज्यादा नहीं होता |

 

(12) भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को निचले स्तर से शुरू होनी चाहिए

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को ऊपर से शुरू होना चाहिए | ये रट कि केवल निचले स्तर पर ही ध्यान केंद्रित होना चाहिए, केवल शीर्ष के लोगों के लिए स्वर्ग बनाने के लिए ये रट किया जाता है | “ निचले स्तर पर भ्रष्टाचार पर ध्यान केंद्रित करो” का मायना है कि पटवारी/तलाटी/लेखपाल, तहसीलदार आदि से लड़ना और बाबूओं, पुलिस कर्मी, मंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के जजों को शांतिपूर्वक लूटने देना जितना लूटना चाहें|

मेरे विचार से हमें शीर्ष/सबसे उपरी स्तर पर धावा बोलना चाहिए | जब ऐसा होगा , तो नीचे का 99% भ्रष्टाचार गायब हो जायेगा | और फिर , हम बाकी 1% भ्रष्टाचार से भी निपट सकते हैं |

लेकिन यदि सुप्रीम-कोर्ट के जज और केन्द्रीय मंत्री , सभी भ्रष्ट हैं, फिर नीचले स्तर पर भ्रष्टाचार कभी भी समाप्त नहीं होगा, कितना भी हम लड़ते रहें, भ्रष्टाचार के खिलाफ |

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निचले स्तर का भ्रष्टाचार , इसीलिए बढ़ता है क्योंकि ऊपर के स्तर पर भ्रष्टाचार है | ये सामान्य ज्ञान है कि बाबू यदि भ्रष्ट होता है तो चपरासी के लिए रिश्वत लेना आसान हो जाता है |

और ज्ञान को छोडो, कभी-कभी तो ऊपर के लोग निचले स्टारों को पैसा जमा करने के लिए कहते हैं और उसका हिस्सा उन्हें देने के लिए कहते हैं| और ऊपर के लोग निचले और मध्य स्तर के लोगों को भर्ती करते समय लापरवाही से भाई-भातिजेवाद करता है जिससे सभी को भ्रष्ट होने का कारण मिल जाता है |

उदहारण, क्यों एक निचली अदालत के जज अपनी लालच को छोड़े जब उसे पता है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश `खरे` ने एक सजा पाया हुआ, बच्चों से यौनशोषण करने वाले धनी/पैसे वाला स्विस नागरिक को जमानत कर दे है ? और एक पुलिस इंस्पेक्टर रिश्वत क्यों नहीं ले जबकि उसे गृहमंत्री हर इंस्पेक्टर को उसे पैसे इकट्टा कर के देने का लक्ष्य देता है और उसका तबादला करने की धमकी देता है यदि उतना लक्ष्य पूरा नहीं हुआ तो !!

ये सब हो-हल्ला कि हमें केवल निचले स्तर पर लड़ना है और उपरी स्तर को छोड़ देना चाहिए ये सुनिश्चित/पक्का करता है कि बाबू ,जज और मंत्री और सभी सबसे ऊपर स्तर के लोग रिश्वत इकट्टा कर सकते हैं और आराम से सो सकते हैं जब हम पटवारियों और तहसीलदारों से लड़ने में व्यस्त हों |

प्रश्नकर्ता- आप ने भ्रष्टाचार के लिए जो समाधान बताये हैं जैसे जूरी सिस्टम , वे  पूरे सिस्टम पर काम करते हैं और “ ऊपर से नीचे की ओर “ काम करते हैं |

ये तरीके 100 % `नीचे से ऊपर की ओर` काम करते हैं और मुझे शुद्ध `ऊपर से नीचे की ओर` काम करने वाले तरीकों में कोई विश्वास नहीं है | मेरा तरीका पहले प्रधानमंत्री को `पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली (सिस्टम) सरकारी आदेश` पर हस्ताक्षर करने पर मजबूर करना है , जिसके बाद नागरिक कोई भी नागरिक द्वारा , कलेक्टर के दफ्तर में दी गयी अर्जी पर अपनी `हां`/`ना`दर्ज कर सकता है 3 रुपये दे कर और ये सब प्रधानमंत्री के वेबसाइट पर आ जायेगा ताकि लाखो-करोड़ों लोग देख सके और जांच कर सके , कभी भी, कहीं भी |

और सभी प्रस्तावित क़ानून जैसे जूरी सिस्टम , `पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली (सिस्टम)` द्वारा , एक प्रस्ताव के रूप में आयेंगे, लोगों के समर्थन और दबाव के द्वारा | इसीलिए कुछ भी `ऊपर से नीचे नहीं है | बाद में नीचे के लोग ,मतलब आम-नागरिकों के पास प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों, सुप्रीम-कोर्ट के जज, आदि को निकालने/बदलने के तरीके होंगे |

 

(13) हमें भ्रष्टाचार को कम करने के लिए क्या मूल्य/गुण चाहिए ?

कुछ मूल्य वाले प्रश्नों पर विचार करें –

1) पब्लिक (सरकारी) जमीन और प्राकृतिक संसाधन का मालिक कौन है ? और उसमें से किराया और
आमदनी किसको मिलनी चाहिए ?
2) सबसे बड़ा कौन है , आम-नागरिक या सुप्रीम-कोर्ट के जज ?
3) क्या आम-नागरिकों के पास सुप्रीम-कोर्ट के प्रधान-जज को बदलने का अधिकार है ?

और दूसरे प्रश्न भी | दूसरे शब्दों में, मूल्य और राजनीति का सिस्टम ,दोनों एक ही है | भारत में बहुत गडबड़ी है, क्योंकि आम-नागरिकों के पास लोकतान्त्रिक (सारे देश के लोगों द्वारा देश के मामलों का फैसला ) मूल्य नहीं हैं जैसे आम-नागरिक पब्लिक (सरकारी) प्लाट के मालिक हैं, आम-नागरिक सबसे ऊंचे/बड़े हैं और नागरिकों को (भ्रष्ट) सुप्रीम-कोर्ट के प्रधान-जज को निकालने / बदलने का अधिकार होना चाहिए |

जबकि भ्रष्ट गठबंधन (नेता-बाबू-जज-पोलिस-नियामक(प्रबंधक)-बुद्धिजीवी-ऊंचे वर्ग के लोग) के पास अल्प-लोक्तंत्र (देश के कुछ ही लोगों द्वारा देश के मामलों का फैसला ) के मूल्य होते हैं जैसे सुप्रीम-कोर्ट के जज ऊंचे/बड़े होते हैं आम-नागरिकों से , आम-नागरिकों को कुछ भी आमदनी और किराया नहीं मिलना चाहिए पब्लिक (सरकारी) प्लाट और खदानों से ., आदि |

 

(14) ये प्रस्तावित तरीके क्रन्तिकारी और संभव नहीं हैं |

कोई भी प्रस्ताव क्रांतिकारी नहीं है और हर प्रस्ताव , आज के प्रशासन में एक छोटा बदलाव लाता है | उदाहरण., पहले प्रस्ताव पर विचार करें – `पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली (सिस्टम)`—(www.righttorecall.info/001.h.pdf)

पहला प्रस्ताव कहता है — हम आम-नागरिकों के अर्जी प्रधानमंत्री के वेबसाइट पर दालों और हम आम-नागरिकों के `हां`/`ना` , उस अर्जी पर , प्रधानमंत्री के वेबसाइट पर दालों | दूसरे शब्दों में , हम आमनागरिकों को प्रधानमंत्री के वेबसाइट पर लिखने की आजादी मिलती है | क्या ये आपको क्रांतिकारी लगता है ? ये जरूर है कि जो लोग ये छोटे विकास वाले बदलावों का विदोध करते हैं, वे अक्सर इन तरीकों को गलत लेबल/नाम देकर , इन्हें क्रांतिकारी कहते हैं, लोगों में गलत राय बनने के लिए |

—-

और यदि किसी को उचित चर्चा चाहिए , तो उसे ऐसे शब्द जो साफ़ (स्पष्ट) नहीं हैं, जिसके कई मतलब हो सकते हैं ,जैसे “संभव (व्यावहारिक) नहीं”. ”संभव (व्यावहारिक)” आदि के प्रयोग से बचना चाहिए | शब्द “ संभव नहीं है “ के कई मतलब हो सकते हैं , जिनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है –

1. जिसका अच्छे से चलाना संभव नहीं है
2. भ्रष्ट गठबंधन (नेता-बाबू-जज-पोलिस-नियामक(प्रबंधक)-बुद्धिजीवी-ऊंचे वर्ग के लोग) जोरदार तरह से विरोध करेंगे और मैं इसीलिए ये तरीकों को समर्थन करने से डरता हूँ |
3. मेरे दोस्त और रिश्तेदार को ये पसंद नहीं आएगा यदि मैं इन क़ानून-ड्राफ्ट का समर्थन करता हूँ |
4. आम-नागरिकों को ये प्रस्तावित क़ानून-ड्राफ्ट और तरीके समझ नहीं आएंगे |
और बहुत सारे दूसरे मतलब |

उदाहरण., मेरे मुनीम और वकील दोस्त कहते हैं कि “ बाबुओं और जजों पर आयकर नहीं लगाना संभव नहीं है | ” उनका मताब (2) है | वे ही मुनीम और वकील ये भी कहते हैं कि “ जज के भर्ती के लिए इंटरवियू का विरोध करना व्यवहारिक(संभव) नहीं है | इसमें भी उनका मताब (2) है — वे परिणाम से डरते हैं , जो उनको सामना करना पड़ेगा यदि वे जजों के भर्ती के लिए इंटरवीयू का विरोध करें तो | और यदि कोई कहे “ चलो हम मंगल गृह चले जायें भ्रष्ट नेता-बाबू-जजों से बचने के लिए “ तो मैं कहूँगा कि ये व्यावहारिक नहीं है और मेरा मतलब (1) होगा |

इसीलिए जब आप शब्द “ व्यावहारिक नहीं “ का प्रयूग करते हैं, तो आपका क्या मतलब है ? ऐसे 5-10 मतलब वाले शब्दों से बचना चाहिए |

कृपया ध्यान दें कि भ्रष्ट शब्द के साथ जज और बुद्धिजीवियों का नाम जरूर लें , नेता और बाबूओं के साथ | ये जरूरी है कि हम ये झूठी बात कि `जज और बुद्धिजीवी ईमानदार हैं` को समाप्त करें और इसीलिए ये जरूरी है कि हम उनका नाम भी लें भ्रष्ट नेता और बाबू के साथ |

पहला सरकारी आदेश एक छोटा सा विकास है | इतना आसान और छोटा कि आप के जैसे कई इसकी संभावनाओं को देख भी न पाओ | लेकिन कोई भी अनुभवी नेता, या बुद्धिजीवी इससे होने वाले प्रभाव को  देख सकता है और कितना नुकसान करेगा भ्रष्ट नेता, `आई.ऐ.एस`(बाबू), पोलिस-कर्मी और जजों को , जिसके कारण उन्होंने ये पहली सरकारी आदेश से नफरत की है |

 

(15) ऐसे बेईमान लोग हैं जो जमीन को कई लोगों को बेच देते हैं और गायब हो जाते हैं | इसका क्या हल है ?

ये भारत में तोर्रेंस जैसे जमीन के रिकोर्ड के लिए सिस्टम के ना होने के कारण है | ये समस्य पूरी दुनिया में थी और ये सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया में रोबर्ट तोरेंस ने 1860 में हल की , एक जमीन के रिकोर्ड का ऐसा सिस्टम बना कर , जिससे जमीन के सौदों में घोटालों / धोखे  की समस्या समाप्त हो गयी और जो बाद में तोरेंस सिस्टम से जाने जाना लगा | ज्यादा जानकारी के लिए ये लिंक देखें-

http://en.wikipedia.org/wiki/Torrens_title

भारतीय नेता-`आई.ऐ.एस`(बाबू) तोरेंस सिस्टम का विरोध करते हैं क्योंकि इस सिस्टम में हरेक `बिक्री के पूर्व के दस्तावेज` जिनको बानाखत कहते हैं और `बिक्री के दस्तावेज` को सरकारी दफ्तर जा कर दर्ज करना होता | आपको मालूम है कि नेता-बाबू-पुलिसकर्मी–जज की मीलों-मीलों जमीन उनके नाम होती है और उसको दर्ज करने से उनके सारी संपत्ति/धन का खुलासा हो जायेगा |

 

(16) राजनीति में अचे लोग क्यों नहीं आते ?

मतदाता मूर्ख नहीं हैं |

क्योंकि वे उस तरह वोट नहीं करते , जैसे कि आप चाहते हैं कि वे करें, इसका ये मतलब नहीं के वे मूर्ख हैं |

क्योंकि जज भ्रष्ट और भाई-भतिजेवाद (रिश्तेदारों की तरफदारी) वाली है, हिंसक और पैसे वाले मुजरिमों (जैसे हर्षद मेहता) का राज चलता है | और इसीलिए हिंसक और पैसे वाले मुजरिमों ने ये पक्का कर लिया है कि कोई भी ` अच्छे आदमी ` इतने नहीं उठे , उनका इतना नाम नहीं हो कि वे विधायक बन पाएं | इसीलिए केवल मुजरिम या मुजरिमों के समर्थक ही नाम कमा पाते हैं |

कुछ लोग हिंसक मुजरिमों का समर्थन करते हैं और कुछ जैसे प्रमोद , मनमोहन सिंह आदि ., पैसे वाले मुजरिमों का समर्थन करते हैं |

यदि हम चाहते हैं कि अच्छे लोग जीते, हम को ये सुनिश्चित करना होगा कि अच्छे लोग सांस ले सकें, जी सकें और बढ़ सकें | और इसके लिए हमें हिंसक और पैसे वाले मुजरिमों को जेल में डालना होगा और हमें भ्रष्ट पुलिसवाले, जज, मंत्रियों आदि, को जेल में डालना होगा | उसके बाद ही अच्छे लोग चुनाव जीत सकते हैं |

जिन देशों ने अपने यहाँ जूरी सिस्टम लागू किया है, वहाँ भ्रष्टाचार कम है और ज्यादा आजादी भी है | (साम्यवादी देश में थोड़ी देर के भ्रष्टाचार कम थी , लेकिन कोई आजादी भी नहीं थी ) ज्यादा आजादी और साथ में ही कम अनुशाशन-हीनता और कम भ्रष्टाचार से ज्यादा विकास हुआ और भ्रष्टाचार कम हुआ | तो, गरीबी से भ्रष्टाचार नहीं होती , बल्कि इसके उल्टा है |

 

(17) मेरे अनुसार बहुत से कारण हैं भ्रष्टाचार होने के , गरीबी उसका सबसे बड़ा कारण है |

गरीबी भ्रष्टाचार होने का सबसे कम कारण है | क्या पोलिस के अफसर गरीब हैं ? क्या सुप्रीम-कोर्ट के जज गरीब हैं ? और सभी संगठित और योजना के साथ किये गए अपराध , कोर्ट से शुरू होते हैं | संगठित और जोजन से अपराध करने वाला अपराध नहीं करेगा , यदि उसे मालूम हो कि जज या जूरी के सदस्यों द्वारा उसको सज़ा दी जाने की काफी संभावना है | कुछ अपराध को छोड़ कर जो भावुकता के वजह से होते हैं, योजना से किये गए अपराध हमेशा कोर्ट और पुलिसवालों की मुजरिम के साथ मिली-भगत के कारण होते हैं |

उदाहरण., दावूद के सुप्रीम-कोर्ट के जज ,नेता, पुलिसवालों आदि के साथ मिली-भगत थी | इतनी ज्यादा मिली-भगत थी, के वो मोदी और वंजारा , जिन्होंने उसके एजेंट सोहराबुद्दीन को मारा था ,को परेशान करने के लिए भी सुप्रीम-कोर्ट के जजों को रिश्वत दे सका | ये ऐसी मिली-भगत ही हैं जिसने दावूद और उसके आदमियों को निडर मुजरिम बनाया था |उनको मालूम था कि पोलिस , जज आदि उनको छोड़ देंगे चाहे कुछ भी वो करें |

प्रश्नकर्ता- भारत में पुलिसवाले की भी बहुत कम वेतन है, जिससे उनका रिश्वतें लेने के लिए झुकाव होता है |

केवल कांस्टेबल का वेतन कम है | पोलिस-इन्स्पेक्टर और उससे ऊपर का बहुत अच्छा वेतन है, फिर भी वे सभी भ्रष्ट हैं |

 

(18) क्या झूठ पकड़ने की जाँच (लाई-डिटेक्टर टेस्ट) और नारको जांच , जांच करने वाले अधिकारी के ऊपर बिना राईट टू रिकाल के प्रक्रियाओं के , भ्रष्टाचार को कम करेगा ?

झूठ पकड़ने की जांच (लाई-डिटेक्टर टेस्ट) और नारको जांच , जांच करने वाले अधिकारों पर बिना राईट टू रिकाल के तरीकों के, भ्रष्टाचार को कम नहीं करेगा क्योंकि जाच करने वाला अधिकारी बिक सकता है और आसान सवाल पूछ सकता है या बेहोश करने वाली दवाई की कम मात्र दे सकता है ताकि व्यक्ति जागा हुआ हो और आसानी से झूठ बोल सके |